परिश्रम का चमत्कार
चंद्रपुर गाँव में एक किसान रहता था। उसके दो बेटे थे। मरते समय उसने दोनों बेटों को एक जैसा संपत्ति बांट दी और सीख देते हुए कहा कि तुम दोनों हमेशा अच्छे से अच्छा खाना खाने की कोशिश करना। इसी से तुम हमेशा मेरी तरह धनी व सुखी रह सकोगे। किसान के मरने के बाद छोटे भाई बड़े भाई से कहा - भैया, चलो किसी बड़े शहर में चलकर रहते है। वहीँ हमें अच्छे से अच्छा खाना मिल सकता है। बड़े भाई ने कहा - अगर तुम चाहो तो शहर जा सकते हो, मैं यही गाँव में रहूँगा और जो अच्छे से अच्छा खाना यहाँ मिलेगा, वही खाऊँगा।
छोटे ने अपनी जमीन-जायदाद बेचीं और सारा पैसा लेकर शहर में उसने बड़ा सा घर लिया। अच्छे से अच्छे रसोईये व् नौकर रखे, उनसे अच्छे से अच्छा खाना बनवाकर खाने लगा और आराम से रहने लगा। सोचने लगा कि अब वह जल्दी ही अपने पिता की तरह धनी और सुखी हो जायेगा। लेकिन हुआ उसका उल्टा। जल्दी ही उसका सारा पैसा ख़त्म हो गया और फिर सारा सामान व् मकान भी बिक गया। अंतः उसे गाँव में लौटना पड़ा।
गाँव आकर उसने देखा कि उसका बड़ा भाई बहुत धनी हो गया है। उसने कहा - भैया, मुझे वह खाना दिखाओ, जिसे खाकर तुम इतने धनवान बने हो। मैं तो शहर में अच्छे से अच्छा खाना खाया फिर भी कंगाल हो गया। बड़े भाई ने कहा खाना दिखाना क्या ? में तुम्हें खिलाऊँगा भी। लेकिन पहले खेत पर चलें। और बड़े भाई खेत में काम करने लगा और छोटे को भी काम पर लगा दिया इस तरह दोनों खेत में बहुत देर तक परिश्र्म करते रहे और फिर उन्हें बहुत जोर की भूख लगी। छोटे ने कहा मेरे हाथ पैर जवाब दे रहे है। अब तो अपना वह अच्छे से अच्छा खाना खिलाईये। दोनों हाथ पैर धोने के बाद पेड़ की छाया में बैठ गए। फिर बड़े भाई ने पोटली खोली और उस में से रोटी निकालकर एक छोटे भाई को दिया और एक खुद ने ली। छोटे का तो भूख के मारे बुरा हाल था। वह फ़ौरन उस मोटी- सी सुखी रोटी पर टूट पड़ा। भूख के मारे उसे वह रोटी छप्पन भोग तरह लग रही थी। बड़े ने पूछा, कहो रोटी का स्वाद कैसा है ? बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कह कर उसने पूरी रोटी ख़त्म कर दी। इस रोटी से मुझ में जरा-सी-जान आयी। अब चलिये, घर चलकर मुझे अपना अच्छा खाना भी खिलाइये। बड़े भाई ने कहा यही तो वह सब से अच्छा खाना है, क्यों तुम्हे अच्छा नहीं लगा ? छोटे ने कहा -रोटी तो बहुत स्वादिष्ट लगी, लेकिन क्या यही आपका अच्छा खाना है ? आश्चर्य से छोटे ने पूछा ! मेरे भाई, मेहनत करने के बाद कड़कड़ाकर भूख लगाने पर खाया गया खाना ही दुनिया का सब से अच्छा खाना होता है। इसी अच्छे खाने से धनी और सुखी रहा जा सकता है। पिताजी के कहने का यही मतलब था। इस तरह बड़े भाई ने छोटे को समझाया। तब छोटे के समझ में आ गया की धनवान बनना है तो परिश्रम करो परिश्रम का ही चमत्कार है।
सीख - बिना मेहनत किये कितना भी अच्छा खाना खाने से धनवान नहीं होंगे। परिश्रम करके खाना खायेंगे तो धनवान जरूर बनेंगे।
No comments:
Post a Comment