Friday, March 21, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " ऐसी वाणी बोलिये (युक्ति से मुक्ति ) "

ऐसी वाणी बोलिये (युक्ति से मुक्ति )

      एक राजा का सब से प्रिया हाथी बिल्कुल बूढ़ा हो चला था। गॉव के कुछ प्रमुख्य लोगो को बुलाकर राजा ने वह हाथी उनको सौंप दिया और कहा कि इसकी अच्छी तरह से संम्भाल करना। और हाथी का हाल - समाचार रोज हमें बताते रहना। लेकिन जो भी व्यक्ति इस हाथी के मरने की खबर लेकर आयेगा उसे मौत की सजा दी जायेगी। राजा कि बात को कौन टल सकता था। उस समय तो सब ने हाँ कह दिया और हाथी को अपने साथ लेकर आये और राजा के बताये अनुसार हाथी की अच्छी देख - रेख करते रहे। और कुछ दिनों के बाद वह हाथी मर गया। अब सब गॉव के लोगो के सामने एक समस्या थी कि यह खबर लेकर राजा के पास कौन जाये? बहुत सोच विचार चला सब के मन में डर था। और उसी गॉव में एक गरीब बूढ़ा रहता था, जो बहुत बुद्धिमान था। उसने सुना तो वह बोला कि मै राजा के पास जाऊँगा, आप लोग चिन्ता छोड़ दो, मुझे कुछ भी नहीं होगा। दूसरे दिन वह सवेरे दरबार में राजा के पास पहुँचा और हाथ जोड़ कर बोला - अन्नदाता, आपने हम सबको सम्भालने के लिए जो हाथी दिया था वह कल दोपहर से न तो श्वास ले रहा है, न कुछ खा रहा है, न करवटें बदल रहा है, जैसे लेटा था वैसे ही लेटा है और न ही पानी पी रहा है। राजा ने तुरन्त पूछा - क्या वह मर गया ? वह बोला - महाराज ! ये हम कैसे कहे ? ऐसी बात सुनकर राजा उसकी विवेकशीलता पर बहुत खुश हुआ और उसे अपने सभासदों के साथ ही रख दिया, साथ में बहुत सारे उपहार भी दिये। उस बुद्धिमान बुजुर्ग की तरह हम भी अपने सकारात्मक बोल से सभी का दिल जीत सकते है। इसी लिए हमें सर्व के प्रति सदा शुभ भावना और शुभ कामना रख सकारात्मक बोल ही बोलने चाहिये।

सीख - हमें कोई भी बोल बोलने के पहले सौ बार अवश्य सोच लेना चाहिए कि इस बोल का उस व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा।  विद्धानों ने कहा है - पहले तोलो, फिर बोलो। हमें यह शब्द सदा याद रखना चाहिए -

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोए। 
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होये।।
 

Wednesday, March 19, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " संतोषम् परम् सुखम् "

संतोषम् परम् सुखम् 

             एक विदेशी पर्यटक गर्मी के दिनों में भारत आया। उसने फलो की दूकान पर देखा कि विक्रेता दोपहर में आराम से बैठा था। न तो ग्राहक ही आ रहे थे और न ही ग्राहकों को बुलाने की चेष्टा ही कर रहा था। विदेशी को आश्चर्य हुआ। उसने कहा - ऐसे तुम्हारे फल कैसे बिकेंगे ?

दुकानदार बोला - साहब, दुकान का तो सबको पता है। आवाज़ क्या लगाना जिसको आना होगा वह                 आयेगा। 
विदेशी - ऐसे कैसे आयेंगे,  आवाज़ देंगे तो माल अधिक बिकेगा। 
दुकानदार ने पूछा - फिर .... 
विदेशी ने कहा - फिर तुम्हारी अच्छी कमाई होगी उससे और अधिक माल ला सकोगे, तुम्हारी दुकान               बड़ी हो जायेगी।  
दुकानदार प्रश्न करता गया फिर.…… 
विदेशी ने कहा - फिर तुम अपने साथ एक और सहायक रखना इसमें मजदूरों कि भी मदद ले सकते                 हो। अच्छी कमाई से तुम साहूकार बन जाओगे। उसके चुप होते ही दुकानदार ने                                             फिर वही प्रश्न किया
 दुकानदार ने कहा -…… फिर ……
विदेशी ने कहा - फिर तुम आलीशान मकान बना लेना, गाड़ियाँ खरीद लेना, ड्राईवर रखना। 
दुकानदार अभी भी पूछा फिर … … 
विदेशी ने कहा - फिर तुम आराम से मजे की ज़िन्दगी जी सकोगे। 
दुकानदार बोला - साहब, वह तो मै अभी भी आराम से, मजे से बैठा हूँ। इतना घूम - फिर कर आने की              क्या जरुरत है ! विदेशी निरुत्तर था। वह व्यर्थ की भाग दौड़ में उसे फॅसा नहीं सका। 
             
सीख - संतोष सभी गुणों का राजा है। इसे सर्वोतम धन भी कहा जाता है। 
          " जब आवे संतोष धन , सब धन धूरि समान "
भारतीय संस्कृति का यह आदर्श रहा है कि जो भी मिला है उसे ईश्वरीय देन समझ, अपने निर्धारित भाग्य का हिस्सा मान, उसी में राजी रहा जाये। 

" साई इतना दीजिये, जामे कुटुम्ब समाय। 
  आप भी भूखा  न रह , साधु ना भूखा जाय।।

            


Hindi Motivational & Inspirational Stories - " कला ! ईश्वर की अमूल्य देन "

कला ! ईश्वर की अमूल्य देन 

      एक राजा ने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो शिल्पी अपनी शिल्पकला से हमें भूल भुलय्या में डाल देगा उसे मुँह माँगा ईनाम देंगे और अगर ऐसा नहीं कर पायेगा तो मृत्यु दण्ड मिलेगा। एक युवा शिल्पी तैयार हो गया।  उसे 30 दिन की अवाधि दी गई। शिल्पी पुरूषार्थ में लग गया। दिन बीतने लगे। आखिर निश्चित दिन आ गया परन्तु शिल्पी की ऒर से राजा को कोई समाचार नहीं मिला। राजा क्रोधित हुए और हाथ में खुली तलवार लेकर शिल्पी के घर जा पहुँचा। ठोकर मारकर घर का दरवाजा खोला तो देखा कि सामने शिल्पी गहरी नींद में सोया हुआ था। राजा का गुस्सा चरम सीमा पर पहुँच गया।  वह शिल्पी को मारने दौड़ा। तभी द्वार के पीछे छिपे युवा शिल्पी ने सामने आकर कहा - जहाँपनाह ! सजा देनी ही है तो मै तो यहाँ हूँ, यह तो मेरे द्वारा बनाई गयी मेरी प्रतिमा है। 

      राजा शर्मिंदा भी हुआ और युवा शिल्पी को मुँह माँगा ईनाम भी दिया।  यह है शिल्पी की अदबुध साधना का फल। और अपने सुना होगा पिकासो नाम के एक सुविख्यात चित्रकार के गुलाब - पुष्प के चित्र पर भ्रमर रस  चूसने के लिए इकट्टे हो जाते थे और उसके बनाए बिल्ली के चित्र को देख कुत्ता घूरता रहता था। 

सीख - कलाएँ हम सब के अन्दर आज भी मौजूद है। जरुरत है स्वं को पहचानने की जिस के लिए थोडा समय निकलना होगा। तो हम कर सकते है अगर हम चाहे तो सब कुछ कर सकते है 

Tuesday, March 18, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - "गर्व न कीजिये "

 "गर्व न कीजिये "

        एक साधारण पढ़ा - लिखा परन्तु निर्धन व्यक्ति था। नौकरी कि तलाश में कलकत्ता पहुँचा और एक सेठ जी के यहाँ सफाई का काम करने लगा। प्रातः काल आता, लम्बी - चौड़ी दूकान में झाड़ू लगाता, दिन में कई बार करता और जब भी खाली समय मिलता तो उस समय वो पढता रहता था। उसकी लिखावट बहुत सुन्दर थी। एक दिन अचानक सेठ कि नज़र उसकी लिखावट कि तरफ गई, सेठ ने देखा तो पूछा - तू लिखना भी जानता है ? वह बोला थोडा बहुत लिख लेता हूँ। सेठ जी उसे चिट्टियां लिखने पर लगा दिया। कभी हिसाब - किताब की बात आती तो उसे बहुत समझ और सावधानी से देखता था। और एक दिन सेठ जी ने ऐसा पत्र देखा तो बोले - अरे , तू हिसाब - किताब भी जानता है ? उसने कहा - थोडा बहुत जानता हूँ।  तो सेठ जी ने उसे मुनीम के काम पर लगा दिया। और थोड़े दिनों में सेठ ने देखा कि ये तो अच्छा कर रहा है तो उसकी कार्य से प्रसन्न होकर उसे मुख्य मुनीम बना दिया।


       अब ये देख कर दूसरे मुनीम जलने लगे और सेठ जी के कान भरने लगे। अब वह दो कमरे वाले मकान में रहता था। दूसरे मुनीम उसकी गलती ढूंढ़ने में लगे रहते पर ये तो कोई गलती करता ही नहीं था। बस एक बात उनके समझ में नहीं आती थी , उसका एक कमरा खुला रहता था और दूसरा बन्द। हर रोज दूकान जाने से पहले  वह बन्द कमरे में जरुर जाता था। थोड़ी देर अन्दर रहता था फिर ताला लगाकर दूकान पर जाता। ये दूसरे मुनीम ने देख लिया और शक करने लगा। उसका काम बहुत अच्छा था और न किसी संदेह की गुंजाइश थी।  और ईर्षा करने वालों को यही सन्देह होता था कि वह बंद कमरे में क्यों जाता है ?और उस कमरे को बन्द क्यों रखता है ?


      एक दिन सब मुनीम मिलकर सेठ के पास गए , उन्होंने सेठ जी के कान भरे कि मुख्य़ मुनीम बेईमान है, रूपया खाता है और एक दिन वह आपका दिवाला निकाल देगा। और एक दिन प्लान के अनुसार जब मुख्य मुनीम अपने कमरे को खोल कर अन्दर गया, तब सब मुनीम मिलकर सेठ जी को ले गये और बोले कि चोर पकड़ा गया, बन्द कमरे में रुपये गिन रहा है। सेठ जी तेजी के साथ पहुँचे।  कमरा अन्दर से बन्द था, गुस्से से सेठ जी बोले - जल्दी दरवाजा खोलो, अन्दर क्या कर रहे हो? मुनीम ने कहा - थोड़ी देर में खोल देता हूँ। सेठ जी चिल्लाये - अभी दरवाजा खोलो, नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे। सभी मुनीम बड़े प्रसन्न थे। मुनीम ने दरवाजा  खोल दिया, सभी अन्दर गये। देखा कि वहाँ साधारण सन्दूक के अलावा कुछ नहीं था। सेठ जी ने कहा - इस सन्दूक में क्या है ?  मुख्य मुनीम हाथ जोड़कर बोला - सेठ जी, सन्दूक बन्द ही रहने दो। सभी मुनीम बोले कि इसी में तो सब - कुछ है, इस लिए ही खोलता नहीं है। सेठ जी ने कहा हट जा, हम खोलते है, हम इसे अवश्य देखेंगे। बड़े मुनीम कि आँखों में आँसू आ गये।  सेठ जी ने अपने हाथों से सन्दूक खोला और आश्चर्य से देखता ही रह गया। उस में थी एक फटी धोती, एक मैला कुर्ता और एक पुराना टुटा हुआ जूतो का जोड़ा। कोई भी इसका अर्थ नहीं समझ पाये। बड़े मुनीम ने हाथ जोड़ कर कहा महाराज, ये वे वस्त्र है जिन्हें पहन कर मै आपके पास आया था, आज आपने मुझे बड़ा मुनीम बनाकर सब सुख - सुविधाये दी है परन्तु मै अपनी वास्तविक्ता भूल न जाऊॅ, मेरे मन में अभिमान न आ जाये इस लिये हर रोज इन्हें देखता हूँ और प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अभिमान से बचाते रहना। सेठ जी के आँसू बह चले और बड़े मुनीम को गले लगा लिया, फिर बोले - धन्य हो तुम ! तुम्हारी तरह दुनियाँ में सब लोग करें तो दुनियाँ से सब पाप नाश हो जाये क्यों कि अभिमान ही पाप का मूल है। कबीर जी ने कहा है - 

                                             कबीरा गरब न कीजिए, ऊँचा देख आवास !
                                             कल्हा परे भुई लेटना, ऊपर जमनी घास।।

     सीख - हमारे जीवन में हमें कितनी भी तरक्क़ी मिले पर हमें उस का अभिमान न हो। .... 






Hindi Motivational & Inspirational Stories - " बात का बतंगड़ "

बात का बतंगड़ 

             एक गॉव  ब्राह्मण रहता था जो पंडिताई करके अपना जैसा - तैसा भरण - पोषण करता था।  उसकी पत्नी बहुत भोली - भाली महिला थी जो कोई भी बात को बमुश्किल मन में छुपा पाती थी। एक दिन ब्राह्मण ने रोजी रोटी के लिए शहर जाने कि इच्छा जताई तो ब्राह्मणी ने हाँ में हाँ मिला दी और दूसरे दिन सुबह पत्नी ने भोजन आदि दे कर ब्राह्मण को विदा किया। 

            चलते - चलते कुछ समय के बाद एक छायादार जगह देख कर ब्राह्मण रुका , भोजन की पोटली खोली और जैसे ही रोटी का टुकड़ा मुहॅ में डाला, ऊपर से उड़ते हुए एक बगुले का पंख भोजन पर गिर गया।  उन्होंने मन में कहा - राम - राम, छी : छी , बड़ा अनर्थ हो गया, सारा भोजन अपवित्र हो गया, मै भी अशुद्ध हो गया, अब मुझे घर को लौटना होगा। ब्राह्मण घर की ऒर चल दिया। पति को घर आया देख पत्नी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।  पंडितजी ने बहुत टालने की कोशिश की किन्तु बाह्मणी की ज़िद्द के आगे हार गए और उसने वचन लिया कि पत्नी ये बात किसी को नहीं बतायेगी। और ब्राह्मणी ने वायदा कर लिया। परन्तु अगले दिन जब वह कुँआ पर पानी भरने गई तो एक धोबिन ने बातों - बातों में सारा राज उससे उगलवा लिया।  और ब्राह्मणी ने बता दिया कि पंडितजी के भोजन में बगुले का पंख गिर गया था इसलिए वे वापस लौट आए थे, राम - राम, छी : छी , बड़ा अनर्थ हो गया। 

            धोबिन ने इस बात को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करते हुए अपनी सहेली से कहा - क्या तूने सुना कि कल पंडितजी के मुख में एक बगुला घुस गया, गजब हो गया।  यह बात उसकी सहेली ने दूसरी सहेली से इस प्रकार कहा - बड़ा आश्चार्य! पंडितजी के मुँहा में तो बगुले आते और जाते है। बात बढ़ते - बढ़ते सारे गॉव में और आस - पास के गाँवो में भी फ़ैल गई कि पंडित जी बड़े करिश्माई है, उनके मुख से जादुई शक्ति से तरह - तरह के पक्षी निकलते है। 

            अब एक हुआ ऐसा की कई गाँवो के लोग इकट्ठे हुए और ग्राम पंचायत के सामने यह आग्रह रखा कि पंडित जी चमत्कार दिखाएँ। पंडित जी बड़े असमंजस में थे। वे समझ गए थे कि उनकी भोली पत्नी के मुख से फिसली बात को लोगों ने बतंगड़ बना लिया है पर अब करते भी क्या ? पंचायत में हाज़िर होना ही पड़ा।  उन्होंने पीछा छुड़ाने के लिए यह डर दिखाया कि जो भी मेरे मुख से निकलते पंख देखेगा, वह पक्षी बन जाएगा। यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और सभी भाग खड़े हुए।  किसी - किसी ने यह भी कहना शुरू कर दिया कि पंडित जी मानव को पक्षी बनाने में माहिर है। 



सीख - किसी कि कही सुनी बातों पर विश्वास न करे अपना विवेक का इस्तेमाल करे और कोई भी बात हो उसे जैसा है वैसा बताव अगर नहीं आता तो उसे बड़ा चढ़ा कर नहीं बताय। वर्ना बात का बतंगड़ बन जायेगा। 

Monday, March 17, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " करुणा की भाषा "

करुणा की भाषा 

            किसी वन के आश्रम में एक ऋषि अपने शिष्य रघुवीर के साथ रहते थे। रघुवीर एक आज्ञाकारी शिष्य था।  एक दिन ऋषि बोले - वत्स रघुवीर , तुमने बहुत समय तक मेरी सेवा की है। इस अवधि में मेरे पास जो कुछ भी ज्ञान था, वह सब मैंने तुम्हें सिखला दिया है। मै बहुत समय तक इसी आश्रम में रहा। इस कारण मै मात्र दो ही भाषाये सीखा पाया हूँ। लेकिन मै चाहता हूँ कि तुम अनेक स्थानों का भ्रमण करो। इस अवधि में तुम संसार की अधिकधिक भाषाये सीख कर वापस आऒ। आज्ञाकारी रघुवीर देश देश घूमने निकल पड़ा। उसने मन ही मन संकल्प लिया - मै संसार की अधिक से अधिक भाषाये सीख कर वापस लौंटूँगा। रधुवीर नए - नए स्थानों से गुजरता रहा। लगभग दस वर्ष बीत गये। उसने संसार की अनेक भाषाये सीख ली और कुछ धन भी इकट्टा कर लिया। सब कुछ लेकर वह दस साल के बाद गुरु के आश्रम पहुंचा।


            एक लम्बी यात्रा के पश्चात् वह आश्रम आया, उसने उत्साह पूर्वक आश्रम में प्रवेश किया परन्तु यह क्या ! गुरूजी रुग्णवस्था में शैय्या पर पड़े थे। यह देख कर उसे थोड़ा दुःख तो पहुँचा लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं आई। उसने गुरु को प्रणाम किया और अपनी बात छेड़ दी - गुरूजी ! अब आपका शिष्य वह रघुवीर नहीं रहा बल्कि बहुत कुछ सीख कर आया है।  ऋषि शान्त भाव से सुनते रहे।  फिर अपने टूटते हुए स्वर को सयंत कर बोले - वत्स रघुवीर! क्या तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दोगे ? क्यों नहीं गुरूजी ! आप आज्ञा तो कीजिये। ऋषि बोले - पुत्र ! तुमने बहुत सारे स्थानों का भ्रमण किया है। क्या तुम्हें इन स्थानों पर कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई दिया जो बेबस, लाचार होकर भी दूसरों की मदद कर रहा हो ? तुम्हें कोई ऐसी माँ मिली जो अपने शिशु को भूखा देख कर अपना दूध दूसरे शिशु को पिला रही हो जिसकी माँ नहीं। ऐसे लोग तो पुरे संसार में मिले थे गुरूजी ! शिष्य उत्साहित होकर बोला। क्या तुम्हारे मन में उनके लिए सहानुभूति जागी ? क्या तुमने उनसे प्रेम के कुछ शब्द कहे ?


            ऋषि का ऐसा प्रश्न सुनकर रघुवीर सकते में आ गया।  उसे ऋषि से ऐसे प्रश्न की कदापि आशा नहीं थी। वह बोला - गुरूजी ! मै तो आपकी आज्ञा का पालन करता रहा।  मुझे इतना समय कहाँ था, जो मै यह सब करता। इतने वर्षो में मैंने पाँच सौ भाषाये सीख ली है। इतना कहकर रघुवीर ने गुरु कि तरफ देखा और पाया कि उनके मुख पर एक रहस्मयी मुस्कान आकर चली गयी। ऋषि बोले - वस्त रधुवीर ! तुम अब भी प्रेम, सहानुभूति, और करुणा की भाषा में वीर नहीं हो (भाषा नहीं जानते ) अगर तुम प्रेम, करुणा जैसे भाषा सीख लेते तो तुम दुखियो का दुःख देख मुँह न फेर लेते। इतना ही नहीं, तुम्हें अपने गुरु की रुग्णवस्था भी नहीं दिखाई पड़ी। तुमने मेरा कुशल-क्षेम जाने बिना ही अपनी कहानी छेड़ दी। इतना कहकर गुरु कुछ क्षणो के लिए रुके।  उनका ह्रदय बैठा जा रहा था।  वे अपने ह्रदय को सयम कर पुनः बोले - रघुवीर ! मैंने जिस उद्देश्य से तुम्हे भेजा था, वह पूरा नहीं हुआ। मै तुम्हें करुणा कि भाषा सीखना चाहता था।  हो सके तो यह भाषा अवश्य सीख लेना। इतना कहकर गुरु जी सादा के लिए शांत हो गये। रघुवीर को भाषा सीखने का उद्देश्य समझ में आ गया। उसने उसी समय अपने आप को करुणाशील और प्रेम स्वरूप बनाने का ढूढ संकल्प कर लिया।


सीख - करुणा और प्रेम के बिना आपकी तपस्या पूरी नहीं हो सकती इस लिए भाषा चाहे अपने हज़ारों सीख ली हो पर जब तक प्रेम और करुणा कि भाषा को नहीं जानते तो आपका जीवन व्यर्थ ही है। 

Sunday, March 16, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " अहिंसा की विजय "

"अहिंसा की विजय"

             एक बार महात्मा बुद्ध एक स्थान से किसी दूसरे गॉव जाना चाहते थे। जिस गॉव जाना चाहते थे, उस गॉव का एक छोटा - सा रास्ता जंगल से होकर जाता था। जंगल में अंगुलिमाल नाम का एक बहुत खूँखार, निर्दयी एवं क्रूर डाकू रहता था। वहाँ से जो भी व्यक्ति जाते थे, वह उसे लूटकर उसके हाथों की अंगुलियाँ काट लेता था और फिर उन्हीं अंगुलियों की माला बना कर एवं पहन कर स्वछन्द घूमता था। ऐसे भयानक डाकू से सभी लोग डरते थे और दूसरे लम्बे मार्ग को पार करके दूसरे गॉवो की यात्रा करते थे।


            जब बुद्ध उसी रस्ते से जाने लगे तो लोगों ने उन्हें खतरे से आगाह करते हुए बहुत समझाया कि आप उस रस्ते से न जाये।  परन्तु महात्मा बुद्ध उसी रस्ते से अकेले चल पड़े। जब वे घनघोर जंगल से गुजर रहे थे तो किसी व्यक्ति ने भरी और ऊँची आवाज़ में आदेश दिया - रुक जाओ, एक कदम भी आगे बढ़ाया तो जान से हाथ धोना पड़ेगा। किन्तु बुद्ध अपनी मस्त चल से चलते ही रहे। उस व्यक्ति ने बुद्ध कि तरफ भयानक आवाज़ करते हूआ उन्हें पकड़ने हेतु दौड़ लगायी। जब वह पास आ गया तो उसने फिर रुकने को कहा, उसकी आँखे गुस्से से लाल थी, उसके आँखों में खून भरी थी और हाथ में एक बहुत धारवाला हथियार था। महत्मा रुख गए।

              उसने बुद्ध से पूछा - जानते हो मै कौन हूँ ? बुद्ध ने कहा - हाँ, लोगों ने बताया कि आप अंगुलिमाल हो। उसने फिर पूछा - क्या मुझे देखकर तुम्हे डर नहीं लग रहा है ? और तुम दुसरो कि तरह मुझे देख कर भाग भी नहीं रहे हो।  बुद्ध ने कहा - नहीं, बिल्कुल नहीं। वह पुनः कहने लगा कि मै लोगों कि अंगुलियाँ काट लेता हूँ और उसकी माला बनाकर पहनता हूँ।  उसने डरावनी शक्ल बनाकर कहा - देखो, यह माला ! बुद्ध ने इसके उत्तर में निर्भयता पूर्वक दोनों हाथ उसके सामने बढ़ा दिये।  ऐसा दृश्य जीवन में पहली बार देखकर अंगुलिमाल अवाक रह गया। उसे जीवन में पहली बार ऐसा कोई व्यक्ति मिला था। जो इतना निर्भय अचल अडोल था। ऐसे क्रूर हिंसा पर उतारू व्यक्ति के प्रति भी करुणा एवं दया का भाव था। फिर भी उसने महत्मा बुद्ध के दोनों हाथ एक हाथ से पकड़ कर दूसरे हाथ में हथियार पूरी शक्ति से ऊपर उठाकर हाथ कटाने को बढ़ाया और उसी समय बुद्ध की आँखों में आँखे डाल कर देखता रहा और जैसे ही नज़र से नज़र मिली उस डाकू पर उनकी अहिंसा का ऐसा असर पड़ा कि वह हथियार दूसरी तरफ फेंक कर उन के चरणों पर गिर पड़ा और गिड़गिडा कर प्रार्थना करते हुए कहने लगा - बताईये आप कौन है ? इतने शान्त और निर्भय। महत्मा बुद्ध उसे उठाया और  एक पेड़ के नीचे बैठकर उसे उपदेश दिया और अपने रस्ते चल दिए।

सीख - हिंसा करने वाले कितने भी शक्तिशाली हो अहिंसा के आगे उसकी हार निश्चीत है। इस लिए अहिंसा को धारण करो।