कला ! ईश्वर की अमूल्य देन
एक राजा ने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो शिल्पी अपनी शिल्पकला से हमें भूल भुलय्या में डाल देगा उसे मुँह माँगा ईनाम देंगे और अगर ऐसा नहीं कर पायेगा तो मृत्यु दण्ड मिलेगा। एक युवा शिल्पी तैयार हो गया। उसे 30 दिन की अवाधि दी गई। शिल्पी पुरूषार्थ में लग गया। दिन बीतने लगे। आखिर निश्चित दिन आ गया परन्तु शिल्पी की ऒर से राजा को कोई समाचार नहीं मिला। राजा क्रोधित हुए और हाथ में खुली तलवार लेकर शिल्पी के घर जा पहुँचा। ठोकर मारकर घर का दरवाजा खोला तो देखा कि सामने शिल्पी गहरी नींद में सोया हुआ था। राजा का गुस्सा चरम सीमा पर पहुँच गया। वह शिल्पी को मारने दौड़ा। तभी द्वार के पीछे छिपे युवा शिल्पी ने सामने आकर कहा - जहाँपनाह ! सजा देनी ही है तो मै तो यहाँ हूँ, यह तो मेरे द्वारा बनाई गयी मेरी प्रतिमा है।
राजा शर्मिंदा भी हुआ और युवा शिल्पी को मुँह माँगा ईनाम भी दिया। यह है शिल्पी की अदबुध साधना का फल। और अपने सुना होगा पिकासो नाम के एक सुविख्यात चित्रकार के गुलाब - पुष्प के चित्र पर भ्रमर रस चूसने के लिए इकट्टे हो जाते थे और उसके बनाए बिल्ली के चित्र को देख कुत्ता घूरता रहता था।
सीख - कलाएँ हम सब के अन्दर आज भी मौजूद है। जरुरत है स्वं को पहचानने की जिस के लिए थोडा समय निकलना होगा। तो हम कर सकते है अगर हम चाहे तो सब कुछ कर सकते है
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