1–बड़ी भाग है, इस जहां में जिधर भी।
नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।
बड़ी दौड़ है ना है पल भर की फुर्सत।
न पूछो कि इनसे कहां जा रहे हैं।
न तन की खबर है, न मन की खबर है।
ना दुनिया की कोई जतन की खबर है।
नहीं कुछ पता है न दर न ठिकाना,
जिधर मन ने मोड उधर जा रहे हैं।
बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी।
नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं
2–है भुला ये राही मगर इनसे पूछो की।
ए मेरे भाई कहां जा रहे हो,
तो फट से फलक से यूं हंस के कहेंगे।
ना पूछो कि मुझसे कहां जा रहे हैं।
बड़ी दौड़ है ना है पल भर की फुर्सत
न पूछो कि हमसे कहां जा रहे हैं।
3–ये माया की नगरी है कैसी बजरिया।
यहां जो भी आया वो भुला डागरिया।
हु में कौन आया कहां से ना मालूम।
है जाना कहां और कहां जा रहे हैं।
बड़ी भाग है इस जहां में इधर भी
नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं
4– परेशान है दुख में डूबा है आलम
नजर को झुकाए चले जा रहे हैं।
नजर जब किसी की नजर से है मिलती।
तो झूठी हंसी में हंसी जा रहे हैं।
हकीकत का कुछ भी पता तक नहीं है।
दिखावे में यूं ही हंसे जा रहे हैं।
बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी,
नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।
5– हकीकत का मंजर नहीं कुछ समझते।
है माया के दलदल में दिन-रात फसते।
हैं होशियार इतना की बातें न करना।
यूं मुंह को दबाए हंसे जा रहे हैं।
हंसी भी बनावट खुशी भी बनावट।
बनावट में यूं ही फंसे जा रहे हैं।
बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी
नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।
*ओम शांति*
रचनाकार *–सुरेश चंद्र केसरवानी*
(प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर –9919245170
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