Tuesday, March 25, 2014

Organic Farming - जैविक किटनाशक

जैविक किटनाशक 

दशपर्णी अर्क

दशपर्णी अर्क बनाने की विधि -

१. ५० लीटर पानी
२. २ किलो कड़वे नीम के पत्ते
३. १ किलो सीताफल के पत्ते
४. १ किलो कन्हेर के पत्ते
५. १ किलो पपीता के पत्ते
६. १ किलो करंजा के पत्ते
७. १ किलो हरी मिर्ची के पत्ते
८. १ किलो एरंडी के पत्ते
९. १ किलो गाय का गोबर
१०. २ लीटर गोमूत्र

अब इन सभी चीजों को एक साथ मिलकर १०० लीटर के एक ड्रम में सड़ने के लिए रख दीजिये २५ दिनों के लिए और उसके बाद उसे लकड़ी से मिलकर छान कर २ - २ लीटर की बोतल में भरकर रख दे और इस २ लीटर को १०० लीटर पानी में मिलकर खेती में स्प्रे करे या छिड़काव करे  ८ से १५ दिन में एक बार। अधिक जानकारी के लिए रेडियो शो सुनिये।



जैविक खाद और खेती



जैविक खाद और खेती

     प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रांथों में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था।

     परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थों के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है, और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी भी स्वस्थ रहेंगे।

     जैविक खेती कृषि की यह एक विधि है जो जमीन कि उर्वरक शक्ति को बने रखती है और अच्छी गुणवत्ता वाला फ़सल किशन को मिलता है और यही आज कि मांग है।  १९९० के बाद से पुरे विश्व में जैविक उत्पद कि मांग बहुत बढ़ गया है और तब से ही किशन इस बात कि और आकर्षित हुए है।  लेकिन आज भी बहुत ऐसे किशन है जिन्हें जैविक विधि से खेती करने में असुविधा हो रही है। और आज हम उन्हीं किशानो को ध्यान में रखते हुए जैविक खाद का उपयोग और विधि बता रहे है। महिन्द्रा ठाकुर जो जीवाणु विशेषयज्ञ  है, उन के द्वारा सुनते है N. P. K. क्या है और कैसे ये जैविक तरीक़े से खेती में उपयोग करे और साथ ही साथ खेती कि सुरुवात बीज से लेकर फ़सल तक कि सारी बाते सुनेंगे। 






Hindi Motivational & Inspirational Stories - " सम्पूर्ण समर्पण "

सम्पूर्ण समर्पण

             सम्पूर्ण समर्पण कि बात को एक सुन्दर उदहारण से हम समझ पायेंगे इस में मुझे महत्मा बुद्ध और एक राजा कीं वह घटना याद आता है। दर्शनाभिलाषी एक राजा महत्मा बुद्ध के दर्शन करने गए।  महत्मा बुद्ध के लिये उसके मन में अपार श्राद्ध और प्रेम था।  इसलिये वह एक हार, जो विशिष्ट हीरे - मोतियों से बनी एक अदभुत कलाकृति थी, उसे एक हाथ में लिये तथा दूसरे में एक सुन्दर गुलाब का पुष्प लिये महत्मा बुद्ध को अर्पित करने उनके सन्मुख पहुँचे। जैसे ही राजा ने वह बहुमूल्य हार महत्मा बुद्ध को अर्पित करने के लिये अपना हाथ आगे बढ़ाया तुरन्त महत्मा बुद्ध बोले - राजन ! इसे गिरा दो। एक आघात सा लगा राजा को। क्यों कि उसे इस प्रत्यूत्तर की अपेक्षा नहीं थी अपने श्राधेय से। लेकिन उसने आदेश अनुसार उस हार को गिरा दिया। (राजा को इस बात का ख्याल भी नहीं था, कि बुद्ध ऐसा कुछ बोलेंगे अब और परीक्षा बाकी थी )

          राजा ने अपने मन में सोचा - शायाद लौकिक सम्पदा से बुद्ध को क्या लेना ? चलो, यह गुलाब का पुष्प ही भेंट कर दे। क्यों कि यह तो थोड़ा अलौकिक है। लेकिन जैसे ही राजा ने गुलाब के उस पुष्प को भेंट करने हेतु अपना दाहिना हाथ बढ़ाया महात्मा बुद्ध ने फिर कहा - इसे भी गिरा दो। राजा की परेशानी तो तब और अधिक बढ़ गई क्यों कि अब भेंट करने के लिये पुष्प के अतिरिक्त उसके पास और कुछ भी नहीं था। लेकिन महात्मा बुद्ध के कहने पर उसने उस सुन्दर गुलाब को भी गिरा दिया।

        राजा को अचानक अपने मै का ख्याल आया। उसने सोचा -  क्यों न मै अपने को ही समर्पित कर दू। और वह अपने दोनों खाली हाथ जोड़कर महत्मा बुद्ध के सामने झुक गया। बुद्ध ने फिर कहा - इसे भी गिरा दो।  महत्मा बुद्ध के सभी शिष्य जो वहाँ खड़े थे, यह सुनकर हँसाने लगे। तभी राजा को यह बोध हुआ कि यह कहना भी कि मै अपने को समर्पित करता हूँ, यह भी अहंकर का एक हिस्सा है। इस 'मै ' के अहंकर को भी गिरा देना है और उसने अपने को सम्पूर्ण रूप से महत्मा बुद्ध के चरणों पर गिरा दिया। महत्मा बुद्ध मुस्कुराये और बोले - राजन, तुम्हारी समझ अच्छी है।

सीख - किसी भी बात का कोई अहंकर ना हो वाही सच्ची समर्पणता है समर्पण होना और करना इस से भी परे होना है समर्पण बहार कि बात नहीं ये तो अन्दर की बात है आत्मा अनुभूति की बात है

         

Sunday, March 23, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " प्यार बाँटते चलो "

प्यार  बाँटते चलो

               एक बार खलीफा हजरत उमर ने एक व्यक्ति को किसी प्रदेश का गवर्नर नियुक्त किया।  नियुक्ति पत्र देने से पहले उन्होंने उसे आवश्यक बातें भी समझा दी। उसी समय एक बालक उसके पास आ पहुँचा। हजरत उमर ने बच्चे को प्रेम से गोद में उठा लिया और तरह - तरह की आवाज़ें कर और बातें सुनाकर रिझाने लगे। यह देखकर वह व्यक्ति बोला कि खलीफा साहब, मेरे यहाँ तो चार बच्चे है लेकिन मैंने कभी भी उनके प्रति ऐसा प्यार या स्नेह नहीं जताया।

               ऐसी बात सुनकर हजरत उमर एक दम गम्भीर हो गये। उसी वक्त उन्होंने उस व्यक्ति का नियुक्ति पत्र उससे वापस ले लिया और उसके टुकड़े - टुकड़े करते हुए कहा कि मैंने तुम्हारी नियुक्ति की इसका अफसोस है। जब तुम बच्चों के साथ प्यार या स्नेह नहीं कर सकते तब तुम प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करोगे। तुम्हारे हृदय में प्रेम का पवित्र झरना सुख चूका है।  अब तुम इस पद के योग्य नहीं हो।

सीख -  वर्तमान समय भी कलयुगी संसार में सच्चा आत्मिक स्नेह तो ज़रा भी नहीं रहा। यदि स्नेह नज़र आता है तो वह भी अल्पकाल का स्वार्थी या फिर मोह, काम आदि विकारों के वशीभूत। इस लिए अब सच्चे आत्मिक प्यार या स्नेह को जगाना है। येही समय कि माँग है।

Saturday, March 22, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " सच्चा मित्र - ' कर्म '

सच्चा मित्र - ' कर्म '

                    एक व्यक्ति था। उसके तीन मित्र थे। एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था।  एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था। दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।  और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता। और कुछ ऐसा हुआ एक दिन उस व्यक्ति को कोर्ट में जाना था। और किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था। तो वह व्यक्ति अपने सब से पहले मित्र  के पास गया और बोला - मित्र क्या तुम मेरे साथ कोर्ट में गवाह बनकर चल सकते हो? तो वह बोला - माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।  उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था।  आज समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया तो दूसरा मित्र की मुझे क्या आशा है। फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया और अपनी समस्या सुनाई तो दूसरे मित्र ने कहा कि मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ कोर्ट के दरवाजा तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं। तो वह बोला कि बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए। फिर वह तीसरे मित्र के पास गया तो तीसरा मित्र तुरन्त उसके साथ चल दिया।

                      अब आप सोच रहे होँगे कि वो तीन मित्र कौन है? तो चलिये सुनाते है। जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते है। सब से पहला मित्र है हमारा अपना शरीर। हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र  हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता। दूसरा मित्र है शरीर के सम्बन्धी जैसे - माता - पिता, भाई - बहन, मामा - चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते, जो सुबह - दुपहर शाम मिलते है। और तीसरा मित्र है - कर्म जो सदा ही साथ जाते है।

                      अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज पूरी में माना कोर्ट में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता, जैसे कि  उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया। दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक याने कोर्ट के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है तथा वहाँ
से फिर वापिस लौट जाते है। और तीसरा मित्र आपके कर्म है जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।

सीख - अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी कोर्ट में जाने की जरुरत नहीं होगी। और धर्मराज भी सलाम करेगा।
                      

Friday, March 21, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " रूहानी दर्पण "

रूहानी दर्पण

         एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब सब शिष्य चले गए तो एक शिष्य बैठा रह गया। बुद्ध  उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो ? तब उस शिष्य ने कहा - यदि भगवान् मुझे आज्ञा दे तो मै इस देश में घूमना चाहता हूँ। तब बुद्ध कुछ समय शान्ति में मग्न हुए और फिर कहा शिष्य से बुरे लोग तुम्हारी निन्दा करेँगे और गालियाँ देँगे, तब तुम्हें कैसा लगेगा ? इस प्रश्न का उत्तर में शिष्य ने कहा कि मै समझ लूँगा कि उन्होंने मुझ पर धूल नहीं फेकी या पत्थर नहीं मारे, तो यह लोग भले है। बुद्ध ने फिर कहा कुछ लोग धूल भी फेंक सकते है, पत्थर भी मार सकते है, तब क्या करोगे ? शिष्य ने कहा कि मै इस में भी भला समझूँगा कि उन्होंने मुझे हथियारों से नहीं मारा। इस के बाद बुद्ध ने फिर कहा कि इस देश में तो लुटेरों, ठगो, डाकुओ का भी निवास है, वे तुम्हें हथियारों से भी मार सकते है। ऐसा सुनकर शिष्य बड़े आराम से बोला कि वे लोग मुझे दयालु जान पड़ेंगे क्यों कि उन्होंने मुझे जीवित तो छोड़ा। क्यों कि यह संसार दुःख स्वरूप है। इस में बहुत दिन ज़िन्दा रहने से दुःख अधिक मिलते है। आत्महत्या तो पाप है, यदि कोई दूसरा मार दे तो यह उसकी दया है। ये बात अपने शिष्य से सुनकर महात्मा बुद्ध बहुत प्रसन्न हुऐ और उन्होंने उस शिष्य को कहा कि साधु वही है जो किसी को बुरा नहीं कहता, और देश भर में घूमने कि अनुमति दे दी।

 सीख  -  वास्तव में भगवन हमें ऐसा ही रूहानी दर्पण बनाते है जिस में कि किसी का कैसा भी रूप आए लेकिन उस रूप की, चाहे वह भयानक विकारी हो या फिर अच्छा, तो उसकी अच्छाई और बुराई उसे स्वतः दिखाई दे लेकिन हमारे ऊपर उसका कोई प्रभाव न हो। हमें तो अपने रूहानी नाशे में रहना है।

Hindi Motivational & Inspirational Stories - समय पर कार्य का महत्त्व .

समय पर कार्य का महत्त्व  (Importance of Time)


       एक जंगल में वट का वृक्ष था जिस पर एक बन्दर और उसकी बन्दरिया रहती थी। एक दिन अचानक वहाँ तोता - मैना आकर उसी वृक्ष की डाली पर बैठे। बन्दर और बन्दरिया की जोड़ी को देखते हुए मैना ने तोते से कहा - यह समय इतना श्रेष्ट, सुन्दर और बलवान है, यह घडी इतनी उत्तम है कि इस वक्त यह बन्दर और बन्दरिया डाली से कूद पड़े तो जमीन पर गिरते ही राजकुमार और राजकुमारी के रूप में बदल जायेंगे (बन जायेंगे ) अब ये बात बन्दरिया ने सुन लिया सो उसने सारी बात बन्दर को बताया और तुरन्त एक साथ जमीन पर कूदने के लिए आग्रह किया। लेकिन अभिमान में चूर बन्दर ने उसकी बात न मानी और बोला - जा तू ही राजकुमारी बन जा मैं तो यह ही ठीक हूँ। बन्दरिया समजदार थी। वह जानती थी समय का महत्त्व क्या है, गया वक्त फिर नहीं आयेगा। वह कूद पड़ी और जमीन पर गिरते ही राजकुमारी बन गई। और जब बन्दर ने उसे राजकुमारी बनते देखा तो वह भी कूद पड़ा। लेकिन तब तक समय बदल चूका था। परिणाम यह हुआ कि बन्दर के गिरते ही बन्दर की टाँगे टूट गई। वह रोने और पछताने लगा। उसे स्वम् से आत्म - ग्लानि हो रही थी। मैना की बात न मानने के कारण यह हुआ। समय का कितना मोल है ये उसके समझ में आ गया था पर अब कुछ नहीं हो सकता था सिर्फ वह अपने आप को और अपने गलती पर गिड़गिड़ता रहा।

            

          और उसी समय वह से एक घुड़सवार और एक मदारी गुजर रहे थे। राजकुमार ने राजकुमारी को अपने घोड़े पर बिठाया और अपने राज्य की ऒर चला गया तथा मदारी ने बन्दर को दो डंडे मारे और शहर में नचाने के लिए ले गया।

सीख - समय का महत्त्व को जान हमें उस का सदुपयोग करना है ये भी एक कला है और एक बात तो याद रखना ही है, समय गया तो सब कुछ गया इस लिए समय को पहचानों।