Monday, November 17, 2025

शीर्षक – मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।*


1–किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

ये दुनिया है कोई सम्मान देगा तो भी अच्छा है।

ये दुनिया है कोई अपमान देगा तो भी अच्छा है।

मान सम्मान और अपमान सब कुछ तुम समा लेना।

मगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना। 


2–ये दुनिया में सभी इंसान एक मेहमान जैसा है।

कोई गोरा कोई कला है तो इंसान जैसा है।

आदमी–आदमी के काम में आ जाए तो अच्छा।

अगर अच्छा नहीं करना बुरा भी यार मत करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी का गफलत नहीं करना।


3–ये दुनिया में अगर आए हो तो कुछ तो सहन करना ।

बुराई जो हमारे दिल में है उसको दहन करना।

मिले कुछ क्षण तुम्हे परमात्मा का तुम मनन करना।

सहन करना दहन करना मनन करना ही जीवन है।

अगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है कर जिंदगी जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना कभी नहीं करना मिली है।


4– आखरी सांस तक इंसान उम्मीदों में जीता है।

किसी का प्यार पाता है किसी का विष भी पीता है।

मगर इंसान अपनी जिंदगी को हंस के जीता है।

है जीवन आपका हंसकर के जीवन पार कर लेना।

कभी फुर्सत मिले परमात्मा का जाप कर लेना।

मगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।


     *ओम शांति* 

रचनाकार – *सुरेश चंद्र केसरवानी*

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

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