1–जहां दो-चार जन एक साथ में बैठे हों किस्मत है।
सार्थक हो रही हो बात तो समझो ये किस्मत है।
बड़ी मुश्किल से ही दो-चार जन मिलते मोहब्बत से।
आपसी में रहे सद्भाव तो समझो ये किस्मत है।
2–एक ऐसा खिलौना हांथ में आया जो जादू है।
कर लिया अपने वश संसार को कैसा ये जादू है।
चाहे लड़का हो या लड़की हो चाहे बूढ़ा हो बच्चा।
आधा पागल हुआ संसार जाने कैसा ये जादू है।
3– आपसी प्यार अब संसार में बिखरा नजर आता।
नहीं बजती अब वो शहनाइयां घर के द्वारे में।
चार भाई का था परिवार संग एक साथ रहता था।
कहीं दिख जाए वो आलम तो समझो कि ये किस्मत है।
4–अगर मां-बाप घर में है उन्हें सम्मान मिलता है।
वही घर स्वर्ग है समझो बड़ी उनकी ये किस्मत है।
जहां दो-चार जन एक साथ में बैठे हो किस्मत है।
सार्थक हो रही हो बात तो समझो ये किस्मत है।
*ओम शांति**
रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी*
(प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर –9919245170
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