Monday, April 14, 2014

A Play - Ignite the Youth ( Drama)

पात्र -  ( क्रिश , क्रिश के पिता , जादू , भारत माता , पांच युवा सदाचारी , पांच युवा मायावी , एक वृद्ध , )

एंकर - प्यारे दोस्तों आज हम आपके सामने एक नाटिका दिखा रहे है जिस में भारत का युवा कैसे दिशा हीन बन गया है और फिर से उसे अपने लक्ष्य की तरफ कैसे जोड़े जिस से भारत का और सर्व का कल्याण हो सके।

पहला दृश्य - बिल्डिंग में आग लगी है अन्दर एक बच्ची फसी है बच्ची के माता पिता और कुछ लोग चिल्ला रहे है। बचाव बचाव। …… तभी क्रिश वहाँ आता है और बिल्डिंग के अन्दर जाता है और बच्ची को बचा कर लेकर आता है। और उसे माता पिता के हवाले कर देता है।

क्रिश - ये लो आपकी बच्ची। …

माता पिता - थैंक यू  क्रिश

पांच सदाचारी युवा - क्रिश आप ये सब कैसे करते हो ? हमें तो बहुत डर लगता है

क्रिश - कुछ नहीं बस हिम्मत करो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।

पांच सदाचारी युवा - क्या हम भी आप की तरह बन सकते है ?

क्रिश - हाँ जरूर क्यों नहीं। ……Nothing is Impossible  चलो मेरे साथ

गीत - नथिंग इस इम्पॉसिबल .......

दूसरा दृश्य - क्रिश , क्रिश के पिता अपने साधनों के साथ अनुसंधान करते हुए उनके सामने एक लैपटॉप , एक ग्लोब और कुछ लाइट्स और इलेक्ट्रॉनिक चीजें एक मेज पर है और एक कुर्शी इत्यादि। …

क्रिश - हैलो  डैड। …

क्रिश के पिता - आज क्या करके आये जनाब !

क्रिश - कुछ नहीं डैड एक बिल्डिंग में आग लगी थी जिस में एक बच्ची फसी थी उसे बचाया।

क्रिश के पिता - क्या वहाँ और कोई नहीं था।

क्रिश - थे तो बहुत पर कोई हिम्मत नहीं कर रहे थे। .

डैड - अच्छा अच्छा ठीक है

क्रिश - डैड काफी दिनों से आप एक ही भारत के नक़्शे को देख रहे हो जब की इस ग्लोब में और भी देश है

डैड - हाँ। मैं एक खोज कर रहा था पुरे विश्व में कौन सा देश सब से शक्तिशाली और सम्पन्न है। और उसी खोज के तहत मुझे ये पता चला की भारत जो है वो सब से शक्तिशाली और सम्पन्न देश था और आज  …।

क्रिश - डैड क्या बात है आप रुक क्यों गये  …

डैड - क्रिश भारत एक महान देश है जिस की महिमा बहुत है यहाँ आओ ये देखो। ....( लैपटॉप की  इशारा करते है और उसी बीच दूसरे पात्र  आते है स्टेज के सामने और हल्का सा म्यूजिक और उसके बाद गीत और पात्र एक्शन करते है )

गीत - है प्रीत जहाँ की रीत सदा। ....

( एक युवा और एक वृद्ध और भारत माता - वृद्ध गीत गाते हुए युवा को समझा रहा है और भारत माता बीच में खड़ी है। मुस्कान के साथ )

क्रिश - डैड इतना महान भारत देश का आज क्या हाल हुआ है ?

डैड - आज का युवा  … सीन। … म्यूजिक और आज के दृश्य  क्रिश लैपटॉप के पास जाता है और एक बटन दबता है और सीन चेंज होता है.… दो युवा आते है

 युवा दिनेश  - हाय ! समीर कैसे हो ?

 युवा समीर -  ठीक है चलती का नाम गाड़ी है दोस्त और आप कैसे हो ?

दिनेश - अपने अपना कैरियर अमिरेका शुरू करना है और इस के लिए  मेरे डैड रेडी हुआ है और वीसा मिलते ही अपणुं सिदे अमेरिका -समीर तू भी चल बहुत डॉलर कमांएगे और १० साल बाद यहाँ ही आराम की ज़िन्दगी जिएंगे ऐश करेंगे। …

समीर - पर इस के लिए बहुत पैसों की जरुरत होगी ?

दिनेश - अरे इस में इतना सोचने की क्या बात है इस के लिए बैंक लोन देती है और मेरे डैड ने भी लोन ही लिया है इस के लिए।

समीर - अरे वाह ! अगर ये बात है तो राकेश , विजय , रमेश और श्याम को भी साथ ले चलते है।

दिनेश - अरे यार समीर ,  नेकी और पूछ पूछ। …

एंकर -  दिनेश और समीर ख़ुशी से जाते है अपने दोस्तों के पास और इस तरह एक नहीं दो नहीं हज़ारो युवा भारत के बहार विदेश में जाते है कैरियर के नाम पर, डॉलर  कमाने के सोच से और ये सारे युवा विदेशों में अपना टैलेंट दिखाते है और फिर वहीँ के बन जाते है , वहाँ जाने पर डॉलर्स तो मिल जाते है पर मातृ भूमि का जो प्यार है उस से वंचित रह जाते है।  ये देखिये।

दिनेश - हैलो (मोबाइल से फैशनेबल कपडे पहने हुए ) माँ हां कैसे हो?

दिनेश की माँ - बेटा दिनेश कैसे हो दिवाली पर घर आओगे न ?

दिनेश - माँ वीसा मिलते ही जरूर आवुंगा ?

दिनेश की माँ - आज १५ साल हुए तुझे गए हुए एक बार भी घर नहीं आये  .... फ़ोन कट जाता है और

दिनेश की माँ -( दिनेश के पिता से ) ये सब आपकी वजह से हुआ है अपने ही दिनेश को विदेश बेजा और.…

दिनेश के पिता माँ - तुम चुप रहो एक ही बात तुम्हारी सुन सुन कर मैं परेशान हूँ ?

दिनेश की माँ - अरे अपने घर में क्या कमी थी सब कुछ तो था दो वक्त की रोटी तो तुम्हारे पेंशन से ही मिल जाती थी , अधिक पैसे की लोभ में हमने अपना ही खाना ख़राब किया है। .... हे भगवन  ( रोते हुए..... )

एंकर - दोस्तों इस तरह एक ये एक घटना नहीं ऐसे अनेक बाते है जिस से भारत का गौरव खो गया है.....
आईये कुछ इस तरह के और घटनावो को देखते है जहाँ भारत माता नाम से भारत को पुकारते है आज उसी भारत में लड़कियों को की विशय वस्तु की तरह देखा जाता है.…।

एक लड़की - बचाव बचाव  बचाव करते हुए भाग जाती है. .... उसके बाद कुछ युवा आते है

युवक - अरे भाग के जाएगी कहा.…… सब युवा मिलकर जोर जोर से हसंते है। … हाह  ह्ह्ह   हां

एंकर - दोस्तों एक और बात मैं बताना चाहूंगा आज पर्यावरण की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे है आये दिन मल्टी स्टार बिल्डिंग और मॉल बढ़ते जा रहे है और पेड़ कटते जा रहे है जिस की वजह से ग्लोबल वार्मिंग और अन्य समस्या भी आ रहे है.…।

( सीन - एक व्यक्ति पेड़ काटते हुए और उसके बाद एक व्यक्ति उसे पैसा देते हुए और खुश होते हुआ जाते है )

पेड़ का जुंड - चार से पांच युवा पेड़ रूप में आएंगे और ये दृश्य देख भाग जायेंगे और कहेंगे भारत भूमि पर हमारा निवास अब दुश्वार हो गया चलो साथियों कही और जाते है। ( और सीन बदलता है )

क्रिश - डैड अब आप क्या सोच रहे है ?

डैड - क्रिश मैंने देखा बहुत सोचा भी  भारत में युवा है उनको भारत में रहकर भारत में ही अगर वो अपना टैलेंट यूज़  करे तो बदलाव आ सकता है लेकिन  इस  के लिए विज्ञानं की नहीं बल्कि स्वभाव और संस्कार में बदलाव लाना होगा और ये एक आध्यात्मिक शक्ति ही कर सकती है। …… और अभ्यात्मिक शक्ति कहा मिलेंगी ? वैल्यू  ब्रेक को spiritual शक्ति ही बना सकती है

क्रिश - डैड क्यों ना हम ये बात जादु से पूछ ले,  उसे सब पता है

डैड - हां  तो चलो अभी पूछ लेते है। …………

म्यूजिक बदल गरजते हुआ हलका फुल्का लाइट बंद चालू करे। .... और एक युवा जादु के वेश में प्रवेश करता है  उसके चारों तरफ लाइट है और बाकी सब जगह अँधेरा है। …

क्रिश - हैल्लो जादु कैसे हो.…………।

जादु - मैं तो ठीक हूँ अपनी सुनाओ

क्रिश - डैड बता रहे थे कोई आध्यात्मिक शक्ति का पता मिल जाता तो................. क्रिश के बात के बीच में ही जादु बोलते है

जादु - मैं सब कुछ जनता हूँ आपके डैड को भारत देश की चिन्ता हो रही है और उन्हें ये भी पता है की यहाँ उनकी विज्ञानं की शक्ति नहीं आध्यात्मिक महाशक्ति ही ये बदलाव ला सकती है। इसी से मनुष्य के स्वभाव और संस्कार में बदलाव आयेगा और भारत फिर से शक्तिशाली और सम्पन्न बन जायेगा भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा। ……………

डैड - लेकिन वो आध्यात्मिक शक्ति है कहाँ ?

जादु - भारत में ही है।

क्रिश और डैड - भारत में !

जादु - हाँ ! आश्चर्य चकित हो गये आप , हा हा।  ……… ये आध्यात्मिक शक्ति मिलती  है भारत के प्राचीन राजयोग के अभ्यास से

क्रिश और डैड - भारत का प्राचीन राजयोग से ?

जादु - हाँ भाई , सुनो  अब एक रहस्यमय बात। . भारत में आज से बहुत समय  पहले परमात्मा शिव ( जिसे लोग अल्लाह , गॉड , वाहे गुरू कहते है।) .  आकर प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थापना कर ये भारत का प्राचीन राजयोग मनुष्यों को सीखा रहे है पर अभी भी बहुत कम लोग इसे समझ पाये है इसी राजयोग से मनुष्य या व्यक्ति के स्वभाव और संस्कार में बदलाव आयेगा और भारत  के साथ सभी मनुष्यों का कल्याण हो जायेगा  समझें। …………

क्रिश और डैड - जादु अब हम क्या करे ?

जादु - बताता हूँ आगे सुनो ,    इस के लिये प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय की एक विभाग युवा विभाग के द्वारा सभी युवावों को जगाने के लिए  'ignite the youth'  नाम से कार्यक्रम पुरे भारत में चलाये जा रहे है , मैं कहता हूँ आप भी इस कार्य से जुड़ कर अपना और भारत के उत्तान में सहयोगी बनो। … और भारत को फिर गौरव शैली बनाने का येही एक मात्र उपाय है अभी नहीं तो कभी नहीं।

क्रिश  और डैड - अवश्य जादु हम अभी से इस कार्य में लग जायेंगे। . धन्यवाद जादु। …………

जादु , क्रिश , क्रिश के पिता , और पांच सदाचारी युवा और सभी भारत माता के साथ स्टेज पर आते है
एक गीत बजता है। …… उठो जगत के वास्ते। …………सभी पात्र एक्शन करते है भारत माँ के साथ भारत माँ ये गीत सुनती है।



Sunday, April 13, 2014

Hindi Motivational Stories - गुण ही व्यक्ति की वास्तविक सुन्दरता है

' गुण ही व्यक्ति की वास्तविक सुन्दरता है '

                  राजा जनक के दरबार में एक विद्धान पंडित रहते थे जिनका नाम बंदी था, उन्हें अपनी विद्ता पर इतना घमण्ड था कि जो उनसे शास्त्रार्थ में हार जाता, उसे नदी में डुबो दिया जाता था। इसी कारण काहोद नाम के एक ऋषि को अपने प्राण गंवाने पड़े थे। काहोद का छोटा - सा एक बच्चा था, जो बहुत ही भद्दी सूरत का लूला-लंगड़ा था। उसका नाम अष्टवक्र था यानि उसका शरीर आठ जगह से थेड़ा-मेढ़ा हुआ था। भगवान ने अष्टवक्र को अदभुद प्रतिभा दी थी। जिस बात को वह एक बार सुन लेता वह उसे याद हो जाती थी। याद करने की शक्ति के साथ -साथ उस में कल्पना और तर्क करने की भी अदभुद शक्ति थी। होश संभालने के थोड़े दिन बाद से ही अष्टवक्र अध्ययन के लिए जुट गया, ऐसी कोई विद्य न थी जिसका अध्ययन उसने न किया हो। बहुत कम उम्र में उसने सब कुछ पढ़ लिया और एक दिन बालक अष्टवक्र राजनगर लौट रहा था। राजनगर सड़क पर चल रहा था। और उसी समय पीछे से सिपाही ' हटो - हटो ' कहते सब से रास्ता साफ़ करा रहे थे। पर अष्टवक्र अपनी धुन में चला जा रहा था। रास्ते से हट नहीं रहा था। सिपाहियों ने डांटा तो वह जोर से बोला - रास्ता केवल अपाहिजों और बोझा ढ़ोने वालों के लिए छोड़ा जाता है। तुम्हारे लिए रास्ता क्यों छोड़ूँ ? बालक की ज्ञान भरी बातें सुनकर सब अचम्भे में रह गये। चलते चलते वह राजमहल के पास पहुंचा। संतरियों ने उसे छोटा समझकर अन्दर न जाने दिया, तो वह बोला - मैं छोटा नहीं बड़ी उम्र का हूँ। क्यों कि बड़ो की तरह मैंने सब कुछ पढ़ लिया है सीक लिया है, लम्बाई - चौड़ाई या ऊंचाई आदमी के बड़े होने का प्रमाण नहीं है, उसकी बुद्धि ही बड़प्पन को जताती है। सिपाहियों ने तब भी उसे महल के अन्दर जाने नहीं दिया। तब अष्टवक्र को गुस्सा आया। और बोला हमें नहीं मालूम था कि दरबार में कोई छोटा - बड़ा होता है। छोटे - बड़ो की कसौटी धन - धौलत नहीं, विद्या से होती है। सिपाहियों ने हंसी में टाल दी, ये बात राजा जनक को पता चला और राजा ने अन्दर बुलवाया और नाराजगी का कारण पूछा। अष्टवक्र ने जवाब दिया - राजा जनक, मैं आपके पंडित बंदी को शास्त्रार्थ के लिए ललकारता हूँ। आप उन्हें सभा में बुलवाइए। और सभा जुड़ीं। एक तरफ सुडैल शरीर वाले विद्वान पंडित बंदी बैठे थे और दूसरी तरफ टेढ़े - मेढे शरीर व;वाला लूला - लंगड़ा बालक अष्टवक्र। दरबार में अष्टवक्र की विचित्र वेश और सूरत देख कर चारों कोनों से हंसी के ठहाके गूँज रहे थे। छोटी - सी एक गठरी के सामन वह एक ऊँचे आसन पर बैठा था। सभी उस की हंसी उड़ा रहे थे। जब हंसी बन्द हुई, तो लोग चुप चाप अष्टवक्र की तरफ देखने लगे। अष्टवक्र ने सिंह की गर्जना के समान ऊँची आवाज़ में हंसना शुरू कर दिया। उसकी हंसी का स्वर इतना ऊँचा और मर्मभेदी था कि सारी सभा स्तब्ध रह गई।

      राजा जनक ने विनयपूर्वक पूछा - आपकी हंसी का क्या कारण है ? अष्टवक्र ने कड़कती आवाज़ में कहा - राजा जनक ! बहुत दिनों से आपकी विद्वानोँ की  सभा का तारीफ सुनता आ रहा था। लेकिन मालूम पड़ता है तुम्हारे दरबार में सभी हाड़ - मांस का मोल करने वाले व्यापारी है। बुद्धि का सौदागर कोई नहीं। मैं अपनी मूर्खता पर हंस रहा था कि ऐसी मूर्खो की सभा में इतना कष्ट उठाकर क्यों आया ? अष्टवक्र की इस एक बात ने पूरी सभा में सन्नाटा पैदा कर दिया।  सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। सामने बैठे पंडित बंदी भी अष्टवक्र की बातों से हैरान रह गये। शास्त्रार्थ शुरु हुआ।  दरबारी आश्चर्य से दाँतो तले अँगुली दबाए बैठे रहे और देखते रहे कि यह बदसूरत लड़का कितना बड़ा विद्वान है। कितनी बुद्धिमता से विद्वान पंडित को उत्तर दे रहा है।शास्त्रार्थ चलता रहा, अष्टवक्र का तो जवाब ही न था। एक से बढ़कर एक जवाब दे रहा था। बंदी ढीले पड़ते जा रहे थे, वह ठीक से जवाब नहीं दे पा रहे थे। जब बंदी से अष्टवक्र के प्रश्नो का उत्तर देते न बन पड़ा तो लाचार होकर उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली। सारी सभा हैरान रह गई। दरबारियों में जो अष्टवक्र से जलते थे और उसे अपमानित करना चाहते थे, वे चुप होकर बैठ गए। इस तरह मनुष्य की सुन्दरता शरीर नहीं गुण है।



सीख - अष्टवक्र शरीर से कुरूप था लेकिन अदभुत बुद्धिमता के कारण सबको उसके सामने नतमस्तक होना पड़ा। इसी तरह गुण पूज्यनीय है, शरीर कितना भी सुडोल, सुन्दर हो यदि उसमें कोई भी ज्ञान न हो पवित्रता, नम्रता आदि गुण न हो, समझ न हो तो उसे ज्ञान नेत्रहीन ही कहा जायेगा। अवगुणों से सम्पन हो तो उसे कुरूप ही कहा जायेगा। इस लिए गुणवान बनो।


       

Friday, April 11, 2014

Hindi Motivational Stories - आज का युवा आत्म सम्मान से वंचित

' आज का युवा आत्म सम्मान से वंचित '

     आज मैं मेरे दोस्त के साथ कॉलेज गया था और कैम्पस के अन्दर ही स्पोर्टस चल रहे थे। तो एक ख़ुशी का माहोल था। खेल देखने से उमंग बढ़ता है ख़ुशी होती है। ये तो हम सभी जानते है। तो मै भी दोस्त के कहने पर उसका खेल देखने आया था। जैसे ही खेल पूरा हुआ तो मै अपने घर की तरफ जाने कि सोच रहा था। पर अचानक मेरी नज़र गार्डेन पर बैठे पुराने दोस्तों की तरफ गयी और उनकी मेरी तरफ तो फिर मै भी गार्डेन में जा कर उनके साथ बैठ गया। और फिर सब ने अपनी अपनी कैरियर कि बात शुरू कर दी मैं तो चुप चाप उनकी बाते सुनने लगा। जितने युवा थे वह सब के सब अमेरिका जाने का और वही आगे कि पढ़ाई करके वही काम करना  ये उनकी मानसिकता थी, शायद आज ८० परसेंट युवाओं की यही सोच है भारत के बहुत से युवा इसी सोच में है।

            मै उनकी बाते सुनते सुनते  खो गया सोचने लगा भारत देश के बारे में जिस भारत की महिमा हम सुनते और करते हैं।और वही भारत के युवा आज क्या सोच रहे हैं। आज की युवा की ये सोच से  भारत माँ क्या खुश  है या … ?  जी  हाँ आप ही बताईये कुछ.....

        जिस भारत भूमि पर हमने जन्म लिया हमारे पूर्वज जिनका पूरा जीवन इस मातृ भूमि में पला है। और आज हम सिर्फ पैसे या डॉलर के लिये अपनी मातृ भूमि को छोड़ कर जा रहे हैं। जरा सोचिये ये तो ऐसा है जैसे की हमने माँ कि कोख से जन्म लिया उनकी गोद में पले और बड़े हुए और जैसे ही वक्त आया उस माँ को रिटर्न देने का तो उसे छोड़ कर भाग गये।

      आज देखिए जो युवा अपना देश छोड़ कर गया हुआ है। उनकी जीवन को देखिये पैसे तो मिल गए पर वो प्यार और वो आत्मा सम्मान कहाँ है उनके पास, बहुत से युवा ऐसे बंध गए हैं। उन्हें समय पर अपने घर वालों से मिलना भी नसीब नहीं होता। रिश्ते नाते सब बदल जाते हैं  ना वहाँ सम्मान मिलता है और ना यहाँ, डॉलर के खातिर जीवन का मूल्य खो चुके युवाओं का जीवन भी क्या जीवन हैं ?

       हर युवा विदेश जाने से  पहले यही सोच रखता है की वहाँ जकर बहुत पैसे कमांएगे और फिर ५ या १० साल बाद यहाँ भारत में आकर आराम की ज़िन्दगी गुजरेंगे। पर वहाँ जाने के बाद सब कुछ बदल जाता है और ९९ का चक्र शुरू हो जाता है और थोड़े दिन बाद और थोड़ा कमायी हो जाने के बाद …… ऐसा करते करते उनका जीवन बदल जाता है। १० साल नहीं ३० से ४० साल गुजर जाता है पर वो आराम की ज़िन्दगी की तलाश पूरी नहीं होती और मातृ भूमि से वो नाता भी टूट जाता हैं। और अन्दर में मन उसका कहीं न कहीं वो सम्मान या प्यार से वंचित रहता हैं। जिसे वो शायद ही फिर से पा सके।

      मैं तो कहता हूँ अपने देश में रहो दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ और भारत में ही अपना हुनर दिखाव जिस से नाम भी होगा सम्मान भी मिलेगा और आत्म सम्मान भी बना रहेगा और हर भारतीय को आप पर नाज़ होगा।

Wednesday, April 9, 2014

Hindi Motivational Stories - "अन्तरमन का दरवाजा खोलो"

"अन्तरमन का दरवाजा खोलो"

           एक दरवाजे के पास तीन आदमी आपस में वार्तालाप कर रहे थे। वही से गुजरते हुए किसी महात्मा ने जब उनकी बातें सुनी, तो वह पल भर के लिए वहीं ठहरकर उस दृश्य को देखने लगे। उन तीनों में से पहला बोल रहा था - मै दरवाजे को खुलवाने के लिए जोर से आवाज़ दूंगा। दूसरे ने जवाब दिया - मै तो पुरे जोर से दरवाजे को दस्तक दूँगा। तब तीसरे ने कहा - मै तो बलपूर्वक धक्का लगाकर ही दरवाजा खोल दूँगा।

         तत्क्षण, ये सुनकर पास में खड़े महात्मा जी मुक्त मन से हंस पड़े। कोई अपरिचित व्यक्ति की उपस्थिति महसूस करते हुए तीनों एक ही स्वर में महात्मा जी से पूछ बैठे - कौन है आप ? कृपया ये बताने का कष्ट करे कि आपको हमारी बातें सुनकर हंसी क्यों आयी ? महात्मा जी ने कहा - मै तो राहगीर हूँ। हंसी तो मै आप सबकी चेष्टा देखकर न रोक पाया। लेकिन आपको इस में हंसने जैसे क्या बात दिखाई दी ? भाईयो ! दरवाजा तो खुला ही पड़ा है। महात्मा ने रहस्य खोला। पुनः तीनों ने एक स्वर में बोल पड़े - तो खोलना क्या है ? महात्मा जी कह रहे थे - खोलना है सिर्फ आप तीनों की आँखों पर बंधी ये पट्टियों को।


सीख - हम सब को अन्तरमन का दरवाजा खोलने के लिये पहले देह रूपी इस पट्टी को खोलना याने भूलना होगा अतार्थ अपने मन और बुद्धि से आत्मा का चिन्तन करना  ही अन्तरमन का दरवाजा खोलना है

Monday, April 7, 2014

Hindi Motivational Stories - ' बड़ा कौन ? संसारिक धन या ज्ञान धन '

" बड़ा कौन ? संसारिक  धन या ज्ञान धन "

            एक प्रभु प्रेमी, नगर के बाहर प्रभु प्रेम में लवलीन होकर प्रभु कि साधना करता रहता था। दूसरी तरफ नगर के अन्दर में एक सेठ को अधिक से अधिक धन पाने की लालसा लगी रहती थी। और उस सेठ को कही से ये खबर मिली की जंगल में कही कोई जगह काफी बड़ा खजाना दबा हुआ है। परन्तु वह धन कहाँ है, इसके बारे में किसी को पता नहीं। सेठ अपनी किस्मत आजमाने के लिए एक दिन जंगल की तरफ चल दिया। जब नगर का मार्ग समाप्त हो गया और जंगल शुरू हो कर धना - सा होने लगा तब वहाँ उसने एक व्यक्ति को पालथी मार कर मनन - चिन्तन करते हुए देखा। उसके चेहरे पर शान्ति और सन्तोष के चिन्ह थे और वह बिल्कुल निश्चिन्त दिखाई देता था। वैसे वो कथिक रूप से तो शहर से दूर बैठा ही था परन्तु लगता था कि उसका मन भी शहर के हाय - हल्ला से दूर कही, एकान्त में बस रहा है। सेठ जी उसके पास जाकर उसे प्रणाम किया और इन शब्दों से सम्बोधित किया - 'महाराज, आपके दर्शन पाकर मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ। आप तो विरक्त है परन्तु मै एक गृहस्थी आदमी हूँ। आपकी कृपा और आप से वरदान की एक कामना करता हूँ।  यादि आप को मुझ पर करुणा हो तो कृपया यह बताने का कष्ट करें कि जंगल में कोई एक बडा खजाना है वो कहाँ दबा हुआ है ?

      प्रभु प्रेमी - परन्तु मेरी तो इन बातों में रूचि नहीं है और मै तो यह कहूँगा कि कमाई करने से जो धन प्राप्त होता है, उसी में ही संतोष होना अच्छा है।

     सेठ - मै मानता हूँ कि आप को इन संसारिक धन - वैभवों से कोई प्रीति नहीं परन्तु मुझ पर आपकी यह कृपा हो - यह मेरी याचना है।

      प्रभु  प्रेमी  - अच्छा, तो जाओ ! उत्तर दिशा कि ऒर आगे बढ़ते चलो। जब लगभग 400 कदम चल चुके होंगे तो वहाँ एक पीपल का पेड़ दिखाई देगा। उस पेड़ की तीन मोटी - मोटी रगे पर्थ्वी में दबी हुई दिखाई देगी। उन में से जो मध्यवर्ती रग है और उसके दहिने ऒर जो रग है, उनके बीच के स्थान पर यदि 4 फुट गहरा खोदोगे तो तीन स्वर्ण कलश मिलेँगे जो अपार धन से भरपूर है। जाओ, अगर धन की ही कामना है और वह भी बिना कमाई वाले धन की, तो जाकर वे कलश निकाल लो।

    यह कहते हुए प्रभु प्रेमी सेठ को दया की दृस्टि से देखने लगा और साथ - साथ मुस्कुराने भी लगा। उस प्रभु प्रेमी से बात करके सेठ की मनोवृति पर कुछ अलौकिक प्रभाव पड़ा परन्तु फिर भी धन की लालसा से खिचा हुआ - सा वह उत्तर दिशा में बढ़ते गया और उस प्रभु प्रेमी को प्रणाम और धन्यवाद करके आगे को निकल पड़ा। और जैसे ही 400 कदम पुरे हुए तो वहाँ उसने पीपल के पेड़ की तीन रगे देखी। उस प्रभु प्रेमी के बताए अनुसार उसने उस स्थान पर 4 फुट गहरा खोदा तो यह देखकर उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा कि वहाँ तीन स्वर्ण कलश दबे थे। उनको उसने जब खोला तो उस में हीरे, अशर्फिया वगैरह देखकर दंग रह गया और उसे बेहद ख़ुशी हुई। परन्तु इस विचार ने उसे सोच में डाल दिया कि प्रभु प्रेमी को जब इस खजाने का पता था तो यह खजाना उसने स्वम् अपने लिए क्यों नहीं ले लिया।

    इसलिए सेठ इस जिज्ञासा को लेकर वह फिर से उस प्रभु प्रेमी के पास गया और बोला - महाराज, आपकी कृपा से खजाना तो मिल गया परन्तु अब उस खजाने के प्रति मेरा कुछ विशेष आकर्षण नहीं है। मेरे मन में यह प्रश्न उठा है कि जब आपको उस खजाने का पता था तो अपने स्वम् ही वह खजाना क्यों नहीं ले लिया। अवश्य ही आपको उससे भी कोई ऊँची प्राप्ति हुई होगी कि जिस से आपको उस खजाने के प्रति कोई आकर्षण नहीं है।

   प्रभु प्रेमी चुप होकर बैठा रहा और उसकी और देखता रहा। इसका उस सेठ पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि धन के प्रति जो उसकी लालसा बनी रहती थी, वह अब मन में नहीं रही। उसी क्षण उस प्रभु प्रेमी के मुख से यह शब्द निकले - भाई, आप यही धन माँगते थे, इसलिए आपको उसका रास्ता बता दिया पर सर्वोपरि धन तो ज्ञान धन है। ज्ञान धन अविनाशी है और शारीर ने नाश होने के बाद भी आत्मा के साथ रहता है और उसे शाश्वत सुख देता है। यह सुनकर वह सेठ भी अब ज्ञानधन अर्जित करने की ऒर प्रवृत हुआ। और नियमित रूप से प्रभु प्रेमी से मिल कर ज्ञान अर्जित करने लगा।


सीख - संसारिक धन से बड़ा धन है ज्ञान धन इस ज्ञान धन को आज की दुनिया में सब भूल चुके है और जिस की वजह से सारा संसार दुःखी है एक बार इस ज्ञान धन का महत्व मानव को समझ में आ जाय तो उस का कल्याण हो जायेगा।

Saturday, April 5, 2014

Hindi Motivational Stories - ' विवेक युक्त भावना कल्याणकारी '

विवेक युक्त भावना कल्याणकारी

             एक पवित्र सुन्दर स्थान पर आश्रम बना था। वहाँ श्रेष्ठ दिव्य - चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जाती थी। वहाँ के गुरूजी कि महीमा बहुत थी। वे अपने शिष्यों को बड़े प्यार से शिक्षा देते उनके बातो में रहस्य छुपा होता था। और इस बात को शिष्य जनते थे। हुआ कुछ ऐसा की एक दिन गुरु जी को कहीं लम्बे समय के लिए विदेश - भ्रमण पर जाना था। तब शिष्यों की परीक्षा का उचित समय था। गुरु जी ने अपने मुख्य दो शिष्यों को बुलाकर कुछ अनाज के दाने दिये। और कहा प्यारे बच्चों ! मै कुछ समय के लिए बाहर यात्रा पर जा रहा हूँ। मैंने जो बीज दिये है इन्हें अपनी इच्छा अनुसार सदुपयोग में लाना। बहुत प्यार - से - रहना और आश्रम की देखभाल ध्यान से करना। दोनों शिष्यों ने अपने गुरूवर की बात को ध्यान से सुना और बोले आप किसी प्रकार की चिंता न करें। हम अच्छी तरह से आश्रम की देखभाल करेंगे। और दोनों शिष्य गुरु जी को बहुत दूर तक विदा देने गये। फिर आदर सहित प्रणाम कर लौट आये।

             समय पंख लगाकर उड़ता गया। दिन महीने साल गुजरते गए। परन्तु गुरु जी लौटे नहीं। शिष्य अपने गुरु का हर साल इंतज़ार करते रहे। और एक दिन पुरे पाँच साल बाद छठे वर्ष में गुरूजी लौटे। दोनों शिष्य अपने गुरु जी को आया देख आनंद विभोर हो उठे। आदर सहित आश्रम में ले आये। आश्रम पहुंचने पर गुरु जी ने दोनों शिष्यों को अपने पास बुलाया।  दोनों शिष्य उनके पास आये।  सब से पहले बड़े शिष्य से गुरु ने पूछा, बच्चे यात्रा पर जाते समय मैंने तुम्हें कुछ अनाज के दाने दिये थे उनका तुमने क्या किया ? गुरु जी आप रुकिये मै अभी आया कहा कर वह अपने कामरे से एक संदूक उठा लाया और गुरु जी को दिया जिस पर लाल रंग का कपड़ा लिपटा हुआ था। और अगरबत्ती की खुशबु से महक रहा था वह छोटा सा संदूक। और बोला - गुरुदेव, यह आपका दिया हुआ प्रसाद था। इस लिए इस का मै रोज बड़ी श्रद्धा - भावना से पूजा करता था और अगरबत्ती लगता था। गुरूजी ने संदूक खोला तो क्या देखते है, कि सारा अनाज सड़ गया है। एक भी बीज काम का न रहा। सब को कीड़े खा गए है। यह देख गुरु जी को बहुत अफसोस हुआ। पर गुरु ने कुछ नहीं कहा।

                फिर दूसरे की ऒर मुड़कर पूछा - बच्चे तुमने मेरे दिये अनाज का क्या किया ? दूसरा शिष्य ने गुरु जी को अपने साथ चलने को कहा।  गुरूजी शिष्य के पीछे चल दिया। और रस्ते में शिष्य बताने लगा गुरूजी आपके दिये बीज को मैंने उसी वर्ष आश्रम के पास की उपजाऊ भूमि में बो दिया। और धरती माँ ने एक का सौ गुना करके दिया। एक वर्ष में इतना अनाज हुआ की मैंने उसको फिर से सारे जमीन में बो दिया। और फिर से धरती माँ ने उसका भी सौ गुना दिया।अध्यन करने के बाद जो समय मिलता वो समय मै इसी कार्य में लगता। और मेहनत का फल भगवन देता है। सो तीसरे साल जब बहुत अनाज मिला तो उस में कुछ धन पाकर मैंने कुँआ बनाया और फिर उसके बाद फल, सब्जी भी मिलने लगा तो और धन इकट्टा हुआ,जिस से आश्रम को सुन्दर बनाया और एक नया धर्म शाला बना दिया और फिर एक बगीचा और अब एक सुन्दर फलों का वन यह बना रहे है आपके लिए हाथ के इशारे से शिष्य गुरु जी को बता रहा था।

              गुरु जी यह सब देख अपने विवेकशील शिष्य को अपने गले से लगा लिया। यह देख कर बड़ा शिष्य तो शर्म के मारे झुक गया। फिर गुरु जी बोले, बच्चो ! श्रद्धा तो जीवन में होनी ही चाहिए। परन्तु विवेक भी साथ में चाहिए। बिना श्रदा भावना के विवेक शुन्य बनकर रह जाता है। और बिना विवेक के भावना सुन्दर नहीं लगती। जहाँ भावना जीवन का मिठास है वहाँ विवेक जीवन का नमक है। एक जीवन को मधुर बनाता है दूसरा जीवन को सुरक्षित रखता है।



सीख - हमें अपने जीवन में भावना और विवेक का सन्तुलन बनाकर अच्छी समझदारी से कार्य करने है जिस से मात - पिता और गुरुजनों का प्यार व आशिर्वाद मिलता रहे।                                                                                                                                                                                                                                                    




Friday, April 4, 2014

Hindi Motivational Stories ' निर्णय का आधार शब्द नहीं शब्दार्थ हो '

निर्णय का आधार शब्द नहीं शब्दार्थ हो 

    बहुत पुरानी एक कहानी है रामनगर में एक सेठ जी थे जिनका नाम था धनपतराय। वे बहुत धनी - मानी व्यक्ति थे। बहुत धनवान होने के कारण वे बहुत शान - शौकत से रहते थे। सारे शहर के लोग भी उनको उसी निगाह से देखते व इज्जत करते थे। और सेठ जी का एक लड़का अब विवाह योग्य हो चूका था।  सेठ धनपतराय अपने पुत्र के लिए योग्य - वधु की खोज शुरू कर दी और आखिर वह दिन आ गया जब उन्हें अच्छे कुल की एक कन्या की जानकारी मिली उन्होंने अपने इकलौते पुत्र की शादी बहुत ही धूमधाम से सम्पन किया और बाजे बजवाते अपनी पुत्र - वधु को ख़ुशी- ख़ुशी अपने घर ले आए। सेठ जी अपनी पुत्र - वधु को देख ख़ुशी से फुले नहीं समाते थे। बहु भी बहुत ही समझदार, आज्ञाकारी तथा हर कार्य में कुशल थी इसलिए सेठ जी भी उससे बहुत प्रसन्न थे।

     इस तरह बहुत दिन बीत गए करीब साल दो साल हो गए होंगे। एक दिन एक भिखारी भीख माँगता, आवाज़ लगाता हुआ सेठ जी के मकान के आगे खड़ा हुआ। और कहने लगा - अरे भाई तीन जन्म का भूखा हूँ, कोई रोटी का टुकड़ा दे दे। बहु  सुना और ऊपर से ही आवाज़ लगते हुए कहा -  बासी टुकड़े खाते है, कल उपवास करेंगे। सेठ जी के कानों में जब ये शब्द गये तो उन्हें बहुत गुस्सा आ गया।  वे सोचने लगे कि कमाल है, इस बहु को मै हर चीज़ बढ़िया - से - बढ़िया लाकर देता हूँ - पूड़ी, कचौड़ी, हलवा, खीर, मालपुए अनेक प्रकार के व्यंजन इसे भरपूर लाकर देता हूँ - यह फिर भी कहती है कि बासी टुकड़े खाते है, कल उपवास करेंगे।  आखिर मैंने क्या कमी राखी है इसको ! यह बहु तो मेरी इज्जत ही मिट्टी में मिला देगी। सोचते - सोचते उनका क्रोध का पारा बढ़ता गया और उन्होंने तय कर लिया कि अब तो इसे वापस इसके मायके में भेजना ही पड़ेगा।

    सेठ जी बड़े तेज कदमों - से अपने घर के आँगन से बहार निकले और उन्होंने पंचायत बिठाई। वधु के पिता को भी बुलवाया गया और सेठजी  सारी कहानी उन्हें सुनाते हुए कहा कि ले जाइए अपनी बेटी को अपने साथ ! इसने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा। पंचायत के मुखिया सेठजी के इस बात को सुनते हुए कहा - सेठजी, उतावलेपन में फैसला कर लेना उचित नहीं। आप तो स्वम ही कहते थे कि आपकी बहु बहुत समझदार है, आप उसे बुलाकर पूछिए तो सही कि उसने ऐसा क्यों कहा ? अवश्य ही उसका कोई अर्थ होगा।  सेठ जी को भी उनकी ये बात  जँच गई।  उन्होंने अपनी बहु को बुलवा भेजा। बहु बड़े आदर - भाव से आकर वहाँ बैठ गई। और उससे सेठ जी ने पूछा कि बहु, तुम यह तो बताओ कि भिखारी के यह कहने पर तीन जन्म का भूखा हूँ, कोई रोटी का टुकड़ा दे दे तो तुमने यह क्यों कहा कि बासी टुकड़े खाते है, कल उपवास करेंगे ? क्या तुम बासी टुकड़ो पर गुजारा कर रही हो ? इतनी समझदार होते हुए भी तुम ने ऐसा क्यों कहा ? बहु ने कहा - ससुरजी, मै कुछ गलत कहूँ तो क्षमा कर दीजिएगा। मेरा भाव कुछ और था। बात यह है कि भिखारी का यह कहना कि तीन जन्म का भूखा हूँ , इसका अर्थ यह कि पिछले जन्म में वह गरीब था तो वह कुछ दान नहीं कर सका और इसलिए इस जन्म में भिखारी है। इस जन्म में क्यों कि गरीब है तो अभी भी वह दान नहीं कर सकता और इसलिए अगले जन्म में भी यह गरीब और भूखा रहेगा और इसलिए वह कहता है कि तीन जन्म का भूखा हूँ।

         और जो मैंने कहा जवाब में उसका भाव यह है कि हमने पिछले जन्म में जो दान पुण्य किया था, उसकी बदौलत हमें इस जन्म में धन - धान्य मिला है यह हमारे पिछले जन्म का फल है तभी मैंने कहा कि बासी टुकड़े खाते है। और ससुरजी, इस जन्म में हमारे इस घर में तो दान करने की प्रथा ही नहीं है तो अगले जन्म में जरुर भूखा ही रहना पड़ेगा याने उपवास ही रखना पड़ेगा। मेरा कहने का भाव ये था। सेठ जी बहु कि ये बात सुनकर कुछ लज्जित भी हुए और मन -ही - मन उन्होंने ढूढ संकल्प भी किया कि आज से लेकर वे सुपात्र को अवश्य ही दान करेंगे।



सीख - शब्दों का सही भावार्थ न समझने के कारण कैसे अर्थ का अनर्थ हो जाता है और अगर सही भाव समझ में आ जाए तो वही शब्द जीवन को परिवर्तन करने वाले सिद्ध हो सकते है। जैसे सेठ जी का जीवन बदल गया। अंतः कभी भी किसी के शब्दो पर न जाकर उसके भावों को समझने का पुरषार्थ करना चाहिए।