Tuesday, November 11, 2025

शीर्षक – पछतावे में क्या जीना




1–जिंदगी पछतावे में क्या जीना।

किसी के दिखावे में क्या जीना।

जिंदगी एक प्रेम की मूरत है।

नफरत के साए में क्या जीना।

जिंदगी पछतावे में क्या जीना।


2– जिंदगी एक प्रेम का कच्चा घड़ा है।

ना कोई दुनिया में छोटा बड़ा है।

जब से जाना यह जीवन का घड़ा किराए का।

चलो घर हम चले किराए में क्या जीना।

जिंदगी पछतावे में क्या जीना।


3–आज जिस रास्ते में हम खड़े हैं।

कहीं पानी कहीं पत्थर पड़े हैं।

हौसला है तो पार होना है।

जख्म इन आंसुओं से क्या सीना।

जिंदगी पछतावे में क्या जीना।


4–जिसको देखो उदास बैठा है।

जिंदगी से निराश बैठा है।

यही अज्ञानता में जीना है।

इसी का नाम विष पीना है।

विष के साए में क्या जीना।

जिंदगी पछतावे में क्या जीना।

किसी के दिखावे में क्या जीना।

जिंदगी एक प्रेम की मूरत है। 

नफरत के साए में क्या जीना।  

 

     ओम शांति* 

कवि –सुरेश चंद्र केसरवानी 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर – 9919245170

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