सम्बन्धों से स्नेह होता है
एक नव- विवाहित वर और वधू गाड़ी में यात्रा कर रहे थे। रस्ते में उनके साथ उनके पिताजी को भी शामिल होकर आगे की यात्रा करनी थी। जब गाड़ी उस स्टेशन पर आई तो वर का पिता भी वहाँ प्लेटफार्म पर आया हुआ था। गाड़ी रुकते ही वर तो सुराही लेकर पानी भरने चला गया। उसका पिता उस डिब्बे को ढूंढ रहा था जहाँ उसका बेटा और उसकी बहू बैठे थे। उसे बेटा तो दिखाई दिया नहीं तथा गाड़ी चलने का समय भी नजदीक आता जा रहा था, इसलिए उसने एक डिब्बे में धुसपैठ करने की कोशिश की। अब जहा बहू बैठी थी ठीक उसी डिब्बे में पिताजी गये। अब बात ये थी की ना बहू उन्हें जनती थी और ना ही ससुर बहु को जनते थे। और बहू तो घुँघट करती थी। और पहचान न होने के कारण बहू ने उस वृद्ध व्यक्ति को अन्दर प्रवेश नहीं करने दिया। डिब्बे के भीतर से दरवाजे की चिटखनी बन्द करते हुए वह कड़क कर बोली - यह बूढ़ा घुसता चला आ रहा है, इसे दीखता नहीं है कि यहाँ पहले ही जगह नहीं है जा दूसरे डिब्बे में कहीं घुस जा। बूढ़ा भी उस नारी के कटु शब्द सुनकर अशान्त हुआ। वह बोला - मालूम नहीं, यह किस मुर्ख की बहू है, यह तो बोलना ही नहीं जानती।
इस प्रकार कहासुनी हो रही थी कि इतने में बेटा (वर ) पानी की सुराही भर कर आ पहुँचा। अपने पिता को देख कर वह उनके सामने झुका और उसने नमस्कार किया और झगड़ा देखकर दुःखी भी हुआ और शर्मिन्दा भी। उसने अपनी पत्नी से कहा - जानती नहीं हो यह मेरे पिताजी, अथार्त तुम्हारे ससुर साहब है....…। ओहो, तुमने इन्हें बैठने के लिए न कर दी ! यह तो बहुत पाप कर दिया है.. तब बेटे ने पिता से क्षमा माँगी और उस बहू ने भी पश्चाताप प्रगट किया। वृद्ध महोदय भीतर बैठ गये, अब उनके लिये जगह भी बन गयी थी। वह झगड़ा भी निपट गया तथा अब शान्ति, सम्मान और प्रेम की बाते होने लगी क्यों की अब सम्बन्धों का ज्ञान हो गया था।
सीख - अज्ञान में मनुष्य दुःखी होता है। और ज्ञान से मनुष्य सुख का अनुभव करता है। इसलिए ज्ञानवान बनो।
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