Thursday, November 20, 2025

शीर्षक –जब मैं जन्म लिया जग में



1–जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।

ननिहाल में अम्मा के नामो से यार मुझे पहचान गया।

स्कूल गया तो गुरु जी पूछे।

हमसे अम्मा बाबू का नाम।

जब उन्हें बताया नाम लिखाया।

तब मुझको पहचान गया।

जब मैं जन्म लिया जग में।


2– हम भले भुला दे पर हमको वह कभी नहीं बिसराते हैं।

मां बाप भले भूखे सोए।

बच्चों को पहले खिलाते हैं। 

है मात-पिता भगवान तुम्हारे 

भगवान को किसने देखा है।

बचपन से लेकर अंत समय तक

उन्होंने तुमको देखा है।

आज की संतानों की नजर में मां बाप को न पहचाना गया।

जब मैं जन्म लिया जग में।


3– अब नहीं रहा वह वक्त दिनों दिन गिरता गया समाज।

कहोगे किसको कौन सुनेगा।

किस पर करोगे ना नाज। 

आज की संतानों में खो गई मर्यादा की बातें।

कलयुग का है एक खिलौना जिसकी माने बातें।

मां बाप की एक नहीं सुनते रिश्ता जैसे बेगाना हुआ।

जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।


4–मोबाइल से रात दीना कितना करते हैं बातें। 

मोबाइल में दिन है गुजरता मोबाइल में राते 

बारह एक बजे सोते हैं उठाते हैं दस बारह।

आज की संतानों ने सूरज की किरणे नहीं निहारा।

इसलिए रोगी और भोगी दिन प्रतिदिन बनते हैं।

जहां भी देखो अस्पताल दिन रात खुला करते हैं।

भूलो नहीं अम्मा बाबू को नहीं तो पछताओगे।

जीवन नर्क बना डाला फिर स्वर्ग कहा से पाओगे।

यही सत्य हैं आज की पीढ़ी में देखो मनमाना हुआ।

जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।



       *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

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