Monday, June 9, 2014

Hindi Motivational Stories..... श्रेष्ठ विचार ही विजय बनाते है

श्रेष्ठ विचार ही विजय बनाते है 

    भारत के एक नगर में एक बुद्धिमान राजा राज्य करता था। वह कोई भी कार्य करता, उसको भली-भाँति सोच-समझ कर उस कर्म का परिणाम को देख कर ही करता। उसकी निर्णय शक्ति परख शक्ति बहुत प्रबल थी। राज्य के बहुत से लोग उसके पास अपनी घरेलु समस्याएं लेकर आते और समाधान होकर जाते थे। इस प्रकार पुरे नगर में वह प्रसिद्ध हो गया था।

 समय बदलता गया दिन महीने साल गुजरते गए और राजा बहुत बूढ़ा हो गया। परन्तु उसकी बुद्धि क्षीण नहीं हुई। राजा के तीन पुत्र थे। तीनों में रात-दिन का अन्तर था। बूढ़े राजा के सामने एक प्रश्न खड़ा था। वह सोचता था की मरने के पहले ही इन सब को अपना-अपना भार सौप दूँ। परन्तु किसको उत्तराधिकारी बनाया जाये। वह तीनों में से किसी को नाराज भी नहीं करना चाहता था और बुद्धिहीन बेटे को राज्य-अधिकारी भी नहीं बनाना चाहता था।

  विचार करने पर एक युक्ति सूझी। उसने तीनो बेटों को पास बुलाया और कहा - देखो, मैं बूढ़ा हो गया हूँ। इस दुनिया में चन्द ही रोज का मेहमान हूँ। इस संसार से जाने से पहले मैं चाहता हूँ की आप तीनों में से एक को राज्याधिकारी बना दिया जाये। मैं बुद्धिमता, समझ और सूझ-बुझ के हिसाब से ही यह निर्णय करना चाहता हूँ। और राजा ने तीनो को सौ-सौ रुपये दिए और कहा कि - घर के पिछले भाग में तीन बड़े-बड़े कमरे है खाली पड़े है, आप तीनों को उन कमरों को इन रुपयों से लाये गए सामान से भरना है। जिसका ढंग सब से अच्छा होगा, उसी को राज्याधिकारी नियुक्त किया जायेगा। एक सप्ताह का समय है आप लोगो के पास सोच-विचार समझ से कार्य करो। तीनो पुत्रों ने हामी भरी और रुपये लेकर अपने-अपने कमरे में चले गए।

   समय पूरा होते ही राजा अपने बेटों को लेकर कमरे देखने गया तो सब से पहले बड़े बेटा का कमरा देखा और उसने कमरा तो भर दिया था परन्तु सारी गला-सड़ा सामान था जो बदबू दे रहा था। और फिर दूसरे बेटा का कमरा देखा तो पहले वाले से अच्छा था गाय भैंस के चारा से पूरा कमरा भर रखा था। उस के बाद तीसरे बेटे का कमरा देखा कमरा पूरा खाली था परन्तु कमरा बहुत ही साफ़-सुन्दर था और अन्दर चारो तरफ चार दीपक जला रखे थे और अगरबत्ती की खुशबु से पूरा कमरा महाक रहा था।

 राजा ने दोनों बेटों को कहा अब आप ही बताये की राज्याधिकारी किसे बनना चाहिये तो दोनों भाईयो ने छोटे भाई की तरह इशारा किया और राजा ने उसे ही राज्याधिकारी बना दिया।

 अपनी बुद्धिमता के कारण ही छोटे भाई ने विजय प्राप्त की है। ये कहते हुए राजा ने घर की चाबियाँ छोटे बेटे के हाथ में सौप दी और कहा - बस, अब तुम संभालो। मैं अपना अन्तिम समय प्रभु-भजन में व्यतीत करूँगा।

सीख - अच्छे विचार ही मनुष्य को श्रेष्ठ और विजय बनाते है। इस लिए शुभ संकल्प करते चलो और विजय की रह पर चलते रहो। 

Sunday, June 8, 2014

Hindi Motivational stories...... प्राण जाय पर वचन न जाय

प्राण जाय पर वचन न जाय 

     अकबर बादशाह की सेना राजपूतोँ ने चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर लिया था। महाराणा प्रताप अरावली पर्वत के वनों में चले गये थे। महाराणा के साथ राजपूत सरदार भी वन एवं पर्वतों में जाकर छिप गये थे। महाराणा और उनके सरदार अवसर मिलते ही मुग़ल-सैनिकों पर टूट पड़ते और मार-काट मचाकर फिर बनो में छिप जाते थे।

    महाराणा प्रताप के सरदारों में से एक सरदार का नाम रघुपति सिंह था। वह बहुत ही वीर था। अकेले ही वह जब चाहे शत्रु की सेना पर धावा बोल देता था और जब तक मुग़ल-सैनिक सावधान हो, तब तक सैकड़ो को मारकर वन-पर्वतो में भाग जाता था। मुग़ल सेना रघुपति सिंह के नाम से घबरा उठी थी। मुगलों के सेनापति ने रघुपति सिंह को पकड़ने वाले को बहुत बड़ा इनाम देने की घोषणा कर दी। रघुपति सिंह वनो और पर्वतों में घुमा करता था। एक दिन  समाचार मिला कि उसका इकलौता लड़का बहुत बीमार है और घड़ी दो घडी में मरने वाला है। रघुपति सिंह का हृदय अपने पुत्र को देखने के लिये व्याकुल हो उठा। वह वन में से घोड़े पर चढ़कर निकला और अपने घर की ओर चल पड़ा। पुरे चितौड़ को बादशाह के सैनिकों ने घेर रखा था। हर दरवाजे पर बहुत कड़ा पहरा था। पहले दरवाजे पर पहुँचते ही पहरेदार ने कड़क कर पूछा कौन हो तुम ?

   रघुपति सिंह झूठ नहीं बोलना चाहता था, उसने अपना नाम बता दिया। इस पर पहरेदार बोला - तुम्हें पकड़ने लिये सेनापति ने बहुत बड़ा इनाम घोषित किया है, में तुम्हें बंदी बनाऊंगा।

   रघुपति सिंह बोला - भाई ! मेरा लड़का बीमार है। वह मरने ही वाला है। मैं उसे देखने आया हूँ। तुम मुझे अपने लडके का मुँह देख लेने दो। मैं थोड़ी देर में ही लौट कर तुम्हारे पास आ जाऊँगा।

    पहरेदार सिपाही बोला - यदि तुम मेरे पास न आये तो ? रघुपति सिंह - मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि अवश्य लौट आऊंगा। पहरेदार ने रघुपति सिंह को नगर में जाने दिया। वे अपने घर गये। अपनी स्त्री और पुत्र से मिले और उन्हें आश्वासन देकर फिर पहरेदार के पास लौट आये। पहरेदार उन्हें सेनापति के पास ले गया। और सारी बात बताई। सेनापति ने सब बातें सुनकर पूछा - रघुपति सिंह क्या तुम नहीं जानते थे कि पकड़ जाने पर हम तुम्हें फाँसी देंगे ? तुम पहरेदार के पास दोबारा क्यों लौट आये ? रघुपति सिंह ने कहा - मैं मरने से नहीं डरता। राजपूत वचन देकर उससे टलते नहीं और किसी के साथ विश्वासघात भी नहीं करते।

    सेनापति रघुपति सिंह की सच्चाई देखकर आश्चर्य  पड़ गया। उसने पहरेदार को आज्ञा दी - रघुपति सिंह को छोड़ दो। ऐसे सच्चे वीर को मार देना मेरा ह्रदय स्वीकार नहीं करता।

सीख - पूर्व में इंसान अपने वादे पर अटल रहता था। लेकिन आज बाहर की बात छोड़ो अपने घर में अपनों से किया वादा भी पूरा नहीं करते। इस लिए अपने आप को ऐसा तैयार करो जो बोलो सो करो।   

Hindi Motivational stories....बुद्धि ही धनवान बनाती है

बुद्धि ही धनवान बनाती है

    एक रेल में बचपण के तीन साथी यात्रा कर रहे थे। एक निर्धन था, एक मध्यम वर्ग का और एक धनी परिवार से। साथ में धनी साथी के पिता भी थे। बातें चल निकली। निर्धन मित्र बोला की आप लोग भाग्यशाली है जो सुख से रह रहे है, मैं तो अभागा ही रह गया। और इतने में ट्रैन रुकी। धनी साथी के पिता ने गन्ने ख़रीदे और तीनों साथियों को बराबर बाट दिया। पहला मित्र गन्ने को छिला और चूसकर वही कचरे को सीट के निचे फेक दिया। दूसरा मित्र  मध्यम  परिवार से था। उसने भी गन्ने को छिला और चूसकर कचरे को एक अख़बार में लपेट कर अगले स्टेशन पर कचरे के डिब्बे में डाल दिया। पर तीसरे मित्र ने गन्ने को चाकू से छिला। छिलकों को एक तरफ रख दिया। गन्ना चूसकर कचरा पात्र में डाल दि। सावधानी पूर्वक छिले गये छिलकों को दो रंगों में रंग कर उसने उनका एक पंखा बना दिया और उसे अगले स्टेशन पर बेच दिया।

    यह सारा माजरा धनी साथी के पिता देख रहे थे। उन्होंने कहा कि बेटे ! गन्ने तुम तीनों चूसे। निर्धन युवक को सम्बोधित करते हुए वे बोले - बेटे तूने गन्ना चूसा पर दूसरों के लिये परेशानी पैदा कर दी। बचपन में तुम तीनों साथ पढ़े, तू नदी किनारे खेलता ही रहा, पढ़ा ही नहीं। दूसरे ने कुछ पढ़ा तो उसने कुछ कमाया भी। उसने गन्ना चूसा पर दुसरो को परेशानी नहीं दी। मेरे बेटे ने गन्ना भी चूसा, मगर किसी को परेशान किये बिना कमाया भी।

सीख  - ये कहानी हमें अपना बुद्धि का सदुपयोग करना सीखता है। इस लिए अपने बुद्धि  सदुपयोग कर सुख दो और सुख लो। 

Saturday, June 7, 2014

Hindi Motivational Stories.... कला का सम्मान करो

कला का सम्मान करो


            प्रदर्शनी में प्रदर्शित भगवान की उस भव्य मूर्ति को देखने वालों में सम्राट समुद्र गुप्त, उनके महामात्य व अन्य राज्य कर्मचारी भी शामिल थे और सभी एक स्वर में मूर्तिकार के कला-कौशल की हृदय से सहराना कर  रहे थे। जब सम्राट ने कलाकार का नाम पूछा तो प्रदर्शनी में सन्नाटा छा गया। क्यों कि कलाकार का नाम किसी को पता ही न था। आश्चर्य की बात थी कि इतना अनोखा कलाकार स्वयं को छिपाये हुए क्यों है ? काफी खोज-बीन के पश्चात् राज्य कर्मचारी एक काले-कलूटे युवक को पकड़ कर लाये  सम्राट से बोले-महाराज, गजब हो गया ! इस शूद्र ने भगवान की पवित्र मूर्ति बनाई। दर्शकों में कुछ ऊँची जाति के लोग भी खड़े थे। वे चिल्लाये-पापम् -शान्तम् ! गजब !! महान गजब !!! इस शूद्र को भगवान की मूर्ति गढ़ने  अधिकार किसने दिया। इसके हाथ काट दिये जाने चाहिए। उनकी आवेशपूर्ण बातें सुन कर मूर्तिकार डर के मारे थर-थर काँपने लगा और सम्राट के चरणों में गिर कर क्षमा याचना करने लगा।

            सम्राट समुद्र गुप्त ने बड़े प्यार से उसे उठाया और उच्च वर्ण के लोगों की ओर आँखे तरेर कर देखते हुए कहा -छी : ! कैसी अन्याय पूर्ण बातें कर रहे है आपलोग ! भगवान की मूर्ति बनाने वाले इन सुन्दर हाथों के प्रति आप सबको ऐसा निर्णय ? आप ऊँचे और कुलीन लोगो से मुझे ऐसी अपेक्षा न थी। तोड़ दो इस ऊँची-नीच की दीवार को, तभी सभी आपस में प्यार से हिल-मिल कर रह पाएंगे, समाज सुख-शांति व समृद्धि आयेगी और सही अर्थो में हम वसुधैव-कुटुम्बकमह की भावना को धरा पर साकार कर पायेंगे। यों कहकर सम्राट ने उस काले शूद्र युवक के हाथ अपने हाथों में लेकर चुम लिए और उसे सबके बीच एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ ईनाम में देते हुए अपना राजमूर्तिकार घोषित कर दिया।

सीख - ये कहानी व्यक्ति की कला कौशल की सरहाना करते हुए ऊँच-नीच का भेद भाव मिटाकर सभी लोगो को हिल मिलकर रहने की प्रेरणा देती है। इस लिए हमें व्यक्ति की जाति धर्म को न देखकर उसकी गुण और कला को देख सम्मान करना चाहिए।
   

Friday, June 6, 2014

Hindi Motivational Stories.... परिश्रम का चमत्कार

परिश्रम का चमत्कार 

                 चंद्रपुर गाँव में एक किसान रहता था। उसके दो बेटे थे। मरते समय उसने दोनों बेटों को एक जैसा संपत्ति बांट दी और सीख देते हुए कहा कि तुम दोनों हमेशा अच्छे से अच्छा खाना खाने की कोशिश करना। इसी से तुम हमेशा मेरी तरह धनी व सुखी रह सकोगे। किसान के मरने के बाद छोटे भाई बड़े भाई से कहा - भैया, चलो किसी बड़े शहर में चलकर रहते है। वहीँ हमें अच्छे से अच्छा खाना मिल सकता है। बड़े भाई ने कहा - अगर तुम चाहो तो शहर जा सकते हो, मैं यही गाँव में रहूँगा और जो अच्छे से अच्छा खाना यहाँ मिलेगा, वही खाऊँगा।

                छोटे ने अपनी जमीन-जायदाद बेचीं और सारा पैसा लेकर शहर में उसने बड़ा सा घर लिया। अच्छे से अच्छे रसोईये व् नौकर रखे, उनसे अच्छे से अच्छा खाना बनवाकर खाने लगा और आराम से रहने लगा। सोचने  लगा कि अब वह जल्दी ही अपने पिता की तरह धनी और सुखी हो जायेगा। लेकिन हुआ उसका उल्टा। जल्दी ही उसका सारा पैसा ख़त्म हो  गया और फिर सारा सामान व् मकान भी बिक गया। अंतः उसे गाँव में लौटना पड़ा।

               गाँव आकर उसने देखा कि उसका बड़ा भाई बहुत धनी हो गया है। उसने कहा - भैया, मुझे वह खाना दिखाओ, जिसे खाकर तुम इतने धनवान बने हो। मैं तो शहर में अच्छे से अच्छा खाना खाया फिर भी कंगाल हो गया। बड़े भाई ने कहा खाना दिखाना क्या ? में तुम्हें खिलाऊँगा भी। लेकिन पहले खेत पर चलें। और बड़े भाई खेत में काम करने लगा और छोटे को भी काम पर लगा दिया इस तरह दोनों खेत में बहुत देर तक परिश्र्म करते रहे और फिर उन्हें बहुत जोर की भूख लगी। छोटे ने कहा मेरे हाथ पैर जवाब दे रहे है। अब तो अपना वह अच्छे से अच्छा खाना खिलाईये। दोनों हाथ पैर धोने के बाद पेड़ की छाया में बैठ गए। फिर बड़े भाई ने पोटली खोली और उस में से रोटी निकालकर एक छोटे भाई को दिया और एक खुद ने ली। छोटे का तो भूख के मारे बुरा हाल था। वह फ़ौरन उस मोटी- सी सुखी रोटी पर टूट पड़ा। भूख के मारे उसे वह रोटी छप्पन भोग तरह लग रही थी। बड़े ने पूछा, कहो रोटी का स्वाद कैसा है ? बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कह कर उसने पूरी रोटी ख़त्म कर दी। इस रोटी से मुझ में जरा-सी-जान आयी। अब चलिये, घर चलकर मुझे अपना अच्छा खाना भी खिलाइये। बड़े भाई ने कहा यही तो वह सब से अच्छा खाना है, क्यों तुम्हे अच्छा नहीं लगा ? छोटे ने कहा -रोटी तो बहुत स्वादिष्ट लगी, लेकिन क्या यही आपका अच्छा खाना है ? आश्चर्य से छोटे ने पूछा ! मेरे भाई, मेहनत करने के बाद कड़कड़ाकर भूख लगाने पर खाया गया खाना ही दुनिया का  सब से अच्छा खाना होता है। इसी अच्छे खाने से धनी और सुखी रहा जा सकता है। पिताजी के कहने का यही मतलब था। इस तरह बड़े भाई ने छोटे को समझाया। तब छोटे के समझ में आ गया की धनवान बनना है तो परिश्रम करो परिश्रम का ही चमत्कार है।

सीख - बिना मेहनत किये कितना भी अच्छा खाना खाने से धनवान नहीं होंगे। परिश्रम करके खाना खायेंगे तो धनवान जरूर बनेंगे। 

Thursday, June 5, 2014

Hindi Motivational Stories............. अपकारी पर भी उपकार करें

अपकारी पर भी उपकार करें


      बहुत बार ऐसा ही होता है कि हम अपराधी को अपराध का सजा देना ही अपना फ़र्ज़ समझते है। और कहानी का टाइटल कुछ  कहता है। एक बार की बात है महाराज रणजीतसिंह कहीं जा रहे थे। साथ ही बहुत से अमीर-उमराव व अंग-रक्षक थे। इतने बड़े काफिले के होते हुए भी अचानक एक पत्थर महाराज के सिर पर आकर लगा। उनका सिर फट गया और वे लहू-लुहान हो गये। इस अप्रत्यक्ष घटना से चारों तरफ अफरा-तफरी मच गयी। तुरंत पत्थर मारने वाले को ढूंढने के लिए सैनिक इधर-उधर घोड़े दौड़ाने लगे।

   थोड़ी देर में दो सिपाही एक मरियल से बूढ़े और एक पतले-दुबले लड़के को पकड़कर महाराज के सामने लाये। बूढ़ा भय से थर थर काँप रहा था। बड़ी कठिनाई से वह कह पाया - मैं बे कसूर हुँ महाराज मैं तो अपने बच्चे की भूख मिटाने के लिए कुछ तोड़ना चाहता था। महाराज ने बूढ़े को सांत्वना दी - घबराओ मत बाबा। अपनी बात आराम से कहो।

   महाराज, यदि पत्थर आम की डाली को लग जाता तो मैं आम पा जाता, पर पत्थर आम को न लग कर आपको लग गया, मैं अपने किये की क्षमा चाहता हूँ। बाबा, यदि तुम्हारा पत्थर आम को लगता तो तुम्हे और तुम्हारे बच्चे को आम खाने को मिल जाता न ? हाँ महाराज ! बूढ़े ने काँपते आवाज में कहा। किन्तु अब तो तुम्हारा पत्थर महाराज रणजीतसिंह को लगा है, और वह वृक्ष से गया- गुजरा नहीं है। तुम्हे और तुम्हारे बेटे को स्वादिष्ट भोजन, फल और मिष्ठान खाने को मिलेंगा। बूढ़ा भौचक ! अमीर-उमराव सन्न ! अंगरक्षक हैरान ! किन्तु महाराज के मुख पर मधुर मुस्कान खिल रही थी। महाराज ने आज्ञा दी - इस बूढ़े को साल भर खाने-पीने योग्य अन्न दिया जाये और पाँच हजार रूपया नगद !यह दूसरा आश्चर्य था।

   एक अमीर ने पूछ ही लिया -  यह आप क्या कर रहे हो, महाराज ! अपराधी को सजा की बजाय पुरुस्कार दे रहे हो ? रंजीत सिंह ने शांत भाव कहा - अरे भाई, जब निर्जीव पेड़ पत्थर की मार सह कर भी लोगों को मीठा फल देता है फिर हम तो चैतन्य इन्सान है, जीवमंडल के सर्वच्चा प्राणी है ,हमें चाहे लोग जाने-अनजाने लाख भला-बुरा कहें, चोट पहुंचाये, हमारा मार्ग में बाधा उत्पन्न करें लेकिन हमें सबका कल्याण करना चाहिए, सबको सुख देना चाहिए। मित्र, महान बनना है तो वृक्ष से कुछ सीखो।

सीख - इस कहानी से हमें सीख मिलता है की जब प्राकृति नेचर हम को सदा दे रहा है चाहे हम उसे पत्थर मरे या तोड़े वह सिर्फ देता ही है। हर तरह से देता ही है तो हमें भी दाता बनना है सब को सुख देना है। 

Wednesday, June 4, 2014

Hindi Motivational Stories....अहंकार

अहंकार 

   बहुत पुरानी बात है। दो मित्र पाठशाला में साथ-साथ पढ़े और बड़े हुए, पर प्रालब्ध की बात, एक तो राजा हो गया, दूसरा फ़क़ीर। राजा राजमहल में रहने लगा और फ़क़ीर गाँव-गाँव भटकने लगा। राजा अपने प्रशासन के कारण और फ़क़ीर अपनी त्याग-तपस्या के कारण विख्यात हो गये। एक बार वह फ़क़ीर राजधानी में आया, राजा को पता लगा। वह बड़ा प्रसन्न हुआ कि उसका मित्र आया है। उसने उसके स्वागत की अच्छी व्यवस्था की। महल सजाया। नगर में दीपावली करने का हुक़्म दिया। जब फ़क़ीर अपने राजा मित्र से मिलने चला, तो लोगों ने बहका दिया कि राजा बड़ा अहंकारी है। तुम्हें अपने वैभव दिखाना चाहता है। अपनी अकड़ दिखाना चाहता है। वह तुम्हें दिखाना चाहता है कि देखो, तुम क्या हो ? एक नंगे फ़क़ीर। उस फ़क़ीर ने कहा - देख लेंगे, उसकी अकड़।

   फ़क़ीर जब राजमहल के द्दार पर पहुँचा, तो राजा और उसका समस्त मत्रिमंडल फ़क़ीर के स्वागत के लिए उपस्थित हुआ। राजा ने देखा कि वर्षा के दिन तो नहीं है, फ़क़ीर के घुटनों तक कीचड़ लगी है। राजा क्या कहता, वह फ़क़ीर को लेकर अन्दर गया तो उसके सारे बहुमूल्य गद्दे-गलीचे गंदे हो गये।

  राजा को बुरा लगा, जब एकांत हुआ तब उसने फ़क़ीर से पूछा - मित्र मैं हैरान हूँ। वर्षा का तो समय नहीं रास्ते सूखे पड़े है. पर तुम्हारे पैरो पर इतनी कीचड़ कहाँ से लग गई ? तब फ़क़ीर ने उत्तर दिया - अगर तुम अपने वैभव की अकड़ दिखाना चाहते हो, तो हम भी अपनी फकीरी दिखाना चाहते है। उत्तर सुनकर राजा हँसा बोला - मित्र, आओ गले लग जाये, क्यों कि मैं कहीं पहुँचा, न तुम कहीं पहुँचे। हम दोनों वहीं के वहीं है, जहाँ पहले थे।

सीख - मित्रों इस कहानी में एक में धन की अकड़ थी, तो दूसरे में त्याग की। पर राजा के उद्दार की संभावना तो थी, फ़क़ीर की नहीं। क्यों कि जो अपनी गलती जान लेता है, ह्रदय से मान लेता है, वह सुधर सकता है।