Friday, November 7, 2025

*शीर्षक जिंदगी का सफर*


जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए 

भले हमसे है वो नाराज  हम ही बोल देते हैं

 बंद है प्यार की खिड़की जुबा भी बंद है उनके 

आज हम प्रेम की  खिड़की को फिर से खोल देते हैं हम ही बोल देते हैं 

जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए भले हमसे है वह नाराज हम ही बोल देते हैं 

चलो अच्छा हुआ कुछ दूरियां थी पर वह अपने हैं 

मैं अपनापन दिखाकर आज उनसे बोल देते हैं

 मिटाकर दूरियां दिल की मोहब्बत की निगाहों से 

आज हम दिल का रिश्ता दिल से फिर यूं जोड़ लेते हैं हम ही बोल देते हैं

 जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए भले हमसे है वह नाराज हम ही बोल देते हैं

 हमें सब कुछ पता है जिंदगी की नाव कागज की 

चलो हम ज्ञान गंगा की नदी में छोड़ देते हैं 

लगेगी या किनारे या भंवर में डूब जाएगी

 यह धारा है बहुत गहरी लहर भी खूब आएगी

 मगर चिंता नहीं पतवार है प्रभु के ही हाथों में 

उन्हीं के नाम से इस नाव को हम छोड़ देते हैं हम ही बोल देते हैं 

जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए भले हमसे हैं वो नाराज हम ही बोल देते हैं 

कौन देखा है कल की बात हम परसों की करते हैं 

यही अज्ञानता है बात हम बरसों की करते हैं 

मगर हम जानते हैं जिंदगी पल भर का खेला है यह मेला है झमेला है मगर सुंदर ये मेंला है

 इसी मेले में उनसे आज हम कुछ बोल देते हैं

 भले हमसे हैं वह नाराज हम ही बोल देते हैं 

जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए भले हमसे है वह नाराज हम ही बोल देते हैं 

        *ओम शांति* 

 रचनाकार – सुरेश चंद्र केशरवानी (प्रयागराज शंकरगढ़)

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