Thursday, November 20, 2025

*शीर्षक – बेटी घर की गहना।*

 

1– मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।

जिस मात पिता ने पाला है। 

जिसकी आंखों का तारा है। 

जिस मात-पिता ने दिल का टुकड़ा माना।

उसको तुमने दुत्कार दिया।

जिसने टुकड़े-टुकड़े कर डाला। 

उसको तुमने प्यार किया।

मैं मना तुमने प्यार किया।

पर कुछ तो सोच लिया होता।

श्रद्धा के 35 टुकड़े को आंखों से देख लिया होता।

यह मानव नहीं कसाई है।

जिससे तू प्रीत लगाई है।

मेरी बेटी मानो कहना

अब प्यार किसी से ना करना।

प्यार किसी से ना करना।


2–तुम अपनी घर की इज्जत हो। 

तुम ही अपने घर की गहना।

मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।

ये प्यार नहीं है हत्यारों।

एक प्यार के नाम पर धोखा है।

ये प्यार तो दिल का सौदा है।

हिंदू मुस्लिम क्या होता है।

लेकिन हे गद्दारों तुमने

अपनी पहचान बताया है।

जिसने तुमको अपनाया है।

उसको तुमने दफनाया है।

कुछ तो डर गर इंसान तू है।

भगवान का ही ये कहना है।

तुम अपनी घर की इज्जत हो। 

तुम ही अपने घर की गहना।


3–जिनके घर में ये बेटी है।

उनके दिल में क्या होती है।

वह बाप तो पत्थर हो जाता।

मां चुपके चुपके रोती है।

ये आंसू शूप के मोती है।

दमन को रोज भिगोती है।

उनके दिल से कोई पूछे जिनके घर बेटी होती है।

बेटी इज्जत बेटी दौलत बेटी ही घर की गहना है।

बेटी कुछ तो तुम भी समझो ये मात पिता का कहना है।


4–कुछ तुमको पता नहीं बेटी ।

कैसे मैं तुमको पाला है।

मेरी आंखों में आंसू है।

न मुंह में एक निवाला है।

इस मात पिता को झटके से तूने यूं अपने दिल से निकाला है ।

अंजान मुसाफिर को तुमने अपना माना और प्यार किया 

उसके तेरे प्यार को न समझा टुकड़े टुकड़े कई बार किया।

ऐसे हैं दरिंदे अकल के अंधे।

उनसे बातें कभी नहीं करना अपनी इज्जत मां-बाप की इज्जत का तुम ध्यान सदा रखना।

मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

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