त्याग के आदर्श
1. एक साधु थे। उनसे किसी ने पूछा कि ' आपके पास एक पैसा भी नहीं है , फिर आप भोजन कहाँ पाते हो ? ' साधु ने कहा कि ' भिक्षा पा लेते है। ' उसने फिर पूछा कि कभी भिक्षा न मिले तो ? साधु बोला - ' तो फिर भूख को ही पा लेते है। ' भूख को पाने का तात्पर्य है कि आज हम भोजन नहीं करेंगे, क्यों कि भूख का ही भोजन कर लिया।
2. एक सज्जन साइकिल में चढ़कर कही जा रहे थे। साइकिल सड़क के बीच में थी। पीछे से एक ट्रकवाला आया और ट्रक रोककर बोला कि " अरे। बीच में क्यों चलते हो ? या इस तरफ चलो, या उस तरफ !' सज्जन को जागृति आयी चेत हो गया कि जीवन में भी मैं ऐसे ही बीच में चल रहा हूँ , अब एक तरफ हो जाना चाहिये। वे सब कुछ छोडकर साधु बन गये।
सीख - बातें बहुत छोटी पर समझ में आ जाये तो जीवन परिवर्तन हो जायेगा पुरुष से आप महापुरुष बन जायेंगे।
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