Tuesday, December 9, 2014

Hindi Motivational Stories...भगवान किसके दास है।

भगवान किसके दास है। 

          वृन्दावन में एक भक्त को बिहारीजी के दर्शन नहीं हुए। लोग कहते कि अरे ! बिहारी जी सामने ही तो खड़े है। पर वह कहता कि भाई ! मेरे को तो नहीं दिख रहे ! इस तरह तीन दिन बीत गये पर दर्शन नहीं हुए। उस भक्त ने ऐसा विचार किया कि सब को दर्शन होते है लेकिन मुझे ही दर्शन नहीं होता। मैं बहुत बड़ा पापी हूँ इस लिये भगवान के दर्शन नहीं हो रहे है। अंतः मुझे तो यमुना नदी में डूब जाना चाहिए ! ऐसा सोच कर वह रात्रि को डूबने का प्लान बनाया। और रात्रि में वह यमुना नदी की तरफ जाने लग। और वहाँ एक कोढ़ी सोया था उसको सपना आया जिस में भगवान ने कहा कि जो व्यक्ति अभी आपके पास से जायेगा उसका पैर पकड़ लो और उसकी कृपा से तुम्हारा कोढ़ टिक हो जायेगा। वो व्यक्ति उठकर बैठ गया।

    जैसे ही भक्त वहाँ से जाने लगा तो कोढ़ी ने उसका पैर पकड़ लिया और कहा कि मेरा कोढ़ दूर करो।  भक्त कहने लगा मैं तो पापी हूँ ठाकुरजी मुझे दर्शन भी नहीं देते ! में तो पापी हूँ। बहुत कोशिश की भक्त ने लेकिन कोढ़ी ने नहीं माना। व्यक्ति कहने लगा आप एक बार कह दो कोढ़ दूर हो। बस आखिर भक्त उसका पीछा छुड़ाने के लिये भक्त ने कहा दिया आपके कोढ़ दूर हो जाय। जैसे ही भक्त ने कहा उसी क्षण उसके कोढ़ दूर हो गए। और उस व्यक्ति ने बताया भक्त को कि ऐसा करने के लिए ठाकुरजी ने ही मेरे सपने में आकर बताया था। यह सुनकर भक्त ने सोचा आज नहीं कल मरूँगा। और आगे बड़ा तो ठाकुरजी उनके समाने आ गए। तो भक्त ने पूछा ठाकुरजी आपने पहले दर्शन क्यों नहीं दिया ?
 
     ठाकुरजी ने कहा कि तुमने उम्र भर मेरे सामने कोई माँग नहीं रखी, मेरे से कुछ चाहा नहीं : अंतः मैं तुम्हारे सामने कैसे आता ! अब तुमने कह दिया कि इसका कोढ़ दूर कर दो, तो अब मैं तुम्हारे सामने आया।

इसका मतलब हुआ कि जो, कुछ भी नहीं चाहता, भगवान उसके दास हो जाते है।

हनुमानजी ने भगवान का कार्य किया तो भगवान उनके दास हो गए - ' सुनु सूत तोहि उरिन मैं नाही '

सीख - सेवा करने वाला बड़ा हो जाता है और करानेवाला छोटा हो जाता है। परन्तु भगवान और उनके प्यारे भक्तों को छोटे होने में शर्म नहीं आती। वे जान करके छोटे होते है।  छोटे होने पर भी वास्तव में वे छोटे होते नहीं और उनमें बड़प्पन का अभिमान होता ही नहीं। 

Sunday, December 7, 2014

Hindi Motivational Stories......बुद्धिमान राजा

बुद्धिमान राजा 

                किसी के पास धन बहुत है तो यह कोई विशेष भगवान की कृपा नहीं है। धन आदि वस्तुएँ तो पापी को भी मिल जाती है - " सतु दारा अरु लक्ष्मी पापी के भी होय। " इनके मिलने में कोई विलक्षण बात नहीं है।
   
          एक राजा थे।  उस राजा की साधु वेश में बड़ी निष्ठा थी। यह निष्ठा किसी-किसी में ही होती है। वह राजा साधु-सन्तो को देखकर बहुत राजी होता। साधु-वेश में कोई भी आ जाय, कैसा भी आ जाय, उसका बड़ा आदर करता, बहुत सेवा करता। कही सुन लेता कि अमुक तरफ से सन्त आ रहा है तो पैदल जाता और उनको ले आता, महलों  में रखता, खूब सेवा करता। साधु जो माँगे वही देता। उसकी ऐसी प्रसिद्धि हो गयी।

    पड़ोस-देश में एक दूसरा राजा था। उसने जब ये बात सुनी तो उन्हें लग ये राजा तो मुर्ख है। ऐसे करने से तो इसे कोई भी लूट लेगा साधु वेश कोई बहरूपिया भी लूट ले सकता है। यही सोच बनाकर उस राजा ने एक बहुरुपिया को बुलाया और उससे कहा सुन पड़ोस के राज्य में तू एक साधु बनकर जाना और वो राजा जो भी बर्ताव करे वो सब मुझे सुनाना। बहुरुपिया भी चतुर था। उसने कहा जैसी आपकी आज्ञा।  वह साधु बनकर उस गाँव में पहुँचा तो किसी ने राजा को बताया तो राजा आ गए और उसे महल में ले गया उसकी खूब सेवा की।

    एक दिन राजा ने उस साधु से कहा -" महाराज, कुछ सुनाओ। " साधु ने कहा कि। "राजन ! आप तो भाग्यशाली हो कि आपको इतना बड़ा राज्य मिला है, धन मिला है। आपके पास इतनी बड़ी फौज है।  आपकी स्त्री, पुरुष , पुत्र ,नौकर सब आपके अनुकूल है। इसलिये भगवान की आप पर बड़ी कृपा है। "इस प्रकार साधु ने कई बाते कही , राजा चुप चाप सुनता रहा। और दो दिन बाद साधु ने कहा ,"राजन अब हम जायेंगे। , राजा ने कहा जैसी आपकी मर्जी महाराज - और राजा ने साधु ने सामने अपने सरे खजाने खोलकर रख दिया और कहा आपको जितना चाहिए जितना मर्जी हो ले जाओ। साधु ने उस में से अच्छा माल उठा लिया और एक ऊँट पर लध कर जाने लग।  तब राजा ने एक और बक्सा जो चाँदी के चादर ढाका हुआ था। उसे देते हुवे कहा महाराज ये मैं आपको अपनी तरफ से दे रहा हूँ। साधु ने उसे भी ले लिया और चल दिया।  साधु सीधे उस राजा के पास गया और राजा ने पूछा क्या लाये हो? बहुरुपिया ने कहा करोड़ो का माल लाया हूँ।  राजा ने सोचा राजा सच में मुर्ख है उसे साधु की पहचान नहीं है। कौन साधु है ? बहुरुपिया ने कहा राजा जी एक बक्सा राजा ने मुझे दी है अपनी तरफ से , राजा ने कहा ले आ उसे खोलों जब उस बक्से को खोला तो उसमे एक और बक्सा था और उसे खोला तो एक और बक्सा था और जब से खोला तो उस में एक फूटी कौड़ी थी। राजा समझ नहीं पाया ये क्या ? तीन बक्से और अंदर फूटी कौड़ी ?

   तब राजा ने समझा की राजा कोई मुर्ख नहीं है। उसने बहुरुपिया से पूछा मुझे बताओ वहा क्या क्या हुआ था। बहुरुपिया ने कहा एक दिन राजा ने कहा था ,"महाराज कुछ सुनाईये ,तो मैंने उन्हें कहा था ,'आप पर तो भगवान की कृपा है धन ,सम्पति और परिवार सब कुछ है " ये सुनकर राजा ने सारी बात समझ लिया की ये साधु नहीं है। ये तीन बक्से का मतलब है स्थूल शरीर , शुक्म शरीर और कारण शरीर , धन सम्पति या परिवार ये कृपा थोड़ी है। कृपा तो भगवान का भजन हो उनकी याद हो ये कृपा है।

सीख - व्यक्ति चाहे कितना ही वेश बदल ले लेकिन वो पकड़ में आता ही है। सही व्यक्ति समझ जाता है उसे क्या करना है कृपा सब पर नहीं होती। ये तो जिसके भाग्य में हो उस पर ही कृपा भगवान की बरसती है।


Sunday, November 30, 2014

Hindi Motivational Stories.......भगवान की मरजी

भगवान की मरजी

              बहुत समय पहले कि बात एक बार एक बाबाजी नौका में बैठकर कहीं जा रहे थे। उस नौका में और भी यात्री थे। कुछ दूर जाने पर नाविक ने कहा शयद मौसम में तेजी से बदलाव आ गया है। और हम भवर के आस पास है। इस लिये आप सब भगवान को याद करो अब तो वही कुछ कर सकता है। हमारे हाथ में कुछ नहीं है। यात्री घबरा गये सब कि आँखों नम हो गयी और देखते ही देखते नाव में पानी भरने लगा। अब इस बीच बाबाजी ने कमण्डल हाथ में लेकर जय सियाराम जय जय सियाराम बोलते हुवे कमण्डल से समुन्दर का पानी भर भरकर नाव में डालने लगे। ये देखकर यात्री चकित हो गए अब क्या बोले कौन बोले।  लेकिन बाबाजी तो पुरे उत्साह से पानी भर भर कर नाव में डालते रहे और जय सियाराम जय जय सियाराम बोलते जा रहे थे।

  कुछ समय बाद नाविक ने कहा ," अब हमें घबराने की जरुरत नहीं हम किनारे के नाजिद आ गये है।  ये सुनकर बाबाजी ने फिर से जय सियाराम जय जय सियाराम कहते हुवे अब नौका का पानी कमण्डल में भर कर समुन्दर में डालने लगे। ये देखा तो अब लोगो से रह नहीं गया।  लोगो ने कहा ,' तुम पागल हो गये हो क्या ? ऐसा उल्टा काम क्यों करते हो। साधु बने हो ? तुमको दया नहीं आती ? वेष तो तुम साधु का पहने वो और काम तो मुर्ख के जैसा करते हो ? लोग डूब जाते तब ? बाबाजी ने बोला। " दया तो तब आती जब मैं अलग होता। मैं तो साधु ही रहा, मुर्ख काम कैसे किया ?  लोगो ने कहा ,"जब नौका बह रही थी तब तुम पानी नौके के भीतर भरने लगे और जब नौका भवर से निकलने लगी तब पानी वापस बाहर निकालने लगे। ये उल्टा काम ही हुआ ना ?
बाबाजी बोले -"हम उल्टा नहीं सीधा काम कर रहे थे। लोगों ने पूछा कैसे ? बाबाजी बोले ,' सीधा ऐसा कि हम तो पूरा जानते नहीं। मैंने समझा की भगवान को नौका डुबोनी है। उनकी ऐसी मरजी है तो अपने भी इस में मददः करो और जब प्रवाह से निकल गयी तो समझा कि नौका तो उन्हें डुबोनी नहीं है, तब हमने नौके से पानी बाहर फेकना सुरु किया। हमारा जीने मरने का मतलब नहीं। हम तो भगवान की मरजी में मरजी मिलते है। पूरी जानते नहीं है। जैसा वो खेल करे हम वैसे करते है क्यों की हम जानते नहीं।

सीख - यह शरणागत भक्त का लक्षण है। और ये तो संतों की बात है। लेकिन आप लोगो से में ये कहता हूँ। कि कहीं नौका डूबने लगे तो उसमें पानी नहीं भरना, परंतु रोना बिलकुल नहीं। यही समझना कि बहुत ठीक है, बड़ी मौज की, बड़े आनन्द की बात है : इस में कोई छिपा हुआ मंगल है। 

Friday, November 28, 2014

Hindi Motivational Thoughts....जो अदृश्य है वही मालिक है

जो अदृश्य है वही मालिक है 
विचार एक शक्ति है जो अदृश्य है 
एक विचार मुस्कान देता है 
एक विचार दुःख भी देता है 
विचार अदृश्य है पर उसके हावभाव दिखते है 
एक जो विचार करता है वो भी अदृश्य है 
विचारों का रचनाकार याने मैं एक आत्मा !

मैं आत्मा जो अदृश्य हूँ 
मेरा शरीर दृश्यमय (दिखता है )
विचार ,रवैया अदृश्य है 
लेकिन स्वास्थ दिखता है 
ऐसी कोई मशीन नहीं 
जो अदृश्य को माप सके 

अगर आप अदृश्य में विश्वास रखते है 
तो आप अवसर वादी है 
आप समझते है आप एक आत्मा है 
तो आपको अवसर मिलता है 
इस जीवन में और पुनर्जीवन में 
मानिए पुनर्जीवन को, कर्म सिद्दांत को 
और मैं आत्मा हुँ. 
जो दिखाई नहीं दे रहा है 
वही आपको सब कुछ नहीं देगा 
 जो दिखाई दे रहा है 

विज्ञानं में विश्वास मत करो 
जब वो कहता है आप कुछ नहीं 
सिर्फ मिट्टी के पुतले हो तत्वों से बने हो 

आप एक आत्मा हो , रूह  हो 
एक बिन्दु हो, शक्ति हो 
जो इस शरीर को चलाती हो 

हम सब का  पिता एक परमात्मा है 
जो एक और ज्योति पुंज है 
वो मुझसे अलग है क्यों कि 
वो सम्पूर्ण पवित्र है 

अपने को आत्मा समझ 
उस परमात्मा को याद करो 
इस से एक नहीं अनेक 
जन्मों का कल्याण होगा 


Thursday, November 27, 2014

Hindi Spiritual Motivational Thoughts........आत्मा अभिमानी बनो

आत्मा  अभिमानी बनो 

शान्ति और स्वछता का वातावरण निर्माण करो 

आज आत्मा अभिमानी बनो 

एक संकल्प करो 
मैं आत्मा हूँ 
इस हूनर को अपनावो 

ये दुसरो को मदत करेगा उनकी 
दिव्यता को निखारने में 
और आपको ख़ुशी देगा 

आत्मा अभिमानी बनना 
ये एक कला है 
इस कला को विकशित करो… 

ये एक सहज विधी है 
परमात्मा प्यार पाने का

खुश रहो ख़ुशी बाटो 

ओम शान्ति 

Wednesday, November 26, 2014

Hindi Motivational stories.........नया जन्म

नया जन्म

           एक बार कि बात है एक चोर राजा के महल से चोरी करके भाग रहा था , राजा के सिपाही ने जान लिए कि कोई चोर आया है ,सिपाही उसके पद चिन्ह को देखकर उसका पीछा करने लगे। चोर महल के बाहर निकल गया था। राजा के सिपाही उसके पद चिन्ह के साथ चलते गये। एक जगह वो रुख गए क्यों की उसके आगे कोई चिन्ह उन्हें नहीं मिला तो सिपाहियों ने अंदाजा लगया चोर गॉव के बाहर नहीं गया है। वो गॉव में ही है। और गाँव में चौराहे के मैदान में प्रवचन चल रहा था। सिपाही को लग चोर भी हो ना हो इसी सतसंग में छिपकर बैठ गया है।
वो भी वही खड़े हो गये।

       सतसंग में महाराज ने कहा की ,"भगवन ने कहा है जो सच्चे दिल से मेरी शरण आता है। उसके सारे पाप भस्म हो जाता है। और उसका नया जन्म हो जाता है। बस उसे एक बार कहना है दिल से की ," भगवान आज से मैं तेरी शरण लेता हूँ।  मैं तेरा तू मेरा , और आज के बाद कभी कोई पाप कर्म नहीं करूँगा।

     चोर सतसंग में बैठा हुआ था उसको ये बात लगी। उसने मन ही मन दिल से प्रतिज्ञा कि और भगवान की शरण लेली। सतसंग पूरा हुआ। सभी गुरु से मिलने के लिये कतार में खड़े हो गये और गुरु से आशीर्वाद  लेकर अपने अपने घर जाने लगे। लेकिन गेट के पास राजा के सिपाही सभी के पैरों के चिन्ह का परिक्षण कर रहे थे। उसमें एक व्यक्ति का पद चिन्ह मिला जिसकी वो तलाश कर रहे थे। और सिपाहियों ने उसको राजा के समाने पेश किया। राजा ने पूछा तुमने चोरी कि है ? उसने कहा। " नहीं राजा जी इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं कि। राजा के सिपाहियों ने कहा ये झूठ बोल रहा है। इसके पद चिन्ह चोर के पद चिन्ह से मिलते है। राजा ने सोचा चलो एक परीक्षण करते है। उस व्यक्ति के हाथ में एक पत्ता रख दिया गया और उसके ऊपर गरम लोहा को रख दिया। इससे न उसका हाथ जला न पत्ता जला। तब राजा ने उस से कहा हमें माफ़ करना आप चोर नहीं है। अब आप जा सकते है। तब उस व्यक्ति ने कहा राजा जी आपका धन जंगल के इस जगह में है। तो राजा ने सिपाहियों को भेजा उस जगह तो धन मिला। ये देखकर राजा ने पूछा "एक बात नहीं समझ में आया अपने चोरी नहीं की फिर आपको धन के बारे में कैसे पत्ता चला ? और आपके हाथ भी नहीं जले ?

      उस व्यक्ति ने कहा ," राजन में यहाँ से चोरी करके जंगल में धन छुपाकर सतसंग में जा कर बैठ गया ताकी मुझे कोई पकड़ ना सके। लेकिन सतसंग की एक बात मेरे दिल में उतर गयी ," जो दिल से भगवान के शरण जाता है उसके सारे पाप धूल जाते है और उसका नया जन्म हो जाता है अगर वो सच्चे दिल से प्रतिज्ञा करे तो "
और मैंने वैसे ही किया इस लिए मेरा नया जन्म हुआ है। मेरे हाथ भी नहीं जले। और इस जन्म में मैं सच्चा भक्त हूँ इसलिये धन का पता बता दिया।

सीख - सच्चे दिल पर साहेब राजी याने एक बार कोई ऐसी प्रतिज्ञा कर ले तो भगवान उसका काया कल्प कर देता है। 

Monday, November 17, 2014

Hindi Motivational stories... राम और हनुमानजी की सेवा

               राम और हनुमानजी की सेवा 

          एक बार ऐसा हुआ की भारत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तीनों भाई मिलकर माता सीताजी से विचार किया कि  हनुमान जी राम जी सेवा करते है और हमें सेवा का मौका नहीं मिलता इसलिए आज से हम तीनों भाई मिलकर राम जी की सेवा करेंगे। सीता माता ने कहा ठीक है। और दूसरे दिन जब हनुमानजी आये तो उन्हें कोई सेवा नहीं दी गई। और कहा की आज आपके लिए कोई सेवा नहीं है रामजी की सेवा सब को बाँट दी गयी है। हनुमान जी ने देखा की प्रभु राम जी जम्भाई आने पर चुटकी देकर कम करने की सेवा किसी ने नहीं ली है। सो हनुमानजी राम जी के पास खड़े रहे।

           जब रात हुई तो तीनो भाईयो ने हनुमान जी को बहुत समझाया की अब घर जाओ रामजी को सोने दो और हम उनकी सेवा में है। हनुमान जी ने कहा ठीक है और वो छत पर जाकर बैठ गये और चुटकी बजाने लगे। और जब सब चले गये तो सीता माता सेवा में आ गयी। और उन्होंने देखा की राम जी का मुँह खुला का खुला ही है। वे घबरा गई और सब को बूलाने लगी कुछ ही देर में सब आ गये। सब ने बहुत प्रयास किया की रामजी का मुख बंद हो पर सफल नहीं हो पाये। वैद जी को बुलाया गया पर कुछ नहीं हुआ। वासिष्ठ जी आये तो उनको  आश्चर्य हुआ कि ऐसी चिन्ताजनक समय पर हनुमानजी दिखायी नहीं दे रहे है। उस समय सब को हनुमान जी याद आयी तो हनुमानजी को ढूंढने लगे पता चला कि वो तो छत पर ही बैठकर चुटकी बजा रहे है। उन्हें बूलाया गया और जैसे ही हनुमान जी चुटकी बजाना बंद किया तो राम जी का मुख अपने आप बंद हो गया।

   सीख - अब सब की समझ में आया कि यह सब लीला हनुमानजी के चुटकी बजाने के कारण ही थी ! भगवान ने ये लीला इसलिये की थी कि जैसे भूखे को अन्न देना ही चाहिये, ऐसे ही सेवा के लिये आतुर हनुमानजी को सेवा का अवसर देना ही चाहिये, बंद नहीं करना चाहिये। फिर तीनों भाईयो ने कभी ऐसा आग्रह नहीं किया।