1–जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे।
तो खाना बहुत जरूरी है ।
वैसे मन बुद्धि स्वच्छ रहे ।
प्रभु गुण गाना बहुत जरूरी है।
आए हैं मुसाफिर खाने में।
क्यों सोच रहे हो जाने में।
आखिर एक दिन इस दुनिया से
घर जाना बहुत जरूरी है।
जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे ।
तो खाना बहुत जरूरी ।
2–वैसे कुछ दिन के बाद यहां
दस्तूर निभाए जाते हैं ।
शोहरत दौलत को देखकर ही
व्यवहार निभाए जाते हैं।
कुछ सब्र करो सब कहते हैं ।
कुछ चीख चीख चिल्लाते हैं।
56 प्रकार का भोज छोड़कर पशु का मांस ये कहते हैं ।
यह मानव है या दानव है।
उनके ही बीच में रहना है।
यहां सत्य असत्य का मेला है।
कब तक इन सब को सहना है।
मानव स्वभाव को सतोगुड़ी में लाना बहुत जरूरी है।
आखिर एक दिन इस दुनिया से घर जाना बहुत जरूरी है।
जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे तो खाना बहुत जरूरी है।
3–कहीं हसरत पुरानी है।
कहीं नजरे रूहानी है।
कहीं दीदार होता है ।
कहीं इनकार होता है।
हमारे आखिरी मेले में तुम मेहमान बन आना।
आज हम जा रहे एक दिन तुम सबको भी है जाना।
*ओम शांति*
रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी*
(प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर –9919245170
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