Friday, May 16, 2014

Hindi Motivational Stories ..............

" सहनशीलता शहनशाह बनाती है "


          एक बार की बात है कि महात्मा गाँधी जी, पानी वाले जहाज में सफर कर रहे थे। शाम का समय था। सभी यात्री अपने - अपने केबिन से बाहर आकर खुले में बैठे थे। कुछ यात्री मनोरंजन के अनेक साधनों से स्वयं को तथा अन्य यात्रियों का मनोरंजन कर रहे थे, तो कुछ यात्री जहाज के किनारे पर खड़े होकर समुद्र में उठती लहरों का आनन्द ले रहे थे। परन्तु गाँधी जी एक कुर्सी में बैठे ध्यान - मग्न होकर एक पुस्तक पढ़ रहे थे। 
     
        उसी समय एक अंग्रेज आया जो गाँधी जी से चिढ़ता था। वह गाँधी जी के हाथ में कागज के चार पेज जिन पर कुछ लिखा हुआ था और एक पिन के साथ जुड़े थे। वो पेपर्स गाँधी जी को पकड़ा कर चला गया और दूर एक कोने में खड़े होकर गाँधी जी के चेहरे में उभरते भावों का अध्ययन करने लगा। गाँधी जी ने उन पृष्ठो को क्रमानुसार खोला तथा उसे पूरा ऊपर से नीचे तक पढ़ा। उन कागजों पर बहुत ही बुरे तथा असभ्य शब्दों में गाँधी जी के लिये गालियाँ लिखी हुई थी। चारों पृष्ठो को पढ़ने के बाद गाँधी जी उस अंग्रेज के पास गये। गाँधी जी को अपने तरफ आते देख कर अंग्रेज अपने सामने पड़े पेपर लेकर पढने का नाटक करने लगा। गाँधी जी उसके पास पहुँचकर एक कुर्सी लेकर उसके सामने बैठ गये और बड़े ही प्यार से बोले - श्रीमान जी, मुझे इस पिन की अत्यन्त आवश्यकता थी, जो अपने मुझे दे दिया। इस लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद। बाकी इन कागजों की मुझे आवश्यकता नहीं है, क्यों कि ये मेरे काम की चीज़ नहीं है इसलिये इन्हें आप वापस अपने पास ही सम्भाल कर रखें। हो सकता है यह आपके काम आ जाये। इतना कह कर गाँधी जी ने बड़े प्यार से उस अंग्रेज़ से हाथ मिलाया तथा वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गये। 

       अब अंग्रेज सोचने लगा मैंने इस व्यक्ति के लिए इतने असभ्य शब्दों का प्रयोग किया, परन्तु इसका तो इस पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा उल्टा उसने मुझे धन्यवाद दिया। यह सोच- सोच कर अंग्रेज़ आत्म -ग्लानि से भर गया तथा महात्मा गाँधी जी की महानता के आगे नतमस्तक हो गया। 

सीख - सहनशीलता वाला व्यक्ति खुद शहनशाह होता है उसकी सोच को कोई बदल नहीं सकता चाहे वो किसी भी तरह का प्रयोग करे बुरे शब्दों का या बुरे व्यवहार का क्यों की सहनशील व्यक्ति अन्दर से सम्पन होता है इस लिये वो बाहर की बातों से परेशान नहीं होते। 



Friday, May 9, 2014

Hindi Motivational Stories - " दर्पण "

दर्पण 

        महान दर्शन शास्त्री सुकरात शक्ल से अति बदसूरत थे। यदि कोई उनके विचार सुने बिना ही पहली बार उन्हें देखे तो घृणा हो जाये परन्तु उनके उच्च विचार सभी को पहले ही बार में अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। एक बार सुकरात वृक्ष की शीतल छाँव में बैठे आइने में अपना मुख निहार रहे थे। उसी समय उनका एक शिष्य वहाँ आ गया। सुकरात को यह किया कलाप करते देख न चाहते हुए भी उसे हंसी आ गई। उसने हंसी को दबाने के बहुत प्रयास भी किया परन्तु वह सफल न हो सका। शिष्य को हँसता देख सुकरात ने उसकी हंसी का कारण पूछा। शिष्य ने सुकरात के प्रश्न को टालना चाहा परन्तु सुकरात के बार -बार पूछने पर शिष्य को झुकना ही पड़ा और उसने डरते हुए कहा कि - आप शक्ल से सुन्दर भी नहीं है और अपने चेहरे को आइने में निहार रहे है अंतः यह देखकर मुझे हंसी आ गई। मेरी इस गलती को माफ़ करे। 

         यह सुनकर सुकरात ने बहुत ही अच्छा उत्तर दिया - देखो, मैं दर्पण में अपना चेहरा यह सोच कर नहीं देख रहा था कि, ' मैं चेहरा देखकर ईश्वर को दोष दूँ कि उसने मुझे इतना बदसूरत क्यों बनाया ? बल्कि दर्पण इसलिए देखता हूँ कि मैं ऐसे कौन से उत्तम कर्म करूँ जो कि मेरे चेहरे की कुरूपता को ढक ले। 

        सुकरात का रहस्य भरा उत्तर सुनकर शिष्य ने सोचते हुए कहा - फिर तो सुन्दर व्यक्ति को अपना चेहरा दर्पण में नहीं देखना चाहिए ? इस प्रश्न के उत्तर में सुकरात ने कहा - नहीं, सुन्दर व्यक्ति का भी अपना चेहरा दर्पण में यह सोच कर अवश्य देखना चाहिए कि मैं ऐसे कौन से अच्छे कार्य करूँ, ताकि मेरी सुन्दरता सदैव ही बनी रहे। मैं ऐसे कोई गंदे कर्म न करूँ जिससे मेरी सुन्दरता धूमिल हो जाये। 

सीख - अच्छे विचार और श्रेष्ठ कर्म मनुष्य को महान बनाते है। इसलिए रोज जब हम दर्पण में देखे तो चेहरे को  ठीक रखने के साथ अच्छे कर्म करने का भी मन में संकल्प ले और वैसे ही करें। 

Hindi Motivational Stories - " जीवन की सफलता "

जीवन की सफलता 

     एक बार एक शिक्षक ने ब्लैक बोर्ड पर एक रेखा खींची और छात्रों से पूछा कि इस रेखा को बिना मिटाये छोटा करो। सभी छात्र प्रश्न का उत्तर सोचने लगे। इस प्रश्न का उत्तर किसी के मस्तिष्क में नहीं आ रहा था। इस लिए सभी शांत थे। तभी एक छात्र उठा। उसने हाथ में चॉक ली और उसी रेखा के नीचे में एक उससे भी बड़ी रेखा खीच दी। छात्र के इस उत्तर से शिक्षक ने प्रसन्न होकर कहा कि इस तरफ के सवाल तुम्हारे जीवन में भी आयेंगे और तुम्हें अपने से बड़े दिखाई देंगे। लेकिन तुम अपनी सूझ-बुझ से उससे भी बड़े बन जायेंगे और तब तुम्हे लालसा होगी कि उनसे भी ऊँचे बनूँ , परन्तु इस आकांक्षा की पूर्ति के लिए उन्हें गिराना नहीं, अपितु स्वयं को और योग्य बनाना। यही जीवन की सफलता है। 

सीख - जीवन में सफलता पाने के लिए किसी को गिराना नहीं है सच्ची सफलता तो सब को साथ लेकर चलने में है। 

Hindi Motivational Stories - " बड़ा कौन ? "

बड़ा कौन ?

    एक  राजा ने अपने तीन बच्चों की महानता की परीक्षा लेनी चाही। उसने सारी सम्पति के तीन हिस्से करके एक हीरा अपने पास रख लिया और कहा कि यह उसे मिलेगा जो तीनों में से सब से महान कार्य करेगा। एक मास की निश्चित अवधि के बाद तीनों ने अपनी-अपनी महानताये पेश की। पहले राजकुमार ने कहा कि एक व्यक्ति ने मेरे पास दो लाख रुपये अमानत के रूप में रखे और मैंने उसे ज्यूँ के त्यूँ लौटा दिये। राजा ने कहा ये क्या महानता है, ना लौटाते तो तुम बेईमान कहलाते। दूसरे राजकुमार ने कहा मैंने एक डूबते हुए बच्चे को बचाया। राजा ने कहा यह तुम्हारा फर्ज था। तीसरे राजकुमार ने कहा कि मेरा दुश्मन एक ऐसी चट्टान पर सोया पड़ा था जिसके पास नदी बह रही थी। यदि वह जरा भी करवट लेता तो नदी में गिर पड़ता। मैंने उसे उठाकर सुरक्षित स्थान पर सुला दिया। राजा बड़ा प्रभावित हुआ। हीरा तीसरे राजकुमार को मिल गया। क्यों कि उसका कार्य वास्तव में हिरे तुल्य था।

सीख - हमें महान बनने के लिए अपने अन्तर मन में सब के प्रति समान भाव रखना है। चाहे दोस्त हो या दुश्मन हो समय पर मतभेद मिटाकर सब की सेवा करना है। आपके कर्म इतने महान हो जो दुश्मन भी आपको सलाम करे।  

Thursday, May 8, 2014

Hindi Motivational Stories - " साधना से भगवान मिलते है "

साधना से भगवान मिलते है 

            एक राजा था। वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल्य एवं धार्मिक स्वाभाव का था। वह हमेशा अपने इष्ट देव की बड़ी श्रद्धा और आस्था से पूजा करता था। और एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा - राजन मैं तुम से प्रसन्न हूँ। बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है, मैं उसे पूर्ण करूँगा। प्रजा को चाहने वाला राजा बोलो भगवान मेरे पास आपका दिया सब कुछ है। आपकी कृपा से राज्य में अभाव, रोग - शोक भी नहीं है। फिर भी मेरी एक इच्छा है कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर ध्यन किया है, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी दर्शन दीजिये।

            भगवान ने बहुत समझाया ये सम्भव नहीं है पर राजा के जिद्द ने भगवान को राजी कर लिया और कल अपनी सारी प्रजा को लेकर पहाड़ी के पास आना और पहाड़ी के ऊपर से सभी को दर्शन दूँगा। ऐसा भगवान ने कहा और राजा बहुत खुश हुआ। और सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी मेरे साथ पहाड़ी के पास चलेँगे जहाँ सभी को भगवान दर्शन देंगे।

         दूसरे दिन राजा अपनी प्रजा के साथ अपने स्वजनो के साथ पहाड़ी की ओर चलने लगा तो रास्ते में एक स्थान पर तांबे के सिक्को का पहाड़ दिखा। तांबे के सिक्को को देखते ही प्रजा भागी उस तरफ और सिक्को का गठरी बांध कर घर की तरफ चल दी राजा ने बहुत समझाया पर उसका कोई असर नहीं हुआ। और आगे बड़े तो चाँदी के सिक्को का पहाड़ आया तो कुछ रही हुई प्रझा उस पहाड़ की तरफ गयी और चाँदी के सिक्को को गठरी में बांधने लगी। और अभी सिर्फ स्वजन और रानी राजा के साथ थे और कुछ दूर जाने पर एक सोने के सिक्को का पहाड़ आया तो स्वजनों ने राजा का साथ छोड़ कर सोने के सिक्को की गठरी बांधने लगा गये और गठरी लेकर अपने घर की ओर चल दिये।

         राजा ने रानी को समझाया की लोग कितने लोभी है भगवान से मिलने के बजाय वो इन सब में फँसकर अपना भाग्य की रेखा को छोटा कर रहे भगवान जो सब का दाता है उन से बड़ी कोई और वस्तु नहीं है। रानी राजा की बात सुनकर राजा के साथ चलती रही। अब राजा और रानी दोनों ही आगे का सफर तय कर रहे थे और कुछ दूर जाने पर राजा और रानी ने देखा कि सप्तरंगी आभा बिखेरता हीरों का पहाड़ है। अब तो रानी भी दौड़ पड़ी और हीरों की गठरी बनाने लगी। फिर भी उनका मन नहीं भरा तो साड़ी के पल्लू में भी बाँधने लगी। रानी के वस्त्र देह से अलग हो गये, परन्तु हीरों की तृष्णा अभी भी नहीं मिटी। यह सब देख राजा को आत्मा ग्लानि और वैराग आया। वह आगे बढ़ गया। वहाँ भगवान सचमुच खड़े उसका इंतज़ार कर रहे थे। राजा को देखते ही भगवान मुस्कुराये और पूछा - राजनं कहाँ है तुम्हारी प्रजा और तुम्हारे प्रियजन। मैं तो कब से उनसे मिलने के लिये बेक़रारी से उनका इन्तज़ार कर रहा हूँ।

        राजा ने शर्म और आत्मा-ग्लानि से अपने सर को झुका दिया। तब भगवान ने राजा को समझाया - राजनं जो लोग भौतिक प्राप्ति को मुझ से अधिक मानते है , उन्हें कदाचित मेरी प्राप्ति नहीं होती और वे मेरे स्नेह तथा आशीर्वाद से भी वंचित रह जाते है। दूसरा बिना प्रेम और पुरुषार्थ के भी मुझे नहीं पा सकते। तुमने स्वम् को पहचाना, मुझे प्रेम से याद किया, तब तू मुझे पा सका।

सीख -  भगवान की प्राप्ति उन्हीं को होती है जो भौतिक प्राप्ति से दूर रहते है याने संसार में रहते संसार आप में न हो तो ही भगवान की प्राप्ति और उसका प्रेम मिलेगा। कर्म करे पर कर्म फल की इच्छा न हो। इच्छा ये हो मैं सदा भगवान की याद में राहु। 

Wednesday, May 7, 2014

Hindi Motivational Stories - " जैसी दॄष्टि - वैसी सृष्टि "

जैसी दॄष्टि - वैसी सृष्टि 

    एक वृक्ष के नीचे पांच- सात व्यक्ति विश्राम कर रहे थे, एक नृत्यकार है , एक संगीतकार है, एक उदासीन संत है, एक नौजवान है, जो अभी अभी घर से लड़कर आया है, बड़ा दुःखी है बहुत बेचैन है। आराम कर रहे इन्हीं मनुष्यों में एक लकड़ी का व्यापारी भी है।

             अब कुछ देर में मौसम में बदलाव आया हवा के तेज झोंके से डालीयाँ, पत्ते झूमते है, हिलोरे लेते है।  ये सब देखकर जो नृत्यकार है वह नृत्य की दुनिया में खो जाता है। सोचता है मेरे से भी ज्यादा सुन्दर यह वृक्ष नृत्य कर रहा है। इसकी डालियाँ में कितनी लचक है, इसके पत्ते कितने सुन्दर ढंग से झूम रहे है। पेड़ का नृत्य देखकर नृत्यकार विस्माद् की दुनिया में खो जाता है। उसको वृक्ष नाचता हुआ प्रतीत होता है।

           दूसरा, संगीतकार है, जब हवा के तेज झोंके पेड़ से स्पर्श करते है, सायं - सायं की आवाज़ बुलन्द होती है, वह संगीतकार सुर व् संगीत की दुनिया में खो जाता है। सोचता है सिर्फ मैं ही नहीं गा रहा हूँ यह वृक्ष भी गा रहा है। गीत, संगीत इस वृक्ष से भी निकल रहा है। नृत्यकार को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वृक्ष नृत्य कर रहा है, संगीतकार को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे पत्ते पत्ते से संगीत का जन्म हो रहा है।

          तीसरा, उदासनी महात्मा क्या देखता है, एक सुखा पत्ता हवा के झौके से डाली से टूट कर जमीन पर आ गिरता है। आँखों में आँसू आ गये सन्त के। मुख से शब्द निकला, एक दिन संसार रूपी वृक्ष से भी ऐसे ही टूटकर गिर जाऊंगा, जैसे पत्ता टूटकर गिर दिया। जैसे गिरे हुए पत्ते को पुनः वृक्ष व डालियाँ से जुड़ता असंभव है, वैसे ही मरे हुए मनुष्य को अपने कुटुम्ब सम्बन्धियों से तथा संसार से जुड़ना बहुत असंभव है, बहुत असंभव। और वैराग की दुनिया में खो गया, स्वयं उपराम हो गया कि यहाँ तो सारे पत्ते झड़ने ही है।

         चौथा, मनुष्य जो आराम कर रहा था वह लकड़ी का व्यापारी है, वह सोचता है कि अगर यह पेड़ मैं खरीद लूँ तो इस में इमरती लकड़ी कितनी, जलाऊँ लकड़ी कितनी और उस में से बाकी मालवा जो है वह कोपला बना सकेगा कि नहीं ? मैं कितने का यह वृक्ष खरीदूँ, कितने का बेचूँ, क्या मुझे बचेगा ? सोचकर वह व्यापार की दुनिया में खो गया।

        अब पाँचवा, जो आराम कर रहा था वह एक नौजवान था, अभी- अभी घर से लड़कर आया है, हवा के तेज झौको से जब शाखा, शाखा से टकराती है, पत्ते -पत्तों से टकराते है, वह सोचता है झगड़ा तो यहाँ भी है, शाखा, शाखा से लड़ रही है, पत्ते, पत्तों से लड़ रहे है सिर्फ मेरे घर में ही लड़ाई नहीं है, यहाँ वृक्ष में भी बहुत बड़ी लड़ाई है।

सीख - जैसी-जैसी दॄष्टि है मनुष्य की वैसी ही सृष्टि दिखाई देती है अथार्त जैसी नज़र है वैसे ही नज़ारे देखने को मिलते है। वृक्ष एक ही है लेकिन सब के अलग-अलग दॄष्टिकोण से दिखता है। इन्ही अलग - अलग दॄष्टिकोण से ही परमात्मा के अनेक नाम रूप प्रचलित हुए है।

Hindi Motivational Stories - " सच्चा स्नेह "

सच्चा स्नेह 

    सुभद्रा कृष्ण की बहन थी लेकिन कृष्ण का द्रौपदी के साथ अधिक स्नेह था। सुभद्रा को यह महसूस होता था और वह कृष्ण से पूछती रहती थी ऐसा क्यों, आपका द्रौपदी के साथ मेरे से अधिक स्नहे क्यों ? एक दिन श्रीकृष्ण के अँगुली में गन्ना खाते समय गन्ने का छिलका लग गया और खून बहने लगा, तो फ़ौरन आवाज़ निकला कि कोई कपड़ा लाओ और अँगुली पर बाँधो। सुभद्रा छोटा सा कपड़ा ढूंढ़ती रही और द्रौपदी जो वहाँ खड़ी थी उसने अपनी कीमती साड़ी से कपड़ा फाड़कर श्रीकृष्ण की अँगुली पर बाँध दिया। तब श्रीकृष्ण की अँगुली ने कहा कि देखो इस कारण मुझे द्रौपदी से अधिक स्नेह है क्यों कि उसका मेरे साथ अधिक स्नेह है। उसने अपनी कीमती साड़ी की फिकर न कर मेरी अँगुली तथा खून का महत्व समझ साड़ी से कपड़ा फाड़कर मेरी अँगुली पर बाँध दिया।

सीख - इस घटना से हमें ये सीख मिलता है जो जिस से जितना ज्यादा स्नेह करता है उतना ही स्नेह वो पाएगा इस लिए अगर हम ज्यादा प्यार ईश्वर से करेंगे तो उतना ही प्यार हमें ईश्वर से भी मिलेगा।