एक बार गौतम बुद्ध से एक व्यक्ति ने पूछा कि भगवान् आप दिन-रात हजारों लोगों को उपदेश देते रहते हैं पर जिज्ञासा वश पूछना चाहता हूँ कि आप के प्रवचनों से कितने लोग मुक्ति को उपलब्ध हुए हैं तो बुद्ध ने कहा कि तुम्हारे इस प्रश्न का जवाब अवश्य दूंगा पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। एक डायरी और पेन लेकर गाँव में जाओ और प्रत्येक व्यक्ति से उसकी एक इच्छा पूछो और उसे लिखकर ले आओ। वह व्यक्ति गाँव में गया और एक-एक व्यक्ति से उसकी इच्छा पूछकर उसे लिखने लगा। किसी ने पुत्र-प्राप्ति की इच्छा तो किसी ने उत्तम स्वास्थ्य की, किसी ने धन-संपत्ति की तो किसी ने ऊँचे पदों की इच्छाएं जताई। शाम तक वो युवक सभी की इच्छाएं पूछकर बुद्ध के पास आया और बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा। बुद्ध ने कहा कि देखा तुमने! तुमनें इतनें लोगों से उनकी एक-एक इच्छा पूछी हैं पर किसी नें भी मोक्ष की, ध्यान की या परमात्मा की इच्छा नहीं जताई। स्वयं भगवान् भी आकर यदि लोगों से कुछ मांगने को कहें तो भी लोग परमात्मा से परमात्मा नहीं , बल्कि संसार ही मांगेंगे। लोग चेतना के जिन निम्न तलों पर आज हैं उससे ऊपर उठने की प्यास तो उन्हें स्वयं ही अपने भीतर लानी होगी। लोग जंजीरों को आभूषण समझे बेठे हैं और आभूषणों को अज्ञानवश जंजीर बना बेठे हैं। लोगों को होश लाना ही होगा । समझ विकसित करनी ही होगी। जैसे जैसे होश और बोध सधता जाएगा इस पार्थिव देह में चेतना का ज्वार उर्ध्व गमन को उपलब्ध होता जाएगा। परमात्मा तो वही देता हैं जो तुम्हारी चाहत हैं ये तुम पर निर्भर है कि तुम उससे क्या मांगते हो। पहले उन लोगों को देखो कि जिन्होनें संसार माँगा है क्या उन्हें संसार मिल गया है चाहे वो सिकंदर हो कि हिटलर या मुसोलिनी हो। फिर बुद्ध , महावीर और तीर्थंकरो , पैगम्बरों और अवतारों को देखो और प्यास को पीओ तुम्हारे हर प्रश्न का जवाब मिल जाएगा।
सीख - एक बार हमें भी अपने आप से पुछना है की हमारी इच्छा क्या है ?
मुक्ति
सीख - एक बार हमें भी अपने आप से पुछना है की हमारी इच्छा क्या है ?
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