Thursday, November 27, 2014

Hindi Spiritual Motivational Thoughts........आत्मा अभिमानी बनो

आत्मा  अभिमानी बनो 

शान्ति और स्वछता का वातावरण निर्माण करो 

आज आत्मा अभिमानी बनो 

एक संकल्प करो 
मैं आत्मा हूँ 
इस हूनर को अपनावो 

ये दुसरो को मदत करेगा उनकी 
दिव्यता को निखारने में 
और आपको ख़ुशी देगा 

आत्मा अभिमानी बनना 
ये एक कला है 
इस कला को विकशित करो… 

ये एक सहज विधी है 
परमात्मा प्यार पाने का

खुश रहो ख़ुशी बाटो 

ओम शान्ति 

Wednesday, November 26, 2014

Hindi Motivational stories.........नया जन्म

नया जन्म

           एक बार कि बात है एक चोर राजा के महल से चोरी करके भाग रहा था , राजा के सिपाही ने जान लिए कि कोई चोर आया है ,सिपाही उसके पद चिन्ह को देखकर उसका पीछा करने लगे। चोर महल के बाहर निकल गया था। राजा के सिपाही उसके पद चिन्ह के साथ चलते गये। एक जगह वो रुख गए क्यों की उसके आगे कोई चिन्ह उन्हें नहीं मिला तो सिपाहियों ने अंदाजा लगया चोर गॉव के बाहर नहीं गया है। वो गॉव में ही है। और गाँव में चौराहे के मैदान में प्रवचन चल रहा था। सिपाही को लग चोर भी हो ना हो इसी सतसंग में छिपकर बैठ गया है।
वो भी वही खड़े हो गये।

       सतसंग में महाराज ने कहा की ,"भगवन ने कहा है जो सच्चे दिल से मेरी शरण आता है। उसके सारे पाप भस्म हो जाता है। और उसका नया जन्म हो जाता है। बस उसे एक बार कहना है दिल से की ," भगवान आज से मैं तेरी शरण लेता हूँ।  मैं तेरा तू मेरा , और आज के बाद कभी कोई पाप कर्म नहीं करूँगा।

     चोर सतसंग में बैठा हुआ था उसको ये बात लगी। उसने मन ही मन दिल से प्रतिज्ञा कि और भगवान की शरण लेली। सतसंग पूरा हुआ। सभी गुरु से मिलने के लिये कतार में खड़े हो गये और गुरु से आशीर्वाद  लेकर अपने अपने घर जाने लगे। लेकिन गेट के पास राजा के सिपाही सभी के पैरों के चिन्ह का परिक्षण कर रहे थे। उसमें एक व्यक्ति का पद चिन्ह मिला जिसकी वो तलाश कर रहे थे। और सिपाहियों ने उसको राजा के समाने पेश किया। राजा ने पूछा तुमने चोरी कि है ? उसने कहा। " नहीं राजा जी इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं कि। राजा के सिपाहियों ने कहा ये झूठ बोल रहा है। इसके पद चिन्ह चोर के पद चिन्ह से मिलते है। राजा ने सोचा चलो एक परीक्षण करते है। उस व्यक्ति के हाथ में एक पत्ता रख दिया गया और उसके ऊपर गरम लोहा को रख दिया। इससे न उसका हाथ जला न पत्ता जला। तब राजा ने उस से कहा हमें माफ़ करना आप चोर नहीं है। अब आप जा सकते है। तब उस व्यक्ति ने कहा राजा जी आपका धन जंगल के इस जगह में है। तो राजा ने सिपाहियों को भेजा उस जगह तो धन मिला। ये देखकर राजा ने पूछा "एक बात नहीं समझ में आया अपने चोरी नहीं की फिर आपको धन के बारे में कैसे पत्ता चला ? और आपके हाथ भी नहीं जले ?

      उस व्यक्ति ने कहा ," राजन में यहाँ से चोरी करके जंगल में धन छुपाकर सतसंग में जा कर बैठ गया ताकी मुझे कोई पकड़ ना सके। लेकिन सतसंग की एक बात मेरे दिल में उतर गयी ," जो दिल से भगवान के शरण जाता है उसके सारे पाप धूल जाते है और उसका नया जन्म हो जाता है अगर वो सच्चे दिल से प्रतिज्ञा करे तो "
और मैंने वैसे ही किया इस लिए मेरा नया जन्म हुआ है। मेरे हाथ भी नहीं जले। और इस जन्म में मैं सच्चा भक्त हूँ इसलिये धन का पता बता दिया।

सीख - सच्चे दिल पर साहेब राजी याने एक बार कोई ऐसी प्रतिज्ञा कर ले तो भगवान उसका काया कल्प कर देता है। 

Monday, November 17, 2014

Hindi Motivational stories... राम और हनुमानजी की सेवा

               राम और हनुमानजी की सेवा 

          एक बार ऐसा हुआ की भारत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तीनों भाई मिलकर माता सीताजी से विचार किया कि  हनुमान जी राम जी सेवा करते है और हमें सेवा का मौका नहीं मिलता इसलिए आज से हम तीनों भाई मिलकर राम जी की सेवा करेंगे। सीता माता ने कहा ठीक है। और दूसरे दिन जब हनुमानजी आये तो उन्हें कोई सेवा नहीं दी गई। और कहा की आज आपके लिए कोई सेवा नहीं है रामजी की सेवा सब को बाँट दी गयी है। हनुमान जी ने देखा की प्रभु राम जी जम्भाई आने पर चुटकी देकर कम करने की सेवा किसी ने नहीं ली है। सो हनुमानजी राम जी के पास खड़े रहे।

           जब रात हुई तो तीनो भाईयो ने हनुमान जी को बहुत समझाया की अब घर जाओ रामजी को सोने दो और हम उनकी सेवा में है। हनुमान जी ने कहा ठीक है और वो छत पर जाकर बैठ गये और चुटकी बजाने लगे। और जब सब चले गये तो सीता माता सेवा में आ गयी। और उन्होंने देखा की राम जी का मुँह खुला का खुला ही है। वे घबरा गई और सब को बूलाने लगी कुछ ही देर में सब आ गये। सब ने बहुत प्रयास किया की रामजी का मुख बंद हो पर सफल नहीं हो पाये। वैद जी को बुलाया गया पर कुछ नहीं हुआ। वासिष्ठ जी आये तो उनको  आश्चर्य हुआ कि ऐसी चिन्ताजनक समय पर हनुमानजी दिखायी नहीं दे रहे है। उस समय सब को हनुमान जी याद आयी तो हनुमानजी को ढूंढने लगे पता चला कि वो तो छत पर ही बैठकर चुटकी बजा रहे है। उन्हें बूलाया गया और जैसे ही हनुमान जी चुटकी बजाना बंद किया तो राम जी का मुख अपने आप बंद हो गया।

   सीख - अब सब की समझ में आया कि यह सब लीला हनुमानजी के चुटकी बजाने के कारण ही थी ! भगवान ने ये लीला इसलिये की थी कि जैसे भूखे को अन्न देना ही चाहिये, ऐसे ही सेवा के लिये आतुर हनुमानजी को सेवा का अवसर देना ही चाहिये, बंद नहीं करना चाहिये। फिर तीनों भाईयो ने कभी ऐसा आग्रह नहीं किया।

      

Friday, November 14, 2014

Hindi Motivational stories........ ढूढ उदेश्य से सम्पूर्णता की ओर !

ढूढ उदेश्य से सम्पूर्णता की ओर !

    बहुत पुरानी बात है। एक भक्त इमली के पेड़ के नीचे बैठकर भगवान का भजन कर रहा था। एक दिन अचानक घूमते घूमते वहाँ नारदजी महाराज आ गये। उस भक्त ने नारद जी से कहा की ,"जब आप भगवान से मिलेंगे तो उनसे कहा देना वो कब मुझे मिलेंगे " नारद जी भगवान के पास गये और बताया की ऐसी ऐसी जगह पर एक भक्त है और उसने पूछा है आप कब उसे मिलेंगे ? तो भगवान ने कहा - उसे कहो की उस पेड़ के जितने पत्ते है उतने जन्मो के बाद मैं मिलूँगा। ये बात सुनकर नारद जी उदास हो गये। और कुछ समय बाद वो उस भक्त से मिले लेकिन भगवान ने क्या कहा ये नहीं बताया। पर भक्त ने बहुत आग्रह किया और पूछा तब नारद जी ने कहा ,"सुनकर क्या करोगे आप आतश हो जाओगे इसलिए नहीं बता रहा हूँ " लेकिन भक्त ने प्रार्थना किया जो भी हो जैसे भगवान ने कहा है वैसे बता दे महाराज !

  नारदजी भक्त की विनती सुनकर आखिर बता ही दिया ,"भगवान ने कहा है इस पेड़ के जितने पत्ते है उतने जन्मो के बाद में वो आप से मिलेंगे " भक्त ये सुनकर ख़ुशी से नाचने लगा और मुख से कहने लगा ,"भगवान ने कहा वो मिलेंगे तो जरुरु मुझे मिलेंगे उनका वचन सिद्ध होता है , वो मुझे मिलेंगे भगवन मुझे मिलेंगे .......... ऐसी अनहद आनंद में वो मगन हो नाचते हुवे ख़ुशी में मगन हुआ। और उतने में वहाँ पर भगवान भी आ गये।

   भगवान को वहाँ देखकर नारदजी बहुत दांग रह गए। और कहने लगे भगवान आपको आना ही था तो फिर मुझ से ये क्यों कहा की इतने जन्मो के बाद मिलूँगा , इस पर भगवान ने कहा नारद जिस वक्त अपने मुझे पूछा था उस वक्त इस की अवस्था पुरुषार्थ का ठीक वैसे ही था ,लेकिन जैसे ही अपने मेरी बाद भक्त को बता दी तो उसका रफ़्तार बहुत तेज हुआ पुरुषार्थ का जिस के वजह से मैं खींचे आ रहा हूँ। मेरा तो क्या है जैसी भक्त और उसका भावना और ढूढ उदेश हो मैं अपने आप आ जाता हूँ।  जो जितना सिद्दत से उत्साह से याद करता उतना ही जल्दी मैं उस से मिलता।

सीख - हम जीतना आनंद , उत्साह और लगन  वस्तु की या ईश्वर की चाहत करेंगे वो उतना ही जल्दी हमें प्राप्त होगी................ 

Wednesday, November 12, 2014

Hindi Motivational Stories........कुछ ऐसा भी होता है।

कुछ ऐसा भी होता है। 

     बहुत पुरानी बात है लेकिन आज भी इस तरह का अनुभव हम कभी कभी करते है। सन्त-महात्माओं को हमारी विशेष गरज रहती है। जैसे माँ को अपने बच्चे की याद आती है। बच्चे को भी भूख लगते ही माँ स्वम् चलकर बच्चे के पास आती है, ऐसे ही सन्त-महात्मा सच्चे जिज्ञासुऔ के पास खिचे चले आते है। इस विषय में कहानी भी है। …

   एक गृहस्थ बहुत ऊँचे दर्जे के तत्वज्ञ, जीवन्मुक्त, महापुरुष थे। वे अपने घोड़े पर चढ़कर किसी गॉव जा रहे थे। चलते - चलते घोडा एक जगह रास्ते पर मूड गया और चलने लगा गृहस्थ ने बहुत कोशिश की सीधे रस्ते चलने की लेकिन घोडा नहीं माना तो गृहस्थ ने सोचा अच्छा ठीक है आज तेरी जहाँ से मर्जी हो वहा से जायेंगे ये कहा कर गृहस्थ फिर घोड़े पर सवार हुवे और घोड़े की दिशा में चलने लगे घोडा आगे जाकर एक घर के सामने रुख गया गृहस्थ घोड़े से उत्तर कर घर के अन्दर चले गये। वहा एक सज्जन मिले। और सज्जन ने इस महापुरुष का सम्मान और आदर-सत्कार किया। सज्जन इस गृहस्थ को जानते थे। और उनके मन में बहुत उत्कण्ठा थी महापुरुष से मिलकर कुछ साधना की बाते करू। और आज तो गंगा खुद चलकर उनके घर आयी थी। सो सज्जन ने बहुत से प्रश्न किये और जिसका उन्हें संतोष जनक उत्तर मिला। फिर सज्जन ने गृहस्थ सन्त को भोजन कराया। उसके बाद गृहस्थ सन्त ने कहा अच्छा अब आज्ञा दीजिए और कोई बात हो तो निसंकोच पूछे और यह मेरा पता है। आप आना या फिर समाचार दे तो मैं खुद आ जाऊंगा। सज्जन ने कहा 'महाराज इस बार कैसे आप आये तो सन्त ने कहा मेरा घोडा अड़ गया। अच्छा तो फिर जब आपका घोडा अड़ जाय तो फिर आना।

   कहने का भाव ये है की सच्ची जिज्ञासा होती है तो सन्तो का घोडा अड़ जाता है।

सीख - सन्तो की बात क्या ! स्वम् भगवान के कानो में भी सच्ची पुकार तुरन्त पहुँच जाती है और वे किसी सन्त के साथ हमारी भेट करा देते है।
सच्चे ह्रदय से प्रार्थना जब भक्त सच्चा गाय है। 
तो भक्त-वत्सल कान में वह पहुँच झट ही जाय है।।

Tuesday, November 4, 2014

Hindi Motivational Stories....एक सेठ की कहानी

एक सेठ की कहानी 

सदी पुरानी बात है  एक गॉव में सेठ रहता था बहुत धनवान था ईश्वर का दिया सब कुछ था। सेठ रोज सुबह सुबह लोटा लेकर मंदिर जाते और जल चढ़ाकर पूजा पाठ करके घर आते। एक दिन रास्ते में एक सन्त महात्मा बैठे थे ,उसने सेठ को देखा तो राम राम कहा  सेठ ने उसकी तरफ देखा अनदेखा किया। सन्त ज्ञानी थे वे समझ गए सेठ को डर है कही कोई कुछ माँग न ले,इस लिए उन्होंने  प्रतिक्रिया नहीं दी। पर सन्त ने मन में सोच लिए सेठ का ये डर निकाल देने कि पैसे का मोह निकाल देने की। 

दूसरे दिन सुबह ही सन्त ने सेठ जैसा रूप धारण कर लिया और सेठ के घर के अन्दर चला गया। सेठ का बेटे ने देखा की आज पिताजी जल्दी कैसे आ गये। उसने पूछा पिताजी आप आज जल्दी कैसे आ गए ? सन्त जो सेठ का रूप धारण किया था कहा 'बेटे कुछ मत पूछो एक बहुरुपिया बिलकुल मेरे जैसा रूप धारण करके इस गॉव में आया है। मुझे डर लगा कही वो घर के अन्दर ना गुस आये ,इसलिये हम जल्दी आ गए है आप चौकीदार को कह देना कोई मेरे जैसा रूप धारण कर आये तो उसे भागा देना दरवाजे आदि बंद कर देना। " लड़के ने कहा ठीक है। और उधर सेठ पूजा अादि कर घर आये तो चौकीदार उसे रोका ,सेठ चौकीदार से कहा - तू पागल हो गया क्या , मुझे रोकने की हिम्मत कैसे कर रहा है। चौकीदार ने कहा - 'सेठ तो अन्दर है ,आप बहुरुपिया हो इसलिए अब आप यहाँ से चले जॉव ' उसी समय उसका लड़का भी खिड़की से कहा चले जॉव ! ये सुनकर सेठ बिलकुल चौक गया उसका दिमाग चकराने लगा। 

सेठ वहा से राजा के यहाँ गया और बोला ऐसी ऐसी बात है। राजा ने कहा तो ठीक है अभी सेठ को बुलाते है कौन असली है और कौन नकली है पता लगा देते है। राजा का एक सिपाही सेठ के घर आया और सेठ को खबर दी सेठ ने लडके को कहा देखो वो बहुरुपिया राजा के पास गया है। लड़के ने कहा 'अब क्या करे ' सन्त जो सेठ का रूप धारण किया था कहा कोई बात नहीं चलते है। तुम तैयारी करो ,सेठ अपने घोडा गाड़ी के साथ बड़े रुबाब के साथ राजा से मिला और कहा प्रणाम राजा साहब कैसे है आप ? राजा ने कहा मै तो ठीक हूँ लेकिन ये बताईये आप में से असली कौन है ? इस का अभी फैसला करते है आपके पास हमारा बही खाता का खिताब है। उसे निकालो मैं तुम्हे बता देता हूँ। आप देखते रहना। सन्त जो सेठ के रूप में था उसने बिना देखे सारा लिखा हिसाब पालने को ये तारिक को ये रक्कम दिया है और उसमें से इतना आया है इतना बाकी है।बता दिया और  ये सब बाते सूनकर असली सेठ तो हक्का बक्का रह गया। 

और राजा ने असली सेठ को नकली समझ उसे दण्ड दे दिया। लेकिन फिर सन्त जो सेठ बना था उसने कहा इसे माफ़ कर दो राजा। इसने मेरा कुछ नुकसान नहीं किया है। राजा ने उसे छोड़ दिया। और दूसरे दिन फिर से सेठ अपने घर गये तो सब कुछ वैसे ही था ,पर सेठ का मन बदल गया था। और सुबह मंदिर जाते समय सेठ को वाही सन्त महात्मा बैठे दिखाई दिये सेठ ने उन्हें राम राम किया और फिर आगे बड़े। 

सीख - व्यक्ति को कभी भी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिये या उनका तिरस्कार नहीं करना है। ये संसार ईश्वर का बनाया है हम सब  अपना अपना पाठ बजाने आये है। तो सब के साथ प्यार से बातचीत कर चलना है। 

Sunday, November 2, 2014

Hindi Motivational Stories..............................................पाप का बाप कौन ?

पाप का  बाप कौन ?

               एक पण्डित जी काशी से पढ़कर आये। कुछ समय बाद उनकी शादी हुई , स्त्री आयी। कई दिन हो गये। एक दिन स्त्री ने प्रश्न पूछा कि "पण्डितजी महाराज ! यह तो बताओ कि पाप का बाप कौन है ?" अब पण्डितजी पोथी देखते रहे , पर पता नहीं लगा , और उत्तर नहीं दे सके। पण्डितजी को बड़ी शर्म आयी कि स्त्री ने जो प्रश्न पूछा उसका जवाब कही भी नहीं मिल रहा है।

    कुछ सोच विचार कर वो फिर से काशी के लिए चल दिये , और रास्ते में एक वेश्या रहती थी। उसने पण्डितजी के बारे में सुना था कि काशी से पढ़कर आये है। वेश्या ने पूछा - ' पण्डितजी कहा जा रहे हो ? पण्डित ने कहा "काशी। "  वेश्या बोली क्यों ? पण्डित ने कहा -'स्त्री ने पूछा है -पाप का बाप कौन है ?  यही समझने के लिए जा रहे है। वेश्या बोली - ' इसका उत्तर तो हम ही आपको बता देँगे। ' पण्डितजी ने कहा ठीक ! काशी जाने से बच गये आप ही बता दे। वेश्या बोली - ' अमवस्या के दिन भोजन के लिये पधारो "

        पण्डित जी अमवस्या  के दिन वेश्या के घर गये जैसे ही पण्डित पहुँचे वेश्या ने सौ रुपये पण्डित जी को दिये और भोजन कि सारी सामग्री बता दी और पण्डितजी भोजन बनाने कि तैयारी करने लागे। तब वेश्या ने पण्डित जी के आगे एक और सौ रुपये रख दिये और कहा आप तो पक्का भोजन रोज पाते हो आज कुछ भोजन हम बनाएंगे और आप खा लेना। पण्डित ने सिर हिला दिया कोई हर्जे नहीं, हम घर पर स्त्री का हाथ का खाना खाते ही है। रसोई बनाकर वेश्या ने पण्डितजी को परोस दिया। और फिर सौ रुपये और पण्डितजी महाराज के आगे रख दिये और नमस्कार करके बोली - महाराज ! जब मेरे हाथ से बनी रसोई आप पा रहे है तो मैं अपने हाथ से ग्रास दे दूँ। हाथ तो वही है, जिन से रसोई बनायीं है. ऐसी कृपा करो। ' पण्डितजी ना नहीं कर सके और तैयार हो गये, उसने ग्रास को लेने के लिये मुहँ खोला , और वेश्या ने उसी समय उठाकर मारी थप्पड़ जोर से, और बोली - ' अभी तक आपको ज्ञान नहीं हुआ ? ख़बरदार ! जो मेरे घर का अन्न खाया तो ! आप जैसे पण्डित का मैं धर्म- भ्रष्ट करना नहीं चाहती। यह तो मैंने पाप का बाप कौन है, इसका ज्ञान कराया है। '

सीख - रुपये ज्यों - ज्यों आगे रखते गये पण्डितजी ढीले होते गये। इससे सिद्ध क्या हुआ ? पाप का बाप कौन हुआ ? रुपयो का लोभ ! "त्रिविध नरकस्वेद द्धार नाशनमात्मन :" (गीता १६ /२१ )
काम , क्रोध और लोभ - ये नरक के खास दरवाजे है। ( पर उपदेश कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे।। )
दुसरो को उपदेश देने में तो लोग कुशल होते है, परंतु उपदेश के अनुसार ही खुद आचरण करनेवाले बहुत ही कम लोग होते है। इस लिये दुसरो को उपदेश देते समय जो पंडिताई होती है, वाही अगर अपने काम पड़े, उस समय आ जाय तो आदमी निहाल हो जाय। जानने की कमी नहीं है, काम में लाने की कमी है।