असली गहना
एक ' चक्ववेण ' नाम के राजा थे। वे बड़े धर्मात्मा थे। राजा और रानी दोनों खेती करते थे और खेती से जितना उपार्जन हो उस से अपना निर्वाह करते थे। राज्य के धनको वे अपने काम में नहीं लेते थे। प्रजा से जो कर लेते थे, उसको प्रजा के हित में ही खर्च करते थे। राजा हुवे भी वे साधारण मोटा कपड़ा पहनते थे और भोजन भी साधारण ही करते थे।
एक दिन नगर में बड़ा उत्सव हुआ। उस दिन नगर की स्त्रियाँ रानी के पास आयी। नगर की स्त्रियाँ तो बहुत किमती साड़ी और सोने के गहने पहन रखे थे। स्त्रियों ने जब रानी को देखा की वे बहुत ही साधारण कपडे पहने है तो सब ने कहा " रानी साहेबा आप तो हमारे मालकिन है। आप को तो हम से भी अच्छे कपडे और गहने पहनने चहिये। ये बात रानी को लगी। और उसी रात रानी ने राजा से कहा "आज मेरी बहुत फजीती हुई। हम मालिक होकर भी प्रजा की तुलना में नहीं है ? नगर की स्त्रियाँ हम से अच्छे गहने और कपडे पहनते है। इस लिए हमें भी अब अच्छे कपडे और गहने चाहिए। " राजा ने कहा " हम तो अपनी मेहनत की कमाई से खाते है और पहनते है गहनों के लिए हमें कर्ज लेना होगा। फिर भी हम आपके लिए प्रबन्ध करेंगे धैर्य रखो। "
अगले दिन चक्ववेण राजा ने अपने एक आदमी से कहा तुम लंकापति रावण के पास जाओ और उस से कहो की " चक्ववेण राजा ने आप से कर माँगा है " और कर रूप में रावण से सोना ले लेना। वो आदमी गया और रावण से कर माँगा। रावण सुन कर हँसाने लगा और कहा रावण से कर माँगने की हिम्मत कैसे की ? रावण ने आज तक किसी को कर नहीं दिया है। और ना ही देग तुम्हारी अक्ल कहा चली गयी है ? जो रावण से कर माँगने चले आ गए ! चला जा यहाँ से. उस आदमी ने कहा अब तो तुम्हे कर देना ही होगा। में कल फिर आऊंगा आज रात विचार करो।
रावण रात जब मन्दोदरी से मिला और कहा ऐसे ऐसे मुर्ख लोग है संसार में!रावण से कर माँगने आ जाते है। मन्दोदरी ने कहा क्या हुआ महाराज, रावण ने सारी बात बता दी , मन्दोदरी राजा चक्ववेण के बारे में जानती थी। उसने सुबह रावण से कहा महाराज आज छत पर चलो में तुम्हें तमाशा दिखाती हूँ। रावण छत पर गए मन्दोदरी ने कबूतरों को दाना डाल कर कहा " तुम्हें रावण की कसम अगर एक भी दाना चुगा तो " कबूतरों पर उसके इस बात का कोई असर नहीं हुआ फिर थोड़ी देर बाद कुछ दाना और डाल कर मन्दोदरी ने कहा " तुम्हे कसम है चक्ववेण राजा की अगर एक भी दाना चुगा तो " कबूतर सब रुख गये और एक कबूतर बहरा होने के कारण दाना चुगता रहा तो उसकी गर्दन काट गयी। ये देख रावण ने कहा " ये तुम्हारी मन की बात है। ये तेरा जादू है, ऐसा कभी हुआ है क्या ? रावण किसी को कर नहीं देगा।
रावण दरबार में अपने राजगद्दी पर जाकर बैठ गये। उसी समय वो आदमी फिर आ गया और कहा-"अपने रात में विचार किया होगा कर देने का मुझे कर रूप में सोना दे देना। रावण हँसाने लगा और कहा देवतायें मेरे यहाँ पानी भरते है। हम किसी को कर नहीं देंगे ये हमारे शान के खिलाफ है। अच्छा ! वो आदमी बोला आप मेरे साथ समुद्रके किनारे चलिये। रावण को कोई डर तो था ही नहीं वो चल दिया। वो आदमी समुद्र के किनारे पर बालू से लंका की हु बा हु आकृति बना दी और कहा लंका ऐसा ही है न ? रावण ने कहा हाँ - फिर उस आदमी ने कहा -" राजा चक्ववेण की दुहाई है " ऐसा बोलकर उस आदमी ने एक हाथ मारा तो एक दरवाजा गिरा जैसा यहाँ गिरा बिल्कुल वैसे ही लंका का भी एक दरवाजा गिरा। उस आदमी ने कहा कर देते हो या अभी आपकी लंका पूरा गिरा दूँ। रावण डर गया बोला हल्ला मत कर जा जितना सोना चाहिए उतना सोना लेकर जा।
आदमी ने सारा सोना लाकर राजा चक्ववेण को दिया और राजा ने रानी को दे दिया और कहा जितना गहने चाहिए उतना बनवाले। रानी ने पूछा इतना सोना आया कहा से ? राजा ने कहा रावण से कर रूप में आया है। रानी सोचने लगी की रावण कर दिया कैसे ? कुछ समय बाद रानी ने उस आदमी को पूछा की रावण ने कर दिया कैसे ? आदमी ने सारी कहानी बता दी। रानी आश्चर्य चकित हो गयी। उनके मन में पतिदेव के प्रति श्रद्धा बड़ी और उसने कहा मेरे पास मेरा असली गहना तो मेरे पति देव है। दूसरा गहना मेरे क्या काम का ? गहनों की शोभा तो पति के कारण है। पति के बिना गहनों की शोभा ही क्या ? जिसका प्रभाव इतना की रावण भी डर जाय उस से बढ़कर गहना और क्या हो सकता है। उसी समय रानी ने उस आदमी से कहा जाओ ये सोना रावण को लौटकर कहो - "राजा चक्ववेण तुम्हारा कर स्वीकार नहीं करते। "
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