वहम
मुकुन्दस नाम का एक व्यक्ति एक अच्छे सन्त के शिष्य थे। और सन्त जब भी मुकुन्दस को अपने पास आने के लिए कहते, वह यही कहता कि मेरे बिना मेरे स्त्री-पुत्र रह नहीं सकेंगे। वे सब मेरे ही सहारे बैठे हुए है। मेरे बिना उनका निर्वाह कैसे होगा ? सन्त कहते कि भाई ! यह तुम्हारा वहम है, ऐसी बात है नहीं। एक दिन सन्त ने मुकुन्दस से कहा तुम परीक्षा करके देख लो। मुकुन्दस परीक्षा के लिए मान गया। सन्त ने उसको प्राणायम के कुछ श्वास रोकने वाले विधि बताये और उन्हें सिखा भी दिया।
एक दिन मुकुन्दस अपने परिवार के साथ नदी में नहाने के लिए गया। नहाते समय उसने डुबकी लगाकर अपना श्वास रोक लिया और नदी के भीतर-ही भीतर दूर जंगल में चला गया और बाहर निकलकर सन्त के पास पहुँच गया। और सन्त ने ये बात किसी को नहीं बतायी। परीक्षा चल रही थी। इधर परिवार वालों ने नदी के भीतर उसकी बड़ी खोज की। वह नहीं मिला तो उनको विश्वास हो गया कि वह तो नदी में बह गया। सब जगह बड़ा हल्ला हुआ कि अमुक व्यक्ति डूबकर मर गया ! और गाँव के कुछ लोग और सत्संगियों ने आपस में विचार किया कि मुकुन्दस तो बेचारा मर गया, अब हमें ही उनके स्त्री और पुत्र का निर्वाह का प्रबन्ध करना चाहिये। सब ने अपनी-अपनी तरफ से सहायता देने की बात कही। किसी ने आटे का प्रबन्ध अपने जिम्मे लिया, तो किसी ने चावल का.……आदि -आदि। और धर्मशाला में रहने के लिए एक कमरा देकर उनकी हर जरुरत की वस्तु समय से पहले उन्हें मिलने लगा। इस प्रकार सन्त से पूछे बिना उनके सत्संगियों ने सब प्रबन्ध कर दिया।
थोड़े दिनों के बाद मुकुन्दस की स्त्री सन्त के पास गयी। सन्त ने घर का समाचार पूछा कि कोई तकलीफ तो नहीं है ? स्त्री बोली कि जो व्यक्ति चला गया, उसकी पूर्ति तो हो नहीं सकती, पर हमारा जीवन-निर्वाह पहले से भी अच्छा हो रहा है। सन्त ने पूछा ,-पहले से भी अच्छा कैसे ? स्त्री ने कहा ,' आपकी कृपा से सत्संगियों ने सब आवश्यक सामान रखवा दिया है। जब किसी वस्तु की जरुरत पड़ती है , मिल जाती है। ' मुकुन्दस छिपकर उनकी बातें सुन रहा था।
कुछ समय बीत गया तो सन्त ने मुकुन्दस से कहा कि तू अब घर जाकर देख। वह रात के समय अपने घर गया और बाहर से किवाड़ खटखटाया। स्त्री ने पूछा -' कौन है ?' मुकुन्दस ने कहा -'मैं हूँ, किवाड़ खोल। ' आवाज़ सुनकर स्त्री डर गयी कि वे तो मर गये, उनका भुत आ गया होगा ! स्त्री बोली - ' मैं किवाड़ नहीं खोलती ' मुकुन्दस बोला - ' अरे, मैं मरा नहीं हूँ ;किवाड़ खोल। ' स्त्री बोली - ; बच्चा देख लेगा तो डर के मारे उसका प्राण निकल जायेगा, आप चले जाओ। ' मुकुन्दस जी बोला - ' अरे, मेरे बिना तुम्हारा काम कैसे चलेगा ?' स्त्री बोली - ' सन्तों की कृपा से पहले से भी बढ़िया काम चल रहा है, आप चिन्ता मत करो। आप कृपा करके यहाँ से चले जाओ। ' मुकुन्दस बोला - ' तुम्हारे को कोई दुःख तो नहीं है ?' स्त्री बोली - 'दुःख यही है कि आप आ गये ! आप न आये तो कोई दुःख नहीं होगा ! आप आओ मत - यही कृपा करो !'
सीख - इस सृस्टि के रचयता परमात्मा है वही पालनहार है। इस लिए उस पर भरोसा कर साक्षी हो इस संसार में रहना है। काम करड़े दिल यार डे। होकर रहना है। किसी के रहने या नहीं रहने से कोई काम कभी रुकता नहीं है। ये ड्रामा है जो चलता ही रहता है।
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