Thursday, November 13, 2025

*शीर्षक – स्वार्थी इंसान*


1–आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है ।

वह किसी भी हाल मालामाल होना चाहता है।

राजसी हो ठाठ वह सम्मान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।


2–प्रेम की भाषा नहीं है प्रेम पाना चाहता है।

नेह परिभाषा नहीं स्नेह पाना चाहता है।

आज का इंसान कितना स्वार्थी है, स्वार्थ में

दूसरे के धन से दाता दान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।


3–भावना सद्भावना से दूर है ।

भाव का भंडार पाना चाहता है।

सत्यता की राह से गुमराह है। 

सत्य का विस्तार लाना चाहता है।

क्या करें आदत से वह मजबूर है। 

फिर भी वह खुशहाल होना चाहता है ।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।

आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है।


4– दूरियां दिल में है मन में प्यास है 

सबका वह विश्वास पाना चाहता है।

द्वेष नफरत से भरी है जिंदगी ।

फिर भी सबक खास होना चाहता है।

आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है ।

वो किसी भी हाल मालामाल होना चाहता है। 

राजसी हो ठाठ वो सम्मान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है ।


          *ओम शांति* 

रचनाकार – *सुरेश चंद केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

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