Monday, June 16, 2014

Hindi Motivational Stories................... कल्याणकारी संत

कल्याणकारी संत 


   एक नगर में एक जुलाहा रहता था। वह स्वाभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था। उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था। एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुँचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता ?   उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहाँ पहुँचकर वह बोला - यह साड़ी कितने की दोगे ? जुलाहे ने कहा - दस रुपये की।

     तब लडके ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिया और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला - मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे ? जुलाहे ने बड़ी शान्ति से कहा पाँच रुपये। लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग करते हुए पूछा इस का दाम ? जुलाहे अब भी शांत था। उसने बताया - ढाई रुपये। लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया। अंत में बोला - अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के ? जुलाहे ने शांत भाव से कहा - बेटे ! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे। अब लडके को शर्म आई और कहने लगा - मैंने आपका नुकसान किया है। अंतः मैं आपकी साड़ी के दाम दिये देता हूँ। पर संत जुलाहे ने कहा कि जब अपने साड़ी ली ही नहीं तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूँ ? लडके का धनभिमान जागा और वह कहने लगा कि मैं बहुत आमिर आदमी हूँ। तुम गरीब हो। मैं रुपये दे दूँगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे ? और नुकसान मैंने  किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।

    संत जुलाहे मुस्कुराते हुए कहने लगे - तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बीना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल हो जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता। पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपये से यह घाटा कैसे पूरा होगा ? जुलाहे की आवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी। लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया। उसकी आँखे भर आई और वह संत के पैरो में गिर गया।

    जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा - बीटा, यदि मैं तुम्हारे रुपये ले लेता तो  है उस में मेरा काम चल जाता। पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ। कोई भी उससे लाभ नहीं होता। साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूँगा। पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहाँ से लाओगे तुम ? तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है।

 सीख - यह पर संत की उँची सोच और परक शक्ति ने लडके का जीवन बदल दिया। ये वही जुलाहा था जो दक्षिण भारत का महान संत तिरूवलुवर।

Sunday, June 15, 2014

Hindi Motivational stories......निश्चय बुद्धि

निश्चय बुद्धि

   अंगद जब रावण के दरबार से वापस लौटा तो अंगद के जो साथी थे वह उसे कहने लगे कि तेरे में इतनी शक्ति कैसे आ गई कि रावण की सेना का कोई भी योद्धा तुम्हारा पैर नहीं हिला पाया। यदि तुम्हारा पैर हिल जाता तो ? अंगद ने कहा नहीं हिलता। उसके साथी ने कहा फिर भी हिल जाता तो अंगद निश्चय से बोला नहीं हिलता। उसके साथ बार बार यही प्रश्न पूछते रहे यदि हिल जाता तो ? आखिर अंगद ने उत्तर दिया कि रावण की सभा में जब मैंने पैर रखा तो अपनी शक्ति के आधार पर नहीं रखा था। मैंने रावण की सभा में बोला की यदि यह पैर हिल गया तो सीता मैया को यही छोड़ जाऊँगा। अगर मेरा पैर हिल जाता तो मेरा क्या जाता, राम जी की सीता जी जाती और मुझे पूरा निश्चय था, राम भगवान कभी ऐसा नहीं होने देते। जिस कारण रावण की सभा के बड़े सुरमा भी मेरा पैर नहीं हिला पाये।

सीख - कहते है निश्चय में विजय है इस लिए अपने जीवन में भी निश्चय बुद्धि बनो ऐसे जैसे अंगद सामान।

Hindi Motivational Stories....... .....धरनी का प्रभाव

धरनी का प्रभाव 

     श्रवण कुमार अपने अंधे मात-पिता को चारों धाम की यात्रा कराने निकल पड़ा। दोनों को कावड़ में बिठा कर हर तीर्थ स्थान की यात्रा करा रहा था। अब वह हरिद्धार के तरफ प्रस्थान कर रहा था कि बीच रास्ते में उसे संकल्प आया कि मेरे माता-पिता अंधे है। मैं अपने जीवन का मूल्यवान समय फालतू में गँवा रहा हूँ। मुझे अपने अन्धे माँ बाप से कुछ मिलता तो है नहीं मैं क्यों इन्हें उठाकर घूम रहा हूँ। और अचानक ही उसने अपने माता - पिता से कहा आप मुझे क्या देंगे ? मैं आपको यात्रा करा रहा हूँ, मुझे क्या मिलेगा ? अंधे मात-पिता प्रश्न सुनकर चौक गये, लेकिन उसके पिता ने श्रवण से पूछा, बेटे अभी हम कौन से स्थान पर है ? उसने कहा दिल्ली। उसके पिता ने कहा बेटे, हम को थोड़ी दूर हरिद्धार ले चलो, फिर तुम्हें जो चाहिए हम देंगे।

              श्रवण कुमार अपने मात-पिता को हरिद्धार ले आया। जब वह हरिद्धार पहुँचा तो अपने मात-पिता से कुछ माँगने पर उसे बहुत पश्चात हुआ और रोने लगा और कहा आपसे कुछ माँगकर मैंने बहुत बड़ा अपराध किया। अब मेरा जीवन में रहना उचित नहीं है। तब उसके अंधे पिता ने कहा बेटा, इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं है। दिल्ली की धरनी पर सब लोग लेने वाले है, कोई सेवा करने वाला नहीं। इसलिए उस धरनी के प्रभाव के कारण तुमने हम से कुछ माँगा। अब हम भगवान की धरनी पर है जो हरी सबको देता है जिस कारण तुम्हे पश्चाताप हुआ। इसलिए बेटे तुम बहुत श्रेष्ट हो, सिर्फ धरनी का प्रभाव तेरे पर पड़ा था, वह अब नष्ट हो गया है।

 सीख - हर चीज वस्तु का निरंतर हम पर प्रभाव पड़ता है। इस लिए दूसरे का प्रभाव हम पर न पड़े इस के लिए स्वयं को शक्तिशाली बनाव। इस लिए राजयोग या मैडिटेशन या ध्यान का नियमित अभ्यास करते रहो। 

Hindi Motivational Stories......... ........सब से श्रेष्ठ धन, संतोष धन

सब से श्रेष्ठ धन, संतोष धन

      एक बार किसी नगर में अकाल पड़ गया। लोग भूखों मरने लगे। उस नगर के जमींदार ने नगर में यह कहलवा दिया कि मैं प्रतिदिन बच्चों को खाने के लिए रोटी बाटुँगा। हमारे यहाँ सभी बच्चे समय पर इकट्ठे हो जाये। सभी बच्चों के आने पर वह जमींदार अपने हाथों से दो-दो रोटी प्रत्येक बच्चे को देता था। किन्तु एक दस वर्ष की लड़की जो बड़ी ही भोली-भाली थी। एकान्त में खड़ी रहती, जब उसकी बारी आती तो अन्त में सब से छोटी रोटी ले लेती थी। अन्य सभी बच्चे उसे धक्का देकर बड़ी-बड़ी रोटियाँ ले लेते थे। प्रतिदिन इसी तरह से शान्त होकर सब से बाद में वह लड़की छोटी रोटी ख़ुशी-ख़ुशी लेकर घर पर अपनी माँ को देती थी। उधर माँ और बेटी के सिवाय और कोई भी नहीं था। दोनों रोटी खाकर भगवान का गुणगान करते हुए सुख, शान्ति से सो जाते थे। इसी प्रकार एक दिन वह लड़की रोटी लेकर घर आयी। माँ ने जब रोटी तोड़ी तो उसमें से सोने के तीन छोटे-छोटे दाने मिले। माँ ने कहा -बेटी इस रोटी में सोने के तीन छोटे-छोटे दाने है, ले जाकर जमींदार को दे आवो।

         लड़की ने कहा - अच्छा माँ, मैं अभी लेकर जाती हूँ। वह लड़की टूटे हुए रोटी में सोने के दाने रखकर जमींदार के पास पहुँची और कहने लगी - बाबू जी, यह लो अपने सोने के दाने। जमींदार के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि यह लड़की कैसे सोने के दाने देने के लिए आयी है ! जमींदार के पूछने पर उस लड़की ने सारा किस्सा कह सुनाया। जमींदार सब कुछ सुनने के बाद उस लड़की को अपलक नज़रों से देख रहा था। क्यों कि जमींदार जानता था, कि यह लड़की शान्त खड़ी होकर सब से अन्त में छोटी रोटी लेकर चली जाती थी।

    जमींदार ने कहा - बेटी, तुम इसे ले जावों। यह तुम्हारे सन्तोष का फल है। लड़की ने उत्तर दिया - बाबू जी, सन्तोष का फल तो मुझे पहले ही प्राप्त हो गया कि भीड़ में धक्के नहीं खाने पड़े। जमींदार यही सोचता था, कि बच्ची तो छोटी है, परन्तु बात बड़ी ही ऊँची और सयानी करती है। जमींदार के बहुत कहने-सुनने पर लड़की सोने के दाने को लेकर घर चली गयी। बाद में जमींदार ने खूब सोच समझकर उस लड़की एवं उसके माता को अपने घर बुलावा लिया। और उसे धर्म-पुत्री बनाकर समूचे सम्पतिका उत्तराधिकार सौंप दिया। क्यों कि सन्तान हीन होने के कारण जमींदार को वैसे भी सन्तान की आवशकता थी। कहने का भाव यह है कि स्थूल धन से श्रेष्ठ सन्तोष धन होता है। क्यों कि उस बच्ची को सन्तोष का फल कितना मीठा प्राप्त हुआ।

 सीख - एक कहावत है , "जब आवे सन्तोष धन सब धूरि सामान" कहने का भाव ये है की अगर हमारे जीवन में सन्तोष है तो सन्तोष सब से बड़ा धन है इस के आगे बाकी सब धन धूल के सामान है। इस लिए जो कुछ आपके पास है उस में सन्तोष अनुभव करे।  

Saturday, June 14, 2014

Hindi Motivational Stories......... स्वच्छा बुद्धि में ही स्वच्छा ज्ञान रहता है

स्वच्छा बुद्धि में ही स्वच्छा ज्ञान रहता है 

  एक व्यक्ति को एक महात्मा जी के पास ज्ञान-चर्चा के लिए जाना था। महात्मा जी का आश्रम ऊँची पहाड़ी पर स्तिथ था जहॉ पहुँचाने के लिए टेढ़े मेढे, पथरीले रास्तों से गुजरना पड़ता था। वह व्यक्ति चलते-चलते तन और मन दोनों से थक गया। उसके अन्दर ढेर सारे प्रश्नों एवं उल्टे-सुल्टी बातों की झड़ी लग गयी। वह सोचने लगा कि इस महात्मा जी को ऐसे निर्जन एवं उतार - चढ़ाव वाले रस्ते में ही आश्रम बनाना था, कोई और जगह नहीं मिली ?

             जैसे-तैसे करके वह महात्मा जी के पास पहुँचा और अपने आने का उद्देश्य बताकर रस्ते भर सोचे गए सारे प्रश्नों की बौछार महात्मा जी पर कर दी। महात्मा जी मुस्कराने लगे एवं अन्दर जाकर एक गिलास एवं जग भर पानी ले आये। खाली गिलास को भरने लगे। पूरा भरने लगे। पूरा भरने के बाद भी भरते ही रहे। वह व्यक्ति आश्चर्यचकित हो महात्मा जी को देखने लगा और बोला - महाराज, यह गिलास तो भर चूका है, फिर भी आप इसे भरते ही जा रहे ही। महत्मा जी ने कहा - जिस प्रकार भरे हुए गिलास में और पानी नहीं भरा जा सकता है, ठीक उसी प्रकार पहले से ही व्यर्थ बातों से भरें मन में ज्ञान की बाते कैसे भर सकती है ? ज्ञान समझने के लिए बुद्धि रूपी पात्र हमेशा खाली, शान्त एवं निर्जन होना चाहिए। वह व्यक्ति महात्मा जी का ईशारा समझ गया और उसने अपने दृष्टिकोण और आदत को बदलने का ढूढ़ निश्चय कर लिया। उसके  मन में महात्मा जी के प्रति सम्मान का भाव जग गया।

 सीख - बहुत बार हम जिस उपदेश को लेकर जाते है उसे भूलकर दूसरी बातों की चर्चा में चले जाते है, जिस से समय और व्यक्ति का मन ख़राब हो जाता है। इस लिए अपने लक्ष को हमेश साथ रखो और उसकी ही बातें करो तो सफल हो जाएंगे। और समय भी कम लगेगा। 

Hindi Motivational stories.... गलत प्रयोग से दुःख

गलत प्रयोग से दुःख 

   दोस्तों हम सभी जानते है की किसी भी चीज का प्रयोग गलत तरीके से करेंगे या विधि पूर्वक नहीं करेंगे तो दुःख ही होगा। इस पर बहुत उदहारण दिये जा सकते है। लेकिन मैं आपको सिर्फ एक घटना सुनना चाहूँगा  जिस से हम को समझ मिलेगा।

   एक गाँव में पानी की कमी रहती थी। एक परोपकारी सेठ ने पर्याप्त धन खर्च करके कुआँ बनवा दिया। लोगों का कष्ट दूर हो गया। गाँव में हँसी-ख़ुशी छा गई। एक दिन एक शरारती लड़का कुँए की दीवार पर चढ़ कर शरारते करने लगा और ऐसा करते करते वह उस में गिर कर मर गया। और लडके का पिता इस दुःख में अपना विवेक खो बैठा और सेठ को गाली देने लगा कि तूने कुआँ बनवाया, इसलिए ही मेरा लड़का अकाल-मृत्यु को प्राप्त हुआ। अब देखिये सेठ ने तो लोगो के सुख के लिए कुआँ बनवाया था। लेकिन बच्चे ने कुँए की दीवार को ही खेल का मैदान समझ लिया। अच्छी चीज का भी गलत प्रयोग करेंगे तो दुःख तो मिलेंगा ही।

सीख - हर बात की समझ हो और परिवार के लोग भी इस की जागरूकता रखे कही हम या हमारे बच्चे जाने अनजाने में कोई चीज का गलत तो प्रयोग नहीं कर है। हर चीज सही प्रयोग करे और सुखी रहे। 

Hindi Motivational Stories..... डर और दुविधा

डर और दुविधा


        एक सन्त सम्राट का अतिथि बना, और जहाँ सन्त बैठा था, उसके कुछ दुरी पर लेकिन टिक सामने तीन पिंजरे रखे थे। जिस में एक पिंजरे में एक चूहा था, उसके सामने सुखा मेवा पड़ा था। दूसरे में बिल्ली थी, उसके सामने मलाई भरा कटोरा था। तीसरे में बाज पक्षी था, उसके सामने ताजा मांस था।

   अब हुआ ऐसा कि तीनों भूखे थे पर सामने रखे पदार्थों को खा नहीं रहे थे। सम्राट को ये बात का पता लगा तो वे कारण जानना चाहा। सम्राट ने सन्त से पूछा आखिर ये तीनो खाना क्यों नहीं खा रहे है महाराज ? तब संत ने कहा - राजन् ! चूहा, बिल्ली से भयभीत है, बिल्ली, बाज पक्षी से भयभीत है। बाज पक्षी को किसी का भय नहीं पर उसे प्रलोभन है कि पहले बिल्ली को खाऊँ या चूहे को। इस दुविधा में उसे अपने पिंजरे में रखा मांस दिखाई नहीं दे रहा है। यदि लम्बे समय तक इनकी यही स्थिति रही तो अन्तत: ये तीनो प्राणी तड़प-तड़प कर मर जायेंगे।


सीख - ये कहानी आज की मनुष्य की दशा और मानसिकता बता रहा है। आज की मनुष्य की स्थिति ऐसी ही हो गयी है। डर और दुविधा ही दुःख का कारण है। इस लिए डारो नहीं आपके पास जो कुछ है उसको उपयोग करे और सुखी रहो।