Wednesday, November 26, 2025

शीर्षक – हमारी बेटियां


1–ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

है दरिंदों की निगाहें यूं गलत।

तुम तो अपने आप को एहसास कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।


2– तू ही मां है तू बहन है तू ही घर की बेटियां। 

तू ही इज्जत तू ही दौलत तू ही घर की रोटियां।

तू ही दुर्गा तू भवानी तू कालिका आभास कर।

दानवों को इस धारा से तू ही इनका नास कर।

तू अपनी शक्ति का जरा एहसास कर है।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।


3–आप से ही आश है संसार की।

आप से ही प्यार से संसार की।

आप से ही यह जहां है चल रहा।

आप से ममता भरी संसार की।

आप शक्ति हैं न खुद को निराश कर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर। 


4– दिन पे दिन यूं बढ़ रही है यातना।

शक्ति बनकर कर दो इनका खत्मा।

पापियों का नास करना है तुम्हें।

शक्ति का एहसास करना है तुम्हें।

चेतना का अब तुम आगाज कर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर। 


5–तुम हो शक्ति खुद की तू पहचान कर।

राम रावण की नजर पहचान कर।

तू ही सीताराम को वरमाल कर। 

रावणों की हर नजर पहचान कर।

लक्ष्मण रेखा को न अब तू लांघना।

सीता होकर राम की कर साधना।

अपनी मर्यादा का कुछ आभास कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

है दरिंदों की निगाहें यूं गलत।

तुम तो अपने आप को एहसास कर। 



*ओम शांति**

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

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