1–अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो।
जहां में हमारा भी सम्मान होगा।
करू प्यार सबसे मै दर्पण बनू तो।
यूं अर्पण समर्पण से सुखधाम होगा।
अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो।
जहां में हमारा भी सम्मान होगा।
2–मिला तन ये मानव का हु भाग्यशाली।
गुरु ज्ञान से शिक्षा कुछ हमने पाली।
गुरु ज्ञान सागर का दर्शन करूं तो।
गुरु का ये जीवन में एहसान होगा।
अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो
जहां में हमारा भी सम्मान होगा ।
3–प्रथम ज्ञान मां के चरण आचरण से ।
मां के ही आंचल से आया हूँ रण में ।
समर में अगर मैं विजय हो गया तो ।
ये मां की दुआओं का एहसान होगा।
अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करूं तो
जहां में हमारा भी सम्मान होगा।
4– अमर आत्मा है यह तन है विनाशी।
अमर है तेरे कर्म की जो है राशि ।
मिटा ना सकेंगे ये कर्मों की रेखा।
तुम्हारे जिगर में जो अरमान होगा।
करू प्यार सबसे में दर्पण बनू तो
यूं अर्पण समर्पण से सुखधाम होगा
अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करूं तो।
जहां में हमारा सम्मान होगा ।
*ओम शांति*
रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी* (प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर –9919245170
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