धरनी का प्रभाव
श्रवण कुमार अपने अंधे मात-पिता को चारों धाम की यात्रा कराने निकल पड़ा। दोनों को कावड़ में बिठा कर हर तीर्थ स्थान की यात्रा करा रहा था। अब वह हरिद्धार के तरफ प्रस्थान कर रहा था कि बीच रास्ते में उसे संकल्प आया कि मेरे माता-पिता अंधे है। मैं अपने जीवन का मूल्यवान समय फालतू में गँवा रहा हूँ। मुझे अपने अन्धे माँ बाप से कुछ मिलता तो है नहीं मैं क्यों इन्हें उठाकर घूम रहा हूँ। और अचानक ही उसने अपने माता - पिता से कहा आप मुझे क्या देंगे ? मैं आपको यात्रा करा रहा हूँ, मुझे क्या मिलेगा ? अंधे मात-पिता प्रश्न सुनकर चौक गये, लेकिन उसके पिता ने श्रवण से पूछा, बेटे अभी हम कौन से स्थान पर है ? उसने कहा दिल्ली। उसके पिता ने कहा बेटे, हम को थोड़ी दूर हरिद्धार ले चलो, फिर तुम्हें जो चाहिए हम देंगे।
श्रवण कुमार अपने मात-पिता को हरिद्धार ले आया। जब वह हरिद्धार पहुँचा तो अपने मात-पिता से कुछ माँगने पर उसे बहुत पश्चात हुआ और रोने लगा और कहा आपसे कुछ माँगकर मैंने बहुत बड़ा अपराध किया। अब मेरा जीवन में रहना उचित नहीं है। तब उसके अंधे पिता ने कहा बेटा, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है। दिल्ली की धरनी पर सब लोग लेने वाले है, कोई सेवा करने वाला नहीं। इसलिए उस धरनी के प्रभाव के कारण तुमने हम से कुछ माँगा। अब हम भगवान की धरनी पर है जो हरी सबको देता है जिस कारण तुम्हे पश्चाताप हुआ। इसलिए बेटे तुम बहुत श्रेष्ट हो, सिर्फ धरनी का प्रभाव तेरे पर पड़ा था, वह अब नष्ट हो गया है।
सीख - हर चीज वस्तु का निरंतर हम पर प्रभाव पड़ता है। इस लिए दूसरे का प्रभाव हम पर न पड़े इस के लिए स्वयं को शक्तिशाली बनाव। इस लिए राजयोग या मैडिटेशन या ध्यान का नियमित अभ्यास करते रहो।
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