मैं हंस वाहिनी , तपस्विनी ब्रह्माकुमारी सरस्वती माँ हूँ । …
हम
सब ये जानते है कि नवरात्री में देवियों की पूजा
होती है। देवियों को शक्ति के रूप में याद किया जाता है। हर रोज एक देवी की
विशेष शक्ति को याद किया जाता है और उनकी उसी रूप में गायन भी किया जाता
है। जैसे माँ सरस्वती देवी को सब याद करते है और ये कामना करते है की माँ
सरस्वती से ज्ञान की प्राप्ति हो। इस से मानव अज्ञान से दूर होकर प्रकाश की ओर बढ़ने लगता है। तो चलिए इस रूहानी यात्रा पर
अपन
को संसार की बातों से अलग कर स्वम् को आत्मा निश्चय कर। ………मन और बुद्धि
के संकल्प द्वारा परमधाम की ओर उड़ान भरें। …पुरे आत्मा विश्वास के साथ। .
मैं आत्मा इस आवाज़ की दुनियाँ से दूर सूरज, चाँद , सितारों से पार …
जहाँ बहुत शान्ति है चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश है। इस
प्रकाशमय लोक में पहुंच गयी हुँ.... ऐसी शुक्ष्म अलोक में प्यारे बापदादा
मेरा स्वागत कर रहे है। मैं आत्मा
बापदादा की गोद में पहुँच कर अतीन्द्रया सुख महसूस कर रही हूँ … बापदादा
का स्नेह मुझ आत्मा को तृप्त कर रहा है। ...................
बापदादा के साथ मैं आत्मा एक ओर उड़ान भरते हुवे परमधाम में पहुंच गयी
हूँ जहाँ न आवाज़ है न संकल्प बस डेड साइलेंस है। ……………… मेरी आत्मा परमधाम
में परमात्मा के मिलन में डूब गयी है।
बिन्दु रूप अवस्था में खो गयी है। बीज रूप में ठीक गयी है। ......................
परम शान्ति में खो गयी है। ............. शान्ति , शान्ति और शान्ति।
यही वो महा मिलन है जिस से मेरी आत्मा शक्ति रूप धारण करती है। इसी विधी
से मेरी आत्मा पवित्र बन जाती है और अपने सत्य स्वरुप को पा लेती है (
कुछ देर इसी अवस्था में रहे )
अब
मुझ आत्मा को सच्ची शान्ति का एहसास हो चूका है। शान्ति में ही सब कुछ है।
शान्ति ही शक्ति का आधार है। और मै आत्मा शक्ति स्वरूपा बन गयी हूँ मुझ
आत्मा में सम्पूर्ण शक्ति आ गयी है और में आत्मा परमात्मा से मिलकर अब किसी
भी देवी अलंकार को धारण कर विश्व सेवा कर सकती हूँ।
मैं आत्मा अब धीरे धीरे परमधाम से निकल कर शांति की शक्ति से सम्प्पन
में शुक्ष्म लोक में आ गयी हूँ यहाँ में और बापदादा दोनों कम्बाइन है में
आत्मा शिव शक्ति बन गयी हूँ। मुझे याद आ रहा है कल्प पहले भी में ऐसे ही
शिवशक्ति बन विश्व कल्याण के कार्य में सहयोगी बनी थी।
बाबा
मेरे सामने एक दृश्य इमर्ज कर रहे है और में आत्मा उस दृश्य को देखती जा
रही हूँ। शुक्ष्म लोक में एक बहुत बड़ा ग्लोब है और उसमें रहने वाली सभी
आत्माएं अज्ञान अंधकार में भटक रही है। आत्मा होकर उन्हें एक्टर क्रिएटर और
डायरेक्टर का पता नहीं है। क्या कर रहे है और क्या करना चाहिए ये पता
नहीं है। न घर का पता है न मात पिता का ?…
अंधकार ही नहीं घोर अंधकार में आत्माएं फांसी हुई है।
इस
दृश्य को देख मेरा मन घबरा सा गया लेकिन बाबा ने मुझे शक्ति देते हुवे
कहा - बच्ची क्या सोच रही है ? मै हूँ ना तुम भी ऐसे ही थी। लेकिन आज तुम
ब्रह्माकुमारी हो। मेरी बेटी हो। . … बाबा का ये शब्द मेरी आत्मा को कल्प
पहले वाली स्मृति को जाग दिया और मुझ आत्मा को सब कुछ याद आ गया।
और मैं बाबा के साथ कम्बाइन हो गयी और अपने श्रेस्ठ स्वमन में आ गयी मै हंस वाहिनी , तपस्विनी , श्वेत वस्त्र धरणी ब्रह्माकुमारी सरस्वती माँ बन गयी। …
परमधाम
से हारे रंग की किरणों का फाउंटेन निकल रहा है और शुक्ष्म लोक मैं मुझ
आत्मा पर पड़ रही है और ये किरणे अनेक किरणे के रूप में बढ़ते हुवे मुझ
आत्मा से निकल कर सृष्टि के सभी आत्माओ को मिल रही है धीरे धीरे अब ये
हारे रंग की किरणे पुरे सृष्टि को कवर कर रही है। अब एक बहुत ही सुन्दर
दृश्य दिखाई दे रहा है। और परमधाम से हारे रंग का फाउंटेन मुझ से होकर
सारे सृष्टि को भरपूर कर रही है। सभी आत्माओ का मन ज्ञान गुण व शक्तिओ से भरपूर हो रहा है. कुछ देर इसी दृश्य को देखते रहिये।
पूरी तरह इस दृश्य को आत्मासात कर डूब जाईये। ....
अब धीरे धीरे बापदादा से मिलान मानते हुवे दृष्टी लेते हुवे मैं शिव स्वरूपा हंस वाहिनी , तपस्विनी , श्वेत वस्त्र धरणी ब्रह्माकुमारी माँ सरस्वती हूँ की इसी स्वमान को याद करते हुवे आप नीचे की ओर आ रहे है। और अपने शरीर में प्रवेश कर रहे हो।
मैं हर कार्य शान्ति में रहकर करुँगी ………अपने स्वधर्म को याद करते हुवे कर्म करुँगी। …आज पुरे दिन में बीच बीच में मैं श्वेत वस्त्र धरणी ब्रह्माकुमारी माँ सरस्वती हूँ इस स्वमान का भी अभ्यास करती रहूंगी …
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