Thursday, December 4, 2025

*शीर्षक– मन में विचार की गंगा*


1–मन में विचार की गंगा हो।

सत्संग समागम धारा हो।

नित ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।

बुद्धि में निखरता आएगी।

जब नित्य सत्संग की राह चलो। 

सूरत मूरत बस जाएगी।

जब बांह में लेकर बाह चलो।

मर्यादित बोल तुम्हारा हो।

शब्दों में ज्ञान की धारा हो।

जब खान पान सात्विक रसना हो।

तब मन में उजियारा हो।

नित्य ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।


2–अंधियारे में क्यों भटक रहे हो।

ज्ञान का दीप जला डालो।

उस ज्ञान का सागर परमपिता से

कुछ तो योग लगा डालो।

वो निराकार है दया का सागर

वो दीन बंधु दुख हरता है।

वो जग का पालनहार पिता 

वो जग का पालन करता है।

हो सत्य अहिंसा परम धर्म का

दिल में तुम्हारे नारा हो

मर्यादित बोलो तुम्हारा हो

शब्दों में ज्ञान की धारा हो।

नित ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

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