”इक्कीसवी सदी का इंसान ”
इक्कीसवी सदी का इंसान,
समझ बैठा अपने को भगवान,
कर रहा अपने हाथों के उध्वंस से ,
इस देश का नव निर्माण |
समझ बैठा अपने को भगवान,
कर रहा अपने हाथों के उध्वंस से ,
इस देश का नव निर्माण |
गाँधीजी के युग में, जहाँ उठाया था हमने बीड़ा,
न किसी के चेहरे पर हो शिकन, न किसी तरह की पीड़ा,
बलिदान दिया उन्होंने, अपने इसी देश के लिए,
क्या याद रख पाए हम, उनकी किसी तरह की क्रीडा |
न किसी के चेहरे पर हो शिकन, न किसी तरह की पीड़ा,
बलिदान दिया उन्होंने, अपने इसी देश के लिए,
क्या याद रख पाए हम, उनकी किसी तरह की क्रीडा |
मुंबई का आतंकवादी हल्ला, जिसने हिला दिया एक आम इंसान को,
खून, खराबा, विक्षिप्त लाशें गिराकर, क्या मिला किसी को,
क्या होगा उन नन्हें बच्चों का, जिनके माँ बाप ही न रहे ,
जिनकी नन्हीं आँखें निहार रही हैं , अभी भी किसी पथ को |
खून, खराबा, विक्षिप्त लाशें गिराकर, क्या मिला किसी को,
क्या होगा उन नन्हें बच्चों का, जिनके माँ बाप ही न रहे ,
जिनकी नन्हीं आँखें निहार रही हैं , अभी भी किसी पथ को |
भाई भाई के खून का प्यासा हो, क्या यही था उनका सपना,
सूरज अभी ढला नहीं, कर सकते हैं हम, सभी को अपना,
आज कोई रो रहा है, कल हम भी रो सकते हैं,
यह सोच कर तो बंद करो , जाति के नाम को कुरेदना |
सूरज अभी ढला नहीं, कर सकते हैं हम, सभी को अपना,
आज कोई रो रहा है, कल हम भी रो सकते हैं,
यह सोच कर तो बंद करो , जाति के नाम को कुरेदना |
आओ, आज हम सब मिलकर, कहें यह कसम खाकर,
गाँधीजी के सपने को, एक नए रूप में सँजोकर,
इक्कीसवी सदी के इस युग में,
हम लाएँगे, रामराज्य का इंसान |
गाँधीजी के सपने को, एक नए रूप में सँजोकर,
इक्कीसवी सदी के इस युग में,
हम लाएँगे, रामराज्य का इंसान |
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