Monday, April 28, 2014

Hindi Motivational Stories - " प्रभु स्नेह ! सर्व दुःखो से छूटकारा "

प्रभु स्नेह ! सर्व दुःखो से छूटकारा 

      शंकराचर्य घर-बार छोड़ कर धर्म का प्रचार करना चाहते थे। परन्तु उनकी माँ उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती थी। शंकराचर्य ने आखिर एक युक्ति सोची। वह एक बार अपनी माँ के साथ नहाने नदी पर गये। कपड़े किनारे पर रखकर शंकराचर्य ने माँ को किनारे पर बैठने को कहा। और अचानक ही नहाते-नहाते शंकराचर्य जोर-जोर से चिल्लाने लगे। माँ - माँ। . ओ मैं मरा ! मगरमच्छ ने मेरा पॉव पकड़ लिया ! रे कोई बचाओ … बचाओ …  इधर माँ घबरा गयी और हाय-हल्ला करने लगी। शंकराचर्य ने कहा - माँ, एक भगवान ही बचा सकते है वरना आज मैं मरा, हाय मरा , अरे मगरमच्छ, माँ मैं तो मरा …कह दो मैंने अपना बच्चा भगवान को दिया। जल्दी कह दो माँ, एक सर्वशक्तिवान भगवान ही गज को ग्रह से बचाने की भाँति मुझे बचा सकते है … हाय.… मरा जल्दी करो माँ.…. . । जल्दी के कारण माँ ने कुछ सोचा नहीं गया। उसे तो बच्चे का जीवन प्यारा था उसने तुरन्त कह दिया - मैंने यह बच्चा भगवान को दिया। फिर वह कहने लगी - बचाओ भगवान बचाओ ! अब यह आप की शरण में है, यह आप ही का बच्चा है।

    शंकराचर्य तट की ओर बढ़ने लगे। माँ ने सोचा कि शायद मगरमच्छ ढीला छोड़ता जा रहा है। उसकी आशा बंध गयी। वह फिर दोहराने लगी - बचाओ भगवान् ! हे प्रभु बचाओ, यह आप का ही बच्चा है, इसे मैंने आपके शरण में सौपा है। इस तरह शंकराचर्य तट पर आ पहुँचे और बोले - माँ, तूने अच्छा किया, मुझे भगवान् के हवाले कर दिया, वर्ना तो आज बचने की कोई आशा नहीं थी। तूने बचा लिया मुझे, माँ.… …। माँ बोली - मैंने नहीं, भगवान् ने तुजे बचाया है शंकर, इस बात को कभी मत भूलना। शंकराचर्य बोले - ठीक कहती हो माँ ! तो अब से मेरा यह जीवन भगवान के ही हवाले है तुमने तो उसे सौप दिया था न, माँ ? उसी ने बचाया है न मुझे ? माँ ने अब समझा कि शंकराचर्य किस अर्थ में उसे यह कह रहा है। धार्मिक स्वाभाव की और श्रदालु माता होने के कारण उसने कह दिया - हाँ, हो तो तुम भगवान के ही। परन्तु क्या मुझे छोड़ जाओगे ? तब शंकराचर्य ने कहा - माँ, मैं छोड़ने की भावना से नहीं जा रहा, धर्म का प्रचार करने जा रहा हूँ, जिस भगवान ने मुझे बचाया है, नया जीवन दिया है, उसकी महिमा करने जा रहा हूँ।

सीख - धर्म का प्रचार या भगवान की महिमा करने के लिए घर वालों को राजी कर या स्वीकृती लेकर आगे निकालना है। 

Sunday, April 27, 2014

Hindi Motivational Stories - " युक्ति से मुक्ति "

युक्ति से मुक्ति 

         एक बार पागलखाने में से एक पागल किसी तरह अपने कमरे से बाहर निकल गया  तीसरी मंजिल के कमरों के बाहर छत का जो हिस्सा थोड़ा बाहर निकला था, उस छज्जे पर जा खड़ा हुआ। और कुछ समय के बाद अचानक हस्पताल के  वार्डन ने जब देखा कि वह पागल अपने कमरे में नहीं है तो उसे ढूँढते - ढूँढते उसका ध्यान तीसरी मंजिल के बाहर की छज्जे पर गया। उसने सोचा कि अगर वह रोगी वहाँ से छलाँग लगा देगा या पागलपन में इस पर बेपरवाही से घूमेगा तो यह मर जायेगा। इस लिये कुछ अधिक सोचे बिना वह भागा और स्वयं भी वहाँ छज्जे पर जा पहुँचा। वहाँ पहुँचा कर उसने पागल से कहा - सुनाओ भाई, क्या हालचाल है ? यहाँ क्या कर रहे हो ? पागल बड़ी मस्ती से बोला - सोच रहा था कि जैसे पंक्षी पंख फैला कर उड़ते हुए नीचे उतरता है , मैं भी आज पंक्षी की तरह फर्श पर उतरूँ। ऐसा कहते हुए पागल ने मुँह को नीचे की ओर झुकाया और अपनी दोनों भुजाओं तथा हथेलियों को पीठ के पीछे ले जाकर पंख की तरह रूप दिया।

        वार्डन डर गया और चौका! उसने पागल को एक हाथ से तो थपथपाया और दूसरे हाथ से उसके हाथ को पकड़ लिया ताकि वह कहीं नीचे छलाँग न लगा दे। परन्तु उसने देखा कि पागल में बल बहुत है और वह उसे पकड़ कर रोक नहीं सकेगा। उसे यह भी डर था कि अगर वह पागल को जबरदस्ती रोकेगा तो पागल कहीं उसे ही नीचे धक्का न दे दे। परन्तु कुछ ही क्षण में कुछ हो जाने वाला था, इसलिये जल्दी ही कुछ करना था।

      अचानक वार्डन को एक युक्ति सूझी। उसने मुस्कुराते हुए और दोस्ताना तरीके से पागल को कहा - वाह भाई वाह, आप जो करना चाहते हो वह कोई बड़ी बात तो है नहीं। आप तो कोई बड़ा काम करके दिखाओ। और, मुझे विश्वास है कि आप विशेष काम कर सकते है। पागल ने कहा - अच्छा, सुनाओ दोस्त, अगर यह बड़ा काम नहीं है तो और क्या चाहते हो ? तब वार्डन ने कहा - ऊपर से नीचे तो कोई भी जा सकता है पर फर्श से अर्श की ओर एक पंक्षी की तरह उड़ कर दिखाओ। और पंख तो आपको लगे हुए है। चलो आओ, हम दोनों एक-साथ नीचे से ऊपर की ओर उड़ेंगे। यह कहते हुए वह पागल की अंगुली प्यार से पकड़ते हुए उसे कमरे के रस्ते से नीचे ले चला। इस प्रकार उसने पागल की भी जान बचाई और अपना कर्तव्य भी निभाया। अगर वह पागल से जोर-जबरदस्ती या हाथापाई करता तो दोनों ही धड़ाम से धराशायी होते। तो सच है कि युक्ति से ही दोनों की (मौत के मुँह से ) मुक्ति हुई।

सीख - बहुत बार हम बुरे फस जाते या परस्तिथी अनुकूल नहीं होती है। तब युक्ति से ही छुटकारा प् सकते है इस लिये युक्ति से मुक्ति कहा गया है। 

Hindi Motivational Stories - " व्यक्ति की पहचान, बोल "

व्यक्ति की पहचान, बोल 

            एक बार एक जंगल में राजा, मंत्री और दरबान रास्ता भूल गये। तीनों ही एक दूसरे से बिछड़ गये थे। राजा इधर उधर देखता हुआ एक पेड़ के पास आया और उस पेड़ के नीचे एक फ़क़ीर को  बैठा हुआ देखा। (जो की अन्धा था ) राजा ने फ़क़ीर से पूछा हे प्रज्ञाचक्षु क्या यह रास्ता नगर की तरफ जायेगा ? हाँ राजन, यह रास्ता नगर की तरह जायेगा। और थोड़ी देर बाद मंत्री उसी जगह पर आया और फ़क़ीर से पूछा हे सूरदास क्या यह रास्ता नगर की ओर जायेगा। हाँ मंत्रीजी नगर की ओर ही जायेगा। और अभी अभी राजा जी इसी रास्ते से गये है। उसके बाद दरबान आता है और रोब से पूछता है अबे औ अन्धे, क्या यहाँ से कोई आगे गया है ? हाँ दरबान जी यहाँ से राजा और मंत्री जी आगे गये है। आगे जाने पर थोड़ी दूरी पर राजा, मंत्री और दरबान तीनों इकट्ठे मिल जाते है। और हरेक उस अन्धे फ़क़ीर के साथ हुई बात के बारे में एक-दूसरे को बताया। बिना आँखों के उसने कैसे पहचान लिया कि कौन राजा,कौन मंत्री, तथा कौन दरबान ? तब तीनों मिलकर फ़क़ीर के पास गये और अपना प्रश्न पूछा। तब फ़क़ीर ने कहा आप तीनों को वाणी तथा शब्दों से मैंने पहचान लिया कि कौन कौन है ? 'प्रज्ञाचक्षु' जैसा कर्ण मधुर शब्द राजा के मुख पर ही हो सकता है। सूरदास इतना मधुर नहीं तो इतना कठोर भी नहीं इसलिए मंत्री हो सकता है और अन्धे के सम्बोधन से तथा रोब से दरबान जी भी तुरन्त पहचाने गये।

     नाक, कान, हाथ-पाँव पर से मनुष्य जीतनी जल्दी नहीं पहचाना जा सकता लेकिन भाषा व्यक्ति की परख देती है। इस लिए किसी ने कहा है -

         वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय। 
      औरों को शीतल कर, आपे ही शीतल होय।।

सीख - हर व्यक्ति से मीठा व्यव्हार रखो मीठा बोलो बोल ही हमारे सच्ची पहचान है। 

Hindi Motivational Stories - ' उन्नति में विघ्न रूप ईर्ष्या '

उन्नति में विघ्न रूप ईर्ष्या 

किसी मोहल्ले में कुछ बच्चे छोटे छोटे शीशे के मर्तबान लेकर बैठे थे। सभी मर्तबानों पर ढक्कन भी लगा हुआ था और हरेक बच्चे ने अपने-अपने मर्तबान में कोई-न- कोई छोटा मोटा जन्तु, कीड़ा, मच्छर कैद कर रखा था। वे देख रहे थे कि किस प्रकार ये जन्तु उछाल-उछाल कर मर्तबान से बाहर निकलने की कोशिश करते थे परन्तु ढक्कन बन्द होने के कारण निकल नहीं पाते थे। ज्यों ही वे जरा सा ढक्कन ऊपर करते, तत्क्षण ही वे उछाल कर बाहर निकल आते और वे बच्चे फिर उसे पकड़ कर अन्दर बन्द कर देते।  इस प्रकार ये बच्चे खेल में मस्त थे।

        परन्तु इन्हीं बच्चों के साथ एक बच्चा ऐसा भी था जिसके पास मर्तबान तो थे पर उसका ढक्कन नहीं था उसके मर्तबान में दो केकड़े थे। केकड़े मर्तबान के बीच में उछलते भी थे परन्तु ढक्कन न होने पर भी उस मर्तबान से बाहर नहीं आ पाते थे। सभी बच्चे इस दृश्य को देख हैरान हो रहे थे। वे सोच रहे थे कि उनके मर्तबान का ज्यों ही ढक्कन उठता है, तो मर्तबान में पड़ा जन्तु फ़ौरन उछाल कर बाहर आ जाता है परन्तु इसके मर्तबान पर तो ढक्कन भी नहीं है। फिर भी इसके केकड़े बाहर क्यों नहीं आ रहे। वे आपस में खुसर-पुसर करने लगे और कहने लगे कि ये केकड़े जरूर कमजोर होंगे तभी तो ढक्कन खुला होने पर भी ये बाहर नहीं आ रहे है। आखिर उन में से एक बच्चे ने उस बच्चे से पूछ ही लिया - क्या तुम्हारे ये केकड़े कमजोर है जो मर्तबान पर ढक्कन न लगा होने पर भी ये उससे बाहर नहीं आ पाते ? उसने जवाब दिया - अरे नहीं, ये तो बहुत बलवान है। परन्तु इनके बाहर न आ पाने का भी एक राज है। वह क्या राज है ? सभी बच्चे एक आवाज़ में बोल उठे। उसने कहा - बात यह है कि ये दोनों केकड़े एक दूसरे से बढ़कर कर ताकतवर है। परन्तु जब एक बाहर निकलने के लिए उछलता है तो दूसरा केकड़ा उसकी टाँग खीच लेता है और जब दूसरा केकड़ा छलाँग लगता है तो पहला उसकी टाँग खींच लेता है। और इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे की टाँग खींचते रहते है और दोनों में से कोई भी बाहर नहीं आ पाता।

      इस राज को सुनकर सभी खिलखिला कर हँस पड़े। ठीक ऐसी ही हालत आज के संसार की है। इस संसार में कई मनुष्य ऐसे है जिन्हें आगे बढ़ने का मौका ही नहीं मिलता मानो कि उनका ढक्कन बन्द है। अगर उन्हें मौका मिले तो वे बहुत जल्दी ही उन्नति कर सकते है परन्तु चाहे कोई भी वजह हो, उन्हें मौका नहीं मिलता है, वे उसके लिए प्रयास भी करते है परन्तु कुछ अन्य ईर्ष्यालु व्यक्ति उनकी टाँग खींच लेते है याने उनके प्रयास में वे कोई- न -कोई विघ्न डाल देते है। इससे न वे खुद आगे बढ़ पाते है न औरों को ही बढ़ने देते है। 

सीख - इस कहानी से यही सीख मिलता है कि हमें एक दूसरे से ईर्ष्या नहीं करना है एक दूसरे को आगे बढ़ने के लिए मदत करना है और हर एक की विशेषता को देख उन्हें उस अनुसार मौका देना है। तभी हम भी उन्नति की और बढ़ सकते है। 

Friday, April 25, 2014

Hindi Motivational Stories - ' कर्म अनुसार प्राप्ति '

कर्म अनुसार प्राप्ति 

          एक बार एक राजा एक व्यक्ति के काम से खुश हुआ। उसने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाकर कहा कि तेरी मेहनत, वफादारी व हिम्मत से मैं बहुत प्रसन्न हूँ, इसलिए मैं आज तुझे कुछ इनाम देना चाहता हूँ। फिर उसने कहा कि काम तो चाहे तुमने लगभग 500 रुपये जितना किया है पर मैं तुम्हें कुछ इससे अधिक देना चाहता हूँ। वह व्यक्ति बहुत खुश हो रहा था। और राजा ने उससे कहा, आज रात तुम मेरे व्यक्तिगत कमरे में ही गुजरना। वहाँ सब प्रकार का कीमती सामान है, तुम्हे जो चाहिए, वह उसमें से ले लेना परन्तु सुबह 7 बजे कमरा खाली कर देना।

        व्यक्ति का तो ख़ुशी का ठिकाना न रहा। वह अपने भाग्य को सराहने लगा और सोचने लगा कि सचमुच, भगवन जब देता है तो छप्पर फाड़कर ही देता है। और वह व्यक्ति रात के ठीक 9 बजे राजा के कमरे में प्रवेश किया। अनेक प्रकार की आलीशान वास्तुअों, कीमती सामान को देख कर उसकी आँखे चमक उठी।वह एक- एक चीज़ को बडे ध्यान से देखता और मन में सोच लेता कि वह यह चीज भी अपने साथ ले जाएगा, वो भी ले जाएगा और इस प्रकार उसने कई वस्तुअों को अपने साथ ले जाने की योजना बना ली। और फिर मन-ही-मन मुस्कुराते हुए सामने बिछे हुए नरम-नरम गद्दों वाले बिस्तर की ओर चल दिया। उसने सोचा कि सारा दिन बहुत काम करके वह थक गया है। तो क्यों न कुछ देर सुस्ता ही लिया जाय और उसके बाद सब सामान इकट्ठा कर सुबह होते ही सामान सहित कमरे से बाहर चले जाएंगे।

          यह सोचकर वह उस पलंग पर जाकर चैन से लेट गया। थका हुआ तो था ही, और कुछ ही क्षणों में उसे निद्रा देवी ने घेर लिया। वह सोया रहा, सोया रहा और इतना सोया रहा कि सुबह के 7 बज गए। उसी वक्त राजा का नौकर ने आकर दरवाजा खटखटाया। वह व्यक्ति आँखे मलता हुआ हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसने जल्दी से बिस्तरे से उठ कर दरवाजा खोला। नौकर ने कहा समय पूरा हो गया है। उस व्यक्ति ने घड़ी की तरफ देखा और कमरे से बाहर निकलते वक्त सामान तो बाँधकर नहीं रखा था सो एक टेबल लैंप को ही खींचता हुआ ले आया। और किसी से पूछने पर मालूम हुआ कि उस लैम्प की कीमत कुल 500 रुपये ही है। जितना उस व्यक्ति ने काम किया था, उसको उतनी ही प्राप्ति हो गई।

         जरा सोचिये सारा कमरा, कीमती सामान, आलीशान वस्तुअों से भरा उस व्यक्ति के समाने थी , वह उस में से जितना चाहे उतना ले सकता था परन्तु तकदीर के बिना मनुष्य को कुछ भी प्राप्त नहीं होता। चाहे कारण कोई भी हो जैसे नींद का। परन्तु याद रखना तक़दीर भी अपने ही कर्मो से बनती है। श्रेष्ठ कर्म करने वालो की ही श्रेष्ठ तक़दीर बनती है। और निकृष्ट कर्म या खोटे कर्म करने वाले की खोटी तक़दीर। जैसे उस व्यक्ति ने 500 रुपये का काम किया था और 500 रुपये की ही उसको चीज़ मिल गई।

सीख - मनुष्य को चाहे कुछ भी हो अपने कर्मो पर सब से पहले पूरा ध्यान देना है। कर्म से ही तक़दीर बनती है।

          

Thursday, April 24, 2014

Hindi Motivational Stories - " महाराज रघु का दान "

महाराज रघु का दान 

                        महाराज रघु अयोध्या के सम्राट थे। वे भगवन श्री राम के पितामह थे। उनके नाम से ही उनको  क्षत्रिय रघुवंशी कहे जाते है। एक बार महाराज रघु ने एक बड़ा यज्ञ किया। और जब यज्ञ पूरा हुआ तो महराज ने ब्राह्मणों तथा दीन -दुःखियों को अपना सब धन दान कर दिया। महराज इतने बड़े दानी थे कि उन्होंने अपना आभूषण, सुन्दर वस्त्र और सब बर्तन तक दान में दे दिया और खुद साधारण वस्त्र पहनकर रह गये। और वे मिट्टी के बर्तनों से काम चलाने लगे। यज्ञ में सब कुछ दान करने के बाद कुछ ही समय बाद उनके पास वरतन्तु ऋषि के एक शिष्य कौत्स नाम का ब्राह्मण कुमार आये। महाराज ने उनको प्रणाम किया, आसन पर बैठाया और मिट्टी के गडुवेसे उनके पैर धोये। स्वागत-सत्कार किया और ब्राह्मण जब जाने लगा  तो महारज ने पूछा - ' आप मेरे पास कैसे पधारे है ? मैं क्या सेवा करूँ ?

                 कौत्स ने कहा - ' महाराज ! मैं आया तो किसी काम से ही था: किन्तु आपने तो सर्वस्व दान कर दिया है। मैं आप - जैसे महादानी उदार पुरुष को संकोच में नहीं डालूँगा। ' लेकिन महाराज रघु ने नम्रता से प्रार्थना की - ' आप  अपने आने का उदेश्य तो बता दें। ' तब कौत्स ने बताया कि उनका अध्ययन पूरा हो गया है। अपने गुरुदेव के आश्रम से घर जाने से पहले गुरुदेव से उन्होंने गुरुदक्षिणा माँगने की प्रार्थना की। गुरुदेव ने बड़े स्नेह से कहा - 'बेटा ! तूने यहाँ रहकर जो मेरी सेवा की है, उससे में बहुत प्रसन्न हूँ। मेरी गुरुदक्षिणा तो हो गयी। तू संकोच मत कर। ख़ुशी से घर जा। ' लेकिन कौत्स ने जब गुरुदक्षिणा देने का हठ कर लिया तब गुरुदेव को क्रोध आ गया। और वे बोले - ' तूने मुझसे चौदह विधाएँ पढ़ी है, इस लिए हर एक विधा के लिए एक करोड़ सोने की मोहरें लाकर दे। ' और वाही गुरुदक्षिणा के चौदह करोड़ सोने की मोहरें लेने कौत्स अयोध्या आये थे।

          महाराज ने कौत्स की बात सुनकर कहा - 'जैसे आपने यहाँ तक आने की कृपा की है, वैसे ही मुझ पर थोड़ी- सी कृपा और करें। तीन दिन तक आप मेरी अग्निशाला में ठहरो। रघु के यहाँ से एक ब्राह्मण और वो भी कुमार निराश लौट जाय, यह तो बड़े दुःख और कलंक की बात होगी। मैं तीन दिन में आपकी गुरुदक्षिणा का कोई - न - कोई प्रबन्ध अवश्य कर दूँगा। ' कौत्स ने महाराज की आज्ञा पर अयोध्या में रुकना स्वीकार कर लिया।

          महाराज ने अपने मन्त्री को बुलाकर कहा - ' यज्ञ में सभी सामन्त नरेश कर दे चुके है। उनसे दुबारा कर लेना न्याय नहीं है। लेकिन कुबेर जीने मुझे कभी कर नहीं दिया। वे देवता है तो क्या हुआ, कैलाश पर रहते है। इस लिए पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट को उन्हें कर देना चाहिये। मेरे सब अश्त्र-शस्त्र मेरे रथ में रखवा दो। मैं कल सबेरे कुबेर पर चढ़ाई करूँगा। आज रात मैं उसी रथ में सोऊँगा। और जब तक ब्राह्मण कुमार को गुरुदक्षिणा न मिले, मैं राजमहल में पैर नहीं रख सकता। ' उस रात महाराज रघु रथ में ही सोये।

            जैसे ही सुबह हुई बड़े सबेरे उनका कोषाध्य्क्ष उनके पास दौड़ा आया और कहने लगा - ' महाराज ! खजाने का घर सोने की मोहरों से ऊपर तक भरा पड़ा है। कल रात में उसमें मोहरों की वर्षा हुई है। ' महाराज समझ गये कि कुबेर जी ने ही मोहरों की वर्षा की है। महाराज ने सब मोहरों का ढेर लगवा दिया और कौत्स से बोले - ' आप इस धन को ले जाएं !'  कौत्स ने कहा - ' मुझे तो गुरुदक्षिणा के लिये चौदह करोड़ मोहरें चाहिये। उससे अधिक एक मोहरा भी मैं नहीं लूँगा। ' महाराज ने कहा - ' लेकिन यह धन आपके लिए आया है। और ब्राह्मण का धन हम अपने यहाँ नहीं रख सकते। आपको ही ये सब लेना पड़ेगा। ' तब कौत्स बड़ी दृढ़ता से कहा - ' महाराज! मैं ब्राह्मण हूँ। धन का मुझे करना क्या है। आप इस का चाहे जो करें, मैं तो एक मोहरा अधिक नहीं लूँगा। ' और कौत्स चौदह करोड़ मोहरें लेकर चले गये। शेष मोहरें महाराज रघु ने दूसरे ब्राह्मणों को दान कर दिया।

सीख - इस कहानी से हमें सीख मिलता है की सच्चे ब्राह्मण की निशानी है। सदा जीवन उच्च विचार उसे धन मोहरें आदि से कोई लेना देना नहीं है। उसके लिए तो ये कांकड़ पत्थर  है और ब्राह्मण के पास तो इस से बड़ा ज्ञान का खजाना है। ज्ञान का धन है सब से बड़ा तो हम सब को पहले ज्ञान धन को ग्रहण करना चाहिये।


Hindi Motivational Stories - " सेवा ही सर्वोत्तम "

सेवा ही सर्वोत्तम 

               एक बार अकबर अपने राज दरबार में आते ही सभा से तीन प्रश्न किये और कहा कि जो इनका ठीक उत्तर देगा उसको काफी बड़ा इनाम मिलेगा। प्रश्न कुछ इस तरह के थे।

१ )  सब से अच्छा फूल कौन सा है ?
२ ) सब से बड़ा राजा कौन -सा है ?
३ ) सब से अच्छा बेटा किसका है ?

            दरबार में जो बुद्धिमान लोग थे, उन्होंने उत्तर देने की कोशिश की। किसी ने कहा सब से अच्छा फूल गुलाब का है, किसी ने कहा कमल का फूल सब से अच्छा है। और दूसरे प्रश्न के उत्तर में किसीने राजा के बारे में अकबर का नाम बताया और नहीं बताते तो उन्हें ये भी डर था की कहीं अकबर नाराज न हो जाये। इस तरह अब तीसरे प्रश्न के उत्तर में लगभग सभी ने यह उत्तर दिया की महाराज का सुपुत्र ही सब से अच्छा है। और ये भी डर था की कहीं राजकुमार को ये मालूम हो जाय की अमुक व्यक्ति ने अमुक महाराजा के सुपुत्र को अच्छा बताया है तो राजकुमार से कही दुश्मनी न हो जाये।

          राजा इन उत्तरों से संतुष्ट नहीं थे, और वे जान भी गए की ये सब प्रशंसा करने वाले है और उनके अन्दर डर भी था। और उत्तर में कुछ नवीनता नहीं और न ही कोई अच्छा विचार है। और जैसे हमेशा होता है पहले सब दरबारियों को मौका मिलता है और जब अकबर संतुष्ट नहीं होते है तो वो खुद बीरबल की तरफ इशारा करते है और फिर आज भी वाही हुआ अकबर ने बीरबल से मुस्कुराते हुए कहा अब आप ही बताइये जनाब इनका सही जवाब क्या है ? और अब सब की नज़र बीरबल की ओर थी।

       बीरबल ने मर्यादा और शिष्टाचार पूर्वक महाराज को संबोधित करके कहा, महाराज ! यों तो गुलाब व कमल अपनी- अपनी जगह पर सभी फूलों में अच्छे भी है और बड़े भी परन्तु मेरे विचार से सब से बड़े व अच्छे फूल रूई के फूल है क्यों की उन से जो हमें रुई मिलती है और उससे जो कपड़े बनते है, उन्हें पहनकर एक व्यक्ति न केवल स्वयं को सर्दी- गर्मी से बचाता है बल्कि एक सुसभ्य इन्सान दिखाई देता है। उनके बिना तो आम इंसान हैवान की तरह नंग-धडंग दिखाई देता है। आपका जो दूसरा प्रश्न है , उसके विषय में मेरा मन्यता ये है की राजाओं में सब से बड़े इंद्र है क्यों की वे वर्षा करते है। यदि वे वर्षा न करें तो खेती नहीं होंगी।  खेती नहीं होंगी तो अनाज नहीं मिलेगा और अनाज नहीं मिलेंगे तो जनता भूखों मरेंगी। और अब रह तीसरा प्रश्न सब से अच्छा बेटा किसका है ? मेरे विचार से सब से अच्छा बेटा गाय का होता है क्यों की वह हल न चलाए तो खेती नहीं होंगी। बेचारा घास और भूसा खाता है और वह भी अपनी पैदावार में से और मेहनत करके प्रजा का पेट भरने की सेवा करता है। बीरबल के इन उत्तरों को सुनकर राजा बहुत खुश हुए और राज दरबार के सभी लोग भी।

सीख - इस कहानी से हमें ये सीख मिलता है कि सेवा करने वाला ही सब से बड़ा और अच्छा होता है। इस लिए सेवा करते रहो चाहे छोटा हो या बड़ा पर करते रहो।