Saturday, May 3, 2014

Hindi Motivational Stories - " मृत्यु से मित्रता "

मृत्यु से मित्रता 

    एक चतुर व्यक्ति को काल से बहुत डर लगता था। एक दिन उसे चतुराई सूझी और काल को अपना मित्र बना लिया। उससे कहा - मित्र, तुम किसी को भी नहीं छोड़ते हो, किसी दिन मुझे भी गाल में धर लोगो। काल ने कहा - सृष्टि नाटक का यह शाश्वत नियम है इस लिए मैं मजबूर हूँ। आप मेरे मित्र है मैं आपकी जितनी सेवा कर सकता हूँ करूँगा ही, आप मुझ से क्या आशा रखते है बताइये। चतुर व्यक्ति ने कहा - मैं इतना ही चाहता हूँ कि आप मुझे लेने पधारने के कुछ दिन पहले एक पत्र अवश्य लिख देना ताकि मैं अपने बाल - बच्चो को कारोबार की सभी बाते अच्छी तरह से समझा दूँ और स्वयं भी भगवान के भजन में लग जाऊँ। काल ने प्रेम से कहा - यह कौन सी बड़ी बात है मैं एक नहीं आपको चार पत्र भेज दूँगा। मनुष्य बड़ा प्रसन्न हुआ सोचने लगा कि आज से मेरे मन से काल का भय भी निकल गया, मैं जाने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण करके जाऊँगा तो देवता भी मेरा स्वागत करेंगे।

       दिन बीतते गये आखिर मृत्यु की घड़ी आ पहुँची। काल अपने दूतों सहित उस चतुर व्यक्ति के समीप आकर कहने लगा - आपके नाम का वारंट मेरे पास है मित्र चलिए, मैं सत्यता और दृढ़तापूर्वक अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए एक क्षण भी तुम्हें और यहाँ नहीं छोड़ूँगा। मनुष्य के माथे पर बल पड़ गये, भृकुटी तन गयी और कहने लगा धिक्कार है तुम्हारे जैसे मित्रों पर, मेरे साथ विश्वासघात करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती ? तुमने मुझे वचन दिया था कि लेने आने से पहले पत्र लिखूँगा। मुझे बड़ा दुःख है कि तुम बिना किसी सूचना के अचानक दूतों सहित मेरे ऊपर चढ़ आए। मित्रता तो दूर रही तुमने अपने वचनों को भी नहीं निभाया।

        काल हँसा और बोला - मित्र इतना झूठ तो न बोलो। मेरे सामने ही मुझे झूठा सिद्ध कर रहे हो। मैंने आपको एक नहीं चार पत्र भेजें। आपने एक भी उत्तर नहीं दिया। मनुष्य ने चौक कर पूछा - कौन से पत्र ? कोई प्रमाण है ? मुझे पत्र प्राप्त होने की कोई डाक रसीद आपके पास है तो दिखाओ। काल ने कहा - मित्र, घबराओ नहीं। मेरे चारों पत्र इस समय आपके पास मौजूद है। मेरा पहला पत्र आपके सिर पर चढ़कर बोला, आपके काले सुन्दर बालों को पकड़ कर उन्हें सफ़ेद कर दिया और यह भी कि सावधान हो जाओ, जो करना है कर डालो। नाम, बड़ाई और धन - संग्रह के झंझटो को छोड़कर भजन में लग जाओ पर मेरे पत्र का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ। बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान बनने के सपनों में खो गए। आज तक मेरे श्वेत अक्षर आपके सिर पर लिखे हुए है। कुछ दिन बाद मैंने दूसरा पत्र आपके नेत्रों के प्रति भेजा। नेत्रों की ज्योति मंद होने लगी। फिर भी आँखों पर मोटे शीशे चढ़ा कर आप जगत को देखने का प्रयत्न करने लगे। दो मिनिट भी संसार की ओर से आँखे बंद करके, ज्योतिस्वरूप प्रभु का ध्यान, मन में नहीं किया। इतने पर भी सावधान नहीं हुए तो मुझे आपकी दीनदशा पर बहुत तरस आया और मित्रता के नाते मैंने तीसरा पत्र भी भेजा। इस पत्र ने आपके दाँतो को छुआ, हिलाया और तोड़ दिया। और अपने इस पत्र का भी जवाब न देखकर और ही नकली दाँत लगवाये और जबरदस्ती संसार के भौतिक पदार्थों का स्वाद लेने लगे। मुझे बहुत दुःख हुआ कि मैं सदा इसके भले की सोचता हूँ और यह हर बात एक नया, बनावटी रास्ता अपनाने को तैयार रहता है। अपने अन्तिम पत्र के रूप में मैंने रोग - क्लेश तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु आपने अहंकार वश सब अनसुना कर दिया।

       जब मनुष्य ने काल के भेजे हुए पत्रों को समझा तो फुट -फुट कर रोने लगा और अपने विपरीत कर्मो पर पश्चाताप करने लगा। उसने स्वीकार किया कि मैंने गफलत में शुभ चेतावनी भरे इन पत्रों को नहीं पढ़ा, मैं सदा यही सोचता रहा कि कल से भगवान का भजन करूँगा। अपनी कमाई अच्छे शुभ कार्यो में लगाऊँगा, पर वह कल नहीं आया। काल ने कहा - आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग -रंग, स्वार्थ और भोगों के लिए किया। जान-बूझकर ईश्वरीय नियमों को तोड़ना जो करता है, वह अक्षम्य है। मनुष्य को जब बातों से काम बनते हुए नज़र नहीं आया तो उसने काल को करोड़ों की सम्पत्ति का लोभ दिखाया।

     काल ने हँसकर कहा - यह मेरे लिए धूल है। लोभ संसारी लोगो को वश में कर सकता है , मुझे नहीं।  यदि तुम मुझे लुभाना ही चाहते थे तो सच्चाई और शुभ कर्मो का धन संग्रह करते। काल ने जब मनुष्य की एक भी बात नहीं सुनी तो वह हाय -हाय करके रोने लगा और सभी सम्बन्धियों को पुकारा परन्तु काल ने उसके प्राण पकड़ लिए और चल पड़ा अपने गन्तव्य की ओर।

सीख - समय के साथ उम्र की निशानियों को देख कर तो कम से कम हमें प्रभु की याद में रहने का अभ्यास करना चाहिए और अभी तो कलयुग का अन्तिम समय है इस में तो हर एक को चाहे छोटा हो या बड़ा सब को प्रभु की याद में रहकर ही कर्म करने है। 

Hindi Motivational Stories - " ईमानदार बनो "

ईमानदार बनो  

     एक पेड़ पर चातक पक्षी अपने पिता के साथ रहता था। एक दिन चातक पक्षी को प्यास लगी उसने पिता के सामने कहीं से भी पानी पी लेने की जिद्द की। पिता ने उसे बहुत समझाया परन्तु पुत्र जिद्द पर अड़ा रहा। आखिरकार पिता ने उसे सागर का जल पी लेने की छुट्टी दे दी। चातक ने हिन्द महासागर की ओर उड़ान भरी। और जब रात हुआ तो रास्ते में एक घर के आँगन में नीम के पेड़ पर विश्राम करने लगा। कुछ देर बाद एक नौजवान ने लगभग 11. 30 बजे उस घर में प्रवेश किया। पेड़ के नीचे लेटे वृद्ध पिता ने देरी से आने का कारण पूछा ?  नौजवान ने बताया रास्ते में पैसे से भरा एक बटुआ मुझे मिला था और बैलगाड़ी में बैठे एक सज्जन तक पहुँचाने में चार घण्टे दौड़ना पड़ा। घटना सुनकर वृद्ध की आँखों में आंसू बहने लगे उसने पुत्र की पीठ थपथपाते हुए रुंधे गले से कहा - शाबास बेटा, आज तूने मेरा सिर ऊँचा कर दिया, चाहे जान चली जाये पर तुम अपनी ईमानदारी कभी भी मत छोड़ना जैसे कि चातक पक्षी मेघ के जल के अलावा कोई बूँद गले में नहीं उतारता। इसके बाद दोनों ने प्यार से भोजन किया और आँगन में ही सो गये। सारी घटना को पक्षी साक्षी हो सुनने वाले चातक पुत्र की आँखों की नींद उड़ गयी। उसके कानों में बार - बार वृद्ध के शब्द गूँज रहे थे -जैसे कि चातक पक्षी मेघ के जल के..... … । सुबह हुई और चातक -पुत्र उड़ चला, समूद्र की ओर नहीं पर अपने पिता के कोटर की ओर। जब उनके पिता ने अपने पुत्र को आते देखा तो पुत्र से पूछा तो उसने सारी घटना सुना दी। इस प्रकार हम सभी को भी उस नौजवान और चातक पक्षी की तरह बनकर रहना है। 

सीख  - चाहे कैसी भी बात हो या अपनी इच्छा के वश हो अपने वसुलो नहीं तोड़ना। इस के चाहे हमें मरना भी पड़े। ये इस कहानी से हम को सीख मिलता है। 

Friday, May 2, 2014

Hindi Motivational Stories - ' नीयत का प्रभाव '

  नीयत का प्रभाव 


           एक राजा अपने मन्त्री के साथ शिकार पर निकला। शिकारी की खोज में वे दोनों जंगल में आगे की और बढ़ते जा रहे थे। इतने में राजा को एक शिकार दिखाई पड़ा। और उस शिकार के पीछे भागते भागते राजा बहुत आगे निकल गए और मन्त्री का घोड़ा थोड़ा बिदक जाने के कारण पीछे रह गया। मन्त्री को सख्त प्यास लगी थी।  प्यास बुझाने के लिए वह इधर उधर देखने लगा कि कहीं से उसकी प्यास बुझ सके। थोड़ी ही देर के बाद उसे एक कुटिया दिखाई पड़ी। वह कुटिया एक किसान का था। और उसके अस पास की जमीन पर खेत की हुई थी, जहाँ बहुत ही सुन्दर भरपूर हरियाली वाले वृक्ष लगे हुए थे और उन पर बहुत ही सुन्दर रसीले पौष्टिक फल लगे थे, जिसे देखते ही खाने का मन हो आता था। मन्त्री जी अपनी प्यास बुझाने के लिए उस कुटिया के दरवाजे पर दस्तक दी , जिसे सुनकर उस कुटिया का मालिक किसान बाहर आया और आगन्तुक की तरफ देखते हुए बोला कहो महाराज, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ? मन्त्री जी ने कहा अभी तो मुझे बहुत प्यास लगी है अगर आप जल पिला दे तो बड़ी राहत मिलेगी। वह किसान अपने बाग में गया और वहाँ से रस निकला कर बड़े ही आदर भाव से फलों का रस भेंट किया। मन्त्री बहुत ही प्रसन्न हुए क्यों की एक तरफ तो उनकी प्यास बुझी दूसरी तरफ, रसीले तथा पौष्टिक पदार्थ भी खाने को मिले।

         परन्तु , मन्त्री थोड़ा लोभव्रति वाला व्यक्ति था इसलिए उसकी व्रति में उन फलों को देख लोभ भर गया। उसने किसान को धन्यवाद किया और वहाँ से चल पड़ा। मन्त्री का यह स्वभाव था कि वह सदा पैसा इकट्टा करने की उधेड़बुन में लगा रहता था। ताकि राजा का खजाना भरपूर हो तो राजा मन्त्री की वाह वाह करे और यही मन्त्री करता रहता था। कोई न कोई बहाना ढूंढ़कर 'कर' लगान और राजा का खजाना बढ़ाना। जब मन्त्री महल में पहुंचा और राजा की कुशलपूर्वक पहुँचने के बारे में समाचार लेने के लिए उनसे मिला तो उसने किसान और खेत का कहानी राजा को सुना दी। महाराज इस धरती पर इतने पौष्टिक और स्वादिष्ट फल निकलते है तो किसान को अच्छा आमदनी भी होती होगी। तो इस विषय में मेरे एक सुझाव है,, अगर हुज़ूर उसे पसंद करें तो हुकुमनामा जारी कर दे। राजा बोला ! मन्त्री जी आपकी राय, सलाह और सुझाव सदा ही अच्छे होते है उनसे सरकार को सदा फायदा ही होता है। अवश्य ही अब भी कोई लाभकारी राय ही होगी। कहिये ! क्या कहना चाहते है ? मन्त्री बोला - महाराज मेरा ऐसा विचार है कि जिस धरती  इतना स्वादिष्ट, रसीले, पौष्टिक, लुभावने फल उगते है तो जरूर किसान उनकी बिक्री से अच्छा आर्थिक लाभ लेता होगा। अंतः में ऐसा समझता हूँ कि यहाँ की धरती पर 'कर' अथवा लगान की रकम बढ़ा देनी चाहिए।
     
        राजा बोला, मन्त्री जी, आपने जो बात कहीं है वो मुझे भी उचित लगती है और हमें पसन्द है, इसलिए दरबार का हुक्म है कि ऐसा ही किया जाये। राजा की स्वीकृति प्राप्त होते ही मन्त्री ने हुक्मनामा जारी कर दिया।

        इस तरह से समय बीतता जा रहा था। कुछ वर्ष पश्चात मन्त्री जी राजा के साथ फिर से उसी कुटिया के सामने आ रुके अपनी प्यास बुझाने के लिये। किसान ने आगन्तुकों को आते देख अपने स्वभाव के अनुसार उन दोनों का आतित्थय किया। वह बाग में गया और एक छोटी-सी टोकरी में फल भर कर ले आया और उन फलों से रस निकालने लगा। परन्तु इस बार इतने सारे फलों से थोड़ा ही रस निकला। वह रस भी न तो पीने में स्वादिष्ट था और न ही पौष्टिक। मन्त्री जी को फलों के रस से इस बार आनन्द नहीं आया। मन्त्री जी देख रहे थे कि फल सूखे-सूखे से है, और न ही स्वादिष्ट थे। आखिर मन्त्री जी से न रहा गया। उन्होंने उस किसान से पूछ ही लिया। मन्त्री जी ने कहा - जमीदार जी शयद आपको याद नहीं, पिछली बार जब मैं आया था तब भी आपने मुझे रस पिलाया था परन्तु उन फलों के रस में और इन फलों के रस म में रात और दिन का अन्तर है। समझ में नहीं आया वहीं खेत, वही बीज है, उनका संरक्षण करने वाले भी वही है, फिर इनमे इतना अन्तर क्यों पड़ गया ?

       किसान ने दोनों की तरफ देखा और कहा, महाराज, मुझे आपका परिचय नहीं है कि वास्तव में आप कौन है ? इसलिये सच्ची बात बताने में मुझे कुछ संकोच हो रहा है। मन्त्री बोला, जमीदार जी, इस में संकोच करने की बात नहीं है। आप नि ; संकोच बताइये कि क्या बातहै ? किसान ने कहा सच बतलाऊं महाराज, हमारे राजा की नीयत बदल गयी है जिसके कारण ही यह सब हुआ। अच्छी फसल, अच्छी पैदावार देख राजा ने जमीन का लगान बढ़ा दिया। उसकी इस लोभवृत्ति के परिणाम स्वरूप यह सब हुआ। राजा ने जब यह सुना तो उसके पैरो तले से जमीन निकल गयी।  मन्त्री जी भी खिसियाई नज़रों से राजा की तरफ देख रहे थे। दोनों की बुद्धि में वास्तविकता समझ में आ गयी थी।

सीख - आदमी की नीयत जब बदल जाती है लोभ वृत्ति बढ़ जाती है तो ऐसा ही होता है। कुदरत की देन में अन्तर हो जाता है। इस लिये कहा जाता है।  'नीयत साफ तो मुराद हासिल '

Thursday, May 1, 2014

Hindi Motivational Stories - ' न रहेगा बॉस न बजेगी बाँसुरी '

न रहेगा बॉस न बजेगी बाँसुरी '


       शंकर और पार्वती साधु का वेश धारण कर एक लोटा दूध माँगने निकले। एक बहुत बड़े डेरी वाले के पास गए जिसकी सैकड़ो की तादाद में भैंसे थी। उसने दूध माँगने पर टका-सा जवाब दिया -अरे मोट्टे , जा तेरे जैसे निठल्ले को एक लोटा दूध देने लगा तो मेरी डेरी तो गई पानी में !

             साधु ने आशीर्वाद दिया कि बाबा तुझे और ज्यादा भैंसे का मालिक बनाए। इसके बाद शंकर और पार्वती एक साधु की कुटिया में गए और कहा - साधु महाराज एक लोटा दूध का सवाल है। भगवन की याद में तल्लीन साधु उठा और ताजा दूध निकाल कर प्रेमपूर्वक सारा दूध साधु को दे दिया। शंकर भोले ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा - बाबा करे तेरी एक गाय मर जाय। 

              पार्वती को बड़ा आश्चर्य हुए उसने झट पूछा - महाराज आप का यह कैसा वरदान और अभिशाप है। इस पर शंकर ने कहा, ' हे पार्वती, उस डेरी वाले को तो बाबा की याद आती ही नहीं और कभी-कभी कुछ क्षण मिलते भी होंगे तो अब उसे बाबा का नाम लेने का अवसर ही नहीं मिलेगा। क्यों की कुछ भैंसे बड़ा दिया है। और उसका पाप का घड़ा जल्दी भर जायेगा और वहाँ दण्ड का भागी बन जायेगा। और साधु जब बाबा की याद में बैठता है तो उसे बीच बीच में गाय के दूध, चारे या गाय के बच्चे की याद आती है। इसलिए जब गाय नहीं रहेगी तो वह निरंतर याद में मस्त रहेगा। और उसे उसका पुण्य का फ़ल मिलेगा। -  इसे कहते है - न रहेगा बॉस न बजेगी बाँसुरी। 

सीख - कभी कभी किसी मोड़ पर हम ये सोचते है की मैं तो अच्छा करता हूँ पर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है। तब कही न कही हम अगर इस कहानी को याद करे तो जवाब मिल जायेगा। 

Hindi Motivational Stories - 'अहंकार रहित व्यक्ति ही महान होता है'

       अहंकार रहित व्यक्ति ही महान होता है  


                      महाभारत का एक अनूठा प्रसंग है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा भगवान् मैं ही आपका सब से बड़ा सेवक, भक्त और दानी हूँ। श्रीकृष्ण को आभास हो गया कि अर्जुन को इन गुणों का अहंकार हो गया। यह प्रसंग उस समय का है जब महाभारत का अंतिम दौर था। कौरव सेना धराशायी हो गई थी। युद्ध भूमि में कुछ योद्धा अन्तिम सांस लेने के लिए छटपटा रहे थे। श्रीकृष्ण और अर्जुन ने साधु का वेश बनाया। और घायल अवस्था में पड़े कर्ण के पास गए और उससे कहा - हे कर्ण ! हम तुम्हारे पास कुछ दान लेने के लिए आये है। कर्ण ने कहा - महराज, मैं तो इस समय आपको कुछ नहीं दे सकता।  मैं तो यहाँ युद्ध भूमि में अन्तिम सांस ले रहा हूँ। साधु ने कहा  - अच्छा बच्चा, क्या साधु तुम्हारे द्धार से खाली जाएगा।

                       कर्ण ने कुछ विचार कर कहा - महाराज मेरे पास एक सोने का दाँत है, मैं उसे तोड़ कर आपको समर्पित करता हूँ। जब दाँत तोड़ कर साधु की तरफ बढ़ाया तो वह रक्त-रंजित था जिसे देखकर साधु ने कहा - छी-छी ; हम ऐसा दान नहीं लेते। साधु किसी का खून नहीं करता। तब दानवीर कर्ण ने अपना आखरी तीर छोड़ा और वह बाण दनदनाता हुआ मेघाच्छदित आसमान को चीरता चला गया। और पानी की धरा बह निकली। और दाँत को धो दिया और साधु ने उसे स्वीकार कर लिया। और ये देख कर अर्जुन का अहंकार चूर चूर हो गया और अर्जुन ने श्री कृष्ण से क्षमा माँगी।

सीख - इस प्रसंग से हमे अपने कई गुणों की कमी और अहंकार से दूर रहने की प्रेरणा मिलती है।


Wednesday, April 30, 2014

Hindi Motivational Stories - " सत्यता की जीत "

सत्यता की जीत 

         एक बार एक काफिला कहीं जा रहा था। उस काफिले में एक बालक था जिसका नाम था - विवेक। चलते चलते रस्ते में उस काफिले को लुटेरों ने घेर लिया। लुटेरे सब की तलाशी ले रहे थे ,छीन रहे थे ,लूट रहे थे। एक डाकू ने विवेक से पूछा - 'तेरे पास तो कुछ नहीं है रे.… ? क्यों नहीं है ?मेरे पास चालिस मुहरें है। विवेक ने कहा। कहाँ है ? मेरी सदरी में - सदरी में किधर ? अन्दर सिल राखी है मेरी माँ ने। और उसके बाद दूसरा डाकू पास आ गया। उसने भी वाही सवाल किया दोनों को उसने यही बात, इसी प्रकार बतायी। डाकुओ का सरदार भी उनके पास आ गया। लड़के ने तब भी यही कहा। सरदार ने अपने साथियों को आदेश दिया कि बालक की सदरी फाड़कर मुहरें निकाल कर देखों यह सच बोलता है या झूठ।

         सदरी फाड़ दी गई। चालिस मुहरें निकली। डाकू सरदार आश्चर्य से बालक का मुँह देखने लगा। उसने बालक से पूछा - तुमने हमें क्यों बताया था कि तुम्हारे पास चालिस मुहरे है! झूठ बोलकर बचा भी सकते थे। जी नहीं, बालक ने कहा - मेरी माँ ने चलते समय कहा था कि मैं किसी भी परिस्थिति में झूठ नहीं बोलूँ। मैं अपनी माँ की आज्ञा को नहीं टाल सकता। डाकू सरदार बालक का मुख देखता रहा गया। वह लज्जित  हो गया। उसने कहा - सच मुच तुम बड़े महान हो बालक ! अपनी माँ की आज्ञा का तुम्हें इतना ध्यान है जब की मैं तो खुदा के हुक्म को भी भुला बैठा हूँ, तुमने मेरी आंखें खोल दी है। और उस बालक ने उस डाकू की आँखों खोल दी उसी दिन से उसने डाके और लूट छोड़ दी और एक अच्छा आदमी बन गया। उसने बालक से ही प्रेरणा ग्रहण की। यह सत्य का प्रभाव था। सत्य की शक्ति थी। सत्य का तेज था।

सीख - इस तरह की कहानी अच्छी भी लगती है और सुनकर पढ़कर ख़ुशी होती है। तो क्यों न हम भी इस एक गुण सत्य को अपनाये और सत्य का तेज जीवन में अनुभव करे। अब इस झूठ की दुनिया में एक बार फिर सत्य का प्रकाश फैलाए।

Tuesday, April 29, 2014

Hindi Motivational Stories - " सेवा का फल - मेवा "

सेवा का फल - मेवा

            एक बार एक महात्मा जी निर्जन वन में भगवद्चिंतन के लिए जा रहे थे। तो उन्हें एक व्यक्ति ने रोक लिया। वह व्यक्ति अत्यंत गरीब था। बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाता था। उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा - महात्मा जी, आप परमात्मा को जानते है, उनसे बातें करते है। अब यदि परमात्मा से मिले तो उनसे कहियेगा कि मुझे सारी उम्र में जितनी दौलत मिलनी है , कृपया वह एक साथ ही मिल जाये ताकि कुछ दिन तो चैन से जी सकूँ। महात्मा ने उसे समझाया - मैं तुम्हारी दुःख भरी कहानी परमात्मा को सुनाऊंगा लेकिन तुम जरा खुद भी सोचो, यदि भाग्य की सारी दौलत एक साथ मिल जायेगी तो आगे की ज़िन्दगी कैसे गुजारोगे ? किन्तु वह व्यक्ति अपनी बात पर अडिग रहा। महात्मा उस व्यक्ति को आशा दिलाते हुए आगे बढ़ा।

     इन्हीं दिनों में उसे ईश्वरीय ज्ञान मिल चूका था। महात्मा जी ने उस व्यक्ति के लिए अर्जी डाली। परमात्मा की कृपा से कुछ दिनों बाद उस व्यक्ति को काफी धन - दौलत मिल गई। जब धन -दौलत मिल गई तो उसने सोचा - मैंने अब तक गरीबी के दिन काटे है, ईश्वरीय सेवा कुछ भी नहीं कर पाया।  अब मुझे भाग्य की सारी दौलत एक साथ मिली है। क्यों न इसे ईश्वरीय सेवा में लगाऊँ क्यों की इसके बाद मुझे दौलत मिलने वाली नहीं। ऐसा सोचकर उसने लग भग सारी दौलत ईश्वरीय सेवा में लगा दी।

     समय गुजरता गया। लगभग दो वर्ष पश्चात् महात्मा जी उधर से गुजरे तो उन्हें उस व्यक्ति की याद आयी। महात्मा जी सोचने लगे - वह व्यक्ति जरूर आर्थिक तंगी में होगा क्यों की उसने सारी दौलत एक साथ पायी थी। और कुछ भी उसे प्राप्त होगा नहीं।  यह सोचते -सोचते महात्मा जी उसके घर के सामने पहुँचे। लेकिन यह  क्या ! झोपड़ी की जगह महल खड़ा था ! जैसे ही उस व्यक्ति की नज़र महात्मा जी पर पड़ी, महात्मा जी उसका वैभव देखकर आश्चर्य चकित हो गए। भाग्य की सारी दौलत कैसे बढ़ गई ? वह व्यक्ति नम्रता से बोला, महात्माजी, मुझे जो दौलत मिली थी, वह मैंने चन्द दिनों में ही ईश्वरीय सेवा में लगा दी थी। उसके बाद दौलत कहाँ से आई - मैं नहीं जनता। इसका जवाब तो परमात्मा ही दे सकता है।

   महात्मा जी वहाँ से चले गये। और एक विशेष स्थान पर पहुँच कर ध्यान मग्न हुए। उन्होंने परमात्मा से पूछा - यह सब कैसे हुआ ? महात्मा जी को आवाज़ सुनाई दी।

किसी की चोर ले जाये , किसी की आग जलाये 
धन उसी का सफल हो जो ईश्वर अर्थ लगाये। 

सीख - जो व्यक्ति जितना कमाता है उस में का कुछ हिस्सा अगर ईश्वरीय सेवा  कार्य में लगता है तो उस का फल अवश्य मिलता है। इसलिए कहा गया है सेवा का फल तो मेवा है।