Tuesday, December 9, 2025

*शीर्षक –द्वेष की भावना*

 

1–यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं ।

वह एक दूसरे के ही पीछे पड़े हैं

है नफरत भरी द्वेश की भावना है।

खुले आम इज्जत को खींचे पड़े है 


2–मंदिर या मस्जिद कोई धर्मशाला।

हो स्कूल कॉलेज या पाठशाला।

वो भगवान के नाम को भी न छोड़ें।

बने हैं पुजारी और नीछे पड़े हैं।

यहां एक दूजे के पीछे पड़े हैं।


3–हो व्यवसाय या राजनीति की गलियां।

बाजारों में बिकती है फूलों की कलियां।

हो बेला चमेली गुलाबों की डाली।

दुकानें खुली है और बैठे हैं माली।

बाजारों में सब कुछ खुलेआम बिकता।

समाजों में अब कितने छींटे पड़े हैं।

यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं ।


4–वह अंजान कुछ भी नहीं जानते है।

वो भगवान को भी नहीं मानते हैं।

वो अपनी ही धुन में चले जा रहे हैं।

नहीं कुछ पता है कहां जा रहे हैं।

मिला आईना जब वह चेहरा को देखा।

वो देखा की अनगिनती छींटे पड़े हैं।

यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं।

नफरत भरी देश की भावना है। 

खुलेआम इज्जत को खींचे पड़े हैं। 

यहां एक दूजे के नीछे पड़े है।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

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