दीवारें चार होती है मगर छत एक होता है
यू बातें चार होती हैं मगर सच एक होता है
पहुंचना है अगर मंजिल में चाहे हम जिधर भटके मगर सचखंड की दुनिया का पथ भी एक होता है दीवारें चार होती हैं मगर छत एक होता है
आज उलझा हुआ इंसान है झूठी पहली में
कोई उलझा हुआ है दोस्त में कोई सहेली में
नहीं बजती किसी के घर में अब सुख चैन की बंसी
क्योंकि हर घर में एक दूजे से यूं मतभेद होता है
दीवारें चार होती है मगर छत एक होता है
आज इंसान भल इंसान से क्यों दूर होता है
सगा भाई सगे भाई से क्यों दूर होता है
भरी दुर्भावना इंसान में है कूटकर भीतर
यही कारण बेटा मां बाप से भी दूर होता है
दीवारें चार होती है मगर छत एक होता है
आज यूं मर रहा इंसान रातों दिन कमाता है
मगर फैशन की दुनिया में नहीं संतोष पता है
उलझ जाता है जब अपने ही कुछ उल्टे विचारों में
वही इंसान फिर इंसान से हैवान होता है
दीवारें चार होती हैं मगर छत एक होता है
यूं बातें चार होती है मगर सच एक होता है
पहुंचना है अगर मंजिल में चाहे हम जिधर भटके
मगर सचखंड की दुनिया का पथ भी एक होता है
दीवारें चार होती हैं मगर सच एक होता है
ओम शांति*
कवि –सुरेश चंद्र केसरवानी (प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर– 9919245170
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