प्रभु स्नेह ! सर्व दुःखो से छूटकारा
शंकराचर्य घर-बार छोड़ कर धर्म का प्रचार करना चाहते थे। परन्तु उनकी माँ उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती थी। शंकराचर्य ने आखिर एक युक्ति सोची। वह एक बार अपनी माँ के साथ नहाने नदी पर गये। कपड़े किनारे पर रखकर शंकराचर्य ने माँ को किनारे पर बैठने को कहा। और अचानक ही नहाते-नहाते शंकराचर्य जोर-जोर से चिल्लाने लगे। माँ - माँ। . ओ मैं मरा ! मगरमच्छ ने मेरा पॉव पकड़ लिया ! रे कोई बचाओ … बचाओ … इधर माँ घबरा गयी और हाय-हल्ला करने लगी। शंकराचर्य ने कहा - माँ, एक भगवान ही बचा सकते है वरना आज मैं मरा, हाय मरा , अरे मगरमच्छ, माँ मैं तो मरा …कह दो मैंने अपना बच्चा भगवान को दिया। जल्दी कह दो माँ, एक सर्वशक्तिवान भगवान ही गज को ग्रह से बचाने की भाँति मुझे बचा सकते है … हाय.… मरा जल्दी करो माँ.…. . । जल्दी के कारण माँ ने कुछ सोचा नहीं गया। उसे तो बच्चे का जीवन प्यारा था उसने तुरन्त कह दिया - मैंने यह बच्चा भगवान को दिया। फिर वह कहने लगी - बचाओ भगवान बचाओ ! अब यह आप की शरण में है, यह आप ही का बच्चा है।
शंकराचर्य तट की ओर बढ़ने लगे। माँ ने सोचा कि शायद मगरमच्छ ढीला छोड़ता जा रहा है। उसकी आशा बंध गयी। वह फिर दोहराने लगी - बचाओ भगवान् ! हे प्रभु बचाओ, यह आप का ही बच्चा है, इसे मैंने आपके शरण में सौपा है। इस तरह शंकराचर्य तट पर आ पहुँचे और बोले - माँ, तूने अच्छा किया, मुझे भगवान् के हवाले कर दिया, वर्ना तो आज बचने की कोई आशा नहीं थी। तूने बचा लिया मुझे, माँ.… …। माँ बोली - मैंने नहीं, भगवान् ने तुजे बचाया है शंकर, इस बात को कभी मत भूलना। शंकराचर्य बोले - ठीक कहती हो माँ ! तो अब से मेरा यह जीवन भगवान के ही हवाले है तुमने तो उसे सौप दिया था न, माँ ? उसी ने बचाया है न मुझे ? माँ ने अब समझा कि शंकराचर्य किस अर्थ में उसे यह कह रहा है। धार्मिक स्वाभाव की और श्रदालु माता होने के कारण उसने कह दिया - हाँ, हो तो तुम भगवान के ही। परन्तु क्या मुझे छोड़ जाओगे ? तब शंकराचर्य ने कहा - माँ, मैं छोड़ने की भावना से नहीं जा रहा, धर्म का प्रचार करने जा रहा हूँ, जिस भगवान ने मुझे बचाया है, नया जीवन दिया है, उसकी महिमा करने जा रहा हूँ।
सीख - धर्म का प्रचार या भगवान की महिमा करने के लिए घर वालों को राजी कर या स्वीकृती लेकर आगे निकालना है।
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