Friday, June 13, 2014

Hindi Motivational Stories..... नर्क का विज्ञापन

नर्क का विज्ञापन 

   यह तो हम सब जानते है की मरने के बाद धर्मराज के सामने पेशी होती है। व लोगो के नर्क व स्वर्ग में जाने का फैसला होता है। एक बार ऐसा हुआ कि धर्मराज ने रिश्वत लेनी शुरू कर दी, उसके इस कार्य से हाहाकार मच गया। मृत्युलोक के वासियों ने शिष्टमण्डल भगवान के पास भेजा, उस पर भगवान ने कहा कि यदि मैंने धर्मराज की जगह किसी और को रख लिया तो वह भी जरूर रिश्वत लेगा। तो पृथ्वी निवासियों ने सुझाव दिया कि आप वोट डालने की तरीका अपना ले। एक दिन में जितने लोग यहाँ धर्मराज पूरी में आयेंगे वे सब एक-दूसरे के लिए वोट डालेंगे कि कौन नर्क में जायेगा और कौन स्वर्ग में, आखिर इस प्रणाली को अपना लिया गया।

  इसी बीच एक नेता जी मर कर धर्मराज के पास पहुँचे। वे सादा अपनी राजनीती में मस्त रहते थे। उन्हें नर्क और स्वर्ग के बारे में कुछ पता नहीं था। उन्होंने वोट डलवाने से पहले कहा मुझे नर्क और स्वर्ग दिखाया जाये, जो स्थान मुझे पसन्द आयेगा मैं वहाँ जाने के लिए अपना चुनाव स्वीकार करूँगा। चुनाव अधिकारी सहमत हो गया, उसने एक विमान मंगवाया और नेता जी को स्वर्ग की ओर ले गया। स्वर्ग का दरवाजा खोलकर नेता जी ने अन्दर झाँका तो देखा कि 15 -20 महात्मा लोग हाथ में माला लिए भगवान का नाम ले रहे है। मौसम बड़ा सुहावना है शांति का वातावरण बना हुआ है। कोई एक - दूसरे से बातचीत नहीं कर रहा है। नेताजी को यह अच्छा नहीं लगा, उन्होंने मुँह बनाकर अधिकारी को नर्क दिखाने को कहा।

  जब नेता जी ने नर्क का दरवाजा खोला तो देखा जगह-जगह लोग शराब पी रहे है, मौज उड़ा रहे है। सब लोग मस्त है और खूब रौनक लगी हुई है। नेता जी को नर्क पसन्द आया और वापस आकर वे अपने प्रचार में लग गये और कहने लगे कि मुझे नर्क में जाने के लिए वोट दीजिये। फिर क्या था नेता जी को नर्क के लिए वोट डाले और नेता जी को नर्क भेज दिया गया।

  वहाँ जाकर उन्होंने शरब पीया, खूब नाचें और जब वे थक गए तो उन्होंने नर्क के इन्क्वायरी ऑफिस में आराम करने की जगह पूछी तो नेताजी को सीधा चलने को कहा गया और उनकी आँखों पर पट्टी बाँध दी गई। सीधा चलते हुए, नेताजी बड़े जोर से एक गहरी खाई में गिर पड़े। गिरते ही उनकी बुरी तरह पिटाई होने लगी। नेताजी ने कहा यह कौन सी जगह है जो मुझे पीट रहे हो ? जवाब मिला कि यह नर्क है। नेता ने कहा यह नर्क कैसे हो सकता है। नर्क से तो मैं आ ही रहा हूँ। वहाँ तो बहुत खुशियाँ तथा खाने-पीने की चीज़ है। तो पीटते-पीटते एक बोला, वह तो हमारा नर्क का विज्ञापन डिपार्टमेंट है। यदि हम ऐसी विज्ञापन न करे तो हमारे नर्क में आयेगा ही कौन ? वास्तविक नर्क तो यह है।

सीख - स्वर्ग और नर्क की जानकारी हम सब को रखनी है। अल्प काल के सुख की लालसा में हम स्वर्ग के सच्चे सुख से कही वंचित न हो जाये। 

Thursday, June 12, 2014

Hindi Motivational Stories.....मूल्यहीन वस्तु

मूल्यहीन वस्तु

      बहुत दिन पहले एक गुरु के पास दो शिष्य पढ़ते थे। एक का नाम था श्याम दूसरे का राम। दो - तीन वर्ष की पढ़ाई के बाद गुरु ने उन्हें दो मास की छुट्टी दी। तब गुरु ने दोनों की बुद्धिमत्ता देखने के लिए कहा - बच्चों, ऐसी चीज़ को ढूंढ कर आओ जिसकी दुनिया में पाई की भी कीमत न हो। दोनों ने बात को मान लिया और वहाँ से चले। श्याम ने सोचा अभी दो महीने है फिर कभी सोच लेंगे। वह मित्र-सम्बन्धियों से मिला, बाते करने में और घर के कारोबार में जुट गया। राम यात्रा करने के विचार से काशी की ओर चल पड़ा। बार - बार गुरु का प्रश्न उसे याद आने लगा। बेचारे राम ने बहुत सोचा, ढूंढा। अनेक स्थानों पर गया, अनेक तरह के लोगों से उसकी मुलाकात हुई, पर उसे ऐसी कोई चीज दिखाई न दी कि जिसका दाम पाई का भी न हो। दिन बीतते गए और ढूंढ़ते-ढूंढ़ते थक गया। दो मास पूरा होने में केवल तीन-चार दिन ही बाकी रह गये तब राम गुरु के पास लौटने लगा। राम प्रश्न का उत्तर न पाने से उदास था। रास्ते में ही श्याम का गाँव था तो सोचा शायद उसे उत्तर मिला होगा और वह उसका घर ढूंढने लगा। एक घर पर उसे थोड़ी भीड़ दिखाई दी और शोर भी सुनाई दे रहा था। राम ने वहाँ चलकर देखा तो वहाँ पर एक आदमी का देहान्त हुआ था।

   घर के लोग रोने-पीटने लगे थे और गाँव के लोग उसे सजा रहे थे। कुछ देर में ही पता चला वह तो श्याम का पिता ही था। और जब शव को उठाते समय उसके सगे थोड़ी देर और रोकना चाहते थे लेकिन गाँव वालों ने जबरदस्ती शव को कंधे पर उठाये शमशान की ओर चल पड़े।

      ये सब देखकर राम को श्याम की कुछ बाते याद आये , एक बार श्याम ने कहा था - मेरे पिताजी बहुत दयालु है, उन्हें गाँव में सभी लोग प्यार करते है, सम्मान देते है। राम सोचने लगा जिसे कल तक प्यार से देखते थे वही आज उसे क्षण भर रखना नहीं चाहते। जिससे कल तक कुछ चाहते थे उससे आज कोई भी नहीं। कल तक जो कीमत था आज कुछ भी नहीं। तब उसे निश्चय हुआ कि दुनिया में मानव के निर्जीव शरीर की पाई की कीमत नहीं है। कोई उसे रखना भी नहीं चाहता।

   दूसरे दिन दोनों गुरु के पास पहुंचे। बेचारा श्याम तो गुरु का प्रश्न ही भूल चूका था। कहने लगा - मेरे पिता का देहान्त हुआ इसलिए मैं वह चीज़ ढूंढ न सका। राम ने जवाब दिया - गुरुवर, दुनिया में बिना दाम की चीज तो मानव का निर्जीव शरीर है। उसे तो बिना दाम के भी कोई रख नहीं सकता। उसके जवाब से गुरु ने खुश होकर कहा - शाबास बेटा !

सीख - मानव का यह शरीर विनाशी है। आत्मा अविनाशी है। जब तक आत्मा शरीर में है तब तक इस शरीर की कीमत है। आत्मा ही इस शरीर से सब कर्म करती है  न की शरीर। इस लिए कीमत आत्मा की है शरीर की नहीं। इस सत्य को जान कर मान कर कर्म करने से सुख शान्ति और प्रेम की अनुभूति होती है।

Hindi Motivational Stories.... सहनशीलता दीर्घायु बनती है

सहनशीलता दीर्घायु बनती है 

    एक सन्त बहुत बूढ़े हो गये। देखा कि अन्तिम समय समीप आ गया है तो अपने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया। प्रत्येक से बोले - तनिक मेरे मुँह के अन्दर तो देखो भाई, कितने दाँत शेष है ? प्रत्येक शिष्य ने मुँह के भीतर देखा। प्रत्येक ने कहा - दाँत तो कई वर्ष पहले समाप्त हो चुके है महाराज, एक भी दाँत नहीं है।

 सन्त ने कहा - जिहा तो विधमान है ?
 सब ने कहा - जी हाँ।
 सन्त बोले - यह बात कैसे हुई ? जिहा तो जन्म के समय विधमान थी, दाँत तो उसके बहुत पीछे आये, पीछे आने वालों को पीछे जाना चाहिए था। ये दाँत पहले कैसे चले गये ?

 शिष्यों ने कहा - हम तो इसका कारण समझ नहीं पाये।

 तब सन्त ने अति गम्भीर तथा शान्त स्वर में कहा - यही बतलाने के लिए मैंने तुम्हें बुलाया है। देखो, यह जिहा अब तक विधमान है तो इसलिए कि इस में कठोरता नहीं और ये दाँत पीछे आकर पहले समाप्त हो गये। एक तो इसलिए कि ये बहुत कठोर थे। इन्हें अपनी कठोरता पर अभिमान था। यह कठोरता ही इनकी समाप्ति का कारण बना। इसलिये मेरे बच्चो, यदि देर तक जीना चाहते हो तो नम्र बनो, कठोर न बनो।

सीख - जीवन में कठोर स्वाभाव वाले व्यक्ति को कोई पसन्द नहीं करता। जो नम्र और मीठा बोलता है वो सबको अच्छा लगता है लोग उससे दोस्ती करना पसन्द करते है।   

Monday, June 9, 2014

Hindi Motivational Stories..... श्रेष्ठ विचार ही विजय बनाते है

श्रेष्ठ विचार ही विजय बनाते है 

    भारत के एक नगर में एक बुद्धिमान राजा राज्य करता था। वह कोई भी कार्य करता, उसको भली-भाँति सोच-समझ कर उस कर्म का परिणाम को देख कर ही करता। उसकी निर्णय शक्ति परख शक्ति बहुत प्रबल थी। राज्य के बहुत से लोग उसके पास अपनी घरेलु समस्याएं लेकर आते और समाधान होकर जाते थे। इस प्रकार पुरे नगर में वह प्रसिद्ध हो गया था।

 समय बदलता गया दिन महीने साल गुजरते गए और राजा बहुत बूढ़ा हो गया। परन्तु उसकी बुद्धि क्षीण नहीं हुई। राजा के तीन पुत्र थे। तीनों में रात-दिन का अन्तर था। बूढ़े राजा के सामने एक प्रश्न खड़ा था। वह सोचता था की मरने के पहले ही इन सब को अपना-अपना भार सौप दूँ। परन्तु किसको उत्तराधिकारी बनाया जाये। वह तीनों में से किसी को नाराज भी नहीं करना चाहता था और बुद्धिहीन बेटे को राज्य-अधिकारी भी नहीं बनाना चाहता था।

  विचार करने पर एक युक्ति सूझी। उसने तीनो बेटों को पास बुलाया और कहा - देखो, मैं बूढ़ा हो गया हूँ। इस दुनिया में चन्द ही रोज का मेहमान हूँ। इस संसार से जाने से पहले मैं चाहता हूँ की आप तीनों में से एक को राज्याधिकारी बना दिया जाये। मैं बुद्धिमता, समझ और सूझ-बुझ के हिसाब से ही यह निर्णय करना चाहता हूँ। और राजा ने तीनो को सौ-सौ रुपये दिए और कहा कि - घर के पिछले भाग में तीन बड़े-बड़े कमरे है खाली पड़े है, आप तीनों को उन कमरों को इन रुपयों से लाये गए सामान से भरना है। जिसका ढंग सब से अच्छा होगा, उसी को राज्याधिकारी नियुक्त किया जायेगा। एक सप्ताह का समय है आप लोगो के पास सोच-विचार समझ से कार्य करो। तीनो पुत्रों ने हामी भरी और रुपये लेकर अपने-अपने कमरे में चले गए।

   समय पूरा होते ही राजा अपने बेटों को लेकर कमरे देखने गया तो सब से पहले बड़े बेटा का कमरा देखा और उसने कमरा तो भर दिया था परन्तु सारी गला-सड़ा सामान था जो बदबू दे रहा था। और फिर दूसरे बेटा का कमरा देखा तो पहले वाले से अच्छा था गाय भैंस के चारा से पूरा कमरा भर रखा था। उस के बाद तीसरे बेटे का कमरा देखा कमरा पूरा खाली था परन्तु कमरा बहुत ही साफ़-सुन्दर था और अन्दर चारो तरफ चार दीपक जला रखे थे और अगरबत्ती की खुशबु से पूरा कमरा महाक रहा था।

 राजा ने दोनों बेटों को कहा अब आप ही बताये की राज्याधिकारी किसे बनना चाहिये तो दोनों भाईयो ने छोटे भाई की तरह इशारा किया और राजा ने उसे ही राज्याधिकारी बना दिया।

 अपनी बुद्धिमता के कारण ही छोटे भाई ने विजय प्राप्त की है। ये कहते हुए राजा ने घर की चाबियाँ छोटे बेटे के हाथ में सौप दी और कहा - बस, अब तुम संभालो। मैं अपना अन्तिम समय प्रभु-भजन में व्यतीत करूँगा।

सीख - अच्छे विचार ही मनुष्य को श्रेष्ठ और विजय बनाते है। इस लिए शुभ संकल्प करते चलो और विजय की रह पर चलते रहो। 

Sunday, June 8, 2014

Hindi Motivational stories...... प्राण जाय पर वचन न जाय

प्राण जाय पर वचन न जाय 

     अकबर बादशाह की सेना राजपूतोँ ने चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर लिया था। महाराणा प्रताप अरावली पर्वत के वनों में चले गये थे। महाराणा के साथ राजपूत सरदार भी वन एवं पर्वतों में जाकर छिप गये थे। महाराणा और उनके सरदार अवसर मिलते ही मुग़ल-सैनिकों पर टूट पड़ते और मार-काट मचाकर फिर बनो में छिप जाते थे।

    महाराणा प्रताप के सरदारों में से एक सरदार का नाम रघुपति सिंह था। वह बहुत ही वीर था। अकेले ही वह जब चाहे शत्रु की सेना पर धावा बोल देता था और जब तक मुग़ल-सैनिक सावधान हो, तब तक सैकड़ो को मारकर वन-पर्वतो में भाग जाता था। मुग़ल सेना रघुपति सिंह के नाम से घबरा उठी थी। मुगलों के सेनापति ने रघुपति सिंह को पकड़ने वाले को बहुत बड़ा इनाम देने की घोषणा कर दी। रघुपति सिंह वनो और पर्वतों में घुमा करता था। एक दिन  समाचार मिला कि उसका इकलौता लड़का बहुत बीमार है और घड़ी दो घडी में मरने वाला है। रघुपति सिंह का हृदय अपने पुत्र को देखने के लिये व्याकुल हो उठा। वह वन में से घोड़े पर चढ़कर निकला और अपने घर की ओर चल पड़ा। पुरे चितौड़ को बादशाह के सैनिकों ने घेर रखा था। हर दरवाजे पर बहुत कड़ा पहरा था। पहले दरवाजे पर पहुँचते ही पहरेदार ने कड़क कर पूछा कौन हो तुम ?

   रघुपति सिंह झूठ नहीं बोलना चाहता था, उसने अपना नाम बता दिया। इस पर पहरेदार बोला - तुम्हें पकड़ने लिये सेनापति ने बहुत बड़ा इनाम घोषित किया है, में तुम्हें बंदी बनाऊंगा।

   रघुपति सिंह बोला - भाई ! मेरा लड़का बीमार है। वह मरने ही वाला है। मैं उसे देखने आया हूँ। तुम मुझे अपने लडके का मुँह देख लेने दो। मैं थोड़ी देर में ही लौट कर तुम्हारे पास आ जाऊँगा।

    पहरेदार सिपाही बोला - यदि तुम मेरे पास न आये तो ? रघुपति सिंह - मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि अवश्य लौट आऊंगा। पहरेदार ने रघुपति सिंह को नगर में जाने दिया। वे अपने घर गये। अपनी स्त्री और पुत्र से मिले और उन्हें आश्वासन देकर फिर पहरेदार के पास लौट आये। पहरेदार उन्हें सेनापति के पास ले गया। और सारी बात बताई। सेनापति ने सब बातें सुनकर पूछा - रघुपति सिंह क्या तुम नहीं जानते थे कि पकड़ जाने पर हम तुम्हें फाँसी देंगे ? तुम पहरेदार के पास दोबारा क्यों लौट आये ? रघुपति सिंह ने कहा - मैं मरने से नहीं डरता। राजपूत वचन देकर उससे टलते नहीं और किसी के साथ विश्वासघात भी नहीं करते।

    सेनापति रघुपति सिंह की सच्चाई देखकर आश्चर्य  पड़ गया। उसने पहरेदार को आज्ञा दी - रघुपति सिंह को छोड़ दो। ऐसे सच्चे वीर को मार देना मेरा ह्रदय स्वीकार नहीं करता।

सीख - पूर्व में इंसान अपने वादे पर अटल रहता था। लेकिन आज बाहर की बात छोड़ो अपने घर में अपनों से किया वादा भी पूरा नहीं करते। इस लिए अपने आप को ऐसा तैयार करो जो बोलो सो करो।   

Hindi Motivational stories....बुद्धि ही धनवान बनाती है

बुद्धि ही धनवान बनाती है

    एक रेल में बचपण के तीन साथी यात्रा कर रहे थे। एक निर्धन था, एक मध्यम वर्ग का और एक धनी परिवार से। साथ में धनी साथी के पिता भी थे। बातें चल निकली। निर्धन मित्र बोला की आप लोग भाग्यशाली है जो सुख से रह रहे है, मैं तो अभागा ही रह गया। और इतने में ट्रैन रुकी। धनी साथी के पिता ने गन्ने ख़रीदे और तीनों साथियों को बराबर बाट दिया। पहला मित्र गन्ने को छिला और चूसकर वही कचरे को सीट के निचे फेक दिया। दूसरा मित्र  मध्यम  परिवार से था। उसने भी गन्ने को छिला और चूसकर कचरे को एक अख़बार में लपेट कर अगले स्टेशन पर कचरे के डिब्बे में डाल दिया। पर तीसरे मित्र ने गन्ने को चाकू से छिला। छिलकों को एक तरफ रख दिया। गन्ना चूसकर कचरा पात्र में डाल दि। सावधानी पूर्वक छिले गये छिलकों को दो रंगों में रंग कर उसने उनका एक पंखा बना दिया और उसे अगले स्टेशन पर बेच दिया।

    यह सारा माजरा धनी साथी के पिता देख रहे थे। उन्होंने कहा कि बेटे ! गन्ने तुम तीनों चूसे। निर्धन युवक को सम्बोधित करते हुए वे बोले - बेटे तूने गन्ना चूसा पर दूसरों के लिये परेशानी पैदा कर दी। बचपन में तुम तीनों साथ पढ़े, तू नदी किनारे खेलता ही रहा, पढ़ा ही नहीं। दूसरे ने कुछ पढ़ा तो उसने कुछ कमाया भी। उसने गन्ना चूसा पर दुसरो को परेशानी नहीं दी। मेरे बेटे ने गन्ना भी चूसा, मगर किसी को परेशान किये बिना कमाया भी।

सीख  - ये कहानी हमें अपना बुद्धि का सदुपयोग करना सीखता है। इस लिए अपने बुद्धि  सदुपयोग कर सुख दो और सुख लो। 

Saturday, June 7, 2014

Hindi Motivational Stories.... कला का सम्मान करो

कला का सम्मान करो


            प्रदर्शनी में प्रदर्शित भगवान की उस भव्य मूर्ति को देखने वालों में सम्राट समुद्र गुप्त, उनके महामात्य व अन्य राज्य कर्मचारी भी शामिल थे और सभी एक स्वर में मूर्तिकार के कला-कौशल की हृदय से सहराना कर  रहे थे। जब सम्राट ने कलाकार का नाम पूछा तो प्रदर्शनी में सन्नाटा छा गया। क्यों कि कलाकार का नाम किसी को पता ही न था। आश्चर्य की बात थी कि इतना अनोखा कलाकार स्वयं को छिपाये हुए क्यों है ? काफी खोज-बीन के पश्चात् राज्य कर्मचारी एक काले-कलूटे युवक को पकड़ कर लाये  सम्राट से बोले-महाराज, गजब हो गया ! इस शूद्र ने भगवान की पवित्र मूर्ति बनाई। दर्शकों में कुछ ऊँची जाति के लोग भी खड़े थे। वे चिल्लाये-पापम् -शान्तम् ! गजब !! महान गजब !!! इस शूद्र को भगवान की मूर्ति गढ़ने  अधिकार किसने दिया। इसके हाथ काट दिये जाने चाहिए। उनकी आवेशपूर्ण बातें सुन कर मूर्तिकार डर के मारे थर-थर काँपने लगा और सम्राट के चरणों में गिर कर क्षमा याचना करने लगा।

            सम्राट समुद्र गुप्त ने बड़े प्यार से उसे उठाया और उच्च वर्ण के लोगों की ओर आँखे तरेर कर देखते हुए कहा -छी : ! कैसी अन्याय पूर्ण बातें कर रहे है आपलोग ! भगवान की मूर्ति बनाने वाले इन सुन्दर हाथों के प्रति आप सबको ऐसा निर्णय ? आप ऊँचे और कुलीन लोगो से मुझे ऐसी अपेक्षा न थी। तोड़ दो इस ऊँची-नीच की दीवार को, तभी सभी आपस में प्यार से हिल-मिल कर रह पाएंगे, समाज सुख-शांति व समृद्धि आयेगी और सही अर्थो में हम वसुधैव-कुटुम्बकमह की भावना को धरा पर साकार कर पायेंगे। यों कहकर सम्राट ने उस काले शूद्र युवक के हाथ अपने हाथों में लेकर चुम लिए और उसे सबके बीच एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ ईनाम में देते हुए अपना राजमूर्तिकार घोषित कर दिया।

सीख - ये कहानी व्यक्ति की कला कौशल की सरहाना करते हुए ऊँच-नीच का भेद भाव मिटाकर सभी लोगो को हिल मिलकर रहने की प्रेरणा देती है। इस लिए हमें व्यक्ति की जाति धर्म को न देखकर उसकी गुण और कला को देख सम्मान करना चाहिए।