1–कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो।
क्या करोगे ये दौलत नहीं जाएगी।
आपसे जो मिले मुस्कुराते रहो।
सब धरा का धरा पर ही रह जाएगी।
कुछ रहे न रहे आप खुश तो रहो।
2– जिंदगी एक अमानत तुम्हें है मिली।
तुम इसे व्यर्थ में यूं गवाना नहीं।
जिंदगी चार दिन की विरासत भी है।
ये विरासत यहीं पर ही रह जाएगी।
कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो
3–आप हंसते रहो और हंसाते रहो।
भीड़ मेले की है ये चली जाएगी।
मेले में जो मिले मुस्कुराते रहो।
ये घड़ी फिर दुबारा नहीं आएगी।
कुछ रहे न रहे आप खुश तो रहो।
4–हर सुबह एक नई जिंदगी है मिली।
कौन जाने कब शाम ढल जाएगी।
जो समय जा रहा है नहीं आएगा।
आखिरी शाम तेरी जरूर आएगी।
कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो।
5–जिंदगी उस प्रभु की अमानत भी है।
इस अमानत में उनकी जमानत भी है ।
भूल कर अपनी दौलत समझना नहीं।
दोस्ती है जो पल में बिगड़ जाएगी।
कुछ रहे ना रहे आप खुश रहो।
क्या करोगे यह दौलत नहीं जाएगी।
आपसे जो मिले मुस्कुराते रहो।
सब धरा का धरा पर रह जाएगी।
*ओम शांति*
रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी*
(प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर –9919245170
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