Tuesday, November 4, 2025

दो रोटी दोपहर को खाता दो ही रोटी शाम को - सुरेश चंद्र केसरवानी




 दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

फिर भी माया के चक्कर में भूल गया तू राम को

सोच जरा इस जग में बंदे आए थे किस काम को

जिसने तुम्हें जहां में भेजा भूल गया उस राम को

दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

जिस को अपना तू समझता है

जिस पे तू रात दिन मारता है

ये तो कजग के टुकड़े है

ना आए तेरे काम को

क्यूँ भूल गया तू राम को

दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

 

 

जिस देंह पे नातू करता है

वो तो मिट्टी का ढेला है

जिसको अपना तू समझता है

कुछ पल के लिए ये मेला है

वह पल भी तुझको पता नहीं

कब जाएगा विश्राम को

क्यों भूल गया तू राम को

दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

अब गफलत मत कर जीवन से

चलना है निज धाम को

अब रहना नहीं किराए के घर में

चलना है अपने धाम को

अब सुबह शाम तू सुमिर ले बंदे

एक प्रभु श्री राम को

क्यों भूल गया तू राम को

दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

फिर भी माया के चक्कर में भूल गया तू राम को


लेकखसुरेश चंद्र केसरवानी (प्रयागराज)




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