Thursday, April 24, 2014

Hindi Motivational Stories - " महाराज रघु का दान "

महाराज रघु का दान 

                        महाराज रघु अयोध्या के सम्राट थे। वे भगवन श्री राम के पितामह थे। उनके नाम से ही उनको  क्षत्रिय रघुवंशी कहे जाते है। एक बार महाराज रघु ने एक बड़ा यज्ञ किया। और जब यज्ञ पूरा हुआ तो महराज ने ब्राह्मणों तथा दीन -दुःखियों को अपना सब धन दान कर दिया। महराज इतने बड़े दानी थे कि उन्होंने अपना आभूषण, सुन्दर वस्त्र और सब बर्तन तक दान में दे दिया और खुद साधारण वस्त्र पहनकर रह गये। और वे मिट्टी के बर्तनों से काम चलाने लगे। यज्ञ में सब कुछ दान करने के बाद कुछ ही समय बाद उनके पास वरतन्तु ऋषि के एक शिष्य कौत्स नाम का ब्राह्मण कुमार आये। महाराज ने उनको प्रणाम किया, आसन पर बैठाया और मिट्टी के गडुवेसे उनके पैर धोये। स्वागत-सत्कार किया और ब्राह्मण जब जाने लगा  तो महारज ने पूछा - ' आप मेरे पास कैसे पधारे है ? मैं क्या सेवा करूँ ?

                 कौत्स ने कहा - ' महाराज ! मैं आया तो किसी काम से ही था: किन्तु आपने तो सर्वस्व दान कर दिया है। मैं आप - जैसे महादानी उदार पुरुष को संकोच में नहीं डालूँगा। ' लेकिन महाराज रघु ने नम्रता से प्रार्थना की - ' आप  अपने आने का उदेश्य तो बता दें। ' तब कौत्स ने बताया कि उनका अध्ययन पूरा हो गया है। अपने गुरुदेव के आश्रम से घर जाने से पहले गुरुदेव से उन्होंने गुरुदक्षिणा माँगने की प्रार्थना की। गुरुदेव ने बड़े स्नेह से कहा - 'बेटा ! तूने यहाँ रहकर जो मेरी सेवा की है, उससे में बहुत प्रसन्न हूँ। मेरी गुरुदक्षिणा तो हो गयी। तू संकोच मत कर। ख़ुशी से घर जा। ' लेकिन कौत्स ने जब गुरुदक्षिणा देने का हठ कर लिया तब गुरुदेव को क्रोध आ गया। और वे बोले - ' तूने मुझसे चौदह विधाएँ पढ़ी है, इस लिए हर एक विधा के लिए एक करोड़ सोने की मोहरें लाकर दे। ' और वाही गुरुदक्षिणा के चौदह करोड़ सोने की मोहरें लेने कौत्स अयोध्या आये थे।

          महाराज ने कौत्स की बात सुनकर कहा - 'जैसे आपने यहाँ तक आने की कृपा की है, वैसे ही मुझ पर थोड़ी- सी कृपा और करें। तीन दिन तक आप मेरी अग्निशाला में ठहरो। रघु के यहाँ से एक ब्राह्मण और वो भी कुमार निराश लौट जाय, यह तो बड़े दुःख और कलंक की बात होगी। मैं तीन दिन में आपकी गुरुदक्षिणा का कोई - न - कोई प्रबन्ध अवश्य कर दूँगा। ' कौत्स ने महाराज की आज्ञा पर अयोध्या में रुकना स्वीकार कर लिया।

          महाराज ने अपने मन्त्री को बुलाकर कहा - ' यज्ञ में सभी सामन्त नरेश कर दे चुके है। उनसे दुबारा कर लेना न्याय नहीं है। लेकिन कुबेर जीने मुझे कभी कर नहीं दिया। वे देवता है तो क्या हुआ, कैलाश पर रहते है। इस लिए पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट को उन्हें कर देना चाहिये। मेरे सब अश्त्र-शस्त्र मेरे रथ में रखवा दो। मैं कल सबेरे कुबेर पर चढ़ाई करूँगा। आज रात मैं उसी रथ में सोऊँगा। और जब तक ब्राह्मण कुमार को गुरुदक्षिणा न मिले, मैं राजमहल में पैर नहीं रख सकता। ' उस रात महाराज रघु रथ में ही सोये।

            जैसे ही सुबह हुई बड़े सबेरे उनका कोषाध्य्क्ष उनके पास दौड़ा आया और कहने लगा - ' महाराज ! खजाने का घर सोने की मोहरों से ऊपर तक भरा पड़ा है। कल रात में उसमें मोहरों की वर्षा हुई है। ' महाराज समझ गये कि कुबेर जी ने ही मोहरों की वर्षा की है। महाराज ने सब मोहरों का ढेर लगवा दिया और कौत्स से बोले - ' आप इस धन को ले जाएं !'  कौत्स ने कहा - ' मुझे तो गुरुदक्षिणा के लिये चौदह करोड़ मोहरें चाहिये। उससे अधिक एक मोहरा भी मैं नहीं लूँगा। ' महाराज ने कहा - ' लेकिन यह धन आपके लिए आया है। और ब्राह्मण का धन हम अपने यहाँ नहीं रख सकते। आपको ही ये सब लेना पड़ेगा। ' तब कौत्स बड़ी दृढ़ता से कहा - ' महाराज! मैं ब्राह्मण हूँ। धन का मुझे करना क्या है। आप इस का चाहे जो करें, मैं तो एक मोहरा अधिक नहीं लूँगा। ' और कौत्स चौदह करोड़ मोहरें लेकर चले गये। शेष मोहरें महाराज रघु ने दूसरे ब्राह्मणों को दान कर दिया।

सीख - इस कहानी से हमें सीख मिलता है की सच्चे ब्राह्मण की निशानी है। सदा जीवन उच्च विचार उसे धन मोहरें आदि से कोई लेना देना नहीं है। उसके लिए तो ये कांकड़ पत्थर  है और ब्राह्मण के पास तो इस से बड़ा ज्ञान का खजाना है। ज्ञान का धन है सब से बड़ा तो हम सब को पहले ज्ञान धन को ग्रहण करना चाहिये।


Hindi Motivational Stories - " सेवा ही सर्वोत्तम "

सेवा ही सर्वोत्तम 

               एक बार अकबर अपने राज दरबार में आते ही सभा से तीन प्रश्न किये और कहा कि जो इनका ठीक उत्तर देगा उसको काफी बड़ा इनाम मिलेगा। प्रश्न कुछ इस तरह के थे।

१ )  सब से अच्छा फूल कौन सा है ?
२ ) सब से बड़ा राजा कौन -सा है ?
३ ) सब से अच्छा बेटा किसका है ?

            दरबार में जो बुद्धिमान लोग थे, उन्होंने उत्तर देने की कोशिश की। किसी ने कहा सब से अच्छा फूल गुलाब का है, किसी ने कहा कमल का फूल सब से अच्छा है। और दूसरे प्रश्न के उत्तर में किसीने राजा के बारे में अकबर का नाम बताया और नहीं बताते तो उन्हें ये भी डर था की कहीं अकबर नाराज न हो जाये। इस तरह अब तीसरे प्रश्न के उत्तर में लगभग सभी ने यह उत्तर दिया की महाराज का सुपुत्र ही सब से अच्छा है। और ये भी डर था की कहीं राजकुमार को ये मालूम हो जाय की अमुक व्यक्ति ने अमुक महाराजा के सुपुत्र को अच्छा बताया है तो राजकुमार से कही दुश्मनी न हो जाये।

          राजा इन उत्तरों से संतुष्ट नहीं थे, और वे जान भी गए की ये सब प्रशंसा करने वाले है और उनके अन्दर डर भी था। और उत्तर में कुछ नवीनता नहीं और न ही कोई अच्छा विचार है। और जैसे हमेशा होता है पहले सब दरबारियों को मौका मिलता है और जब अकबर संतुष्ट नहीं होते है तो वो खुद बीरबल की तरफ इशारा करते है और फिर आज भी वाही हुआ अकबर ने बीरबल से मुस्कुराते हुए कहा अब आप ही बताइये जनाब इनका सही जवाब क्या है ? और अब सब की नज़र बीरबल की ओर थी।

       बीरबल ने मर्यादा और शिष्टाचार पूर्वक महाराज को संबोधित करके कहा, महाराज ! यों तो गुलाब व कमल अपनी- अपनी जगह पर सभी फूलों में अच्छे भी है और बड़े भी परन्तु मेरे विचार से सब से बड़े व अच्छे फूल रूई के फूल है क्यों की उन से जो हमें रुई मिलती है और उससे जो कपड़े बनते है, उन्हें पहनकर एक व्यक्ति न केवल स्वयं को सर्दी- गर्मी से बचाता है बल्कि एक सुसभ्य इन्सान दिखाई देता है। उनके बिना तो आम इंसान हैवान की तरह नंग-धडंग दिखाई देता है। आपका जो दूसरा प्रश्न है , उसके विषय में मेरा मन्यता ये है की राजाओं में सब से बड़े इंद्र है क्यों की वे वर्षा करते है। यदि वे वर्षा न करें तो खेती नहीं होंगी।  खेती नहीं होंगी तो अनाज नहीं मिलेगा और अनाज नहीं मिलेंगे तो जनता भूखों मरेंगी। और अब रह तीसरा प्रश्न सब से अच्छा बेटा किसका है ? मेरे विचार से सब से अच्छा बेटा गाय का होता है क्यों की वह हल न चलाए तो खेती नहीं होंगी। बेचारा घास और भूसा खाता है और वह भी अपनी पैदावार में से और मेहनत करके प्रजा का पेट भरने की सेवा करता है। बीरबल के इन उत्तरों को सुनकर राजा बहुत खुश हुए और राज दरबार के सभी लोग भी।

सीख - इस कहानी से हमें ये सीख मिलता है कि सेवा करने वाला ही सब से बड़ा और अच्छा होता है। इस लिए सेवा करते रहो चाहे छोटा हो या बड़ा पर करते रहो।


Wednesday, April 23, 2014

Hindi Motivational stories - " क्षमाशीलता "

क्षमाशीलता 

                   एक राजा स्वाभाव से ही न्याकारी था और क्षमाशील भी। वह अपराधियों को दण्ड भी देता था। परन्तु किसी की क्षमता और परिस्तिथि को देखकर उसके दण्ड को हल्का भी कर देता या उसे क्षमा भी कर देता था। इस प्रकार प्रजा उस राजा के गुणों और कर्तव्यों से सन्तुष्ट थी और स्वम् को शौभाग्यशाली मानती थी कि उन्हें एक ऐसे राजा की छत्रछाया प्राप्त हुई है।

               एक बार राजा के कोषाध्य्क्ष और लेखाधिकारी ने जब पिछले हिसाब-किताब की जाँच की तो उन्हें मालूम हुआ कि एक कर्मचारी ने १००० रुपये का ऋण लिया हुआ है जो उसने अभी तक चुकता नहीं किया है और चुकता करने की अवधि पूरी हो गयी है। लेखाधिकारी ने सोचा पहले उस कर्मचारी से बात करते है और फिर बात आगे देखेंगे, तो लेखाधिकारी उस कर्मचारी से मिला और सारी बात बता दी आपका ऋण चुकाने का समय समाप्त हो गया है और अगर रकम नहीं चुकाया तो राजा के सामने आपको पेश होना होगा। कर्मचारी सारी बात समझ रहा था की राजा के सामने पेश होना माना दण्ड के साथ कारावास भी हो सकता है पर कर्मचारी लाचार और मजबूर था ये बात अधिकारी भी समझ गया था। और बहुत कोशिश करने के बाद अधिकारी को ये पक्का हुआ की कर्मचारी असमर्थ है तो वह कर्मचारी से कहा अब आपको राजा के सामने पेश किया जायेगा। और कुछ दिन बाद निश्चित दिन और समय पर कर्मचारी को राजा के आगे पेश किया गया। और लेखाधिकारी राजा को कर्मचारी की सारी कहानी सुनाने लगा तब राजा हर बात को ध्यान से सुन रहा था और कर्मचारी की तरफ देख भी रहा था। और कर्मचारी गर्दन नीचे झुकाए, आँखे धरती पर गाड़े चुपचाप खड़ा था। एक ओर तो उसे लज्जा आ रही थी कि आज वह अपने पैसे नहीं चूका सकता, दूसरी ओर वह अपनी विवशता के कारण मायूस था, तीसरी ओर वह इस भय से अशान्त था कि न जाने अब महाराज क्या दण्ड सुनायेंगे।

         जब लेखाधिकारी सारा किस्सा सुना रहा था तब राजा उस कर्मचारी के हाव-भाव और उसकी रूपरेखा को ध्यान से देख रहा था। राजा को ऐसा महसूस हुआ कि यह कर्मचारी लाचार है, यह बल-बच्चेदार आदमी है, कोई दुःख की घड़ी आने पर इसने ऋण तो ले लिया परन्तु वेतन से बचत न रहने पर यह उतने समय में पैसे नहीं चूका पाया जितने समय में चुकाने की इससे आशा की थी। इस सारी स्तिथि को भांपकर राजा ने यह हुक्म दिया कि यह कर्मचारी पैसा चुकाने में असमर्थ मालूम होता है वर्ना इसकी नीयत में दोष नहीं है। अंतः इसे माफ़ किया जाता है और जो रकम इसने ली थी, उसे ऋण की बजाय राज दरबार से सहायता के रूप में शुमार किया जाए और इसके बाद इस किस्से को समाप्त किया जाए। राजा के ऐसा हुक्म सुनाने के बाद ऐसा लग रहा था कि जैसे कर्मचारी में फिर से जान आ गई हो। अब उसके चेहरे पर ख़ुशी व शुक्रिया की रेखाएँ उभर आई थी और उसने वहाँ से प्रस्थान किया। वहाँ से छूटने के बाद कर्मचारी सीधे ही एक व्यक्ति के पास गया जिसने १०० रूपया उस कर्मचारी से उधार लिया था। उस व्यक्ति के पास पहुँचकर कर्मचारी अपने आने का प्रयोजन बताया। उसने उस व्यक्ति से कहा १०० रूपया वापस कर दे। उस व्यक्ति ने कहा कि उसकी पत्नी बीमार है और इस परस्तिथि में वह उसका ऋण चुकाने में असमर्थ है। पर कर्मचारी उसको बार बार कहने लगा मुझे आज ही मेरे पैसे चाहिये। और व्यक्ति कर्मचारी से क्षमा याचना करने लगा पर कर्मचारी उसकी एक भी न सुनी और उस पर एक जोर का प्रहार किया ताकि वो व्यक्ति डर कर कही से पैसा ल दे। लेकिन जैसे ही प्रहार हुआ वह व्यक्ति चिल्लाने लगा उसे चोटे आई और आखिर यह किस्सा राजा के पास पहुँच गया।

          राजा ने सारी कहानी सुनी और कहा कर्मचारी से मैंने तो तुम पर दया करके तुम्हारे १००० रुपये माफ़ कर दिये थे, तुम ऐसे निर्दयी निकले कि तुम अपने ऋणी को १०० रुपये भी माफ़ नहीं कर सके। अब में यदि तुम पर १००० रुपये का दण्ड लगाऊ और कारावास में कड़ा दण्ड भी दूँ, तब तुम्हारा क्या हाल होगा ? यह सुनकर उस कर्मचारी के लज्जा से पसीने छूट गए और उसे अपने कर्म पर बहुत अफ़सोस हुआ।

सीख - हम देखते है कि इस कलयुग में प्राय : हरेक मनुष्य का दूसरों से ऐसा ही व्यवहार है। परमपिता न्यायकारी भी है और क्षमाशील भी। वह गुणवान भी है और कल्याणकारी भी।  मनुष्य पर अपने कर्मो का भरी ऋण चढ़ा हुआ है। और यदि सच्चे मन से ईश्वर से माफ़ी मांग ले तो दयालु परमात्मा उसे क्षमा भी कर दे। परन्तु अफ़सोस है कि वह अपनी १००० भूलों को क्षमा कराना चाहता है और दूसरे किसी की एक भूल भी माफ़ नहीं करना चाहता है। इस लिए हमें खुद को क्षमा करना है और साथ साथ दूसरे को क्षमा कर देना है। तब ईश्वर से सच्ची क्षमा मिलेंगी।

Tuesday, April 22, 2014

Hindi Motivational Stories - ' सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र '

सत्यवादी महाराज हरिश्चन्द्र

               सूर्यवंश में त्रिशंकु बड़े  प्रसिद्ध राजा हुए है। उनके पुत्र हुए महाराज हरिश्चंद्र। महाराज हरिश्चन्द्र  इतने प्रसिद्ध सत्यवादी और धर्मात्मा थे कि उनकी कीर्ति से देवताओं के राजा इन्द्र को भी डाह होने लगी। और एक बार इंद्र ने महर्षि विश्वामित्र को हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने के लिए उकसाया। इन्द्र के कहने से महर्षि विश्वामित्रजी ने राजा हरिश्चन्द्र को योग बल से ऐसा स्वप्न दिखलाया कि राजा स्वप्न में ऋषिको सब राज्य दान कर रहे है। दूसरे दिन महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आये और अपना राज्य माँगने लगे। स्वप्न में किये दानको भी राजा ने स्वीकार कर लिया और विश्वामित्र को सारा राज्य दे दिया।

             महाराज हरिश्चन्द्र पृथ्वी भर के सम्राट थे। अपना पूरा राज्य उन्होंने दान कर दिया था। अब दान की हुई भूमि में रहना उचित न समझकर स्त्री तथा पुत्र के साथ वे काशी आ गये, क्यों की पुराणों में यह वर्णन है कि काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है। अंतः वह पृथ्वी में होने पर भी पृथ्वी से अलग मानी जाती है।
अयोध्या से जब राजा हरिश्चन्द्र चलने लगे तब विश्वामित्र ने कहा - ' जप, तप, दान आदि बिना दक्षिणा दिये सफल नहीं होते। तुमने इतना बड़ा राज्य दिया है तो उसकी दक्षिणा में एक हज़ार सोने की मोहरें और दो। '
राजा हरिश्चन्द्र के पास अब धन कहाँ था। राज्य - दान के साथ राज्य का सब धन तो अपने - आप दान हो चूका था। ऋषि से दक्षिणा देने के लिये एक महीने का समय लेकर वे काशी आये। काशी में उन्होंने अपनी पत्नी रानी शौव्या को एक ब्राह्मण के हाथ बेच दिया। राजकुमार रोहिताश्व बहुत छोटा बालक था। प्रार्थना करने पर ब्राह्मण ने उसे अपनी माता के साथ रहने की आज्ञा दे दी। स्वम् अपने को राजा हरिश्चन्द्र एक चाण्डाल के हाथ बेच दिया और इस प्रकार ऋषि विश्वामित्र को एक हज़ार मोहरें दक्षिणा में दी।

            महारानी शौव्या अब ब्राह्मण के घर में दासी का काम करने लगी। और चाण्डाल के सेवक होकर राजा हरिश्चन्द्र श्मशान घाट की चौकी दारी करने लगे। वहाँ जो मुर्दे जलाने को लाये जाते, उन से कर लेकर तब उन्हें जलाने देने का काम चाण्डाल ने उन्हें सौंपा था। एक दिन राजकुमार रोहिताश्व ब्राह्मण की पूजा के लिये फूल चुन रहा था और उस समय उसे साँप ने काट लिया। साँप का विष झटपट फ़ैल गया और रोहिताश्व मरकर भूमि पर गिर पड़ा। अब उसकी माता महारानी शौव्या को न कोई धीरज बाँधने वाला था और न उनके पुत्र की देह श्मशान पहुँचाने वाला था। वो रोती - बिलखती पुत्र की देह को हाथों पर उठाये अकेली रात में श्मशान पहुँची। वे पुत्रकी देह को जलाने जा रहीं थी कि हरिश्चन्द्र वहाँ आ गये और मरघट का कर माँगने लगे। बेचारी रानी के पास तो पुत्र की देह ढकने को कफ़न तक नहीं था। उन्होंने राजा को स्वर से पहचान लिया और गिड़गिड़ाकर कहने लगी - ' महाराज ! यह तो आपका ही पुत्र मरा पड़ा है। मेरे पास कर देने को कुछ नहीं है। राजा हरिश्चन्द्र को बड़ा दुःख हुआ ; किंतु वे अपने धर्म पर स्थिर बने रहे। उन्होंने कहा - 'रानी ! मैं यहाँ चाण्डाल का सेवक हूँ। मेरे स्वामी ने मुझे कह रखा है कि बिना कर दिये कोई यहाँ मुर्दा न जलाये। मैं अपने धर्म को नहीं छोड़ सकता। तुम मुझे कुछ देकर ही पुत्र की देह जलाओ। '

           रानी फुट-फुटकर रोने लगी और बोली - ' मेरे पास तो यही एक साड़ी है, जिसे मैं पहने हूँ, आप इसी में से आधा ले लें। ' जैसे ही रानी अपनी साड़ी फाड़ने चली, वैसे ही वहाँ भगवन नारायण, इन्द्र, धर्मराज आदि देवता और महर्षि विश्वामित्र प्रगट हो गये। महर्षि विश्वमित्रने बताया कि कुमार रोहित मरा नहीं है। यह सब तो ऋषि ने योग माया से दिखलाया था। राजा हरिश्चन्द्र को खरीदनेवाले चण्डालके रूप में साक्षात् धर्मराज थे।सत्य साक्षात् नारायण स्वरूप है।और तब सत्य के प्रभाव से राजा हरिश्चन्द्र महारानी शौव्या के साथ भगवन के धाम को चले गये।और यहाँ  महर्षि विश्वामित्र ने राजकुमार रोहिताश्व को अयोध्या का राजा बना दिया।

                                    सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है -
"चन्द्र टरै सूरज टरै , टरै  जगत व्यवहार। 
पै  ढूढव्रत हरिश्चन्द्र को , टरै  न सत्य विचार।।"

सीख - सत्य एक ऐसा गुण है जिसका कोई पर्याय नहीं है। इस लिए कहा गया है सत्य ही शिव है शिव ही सुन्दर है और सत्य ही ईश्वर है। तो आओ हम मिलकर इस सत्य का प्रयोग करें और जीवन को सफल बनाये। 

Monday, April 21, 2014

Hindi Motivational Stories - शरणार्थी की रक्षा

' शरणार्थी की रक्षा '

     एक बार एक राजा बगीचे में बैठे हुए अपनी राजधानी के बारे में , राज - काज के बारे में मंत्रियों से बातें कर रहे थे। और कुछ देर बाद आकाश से किसी पक्षी की करुणा ध्वनि सबके कानों में गुँज गई। सबका ध्यान बर बस ऊपर उस ध्वनि की तरफ गया। देखते है एक घायल कबूतर उड़ता हुआ आ रहा था उन्हीं की ओर।  उसके पंख लड़खड़ा रहे थे, लग तो ऐसा रहा था मानो वह गिर पड़ेगा। सारा शरीर रक्त से भीगा था। 

      वह उड़ता हुआ नीचे उतरा और धीरे से केवल राजा की ही गोद में जाकर गिर पड़ा। इतने में थोड़ी ही देर बाद एक भयंकर बाज उड़ता आया। जब उसने अपने शिकार को राजा की गॉड में देखा तो तेजी से उसने एक झपटटा मारा, कबूतर को दबोचने के लिए। परन्तु कबूतर तो राजा की गोद में ऐसे छिप गया था जैसे एक अबोध शिशु माँ की गोद में जाने के बाद निश्चिंत हो जाता हो। बाज देखकर उड़ा और राजा के सर से होकर गुजरा। ऐसा लगा माना वह राजा को अपनी हुक जैसे पैनी चोंच मार देगा ऐसा करते हुए दूसरे पेड़ पर जा बैठा। 
          यह सब थोड़ी ही देर में घटित हो गया। सभी इस खेल को कौतुहल पूर्वक देख रहे थे। यह समजते देर न लगी कि यह कबूतर इस बाज का शिकार है। एक मंत्री बोला - 

मंत्री - राजन यह कबूतर इस बाज का भोजन है। इसे आप छोड़ दे, नहीं तो यह बाज हमारा पीछा छोड़ने वाला नहीं है। 

राजा - नहीं ! में इस शरण में आये कबूतर को नहीं छोड़ना। इस भोले पक्षी ने किसी का क्या बिगाड़ा। इस छोटे प्राणी ने मुझ पर विश्वास किया। अपने को मेरे समर्पण किया है आख़िर क्यों ? पक्षी तो इन्सानों से डरते है। परन्तु इसने अपने को मेरे हवाले किया है। इसके प्राणों की रक्षा करना मेरा धर्म है। 

दूसरा मंत्री - परन्तु महाराज ! एक की रक्षा दूसरे की हत्या, यह कैसा न्याय ?
राजा - वह कैसे ?इससे दूसरे की हत्या कैसे ?

मंत्री - वह इस प्रकार कि आप कबूतर की रक्षा तो कर लेंगे परन्तु उस बाज की रक्षा कौन करेगा ? क्यों कि यह उसका भोजन है। अंतः वह मरेगा या नहीं ?

राजा - ठीक है। मैं उसके लिए उसका भोजन मंगवा देता हूँ। इससे दोनों की रक्षा होगी। यह कहकर राजा ने बाज के लिए तरह तरह के मॉस मंगवाये। और फिर मॉस डाले गये बाज के सामने, परन्तु बाज ने उसकी ओर देखा तक नहीं। वह तो टकटकी बाँधे कबूतर को देख रहा था। 

तीसरा मंत्री - महाराज ! इस कबूतर को आप छोड़ेंगे तभी यह दुष्ट बाज जायेगा अन्यथा नहीं। यह तो कबूतर को ही मारकर खाना चाहता है। 

राजा - नहीं, मैं इस कबूतर को किसी भी कीमत पर नहीं जाने दूंगा। चाहे इस के लिए मुझे अपना मॉस ही बाज को क्यों ना देना पड़े। यह कहकर राजा ने अपनी तलवार से अपनी जाँघ का मॉस काटकर बाज के सामने डाल दिया। सारे दरबारी घबरा उठे और बाज भी सब देखकर राजा का इरादा समझ गया था, और बाज उड़ गया। उस दयालु राजा ने केवल एक पक्षी के समर्पण भाव को देखकर ही अपनी जान जोखिम में डाली और उस समर्पित हुए पक्षी की रक्षा की।  

सीख -  दिल से समर्पण हो जाने से उसका फल भी अवश्य मिलता है इस लिए किसी ने कहा है सच्चा सुख है समर्पण में !

Monday, April 14, 2014

A Play - Ignite the Youth ( Drama)

पात्र -  ( क्रिश , क्रिश के पिता , जादू , भारत माता , पांच युवा सदाचारी , पांच युवा मायावी , एक वृद्ध , )

एंकर - प्यारे दोस्तों आज हम आपके सामने एक नाटिका दिखा रहे है जिस में भारत का युवा कैसे दिशा हीन बन गया है और फिर से उसे अपने लक्ष्य की तरफ कैसे जोड़े जिस से भारत का और सर्व का कल्याण हो सके।

पहला दृश्य - बिल्डिंग में आग लगी है अन्दर एक बच्ची फसी है बच्ची के माता पिता और कुछ लोग चिल्ला रहे है। बचाव बचाव। …… तभी क्रिश वहाँ आता है और बिल्डिंग के अन्दर जाता है और बच्ची को बचा कर लेकर आता है। और उसे माता पिता के हवाले कर देता है।

क्रिश - ये लो आपकी बच्ची। …

माता पिता - थैंक यू  क्रिश

पांच सदाचारी युवा - क्रिश आप ये सब कैसे करते हो ? हमें तो बहुत डर लगता है

क्रिश - कुछ नहीं बस हिम्मत करो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है।

पांच सदाचारी युवा - क्या हम भी आप की तरह बन सकते है ?

क्रिश - हाँ जरूर क्यों नहीं। ……Nothing is Impossible  चलो मेरे साथ

गीत - नथिंग इस इम्पॉसिबल .......

दूसरा दृश्य - क्रिश , क्रिश के पिता अपने साधनों के साथ अनुसंधान करते हुए उनके सामने एक लैपटॉप , एक ग्लोब और कुछ लाइट्स और इलेक्ट्रॉनिक चीजें एक मेज पर है और एक कुर्शी इत्यादि। …

क्रिश - हैलो  डैड। …

क्रिश के पिता - आज क्या करके आये जनाब !

क्रिश - कुछ नहीं डैड एक बिल्डिंग में आग लगी थी जिस में एक बच्ची फसी थी उसे बचाया।

क्रिश के पिता - क्या वहाँ और कोई नहीं था।

क्रिश - थे तो बहुत पर कोई हिम्मत नहीं कर रहे थे। .

डैड - अच्छा अच्छा ठीक है

क्रिश - डैड काफी दिनों से आप एक ही भारत के नक़्शे को देख रहे हो जब की इस ग्लोब में और भी देश है

डैड - हाँ। मैं एक खोज कर रहा था पुरे विश्व में कौन सा देश सब से शक्तिशाली और सम्पन्न है। और उसी खोज के तहत मुझे ये पता चला की भारत जो है वो सब से शक्तिशाली और सम्पन्न देश था और आज  …।

क्रिश - डैड क्या बात है आप रुक क्यों गये  …

डैड - क्रिश भारत एक महान देश है जिस की महिमा बहुत है यहाँ आओ ये देखो। ....( लैपटॉप की  इशारा करते है और उसी बीच दूसरे पात्र  आते है स्टेज के सामने और हल्का सा म्यूजिक और उसके बाद गीत और पात्र एक्शन करते है )

गीत - है प्रीत जहाँ की रीत सदा। ....

( एक युवा और एक वृद्ध और भारत माता - वृद्ध गीत गाते हुए युवा को समझा रहा है और भारत माता बीच में खड़ी है। मुस्कान के साथ )

क्रिश - डैड इतना महान भारत देश का आज क्या हाल हुआ है ?

डैड - आज का युवा  … सीन। … म्यूजिक और आज के दृश्य  क्रिश लैपटॉप के पास जाता है और एक बटन दबता है और सीन चेंज होता है.… दो युवा आते है

 युवा दिनेश  - हाय ! समीर कैसे हो ?

 युवा समीर -  ठीक है चलती का नाम गाड़ी है दोस्त और आप कैसे हो ?

दिनेश - अपने अपना कैरियर अमिरेका शुरू करना है और इस के लिए  मेरे डैड रेडी हुआ है और वीसा मिलते ही अपणुं सिदे अमेरिका -समीर तू भी चल बहुत डॉलर कमांएगे और १० साल बाद यहाँ ही आराम की ज़िन्दगी जिएंगे ऐश करेंगे। …

समीर - पर इस के लिए बहुत पैसों की जरुरत होगी ?

दिनेश - अरे इस में इतना सोचने की क्या बात है इस के लिए बैंक लोन देती है और मेरे डैड ने भी लोन ही लिया है इस के लिए।

समीर - अरे वाह ! अगर ये बात है तो राकेश , विजय , रमेश और श्याम को भी साथ ले चलते है।

दिनेश - अरे यार समीर ,  नेकी और पूछ पूछ। …

एंकर -  दिनेश और समीर ख़ुशी से जाते है अपने दोस्तों के पास और इस तरह एक नहीं दो नहीं हज़ारो युवा भारत के बहार विदेश में जाते है कैरियर के नाम पर, डॉलर  कमाने के सोच से और ये सारे युवा विदेशों में अपना टैलेंट दिखाते है और फिर वहीँ के बन जाते है , वहाँ जाने पर डॉलर्स तो मिल जाते है पर मातृ भूमि का जो प्यार है उस से वंचित रह जाते है।  ये देखिये।

दिनेश - हैलो (मोबाइल से फैशनेबल कपडे पहने हुए ) माँ हां कैसे हो?

दिनेश की माँ - बेटा दिनेश कैसे हो दिवाली पर घर आओगे न ?

दिनेश - माँ वीसा मिलते ही जरूर आवुंगा ?

दिनेश की माँ - आज १५ साल हुए तुझे गए हुए एक बार भी घर नहीं आये  .... फ़ोन कट जाता है और

दिनेश की माँ -( दिनेश के पिता से ) ये सब आपकी वजह से हुआ है अपने ही दिनेश को विदेश बेजा और.…

दिनेश के पिता माँ - तुम चुप रहो एक ही बात तुम्हारी सुन सुन कर मैं परेशान हूँ ?

दिनेश की माँ - अरे अपने घर में क्या कमी थी सब कुछ तो था दो वक्त की रोटी तो तुम्हारे पेंशन से ही मिल जाती थी , अधिक पैसे की लोभ में हमने अपना ही खाना ख़राब किया है। .... हे भगवन  ( रोते हुए..... )

एंकर - दोस्तों इस तरह एक ये एक घटना नहीं ऐसे अनेक बाते है जिस से भारत का गौरव खो गया है.....
आईये कुछ इस तरह के और घटनावो को देखते है जहाँ भारत माता नाम से भारत को पुकारते है आज उसी भारत में लड़कियों को की विशय वस्तु की तरह देखा जाता है.…।

एक लड़की - बचाव बचाव  बचाव करते हुए भाग जाती है. .... उसके बाद कुछ युवा आते है

युवक - अरे भाग के जाएगी कहा.…… सब युवा मिलकर जोर जोर से हसंते है। … हाह  ह्ह्ह   हां

एंकर - दोस्तों एक और बात मैं बताना चाहूंगा आज पर्यावरण की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे है आये दिन मल्टी स्टार बिल्डिंग और मॉल बढ़ते जा रहे है और पेड़ कटते जा रहे है जिस की वजह से ग्लोबल वार्मिंग और अन्य समस्या भी आ रहे है.…।

( सीन - एक व्यक्ति पेड़ काटते हुए और उसके बाद एक व्यक्ति उसे पैसा देते हुए और खुश होते हुआ जाते है )

पेड़ का जुंड - चार से पांच युवा पेड़ रूप में आएंगे और ये दृश्य देख भाग जायेंगे और कहेंगे भारत भूमि पर हमारा निवास अब दुश्वार हो गया चलो साथियों कही और जाते है। ( और सीन बदलता है )

क्रिश - डैड अब आप क्या सोच रहे है ?

डैड - क्रिश मैंने देखा बहुत सोचा भी  भारत में युवा है उनको भारत में रहकर भारत में ही अगर वो अपना टैलेंट यूज़  करे तो बदलाव आ सकता है लेकिन  इस  के लिए विज्ञानं की नहीं बल्कि स्वभाव और संस्कार में बदलाव लाना होगा और ये एक आध्यात्मिक शक्ति ही कर सकती है। …… और अभ्यात्मिक शक्ति कहा मिलेंगी ? वैल्यू  ब्रेक को spiritual शक्ति ही बना सकती है

क्रिश - डैड क्यों ना हम ये बात जादु से पूछ ले,  उसे सब पता है

डैड - हां  तो चलो अभी पूछ लेते है। …………

म्यूजिक बदल गरजते हुआ हलका फुल्का लाइट बंद चालू करे। .... और एक युवा जादु के वेश में प्रवेश करता है  उसके चारों तरफ लाइट है और बाकी सब जगह अँधेरा है। …

क्रिश - हैल्लो जादु कैसे हो.…………।

जादु - मैं तो ठीक हूँ अपनी सुनाओ

क्रिश - डैड बता रहे थे कोई आध्यात्मिक शक्ति का पता मिल जाता तो................. क्रिश के बात के बीच में ही जादु बोलते है

जादु - मैं सब कुछ जनता हूँ आपके डैड को भारत देश की चिन्ता हो रही है और उन्हें ये भी पता है की यहाँ उनकी विज्ञानं की शक्ति नहीं आध्यात्मिक महाशक्ति ही ये बदलाव ला सकती है। इसी से मनुष्य के स्वभाव और संस्कार में बदलाव आयेगा और भारत फिर से शक्तिशाली और सम्पन्न बन जायेगा भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा। ……………

डैड - लेकिन वो आध्यात्मिक शक्ति है कहाँ ?

जादु - भारत में ही है।

क्रिश और डैड - भारत में !

जादु - हाँ ! आश्चर्य चकित हो गये आप , हा हा।  ……… ये आध्यात्मिक शक्ति मिलती  है भारत के प्राचीन राजयोग के अभ्यास से

क्रिश और डैड - भारत का प्राचीन राजयोग से ?

जादु - हाँ भाई , सुनो  अब एक रहस्यमय बात। . भारत में आज से बहुत समय  पहले परमात्मा शिव ( जिसे लोग अल्लाह , गॉड , वाहे गुरू कहते है।) .  आकर प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थापना कर ये भारत का प्राचीन राजयोग मनुष्यों को सीखा रहे है पर अभी भी बहुत कम लोग इसे समझ पाये है इसी राजयोग से मनुष्य या व्यक्ति के स्वभाव और संस्कार में बदलाव आयेगा और भारत  के साथ सभी मनुष्यों का कल्याण हो जायेगा  समझें। …………

क्रिश और डैड - जादु अब हम क्या करे ?

जादु - बताता हूँ आगे सुनो ,    इस के लिये प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय की एक विभाग युवा विभाग के द्वारा सभी युवावों को जगाने के लिए  'ignite the youth'  नाम से कार्यक्रम पुरे भारत में चलाये जा रहे है , मैं कहता हूँ आप भी इस कार्य से जुड़ कर अपना और भारत के उत्तान में सहयोगी बनो। … और भारत को फिर गौरव शैली बनाने का येही एक मात्र उपाय है अभी नहीं तो कभी नहीं।

क्रिश  और डैड - अवश्य जादु हम अभी से इस कार्य में लग जायेंगे। . धन्यवाद जादु। …………

जादु , क्रिश , क्रिश के पिता , और पांच सदाचारी युवा और सभी भारत माता के साथ स्टेज पर आते है
एक गीत बजता है। …… उठो जगत के वास्ते। …………सभी पात्र एक्शन करते है भारत माँ के साथ भारत माँ ये गीत सुनती है।



Sunday, April 13, 2014

Hindi Motivational Stories - गुण ही व्यक्ति की वास्तविक सुन्दरता है

' गुण ही व्यक्ति की वास्तविक सुन्दरता है '

                  राजा जनक के दरबार में एक विद्धान पंडित रहते थे जिनका नाम बंदी था, उन्हें अपनी विद्ता पर इतना घमण्ड था कि जो उनसे शास्त्रार्थ में हार जाता, उसे नदी में डुबो दिया जाता था। इसी कारण काहोद नाम के एक ऋषि को अपने प्राण गंवाने पड़े थे। काहोद का छोटा - सा एक बच्चा था, जो बहुत ही भद्दी सूरत का लूला-लंगड़ा था। उसका नाम अष्टवक्र था यानि उसका शरीर आठ जगह से थेड़ा-मेढ़ा हुआ था। भगवान ने अष्टवक्र को अदभुद प्रतिभा दी थी। जिस बात को वह एक बार सुन लेता वह उसे याद हो जाती थी। याद करने की शक्ति के साथ -साथ उस में कल्पना और तर्क करने की भी अदभुद शक्ति थी। होश संभालने के थोड़े दिन बाद से ही अष्टवक्र अध्ययन के लिए जुट गया, ऐसी कोई विद्य न थी जिसका अध्ययन उसने न किया हो। बहुत कम उम्र में उसने सब कुछ पढ़ लिया और एक दिन बालक अष्टवक्र राजनगर लौट रहा था। राजनगर सड़क पर चल रहा था। और उसी समय पीछे से सिपाही ' हटो - हटो ' कहते सब से रास्ता साफ़ करा रहे थे। पर अष्टवक्र अपनी धुन में चला जा रहा था। रास्ते से हट नहीं रहा था। सिपाहियों ने डांटा तो वह जोर से बोला - रास्ता केवल अपाहिजों और बोझा ढ़ोने वालों के लिए छोड़ा जाता है। तुम्हारे लिए रास्ता क्यों छोड़ूँ ? बालक की ज्ञान भरी बातें सुनकर सब अचम्भे में रह गये। चलते चलते वह राजमहल के पास पहुंचा। संतरियों ने उसे छोटा समझकर अन्दर न जाने दिया, तो वह बोला - मैं छोटा नहीं बड़ी उम्र का हूँ। क्यों कि बड़ो की तरह मैंने सब कुछ पढ़ लिया है सीक लिया है, लम्बाई - चौड़ाई या ऊंचाई आदमी के बड़े होने का प्रमाण नहीं है, उसकी बुद्धि ही बड़प्पन को जताती है। सिपाहियों ने तब भी उसे महल के अन्दर जाने नहीं दिया। तब अष्टवक्र को गुस्सा आया। और बोला हमें नहीं मालूम था कि दरबार में कोई छोटा - बड़ा होता है। छोटे - बड़ो की कसौटी धन - धौलत नहीं, विद्या से होती है। सिपाहियों ने हंसी में टाल दी, ये बात राजा जनक को पता चला और राजा ने अन्दर बुलवाया और नाराजगी का कारण पूछा। अष्टवक्र ने जवाब दिया - राजा जनक, मैं आपके पंडित बंदी को शास्त्रार्थ के लिए ललकारता हूँ। आप उन्हें सभा में बुलवाइए। और सभा जुड़ीं। एक तरफ सुडैल शरीर वाले विद्वान पंडित बंदी बैठे थे और दूसरी तरफ टेढ़े - मेढे शरीर व;वाला लूला - लंगड़ा बालक अष्टवक्र। दरबार में अष्टवक्र की विचित्र वेश और सूरत देख कर चारों कोनों से हंसी के ठहाके गूँज रहे थे। छोटी - सी एक गठरी के सामन वह एक ऊँचे आसन पर बैठा था। सभी उस की हंसी उड़ा रहे थे। जब हंसी बन्द हुई, तो लोग चुप चाप अष्टवक्र की तरफ देखने लगे। अष्टवक्र ने सिंह की गर्जना के समान ऊँची आवाज़ में हंसना शुरू कर दिया। उसकी हंसी का स्वर इतना ऊँचा और मर्मभेदी था कि सारी सभा स्तब्ध रह गई।

      राजा जनक ने विनयपूर्वक पूछा - आपकी हंसी का क्या कारण है ? अष्टवक्र ने कड़कती आवाज़ में कहा - राजा जनक ! बहुत दिनों से आपकी विद्वानोँ की  सभा का तारीफ सुनता आ रहा था। लेकिन मालूम पड़ता है तुम्हारे दरबार में सभी हाड़ - मांस का मोल करने वाले व्यापारी है। बुद्धि का सौदागर कोई नहीं। मैं अपनी मूर्खता पर हंस रहा था कि ऐसी मूर्खो की सभा में इतना कष्ट उठाकर क्यों आया ? अष्टवक्र की इस एक बात ने पूरी सभा में सन्नाटा पैदा कर दिया।  सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। सामने बैठे पंडित बंदी भी अष्टवक्र की बातों से हैरान रह गये। शास्त्रार्थ शुरु हुआ।  दरबारी आश्चर्य से दाँतो तले अँगुली दबाए बैठे रहे और देखते रहे कि यह बदसूरत लड़का कितना बड़ा विद्वान है। कितनी बुद्धिमता से विद्वान पंडित को उत्तर दे रहा है।शास्त्रार्थ चलता रहा, अष्टवक्र का तो जवाब ही न था। एक से बढ़कर एक जवाब दे रहा था। बंदी ढीले पड़ते जा रहे थे, वह ठीक से जवाब नहीं दे पा रहे थे। जब बंदी से अष्टवक्र के प्रश्नो का उत्तर देते न बन पड़ा तो लाचार होकर उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली। सारी सभा हैरान रह गई। दरबारियों में जो अष्टवक्र से जलते थे और उसे अपमानित करना चाहते थे, वे चुप होकर बैठ गए। इस तरह मनुष्य की सुन्दरता शरीर नहीं गुण है।



सीख - अष्टवक्र शरीर से कुरूप था लेकिन अदभुत बुद्धिमता के कारण सबको उसके सामने नतमस्तक होना पड़ा। इसी तरह गुण पूज्यनीय है, शरीर कितना भी सुडोल, सुन्दर हो यदि उसमें कोई भी ज्ञान न हो पवित्रता, नम्रता आदि गुण न हो, समझ न हो तो उसे ज्ञान नेत्रहीन ही कहा जायेगा। अवगुणों से सम्पन हो तो उसे कुरूप ही कहा जायेगा। इस लिए गुणवान बनो।