बाते छोटी पर बड़े काम की
1. एक साधु थे। वे किसी से कुछ माँगते नहीं थे। माँगना तो दूर रहा, यदि कोई उनसे पूछता कि रोटी लोगे तो वे साफ 'ना ' कह देते, भले ही वे दो-तीन दिन से भूखे क्यों न हो। हाँ !. उनके सामने कोई रोटी रख देता तो वे खा लेते थे।
2. ऋषिकेश की बात है। एक साधु बाहर गये हुए थे। पीछे से कोई उनकी कुटिया में ठण्डाई की सामग्री रख गया। साधु ने आकर उसे देखा तो वे कुटिया के भीतर नहीं गये, बाहर ही रहे। जब तक चीटियाँ उस सामग्री को खा नहीं गयी, तब तक वे साधु कुटिया के बाहर ही रहे।
3. ऋषिकेश की ही एक बात है श्रीस्वामीज्योति जी महाराज की फटा कुर्ता देखकर एक साधु सुई-धागा ले आया। महाराज जी ने कहा सुई-धागा यही रख दो, मैं खुद सिल लूँगा। महाराज जी ने अपने हाथो से सिलाई कर ली। और दूसरे दिन वह साधु आया तो महाराज ने उसको सुई-धागा लौटा दिया। वह साधु बोला कि इसकी फिर कभी भी जरुरत पड़ सकती है, इसलिये पास में सुई-धागा रहना चाहिये। महाराज जी ने कहा कि इस " चाहिये ". को मिटाने लिये ही तो हम यहाँ जंगल में आये है। इस सुई-धागे को यहाँ से ले जाओ। यह 'चाहिये ' हमें नहीं चाहिये।
4. एक संन्यासी थे। एक बार मेले में उन्होंने अपनी स्त्री को देखा तो पूछ बैठे कि तुम यहाँ कब आयी ? स्त्री ने उत्तर दिया कि आपने संन्यास ले लिया, क्या अब भी मेरे को पहचानते हो ? उत्तर सुनकर संन्यासी को चेत भी हुआ और लज्जा भी आयी तब उन्होंने अपना सिर झुका लिया। फिर उन्होंने जीवन भर सिर झुकाये रखा, कभी किसी को सिर उठाकर नहीं देखा। और मुक्ती को प्राप्त हुवे।
5 . समुद्र-तटकी दीवार पर एक सज्जन बैठे थे। उन्होंने देखा कि एक जवान आदमी हाथ में धोती-लोटा लिये आया। उसने धोती-लोटा किनारे पर रख दिया और कपड़े उतारकर स्नान के लिये समुंद्र में घुस गया। इतने में समुद्र की एक बड़ी लहर आयी और उसको अपने साथ ले गयी। धोती-लोटा किनारे पड़ा रह गया और वह आदमी फिर समुद्र से बाहर नहीं आया। दीवार पर बैठे सज्जन यह सब देख रहे थे। उनको जीवन की क्षणभुंगरता का साक्षात्कार हो गया था। वे भी दीवार से उतरकर अज्ञात स्थान की ओर चल दिये और भगवन के भजन में लग गये। फिर कभी लौटकर घर नहीं गये।
त्याग में विचार कैसा ? कोई मरता है तो क्या विचार करके मरता है ?
No comments:
Post a Comment