ओम शांति
मैं आत्मा हूँ इस बात का समझ और अभ्यास कितना समय कर सकते हैं और कैसे कर सकते हैं इस बात को लेकर काफी चर्चा होती है, लेकिन चर्चा ही रहता है और अभ्यास की जब बात आती है तो प्रतिशत कम कम होता जाता है और कभी तो शून्य परिणाम ही होता है। मैं टाइप करते करते भी शून्य एक शून्य एक का महसूस कर रहा हूँ। बहुत ही अनोखा खेल लग रहा है जब मैं आपको अभ्यास करते हुए टाइप कर रहा हूँ। 'खेल' शब्द यहाँ बहुत अच्छा लगता है। इसे याद रखना है तो तनाव मुक्त हो जाएंगे। टाइप करते करते मेरे मन में किसी की अपेक्षा और पुरानी चीजें याद आती हैं, सही और गलत को याद करता हूँ। ओम शांति। फिर कोई सेवा करने का काम मुझे मिला है और वो किसी ने किसी को दिया है, तो लगता है कि हमारा अस्तित्व खो गया हो।
शांत शांत शांत अपने आप को मन से कहिए, छोड़ो छोड़ो छोड़ो कहिए अपने आप से, शांत शांत शांत कहिए अपने आप से। और चेहरे पर कृत्रिम मुस्कान लाइए, फिर धीरे-धीरे यह वास्तविक महसूस कीजिए। भगवान आपके चेहरे पर ऐसी मुस्कान देखना चाहते हैं।
हमें यह याद रखना चाहिए कि आत्मा के रूप में हमारा अस्तित्व अटूट और स्थायी है। यह असीम और अजर अमर है। चाहे कितना भी संघर्ष हो, हमें अपनी आत्मा की शक्ति का अनुभव करना चाहिए। हर छोटे-छोटे प्रयास के साथ, हमारे आत्मबल में वृद्धि होती है। जैसे-जैसे हम अपने असली स्वरूप का अभ्यास करते हैं, हमारे जीवन में संतुलन और शांति स्वतः आ जाते हैं। धैर्य और समर्पण के साथ जब हम अपनी आत्मा को पहचानते हैं, तो हमारी आंतरिक शक्ति उजागर होती है और हम कठिन परिस्थितियों में भी स्थिर रह पाते हैं।
हर दिन कुछ समय निकालकर अपनी आत्मा को पहचानने और समझने के अभ्यास में लगाना चाहिए। ध्यान, स्वाध्याय और स्वमूल्यांकन के माध्यम से हम अपनी आत्मा की गहराइयों में झाँक सकते हैं। धीरे-धीरे यह प्रक्रिया हमारे मन और आत्मा को शांति और संतुलन प्रदान करती है। भगवान की दी हुई यह अनमोल संपदा है, जिसे हमें सहेज कर रखना है। अपनी आत्मा का ध्यान करना और उसमें लीन होना, यही हमारे जीवन का असली उद्देश्य है। और चेहरे पर सदैव वही मुस्कान होनी चाहिए, जिसे देखकर भगवान भी प्रसन्न हों।
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