Friday, November 14, 2025

*शीर्षक–अजब दुनियां का दस्तूर*

 

1–अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।

सोया पड़ा कोई खोया पड़ा है।

कोई रात दिन देखो रोया पड़ा है।

लड़ते झगड़ते नहीं चैन पल का।

मरे जा रहे हैं नहीं ज्ञान कल का।

है पल भर का जीवन संजोया पड़ा है।

कोई रात दिन देखो रोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


2–अपना ही अपना संजोया पड़ा है।

जो मन कह दिया वो ही बोया पड़ा है।

संजोने में दिन-रात यूं मर रहे हैं। 

नहीं कुछ पता है कि क्या कर रहे हैं।

जो मन कह दिया वो ही बोया पड़ा है ।

मुकद्दर को अपने वो धोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


3– नहीं कुछ खुशी है, नहीं कुछ है आशा ।

जिधर भी वो जाता है मिलती निराशा।

भटकता है दर-दर कभी जाता मंदिर।

कभी जाकर मस्जिद में धरता है माथा।

नहीं फिर भी मिलता सुकून अपने दिल को।

वो किस्मत को अपने भिगोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यह इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


4– कहो कुछ तो कहते हैं मुझसे भला कौन ।

होशियार होगा भला इस जहां में।

यह माया की छाया में घर को है भूले।

परम शिव पिता को भी दिल से है भूले, 

वो माया की दुनिया में सोया पड़ा है।

किस्मत को अपने भी खोया पड़ा है।

अजब हाल देख यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


     *ओम शांति* 

रचनाकार– *सुरेश चंद केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

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