Wednesday, March 18, 2015

मुक्ति....A spiritual story

एक बार गौतम बुद्ध से एक व्यक्ति ने पूछा कि भगवान् आप दिन-रात हजारों लोगों को उपदेश देते रहते हैं पर जिज्ञासा वश पूछना चाहता हूँ कि आप के प्रवचनों से कितने लोग मुक्ति को उपलब्ध हुए हैं तो बुद्ध ने कहा कि तुम्हारे इस प्रश्न का जवाब अवश्य दूंगा पर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। एक डायरी और पेन लेकर गाँव में जाओ और प्रत्येक व्यक्ति से उसकी एक इच्छा पूछो और उसे लिखकर ले आओ। वह व्यक्ति गाँव में गया और एक-एक व्यक्ति से उसकी इच्छा पूछकर उसे लिखने लगा। किसी ने पुत्र-प्राप्ति की इच्छा तो किसी ने उत्तम स्वास्थ्य की, किसी ने धन-संपत्ति की तो किसी ने ऊँचे पदों की इच्छाएं जताई। शाम तक वो युवक सभी की इच्छाएं पूछकर बुद्ध के पास आया और बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा। बुद्ध ने कहा कि देखा तुमने! तुमनें इतनें लोगों से उनकी एक-एक इच्छा पूछी हैं पर किसी नें भी मोक्ष की, ध्यान की या परमात्मा की इच्छा नहीं जताई। स्वयं भगवान् भी आकर यदि लोगों से कुछ मांगने को कहें तो भी लोग परमात्मा से परमात्मा नहीं , बल्कि संसार ही मांगेंगे। लोग चेतना के जिन निम्न तलों पर आज हैं उससे ऊपर उठने की प्यास तो उन्हें स्वयं ही अपने भीतर लानी होगी। लोग जंजीरों को आभूषण समझे बेठे हैं और आभूषणों को अज्ञानवश जंजीर बना बेठे हैं। लोगों को होश लाना ही होगा समझ विकसित करनी ही होगी। जैसे जैसे होश और बोध सधता जाएगा इस पार्थिव देह में चेतना का ज्वार उर्ध्व गमन को उपलब्ध होता जाएगा। परमात्मा तो वही देता हैं जो तुम्हारी चाहत हैं ये तुम पर निर्भर है कि तुम उससे क्या मांगते हो। पहले उन लोगों को देखो कि जिन्होनें संसार माँगा है क्या उन्हें संसार मिल गया है चाहे वो सिकंदर हो कि हिटलर या मुसोलिनी हो। फिर बुद्ध , महावीर और तीर्थंकरो , पैगम्बरों और अवतारों को देखो और प्यास को पीओ तुम्हारे हर प्रश्न का जवाब मिल जाएगा।

सीख - एक बार हमें भी अपने आप से पुछना है की हमारी इच्छा क्या है ?
मुक्ति 

Thursday, March 5, 2015

विश्वास .... A Motivational Story

किसी जंगल मे एक
गर्भवती हिरणी थी जिसका प्रसव होने
को ही था . उसने एक तेज धार वाली नदी के किनारे
घनी झाड़ियों और घास के पास एक जगह
देखी जो उसे प्रसव हेतु सुरक्षित स्थान लगा.
अचानक उसे प्रसव पीड़ा शुरू होने लगी, लगभग
उसी समय आसमान मे काले काले बादल छा गए और
घनघोर बिजली कड़कने लगी जिससे जंगल मे आग भड़क
उठी .
वो घबरा गयी उसने अपनी दायीं और देखा लेकिन ये
क्या वहां एक बहेलिया उसकी और तीर
का निशाना लगाये हुए था, उसकी बाईं और भी एक
शेर उस पर घात लगाये हुए उसकी और बढ़ रहा था अब
वो हिरणी क्या करे ?,
वो तो प्रसव पीड़ा से गुजर रही है ,
अब क्या होगा?,
क्या वो सुरक्षित रह सकेगी?,
क्या वो अपने बच्चे को जन्म दे सकेगी ?,
क्या वो नवजात सुरक्षित रहेगा?,
या सब कुछ जंगल की आग मे जल जायेगा?,
अगर इनसे बच भी गयी तो क्या वो बहेलिये के तीर से
बच पायेगी ?
या क्या वो उस खूंखार शेर के पंजों की मार से
दर्दनाक मौत मारी जाएगी?
जो उसकी और बढ़ रहा है,
उसके एक और जंगल की आग, दूसरी और तेज धार
वाली बहती नदी, और सामने उत्पन्न सभी संकट, अब
वो क्या करे?
लेकिन फिर उसने अपना ध्यान अपने नव आगंतुक
को जन्म देने की और केन्द्रित कर दिया .
फिर जो हुआ वो आश्चर्य जनक था .
कडकडाती बिजली की चमक से
शिकारी की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, और
उसके हाथो से तीर चल गया और सीधे भूखे शेर
को जा लगा . बादलो से तेज वर्षा होने लगी और
जंगल की आग धीरे धीरे बुझ गयी.
इसी बीच हिरणी ने एक स्वस्थ शावक को जन्म
दिया .
ऐसा हमारी जिन्दगी मे भी होता है, जब हम
चारो और से समस्याओं से घिर जाते है, नकारात्मक
विचार हमारे दिमाग को जकड लेते है, कोई
संभावना दिखाई नहीं देती , हमें कोई एक उपाय
करना होता है.,
उस समय कुछ विचार बहुत ही नकारात्मक होते है,
जो हमें चिंता ग्रस्त कर कुछ सोचने समझने लायक
नहीं छोड़ते .
ऐसे मे हमें उस हिरणी से ये शिक्षा मिलती है की हमें
अपनी प्राथमिकता की और देखना चाहिए, जिस
प्रकार हिरणी ने सभी नकारात्मक
परिस्तिथियाँ उत्पन्न होने पर
भी अपनी प्राथमिकता "प्रसव "पर ध्यान केन्द्रित
किया, जो उसकी पहली प्राथमिकता थी.
बाकी तो मौत या जिन्दगी कुछ भी उसके हाथ मे
था ही नहीं, और उसकी कोई
भी क्रिया या प्रतिक्रिया उसकी और गर्भस्थ बच्चे
की जान ले सकती थी
उसी प्रकार हमें भी अपनी प्राथमिकता की और
ही ध्यान देना चाहिए .
हम अपने आप से सवाल करें,
हमारा उद्देश्य क्या है, हमारा फोकस क्या है ?,
हमारा विश्वास, हमारी आशा कहाँ है,
ऐसे ही मझधार मे फंसने पर हमें अपने इश्वर को याद
करना चाहिए ,
उस पर विश्वास करना चाहिए जो की हमारे ह्रदय मे
ही बसा हुआ है .
जो हमारा सच्चा रखवाला और साथी है.

 

Monday, March 2, 2015

किसान और परमात्मा

एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाये! हर बार 
कुछ ना कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी ख़राब हो जाये! एक दिन बड़ा तंग कर उसने परमात्मा से कहा ,देखिये प्रभु,आप परमात्मा हैं , लेकिन लगता है 
आपको खेती बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है ,एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये , जैसा मै चाहू वैसा मौसम हो,फिर आप देखना मै कैसे अन्न के 
भण्डार भर दूंगा! परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मै दखल नहीं करूँगा!
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई ,जब धूप चाही ,तब धूप मिली, जब पानी तब पानी ! तेज धूप, ओले,बाढ़ ,आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल 
बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी,क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फ़सल कैसे करते 
हैं ,बेकार ही इतने बरस हम किसानो को परेशान करते रहे.
फ़सल काटने का समय भी आया ,किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा ,एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया! गेहूं 
की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था ,सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा ,प्रभु ये क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले,” ये तो होना ही था ,तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया . ना तेज धूप में उनको तपने दिया , ना आंधी ओलों से जूझने 
दिया ,उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया , इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है ओले 
गिरते हैं तब पोधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वो अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वोही उसे शक्ति देता है 
,उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है.सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने , हथौड़ी से पिटने,गलने जैसी चुनोतियो से गुजरना पड़ता है तभी 
उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है,उसे अनमोल बनाती है !”
उसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष ना हो ,चुनौती ना हो तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं पाता ! ये चुनोतियाँ ही हैं जो 
आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं ,उसे सशक्त और प्रखर बनाती हैं, अगर प्रतिभाशाली बनना है तो चुनोतियाँ तो स्वीकार करनी ही पड़ेंगी, अन्यथा हम 
खोखले ही रह जायेंगे. अगर जिंदगी में प्रखर बनना है,प्रतिभाशाली बनना है ,तो संघर्ष और चुनोतियो का सामना तो करना ही पड़ेगा !

Tuesday, December 9, 2014

Hindi Motivational Stories...भगवान किसके दास है।

भगवान किसके दास है। 

          वृन्दावन में एक भक्त को बिहारीजी के दर्शन नहीं हुए। लोग कहते कि अरे ! बिहारी जी सामने ही तो खड़े है। पर वह कहता कि भाई ! मेरे को तो नहीं दिख रहे ! इस तरह तीन दिन बीत गये पर दर्शन नहीं हुए। उस भक्त ने ऐसा विचार किया कि सब को दर्शन होते है लेकिन मुझे ही दर्शन नहीं होता। मैं बहुत बड़ा पापी हूँ इस लिये भगवान के दर्शन नहीं हो रहे है। अंतः मुझे तो यमुना नदी में डूब जाना चाहिए ! ऐसा सोच कर वह रात्रि को डूबने का प्लान बनाया। और रात्रि में वह यमुना नदी की तरफ जाने लग। और वहाँ एक कोढ़ी सोया था उसको सपना आया जिस में भगवान ने कहा कि जो व्यक्ति अभी आपके पास से जायेगा उसका पैर पकड़ लो और उसकी कृपा से तुम्हारा कोढ़ टिक हो जायेगा। वो व्यक्ति उठकर बैठ गया।

    जैसे ही भक्त वहाँ से जाने लगा तो कोढ़ी ने उसका पैर पकड़ लिया और कहा कि मेरा कोढ़ दूर करो।  भक्त कहने लगा मैं तो पापी हूँ ठाकुरजी मुझे दर्शन भी नहीं देते ! में तो पापी हूँ। बहुत कोशिश की भक्त ने लेकिन कोढ़ी ने नहीं माना। व्यक्ति कहने लगा आप एक बार कह दो कोढ़ दूर हो। बस आखिर भक्त उसका पीछा छुड़ाने के लिये भक्त ने कहा दिया आपके कोढ़ दूर हो जाय। जैसे ही भक्त ने कहा उसी क्षण उसके कोढ़ दूर हो गए। और उस व्यक्ति ने बताया भक्त को कि ऐसा करने के लिए ठाकुरजी ने ही मेरे सपने में आकर बताया था। यह सुनकर भक्त ने सोचा आज नहीं कल मरूँगा। और आगे बड़ा तो ठाकुरजी उनके समाने आ गए। तो भक्त ने पूछा ठाकुरजी आपने पहले दर्शन क्यों नहीं दिया ?
 
     ठाकुरजी ने कहा कि तुमने उम्र भर मेरे सामने कोई माँग नहीं रखी, मेरे से कुछ चाहा नहीं : अंतः मैं तुम्हारे सामने कैसे आता ! अब तुमने कह दिया कि इसका कोढ़ दूर कर दो, तो अब मैं तुम्हारे सामने आया।

इसका मतलब हुआ कि जो, कुछ भी नहीं चाहता, भगवान उसके दास हो जाते है।

हनुमानजी ने भगवान का कार्य किया तो भगवान उनके दास हो गए - ' सुनु सूत तोहि उरिन मैं नाही '

सीख - सेवा करने वाला बड़ा हो जाता है और करानेवाला छोटा हो जाता है। परन्तु भगवान और उनके प्यारे भक्तों को छोटे होने में शर्म नहीं आती। वे जान करके छोटे होते है।  छोटे होने पर भी वास्तव में वे छोटे होते नहीं और उनमें बड़प्पन का अभिमान होता ही नहीं। 

Sunday, December 7, 2014

Hindi Motivational Stories......बुद्धिमान राजा

बुद्धिमान राजा 

                किसी के पास धन बहुत है तो यह कोई विशेष भगवान की कृपा नहीं है। धन आदि वस्तुएँ तो पापी को भी मिल जाती है - " सतु दारा अरु लक्ष्मी पापी के भी होय। " इनके मिलने में कोई विलक्षण बात नहीं है।
   
          एक राजा थे।  उस राजा की साधु वेश में बड़ी निष्ठा थी। यह निष्ठा किसी-किसी में ही होती है। वह राजा साधु-सन्तो को देखकर बहुत राजी होता। साधु-वेश में कोई भी आ जाय, कैसा भी आ जाय, उसका बड़ा आदर करता, बहुत सेवा करता। कही सुन लेता कि अमुक तरफ से सन्त आ रहा है तो पैदल जाता और उनको ले आता, महलों  में रखता, खूब सेवा करता। साधु जो माँगे वही देता। उसकी ऐसी प्रसिद्धि हो गयी।

    पड़ोस-देश में एक दूसरा राजा था। उसने जब ये बात सुनी तो उन्हें लग ये राजा तो मुर्ख है। ऐसे करने से तो इसे कोई भी लूट लेगा साधु वेश कोई बहरूपिया भी लूट ले सकता है। यही सोच बनाकर उस राजा ने एक बहुरुपिया को बुलाया और उससे कहा सुन पड़ोस के राज्य में तू एक साधु बनकर जाना और वो राजा जो भी बर्ताव करे वो सब मुझे सुनाना। बहुरुपिया भी चतुर था। उसने कहा जैसी आपकी आज्ञा।  वह साधु बनकर उस गाँव में पहुँचा तो किसी ने राजा को बताया तो राजा आ गए और उसे महल में ले गया उसकी खूब सेवा की।

    एक दिन राजा ने उस साधु से कहा -" महाराज, कुछ सुनाओ। " साधु ने कहा कि। "राजन ! आप तो भाग्यशाली हो कि आपको इतना बड़ा राज्य मिला है, धन मिला है। आपके पास इतनी बड़ी फौज है।  आपकी स्त्री, पुरुष , पुत्र ,नौकर सब आपके अनुकूल है। इसलिये भगवान की आप पर बड़ी कृपा है। "इस प्रकार साधु ने कई बाते कही , राजा चुप चाप सुनता रहा। और दो दिन बाद साधु ने कहा ,"राजन अब हम जायेंगे। , राजा ने कहा जैसी आपकी मर्जी महाराज - और राजा ने साधु ने सामने अपने सरे खजाने खोलकर रख दिया और कहा आपको जितना चाहिए जितना मर्जी हो ले जाओ। साधु ने उस में से अच्छा माल उठा लिया और एक ऊँट पर लध कर जाने लग।  तब राजा ने एक और बक्सा जो चाँदी के चादर ढाका हुआ था। उसे देते हुवे कहा महाराज ये मैं आपको अपनी तरफ से दे रहा हूँ। साधु ने उसे भी ले लिया और चल दिया।  साधु सीधे उस राजा के पास गया और राजा ने पूछा क्या लाये हो? बहुरुपिया ने कहा करोड़ो का माल लाया हूँ।  राजा ने सोचा राजा सच में मुर्ख है उसे साधु की पहचान नहीं है। कौन साधु है ? बहुरुपिया ने कहा राजा जी एक बक्सा राजा ने मुझे दी है अपनी तरफ से , राजा ने कहा ले आ उसे खोलों जब उस बक्से को खोला तो उसमे एक और बक्सा था और उसे खोला तो एक और बक्सा था और जब से खोला तो उस में एक फूटी कौड़ी थी। राजा समझ नहीं पाया ये क्या ? तीन बक्से और अंदर फूटी कौड़ी ?

   तब राजा ने समझा की राजा कोई मुर्ख नहीं है। उसने बहुरुपिया से पूछा मुझे बताओ वहा क्या क्या हुआ था। बहुरुपिया ने कहा एक दिन राजा ने कहा था ,"महाराज कुछ सुनाईये ,तो मैंने उन्हें कहा था ,'आप पर तो भगवान की कृपा है धन ,सम्पति और परिवार सब कुछ है " ये सुनकर राजा ने सारी बात समझ लिया की ये साधु नहीं है। ये तीन बक्से का मतलब है स्थूल शरीर , शुक्म शरीर और कारण शरीर , धन सम्पति या परिवार ये कृपा थोड़ी है। कृपा तो भगवान का भजन हो उनकी याद हो ये कृपा है।

सीख - व्यक्ति चाहे कितना ही वेश बदल ले लेकिन वो पकड़ में आता ही है। सही व्यक्ति समझ जाता है उसे क्या करना है कृपा सब पर नहीं होती। ये तो जिसके भाग्य में हो उस पर ही कृपा भगवान की बरसती है।


Sunday, November 30, 2014

Hindi Motivational Stories.......भगवान की मरजी

भगवान की मरजी

              बहुत समय पहले कि बात एक बार एक बाबाजी नौका में बैठकर कहीं जा रहे थे। उस नौका में और भी यात्री थे। कुछ दूर जाने पर नाविक ने कहा शयद मौसम में तेजी से बदलाव आ गया है। और हम भवर के आस पास है। इस लिये आप सब भगवान को याद करो अब तो वही कुछ कर सकता है। हमारे हाथ में कुछ नहीं है। यात्री घबरा गये सब कि आँखों नम हो गयी और देखते ही देखते नाव में पानी भरने लगा। अब इस बीच बाबाजी ने कमण्डल हाथ में लेकर जय सियाराम जय जय सियाराम बोलते हुवे कमण्डल से समुन्दर का पानी भर भरकर नाव में डालने लगे। ये देखकर यात्री चकित हो गए अब क्या बोले कौन बोले।  लेकिन बाबाजी तो पुरे उत्साह से पानी भर भर कर नाव में डालते रहे और जय सियाराम जय जय सियाराम बोलते जा रहे थे।

  कुछ समय बाद नाविक ने कहा ," अब हमें घबराने की जरुरत नहीं हम किनारे के नाजिद आ गये है।  ये सुनकर बाबाजी ने फिर से जय सियाराम जय जय सियाराम कहते हुवे अब नौका का पानी कमण्डल में भर कर समुन्दर में डालने लगे। ये देखा तो अब लोगो से रह नहीं गया।  लोगो ने कहा ,' तुम पागल हो गये हो क्या ? ऐसा उल्टा काम क्यों करते हो। साधु बने हो ? तुमको दया नहीं आती ? वेष तो तुम साधु का पहने वो और काम तो मुर्ख के जैसा करते हो ? लोग डूब जाते तब ? बाबाजी ने बोला। " दया तो तब आती जब मैं अलग होता। मैं तो साधु ही रहा, मुर्ख काम कैसे किया ?  लोगो ने कहा ,"जब नौका बह रही थी तब तुम पानी नौके के भीतर भरने लगे और जब नौका भवर से निकलने लगी तब पानी वापस बाहर निकालने लगे। ये उल्टा काम ही हुआ ना ?
बाबाजी बोले -"हम उल्टा नहीं सीधा काम कर रहे थे। लोगों ने पूछा कैसे ? बाबाजी बोले ,' सीधा ऐसा कि हम तो पूरा जानते नहीं। मैंने समझा की भगवान को नौका डुबोनी है। उनकी ऐसी मरजी है तो अपने भी इस में मददः करो और जब प्रवाह से निकल गयी तो समझा कि नौका तो उन्हें डुबोनी नहीं है, तब हमने नौके से पानी बाहर फेकना सुरु किया। हमारा जीने मरने का मतलब नहीं। हम तो भगवान की मरजी में मरजी मिलते है। पूरी जानते नहीं है। जैसा वो खेल करे हम वैसे करते है क्यों की हम जानते नहीं।

सीख - यह शरणागत भक्त का लक्षण है। और ये तो संतों की बात है। लेकिन आप लोगो से में ये कहता हूँ। कि कहीं नौका डूबने लगे तो उसमें पानी नहीं भरना, परंतु रोना बिलकुल नहीं। यही समझना कि बहुत ठीक है, बड़ी मौज की, बड़े आनन्द की बात है : इस में कोई छिपा हुआ मंगल है। 

Friday, November 28, 2014

Hindi Motivational Thoughts....जो अदृश्य है वही मालिक है

जो अदृश्य है वही मालिक है 
विचार एक शक्ति है जो अदृश्य है 
एक विचार मुस्कान देता है 
एक विचार दुःख भी देता है 
विचार अदृश्य है पर उसके हावभाव दिखते है 
एक जो विचार करता है वो भी अदृश्य है 
विचारों का रचनाकार याने मैं एक आत्मा !

मैं आत्मा जो अदृश्य हूँ 
मेरा शरीर दृश्यमय (दिखता है )
विचार ,रवैया अदृश्य है 
लेकिन स्वास्थ दिखता है 
ऐसी कोई मशीन नहीं 
जो अदृश्य को माप सके 

अगर आप अदृश्य में विश्वास रखते है 
तो आप अवसर वादी है 
आप समझते है आप एक आत्मा है 
तो आपको अवसर मिलता है 
इस जीवन में और पुनर्जीवन में 
मानिए पुनर्जीवन को, कर्म सिद्दांत को 
और मैं आत्मा हुँ. 
जो दिखाई नहीं दे रहा है 
वही आपको सब कुछ नहीं देगा 
 जो दिखाई दे रहा है 

विज्ञानं में विश्वास मत करो 
जब वो कहता है आप कुछ नहीं 
सिर्फ मिट्टी के पुतले हो तत्वों से बने हो 

आप एक आत्मा हो , रूह  हो 
एक बिन्दु हो, शक्ति हो 
जो इस शरीर को चलाती हो 

हम सब का  पिता एक परमात्मा है 
जो एक और ज्योति पुंज है 
वो मुझसे अलग है क्यों कि 
वो सम्पूर्ण पवित्र है 

अपने को आत्मा समझ 
उस परमात्मा को याद करो 
इस से एक नहीं अनेक 
जन्मों का कल्याण होगा