Saturday, September 6, 2014

Hindi Motivational Stories.............. ...........वहम

वहम 

            मुकुन्दस नाम का  एक व्यक्ति एक अच्छे सन्त के शिष्य थे। और सन्त जब भी मुकुन्दस को अपने पास आने के लिए कहते, वह यही कहता कि मेरे बिना मेरे स्त्री-पुत्र रह नहीं सकेंगे। वे सब मेरे ही सहारे बैठे हुए है। मेरे बिना उनका निर्वाह कैसे होगा ? सन्त कहते कि भाई ! यह तुम्हारा वहम है, ऐसी बात है नहीं। एक दिन सन्त ने मुकुन्दस से कहा तुम परीक्षा करके देख लो। मुकुन्दस परीक्षा के लिए मान गया। सन्त ने उसको प्राणायम के कुछ श्वास रोकने वाले विधि बताये और उन्हें सिखा भी दिया।

       एक दिन मुकुन्दस अपने परिवार के साथ नदी में नहाने के लिए गया। नहाते समय उसने डुबकी लगाकर अपना श्वास रोक लिया और नदी के भीतर-ही भीतर दूर जंगल में चला गया और बाहर निकलकर सन्त के पास पहुँच गया। और सन्त ने ये बात किसी को नहीं बतायी। परीक्षा चल रही थी। इधर परिवार वालों ने नदी के भीतर उसकी बड़ी खोज की। वह नहीं मिला तो उनको विश्वास हो गया कि वह तो नदी में बह गया। सब जगह बड़ा हल्ला हुआ कि अमुक व्यक्ति डूबकर मर गया ! और गाँव के कुछ लोग और सत्संगियों ने आपस में विचार किया कि मुकुन्दस तो बेचारा मर गया, अब हमें ही उनके स्त्री और पुत्र का निर्वाह का प्रबन्ध करना चाहिये। सब ने अपनी-अपनी तरफ से सहायता देने की बात कही। किसी ने आटे का प्रबन्ध अपने जिम्मे लिया, तो किसी ने चावल का.……आदि -आदि। और धर्मशाला में रहने के लिए एक कमरा देकर उनकी हर जरुरत की वस्तु समय से पहले उन्हें मिलने लगा। इस प्रकार सन्त से पूछे बिना उनके सत्संगियों ने सब प्रबन्ध कर दिया।

            थोड़े दिनों के बाद मुकुन्दस की स्त्री सन्त के पास गयी। सन्त ने घर का समाचार पूछा कि कोई तकलीफ तो नहीं है ? स्त्री बोली कि जो व्यक्ति चला गया, उसकी पूर्ति तो हो नहीं सकती, पर हमारा जीवन-निर्वाह पहले से भी अच्छा हो रहा है। सन्त ने पूछा ,-पहले से भी अच्छा कैसे ? स्त्री ने कहा ,' आपकी कृपा से सत्संगियों ने सब आवश्यक सामान रखवा दिया है। जब किसी वस्तु की जरुरत पड़ती है , मिल जाती है। ' मुकुन्दस छिपकर उनकी बातें सुन रहा था।

       कुछ समय बीत गया तो सन्त ने मुकुन्दस से कहा कि तू अब घर जाकर देख। वह रात के समय अपने घर गया और बाहर से किवाड़ खटखटाया। स्त्री ने पूछा -' कौन है ?' मुकुन्दस ने कहा -'मैं हूँ, किवाड़ खोल। ' आवाज़ सुनकर स्त्री डर गयी कि वे तो मर गये, उनका भुत आ गया होगा ! स्त्री बोली - ' मैं किवाड़ नहीं खोलती ' मुकुन्दस बोला - ' अरे, मैं मरा नहीं हूँ ;किवाड़ खोल। ' स्त्री बोली - ; बच्चा देख लेगा तो डर के मारे उसका प्राण निकल जायेगा, आप चले जाओ। ' मुकुन्दस जी बोला - ' अरे, मेरे बिना तुम्हारा काम कैसे चलेगा ?' स्त्री बोली - ' सन्तों की कृपा से पहले से भी बढ़िया काम चल रहा है, आप चिन्ता मत करो। आप कृपा करके यहाँ से चले जाओ। ' मुकुन्दस बोला - ' तुम्हारे को कोई दुःख तो नहीं है ?' स्त्री बोली - 'दुःख यही है कि आप आ गये ! आप न आये तो कोई दुःख नहीं होगा ! आप आओ मत - यही कृपा करो !'

सीख -  इस सृस्टि के रचयता परमात्मा है वही पालनहार है। इस लिए उस पर भरोसा कर साक्षी हो इस संसार में रहना है। काम करड़े दिल यार डे। होकर रहना है। किसी के रहने या नहीं रहने से कोई काम कभी रुकता नहीं है।  ये ड्रामा है जो चलता ही रहता है। 

Wednesday, September 3, 2014

Hindi Motivational Stories.................ससुराल की रीत

ससुराल की रीत 

   एक गाँव में एक लड़की विवाह करके ससुराल में आयी। घर में एक उनका पति , एक सास और एक दादी सास थी। कुछ ही दिन हुवे उसे आये लेकिन घर के अन्दर क्या चल रहा है, ये उसे पता चला। उसने देखा सास अपनी दादी सास के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती है। दादी सास वृद्ध होने के कारन किसी को कुछ नहीं कहती जो मिलता खा लेती जहा बिठा दिया वहाँ बैठ जाती थी। सास उन्हें खाना भी बचा हुवा देती थी। और कभी कभी तो सास दादी सास पर बिना कारण भरस पड़ती , और तो और कभी मार भी देती थी।

              लड़की को बड़ा बुरा लगा ये सब देखकर और दया भी आयी, उसने सोचा एक दिन अगर वह सास को कुछ बोले तो सास कहेंगी कल की छोकरी मुझे उपदेश देती है। इस लिए लड़की ने युक्ति से काम लिया और लड़की सब काम काज करके दादी सास के पास बैठ जाती। दो दिनों के बाद सास ने देखा रोज ये लड़की दादी सास के पास क्यों बैठती है ? सास ने आवाज़ दिया, ' बहु वहाँ क्यों जाकर बैठती है ' लड़की ने कहा ,' काम बतावो ' सास ने कहा काम क्या बताना मैं पूछ रही हूँ वहाँ क्यों बैठती है घर में और भी जगह है। तो लड़की बोली ,'मेरे पिताजी ने कहा है जवान लड़की को घर में बड़े बूढो के पास बैठना है जवान लड़कों या लड़कियों के साथ कभी नहीं ' बड़े बूढो के साथ बैठने से रीति रिवाज़ का पता पड़ेगा।  हर गॉव की रीति रिवाज़ अलग होते है। तुम्हे वहाँ के रीति रिवाज़ के अनुसार चलना होगा। मैं यहाँ का रीति रिवाज सीखने के लिए दादी के पास बैठी हूँ। सास ने कहा क्या सीखा , लड़की ने कहा - मैंने जब दादी से पूछा आपकी बहु आपकी कैसी सेवा करती है ? दादी ने कहा - कि यह मेरे को ठोकर नहीं मारे, गाली नहीं दे तो मैं सेवा ही मानु।' ये बात सुनकर सास कहा ,'क्या तू भी ऐसा ही करेंगी ?' लड़की ने कहा ,' मैं ऐसा नहीं कहती हूँ ,मेरे पिताजी ने कहा है कि बड़ो से ससुराल की रीति सीखना । '

     सास डरने लगी और सोच चला ,'कि मैं अपनी सास के साथ जो बर्ताव करती हूँ। कहीं ये लड़की आगे मेरे साथ तो नहीं करेंगी ?… और उसी सास की नज़र कोने में रखे ठीकरी ( पत्तों से बनाया हुआ प्लेट ) पर पड़ी ! तब सास ने पूछा ये ठीकरीया यहाँ क्यों रखी है ? लड़की ने कहा आप दादी को ठीकरी में खाना देते हो इसलिए मैंने उन्हें पहले से जमा कर रख दिया है।

सास - तो मुझे ठीकरी में भोजन करायेगी क्या ?
लड़की - पिताजी ने कहा है तेरे वहाँ के रीति रिवाज के अनुसार चलना।
सास - यह रीति थोड़े ही है। (नाराज होकर बोली )
लड़की - तो फिर आप दादी को ठीकरी में भोजन क्यों देती हो ?
सास - थाली कौन माँजे ?
लड़की - थाली तो मैं माँज दूँगी !
सास - तो तू थाली में दिया कर, अब ये ठीकरी उठाकर बाहर फ़ेंक।
     
      इस तरह बूढ़ी दादी को ताजा खाना थाली में मिलने लगा। रसोई बनते ही वह लड़की दादी माँ को दे देती।  दादी दिनभर एक खटिया में पड़ी रहती। एक दिन लड़की उस खटिया को देखने लगी। सास ने पूछा ,- 'क्या देख रही हो ?' लड़की ने कहा ,'देख रही हूँ बड़ो को कैसी खटिया देनी चाहिये ' सास ने कहा ,' वो खटिया तो टूटा हुआ है ' लड़की बोली, ' तो दूसरी खटिया क्यों नहीं देते। ' सास ने कहा ,' तू लगा दे दूसरी खटिया ' लड़की ने कहा आप आज्ञा दे तो मैं दूसरी खाट बिछा दूँ।

   इस तरह दादी की सारी चीजें बदल गयी। खाना, कपड़ा, चादर, बिछोना आदि। .... दादी लड़की को मन ही मन आशिर्वाद देने लगी। लड़की की चतुराई से बूढी माँ जी का जीवन सुधर गया !

सीख - लड़की अगर सास को कोरा उपदेश देती तो क्या वह उसकी बात मान लेती ? बातों का असर नहीं पड़ता, आचरण का असर पड़ता है। इस लिए लड़कियों को चाहिये कि ऐसी बुद्धिमनी से सेवा करें और सब को राजी रखें। 

Monday, September 1, 2014

Hindi Motivational Stories...................जब साधु राजा बना

जब साधु राजा बना


                 एक साधु गॉव से निकल कर शहर की तरफ जा रहा था चलते-चलते उसे बहुत देर हो गया शहर के पास पहुँचा तो शहर का दरवाजा बन्द हो गया था। रात ज्यादा हो गया था। साधु शहर के दरवाजे के बाहर  ही सो गया। और दैवयोग ऐसा था की उसी दिन उस राज्य का राजा का देह शान्त हो गया था उसे कोई संतान नहीं था। और राज्य के लोभ में परिवार और रिश्तेदार लड़ते रहे कोई कहता ये मेरे हक्क का है कोई कहता मेरा भी हक्का है।  अंत में एक निर्णय लिया गया की कल सुबह जो भी व्यक्ति पहले इस शहर में प्रवेश करेगा उसे ही इस राज्य का राजा बना दिया जायेगा। इस निर्णय से विवाद मिट गया।

         दूसरे दिन शहर का दरवाजा खुलते ही साधु अन्दर प्रवेश किया। बस फिर क्या था एक हाथी वह आया और साधु की गले में फूल माला डाल दिया। ये देखकर साधु आश्चर्य चकित हो गया वो समझ नहीं पा रहा था क्या हो रहा है। और तब कुछ सज्जन आये और साधु को सारी बात बता दी और फिर साधु को हाथी पर बिठाकर पुरे शहर में परिक्रमा करा दिया गया। और फिर उन्हें राज्य का राजा घोषित किया गया। साधु ने कहा ठीक है। लेकिन मुझे एक सन्दुक चाहिए। आज्ञा के अनुसार सन्दुक लाया गया। साधु ने अपने पोशाक, कमण्डल  सब उस सन्दुक में रख दिया और राजा का पोशाक पहनकर उस राज्य का राजा बन गया। और साधु भगवान का कार्य समझ राज्य का कार्य करने लगे।

       साधु को कोई लोभ नहीं था इस लिए राज्य का जो भी पैसा था उसे राज्य के विकास के लिए उपयोग किया और राज्य में काफ़ी सुधार होने लगा पहले से ज्यादा बढ़िया रीति से राज्य चलने लगा। फलस्वरूप राज्य की बहुत उन्नति हो गयी। आमदनी बहुत ज्यादा हो गयी। राज्य का खजाना भर गया। प्रजा सुखी हो गयी। राज्य की समृद्धि को देखकर पड़ोस के एक राजा ने विचार किया कि साधु राज्य तो करना जानते है, पर लड़ाई करना नहीं जानते ! इस लिए  उसने चढाई कर दी।

         राज्य के सैनिकों ने साधु को समाचार दिया की अमुक राजा ने चढाई कर दी है। साधु ने कहा करने दो हमें लड़ाई नहीं करनी है। थोड़ी देर में समाचार आया कि शत्रु की सेना नजदीक आ रही है। साधु बोले आने दो। और फिर समाचार मिला कि शत्रु की सेना पास में आ गयी है तो साधु ने आदमी भेजा और उस राजा को भुला लिया। साधु ने पूछा आप यहाँ किस मनसा से आये है राजन ! पडोसी राजा ने कहा राज्य लेने आये है ? साधु ने कहा राज्य लेने के लिए लड़ाई की जरुरत नहीं है। फिर एक सेवक को साधु ने कहा मेरा सन्दुक लाओ। सन्दुक आते ही साधु ने उसे खोला और पोशाक बदल कर हाथ में कमण्डल पकड़ लिए और कहा - " राजन इतने दिनों से मैंने इस राज्य की रोटी खायी, अब आप खाओ ! मैं तो इस लिए बैठा था की राज्य सम्भालनेवाला कोई नहीं था। अब आप आये हो तो संभालो व्यर्थ में मनुष्यों को क्यों मारे। "

सीख - इस कहानी का तात्पर्य यह नहीं की शत्रु की सेना आये तो उसको राज्य दे दो , लेकिन साधु की तरह जो काम सामने आ जाय , उसको भगवान का काम समझ कर निष्काम भाव से बढ़िया रीति से करो , अपना कोई आग्रह मत रखो।

         

Sunday, August 31, 2014

Hindi Motivational Stories...............कंजूसी का परिणाम

कंजूसी का परिणाम 


                           एक गरीब ब्राह्मण था। उसको अपनी कन्या का विवाह करना था। उसने विचार किया कि कथा करने से कुछ पैसे मिलेंगे तो काम चल जायेगा। ऐसा विचार करके उसने भगवान राम के एक मन्दिर में बैठकर कथा आरम्भ कर दी। उसका भाव यह था कि कोई श्रोता आये, चाहे न आये, पर भगवान तो मेरी कथा सुनेंगे ही। 

   पण्डितजी की कथा में थोड़े-से श्रोता आने लगे। एक बहुत कंजूस सेठ था। एक दिन वह मन्दिर में आया। जब वह मन्दिर की परिक्रमा कर रहा था, तब उसको मन्दिर के भीतर से कुछ आवाज़ आयी। ऐसा लगा कि कोई दो व्यक्ति आपस में बात कर रहे है। सेठ ने कान लगाकर सुना। भगवान राम हनुमानजी से कह रहे थे कि इस गरीब ब्राह्मण के लिए सौ रुपयों का प्रबन्ध कर देना, जिस से कन्या दान ठीक हो जाय। हनुमानजी ने कहा - ठीक है महाराज ! इसके सौ रुपये पैदा हो जायेंगे। सेठ ने यह सुना तो वे कथा समाप्ति के बाद पण्डित जी से मिले और उनसे कहा कि महाराज ! कथा में रुपये पैदा हो रहे कि नहीं ? पण्डितजी बोले कि श्रोतालोग बहुत कम आते है, रुपये कैसे पैदा हो ? सेठ ने कहा मेरी एक शर्त है, कथा में जितना रूपया आये, वह मेरे को दे देना, मैं आपको पचास रुपये दे दूँगा। पण्डितजी ने शर्त स्वीकार कर ली। पण्डित जी ने सोचा लोग दे न दे पर सेठ जी से तो पचास रुपये मिल जायेंगे इस की गॉरंटी है। और उस समय पचास रुपये भी बहुत होते थे। और इधर सेठ लोभ के कारण पचास देकर सौ लेने की मानसा से शर्त रखी। भगवान की बाते सुनकर भी भक्ति की भवन नहीं जगी। सेवा के बजाय लोभी ही बना रहा। 

        कथा पूर्णाहुति होने पर सेठ पण्डितजी के पास आया। उसको आशा थी कि आज सौ रुपये भेंट में आये होंगे। पण्डितजी ने कहा कि भाई, आज भेंट बहुत थोड़ी ही आयी ! ये लो कहा कर भेट में आये रुपये सेठ को दे दिये। सेठ ने देखा भेंट के रूप में पाँच-सात रुपये आये है। सेठ बेचारा क्या करे ? वायदे के अनुसार पण्डितजी को पचास रुपये दे दिये। अब लेने के बदले देने पड़ गये। सेठ को हनुमानजी पर बहुत गुस्सा अाया कि उन्होंने पण्डितजी को सौ रुपये नहीं दिये और भगवान के सामने झूठ बोला ! सेठ मन्दिर में गया और हनुमानजी की मूर्ति पर घूँसा मारा। घूँसा मारते ही सेठ का हाथ मूर्ति से चिपक गया ! अब सेठ ने बहुत जोर लगाया, पर हाथ छूटा नहीं। जिसको हनुमानजी पकड़ ले, वह कैसे छूट सकता है ? सेठ को फिर आवाज़ सुनायी दी। उसने ध्यान से सुना। भगवान हनुमानजी से पूछ रहे थे कि तुमने ब्राह्मण को सौ रुपये दिलाये कि नहीं ? हनुमानजी ने कहा कि " महाराज ! पचास रुपये तो दिला दिये है, बाकी पचास रुपयों के लिये सेठ को पकड़ रखा है ! वह पचास रुपये देगा तो छोड़ देंगे।" सेठ ने सुना तो विचार किया कि मन्दिर में लोग आकर मेरे को देखेंगे तो बड़ी बेइज्जती होगी ! वह चल्लाकर बोला कि " हनुमानजी महाराज ! मेरे को छोड़ दो, मैं पचास रुपये दूंगा। " हनुमानजी ने सेठ का हाथ छोड़ दिया। सेठ ने जाकर पण्डितजी को पचास रुपये दे दिये। 

सीख - भक्ति भाव, सेवा भाव से सुख मिलता है। लोभ भावना दुःख देता है इस लिये लोभ से मुक्त हो सेवा भाव में रहो। 

      

Saturday, August 30, 2014

Hindi Motivational Stories - असली गहना

असली गहना

        एक ' चक्ववेण '  नाम के राजा थे। वे बड़े धर्मात्मा थे। राजा और रानी दोनों खेती करते थे और खेती से जितना उपार्जन हो उस से अपना निर्वाह करते थे। राज्य के धनको वे अपने काम में नहीं लेते थे। प्रजा से जो कर लेते थे, उसको प्रजा के हित में ही खर्च करते थे। राजा हुवे भी वे साधारण मोटा कपड़ा पहनते थे और भोजन भी साधारण ही करते थे।

       एक दिन नगर में बड़ा उत्सव हुआ। उस दिन नगर की स्त्रियाँ रानी के पास आयी। नगर की स्त्रियाँ तो बहुत किमती साड़ी और सोने के गहने पहन रखे थे। स्त्रियों ने जब रानी को देखा की वे बहुत ही साधारण कपडे पहने है तो सब ने कहा " रानी साहेबा आप तो हमारे मालकिन है। आप को तो हम से भी अच्छे कपडे और गहने पहनने चहिये। ये बात रानी को लगी। और उसी रात रानी ने राजा से कहा "आज मेरी बहुत फजीती हुई। हम मालिक होकर भी प्रजा की तुलना में नहीं है ? नगर की स्त्रियाँ हम से अच्छे गहने और कपडे पहनते है। इस लिए हमें भी अब अच्छे कपडे और गहने चाहिए। " राजा ने कहा " हम तो अपनी मेहनत की कमाई से खाते है और पहनते है गहनों के लिए हमें कर्ज लेना होगा। फिर भी हम आपके लिए प्रबन्ध करेंगे धैर्य रखो। "

      अगले दिन चक्ववेण राजा ने अपने एक आदमी से कहा तुम लंकापति रावण के पास जाओ और उस से कहो की " चक्ववेण राजा ने आप से कर माँगा है " और कर रूप में रावण से सोना ले लेना। वो आदमी गया और रावण से कर माँगा। रावण सुन कर हँसाने लगा और कहा रावण से कर माँगने की हिम्मत कैसे की ? रावण ने आज तक किसी को कर नहीं दिया है। और ना ही देग तुम्हारी अक्ल कहा चली गयी है ? जो रावण से कर माँगने चले आ गए ! चला जा यहाँ से. उस आदमी ने कहा अब तो तुम्हे कर देना ही होगा। में कल फिर आऊंगा आज रात विचार करो।

  रावण रात जब मन्दोदरी से मिला और कहा ऐसे ऐसे मुर्ख लोग है संसार में!रावण से कर माँगने आ जाते है।   मन्दोदरी ने कहा क्या हुआ महाराज, रावण ने सारी बात बता दी , मन्दोदरी राजा चक्ववेण के बारे में जानती थी। उसने सुबह रावण से कहा महाराज आज छत पर चलो में तुम्हें तमाशा दिखाती हूँ। रावण छत पर गए  मन्दोदरी ने कबूतरों को दाना डाल कर कहा " तुम्हें रावण की कसम अगर एक भी दाना चुगा तो " कबूतरों पर उसके इस बात का कोई असर नहीं हुआ फिर थोड़ी देर बाद कुछ दाना और डाल कर मन्दोदरी ने कहा " तुम्हे कसम है चक्ववेण राजा की अगर एक भी दाना चुगा तो " कबूतर सब रुख गये और एक कबूतर बहरा होने के कारण दाना चुगता रहा तो उसकी गर्दन काट गयी। ये देख रावण ने कहा " ये तुम्हारी मन की बात है। ये तेरा जादू है, ऐसा कभी हुआ है क्या ? रावण किसी को कर नहीं देगा।

    रावण दरबार में अपने राजगद्दी पर जाकर बैठ गये। उसी समय वो आदमी फिर आ गया और कहा-"अपने रात में विचार किया होगा कर देने का मुझे कर रूप में सोना दे देना। रावण हँसाने लगा और कहा देवतायें मेरे यहाँ पानी भरते है। हम किसी को कर नहीं देंगे ये हमारे शान के खिलाफ है। अच्छा ! वो आदमी बोला आप मेरे साथ समुद्रके किनारे चलिये। रावण को कोई डर तो था ही नहीं वो चल दिया। वो आदमी समुद्र के किनारे पर बालू से लंका की हु बा हु आकृति बना दी और कहा लंका ऐसा ही है न ? रावण ने कहा हाँ - फिर उस आदमी ने कहा -" राजा चक्ववेण की दुहाई है " ऐसा बोलकर उस आदमी ने एक हाथ मारा तो एक दरवाजा गिरा जैसा यहाँ गिरा बिल्कुल वैसे ही लंका का भी एक दरवाजा गिरा। उस आदमी ने कहा कर देते हो या अभी आपकी लंका पूरा गिरा दूँ। रावण डर गया बोला हल्ला मत कर जा जितना सोना चाहिए उतना सोना लेकर जा।

       आदमी ने सारा सोना लाकर  राजा चक्ववेण को दिया और राजा ने रानी को दे दिया और कहा जितना गहने चाहिए उतना बनवाले। रानी ने पूछा इतना सोना आया कहा से ? राजा ने कहा रावण से कर रूप में आया है।  रानी सोचने लगी की रावण कर दिया कैसे ? कुछ समय बाद रानी ने उस आदमी को पूछा की रावण ने कर दिया कैसे ? आदमी ने सारी कहानी बता दी। रानी आश्चर्य चकित हो गयी। उनके मन में पतिदेव के प्रति श्रद्धा बड़ी और उसने कहा मेरे पास मेरा असली गहना तो मेरे पति देव है। दूसरा गहना मेरे क्या काम का ? गहनों की शोभा तो पति के कारण है। पति के बिना गहनों की शोभा ही क्या ? जिसका प्रभाव इतना की रावण भी डर जाय उस से बढ़कर गहना और क्या हो सकता है। उसी समय रानी ने उस आदमी से कहा जाओ ये सोना रावण को लौटकर कहो - "राजा चक्ववेण तुम्हारा कर स्वीकार नहीं करते। "

Saturday, August 9, 2014

Hindi Motivational Stories...... राजा और महल

       राजा और महल 

     एक राजा था। वह एक सन्त के पास जाया करता और उनका सत्संग किया करता था। उस राजाने अपने लिये एक महल बनाया। पहले उसके कई महल थे, पर अब ऐसा महल बनाया, जिस में आराम की सब चीजें हो और उस में ज्यादा ठ।ट - बाट से रहे। राजा ने सन्त से कहा कि महाराज ! एक दिन चलो, हमारी कुटिया पवित्र हो जाय ! सन्त उसको टालते गए। राजाने बहुत बार कहा तो एक दिन सन्त बोले कि अच्छा  भाई चलो।

       राजाने सन्त को महल दिखाना शुरू किया कि यह हमारी जगह है, यह हमारे पंचायती की जगह है, यह भोजन की जगह है, यह शौच-स्नान की जगह है, आदि-आदि सन्त चुप-चाप देखते रहे, कुछ बोले नहीं। सन्त पशु प्राणियों से प्यार करते थे। और जिनके पास रहने के लिए घर नहीं तो ठीक लेकिन राजा के पास सब कुछ होने के बाद भी वो और एक महल बनाया। और अन्दर सोचने लगे की अगर वाह-वाह करते है तो हिंसा लगती है। कारण कि महल बनाने में बड़ी हिंसा होती है ! बहुत से जीव जन्तु मरते है। चूहे,साँप, गिलहरी आदि के रहने और चलने-फिरने में आड़ लग जाती है ; क्यों कि जितने हिस्से में महल बना है, उतने हिस्से में वे जा नहीं सकते। ऐसी बहुत बाते सन्त में मन में आती रही। और राजा समझा कि महाराज को महल पसन्द नहीं आया। राजा लोग चतुर होते है। राजाने पूछ लिया कि महाराज ! महल में कमी क्या है ? सन्त बोले कि कमी तो इस में बड़ी भारी है ! राजाने विचार किया कि बड़े-बड़े कुशल कारीगरों ने महल बनाया है। उन्होंने कोई कमी बाकी नहीं छोड़ी। जहाँ कमी दिखी, उसको पूरा कर दिया। परन्तु बाबा जी कहते है कि कमी है, और वह भी मामूली नहीं है, बड़ी कमी है। राजाने पूछा कि क्या बहुत बड़ी कमी है ? सन्त बोले की हाँ, भाई बहुत बड़ी कमी है। राजा ने पूछा कि महाराज ! वो बड़ी कमी क्या है ? संत बोले कि यह दरवाजा रख दिया है न, यह कमी है। राजा बोले महाराज ! दरवाजे बिना महल क्या काम का ? तब महाराज !बोले राजा अपने ये महल क्यों बनाया है ? राजा बोले रहने के लिए। सन्त बोले की राजन ! तुमने तो रहने के लिए बनाया है, पर एक दिन लोग तुम्हें उठाकर ले जायेंगे ! इस से ज्यादा कमी क्या होगी, बताओ ? बनाया तो है रहने के लिए पर लोग उठाकर बाहर ले जायेंगे, रहने देंगे नहीं ! इसलिये अगर रहना  तो यह दरवाजा नहीं होना चाहिये, बाहर एक दिन जाना ही है तो दरवाजे की जरुरत ही कहा है।

   भाव ये है कि यह अपना असली घर नहीं है। एक दिन सब कुछ छोड़कर यहाँ से जाना पड़ेगा। हमारा असली घर तो वह है, जहाँ से हम आये है। अथार्थ परमधाम , मुक्तिधाम ,शान्तिधाम।  यहाँ पर चाहे जितना भी सुख सुविधा वाला महल बना ले पर इसे यही छोड़ जाना होगा।

सीख - संसार में रहते हुवे भी अपने अन्दर कोई संसार न हो। सब कुछ उस ईश्वर का है ये भाव मन में रख कर कार्य करना है। जिस से दुःख नहीं होगा। 

Friday, August 8, 2014

Hindi Motivational stories.............किसान और देव इंद्र ( S.M)

किसान और देव इंद्र

  एक गाँव में बहुत किसान रहते थे सब में बहुत एकता थी और सब खेती करते थे। गाँव में हर साल दिवाली पर खूब खुशियाँ मनाई जाती थी। .... किसानों की एकता बहुत मजबूत थी किसी के भी अगर घर कुछ होता जैसे कोई बीमार हुआ तो सारा गाँव एक हो जाता था और उस व्यक्ति की सेवा में लग जाता। समय के अन्तराल में काफी परिवर्तन आता गया और एक बार उस गाँव में एक साल अकाल आया बारिश नहीं हुई और सब एक दूसरे को देखते पर अब पेट का सवाल था।

     गाँव से कुछ लोग शहर की तरफ चल दिये कोई मित्र रिश्तेदार के यहाँ गए।   इस तरह गाँव की आबादी कम हुई और किसानों की मन्सा बदली और वे सोचने लगे की इस बार फसल हो तो उसे संजोए रखेंगे ताकि वो साल बार चल सके। इस बीच कृषि विज्ञान के लोग उस गाँव में गए और किसानों से बात किया कुछ किसान उनकी बातों में आ गए और ज्यादा फसल की लोभ में आ गए और  केमिकल दवाओं का इस्तेमाल खेती में होने लगी। और उस साल बारिश भी अच्छी हुई। समय के चलते खेती ज्यादा होने लगी और गाँव में फिर एक बार खुशाली हुई। और ये कुछ समय तक चला। लेकिन अब किसान दवाओं के अधीन हुआ उसके बिना खेती नहीं करता और वह आराम पसंद बन गया। मेहनत नहीं करता। आज उसके पास बैलगाड़ी की जगह मोटर है।अच्छे सीमेंट का माकन है। आधुनिक जीवन शैली में रहता है।

    समय का चक्र एक बार फिर पलटा और एक साल बारिश नहीं हुई। अब फिर सब किसान परेशान और सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे क्या किया जाय ? गाँव का मुखिया ने सब किसानों से बात की और निष्कर्ष ये हुआ की सब किसान एक दिन इंद्र की पूजा करेंगे बारिश के लिए। निश्चित दिन और समय पर गाँव के बाहर सब किसान  साथ जमा हुवे। और पूजा करने लगे। आरती के बाद जब सब घर की तरफ चलने ही वाले थे। तो अचानक एक बूढ़ा ब्राह्मण वहाँ आया बूढ़े ब्राह्मण को देख सब किसान रुख गए। और ब्राह्मण ने पूछा आप लोग पूजा क्यों कर रहे हो। बारिश के लिए सब किसानो ने कहा। ब्राह्मण ने कहा बारिश तो खुदरत की  देन है। इस के लिए पूजा नहीं प्रकृति का विधी नियम समझना होगा। किसानो ने पूछा वो कैसे करे ?

   ब्राह्मण ने उन्हें बताया की इस संसार में परिवर्तन चक्र फिरता रहता है। लोभ लालच के कारन अपने खेती में दवाओ का उपयोग प्रमाण से ज्यादा किया और जिस के कारन भूमि की शक्ति कम हुई और हमने जितने पेड़ थे उन्हें काट दिया। और पशुधन के बजाय मोटर गाड़ी का उपयोग करना शुरू किया। ये सब चीजे अल्प काल के लिये सुख देते है। सदा का सुख तो खुदरत के नियम से चलने में है। दवाओ का उपयोग बंद और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाये। और पशु धन का उपयोग कर उस से ही खेती करना है। इतना कहकर ब्राह्मण अदृश्य हुआ।

 किसानो को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। और वे पहले की तरह खेती करने लगे सब दवाओं का उपयोग बंद करके। जैविक विधि से खेती करने लगे। और उस गाँव में फिर से परिवर्तन आया। और किसान ख़ुशी में रहने लगे।
सीख - वक्त के साथ बदलाव आता जरूर है पर अधिक लोभ से अपना ही नुकसान कर बैठते है। इस लिए समय के साथ हर बात ज्ञान रखे  परिवर्तन करे। तो ज्यादा नुकसान से बच जायेंगे।