Saturday, March 22, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " सच्चा मित्र - ' कर्म '

सच्चा मित्र - ' कर्म '

                    एक व्यक्ति था। उसके तीन मित्र थे। एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था।  एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था। दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।  और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता। और कुछ ऐसा हुआ एक दिन उस व्यक्ति को कोर्ट में जाना था। और किसी कार्यवश और किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था। तो वह व्यक्ति अपने सब से पहले मित्र  के पास गया और बोला - मित्र क्या तुम मेरे साथ कोर्ट में गवाह बनकर चल सकते हो? तो वह बोला - माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।  उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था।  आज समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया तो दूसरा मित्र की मुझे क्या आशा है। फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया और अपनी समस्या सुनाई तो दूसरे मित्र ने कहा कि मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ कोर्ट के दरवाजा तक जाऊँगा, अन्दर तक नहीं। तो वह बोला कि बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए। फिर वह तीसरे मित्र के पास गया तो तीसरा मित्र तुरन्त उसके साथ चल दिया।

                      अब आप सोच रहे होँगे कि वो तीन मित्र कौन है? तो चलिये सुनाते है। जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते है। सब से पहला मित्र है हमारा अपना शरीर। हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र  हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता। दूसरा मित्र है शरीर के सम्बन्धी जैसे - माता - पिता, भाई - बहन, मामा - चाचा इत्यादि जिनके साथ रहते, जो सुबह - दुपहर शाम मिलते है। और तीसरा मित्र है - कर्म जो सदा ही साथ जाते है।

                      अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज पूरी में माना कोर्ट में जाती है, उस समय शरीर रूपी पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता, जैसे कि  उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया। दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक याने कोर्ट के दरवाजे तक राम नाम सत्य है कहते हुए जाते है तथा वहाँ
से फिर वापिस लौट जाते है। और तीसरा मित्र आपके कर्म है जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।

सीख - अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी कोर्ट में जाने की जरुरत नहीं होगी। और धर्मराज भी सलाम करेगा।
                      

Friday, March 21, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " रूहानी दर्पण "

रूहानी दर्पण

         एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे। शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब सब शिष्य चले गए तो एक शिष्य बैठा रह गया। बुद्ध  उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो ? तब उस शिष्य ने कहा - यदि भगवान् मुझे आज्ञा दे तो मै इस देश में घूमना चाहता हूँ। तब बुद्ध कुछ समय शान्ति में मग्न हुए और फिर कहा शिष्य से बुरे लोग तुम्हारी निन्दा करेँगे और गालियाँ देँगे, तब तुम्हें कैसा लगेगा ? इस प्रश्न का उत्तर में शिष्य ने कहा कि मै समझ लूँगा कि उन्होंने मुझ पर धूल नहीं फेकी या पत्थर नहीं मारे, तो यह लोग भले है। बुद्ध ने फिर कहा कुछ लोग धूल भी फेंक सकते है, पत्थर भी मार सकते है, तब क्या करोगे ? शिष्य ने कहा कि मै इस में भी भला समझूँगा कि उन्होंने मुझे हथियारों से नहीं मारा। इस के बाद बुद्ध ने फिर कहा कि इस देश में तो लुटेरों, ठगो, डाकुओ का भी निवास है, वे तुम्हें हथियारों से भी मार सकते है। ऐसा सुनकर शिष्य बड़े आराम से बोला कि वे लोग मुझे दयालु जान पड़ेंगे क्यों कि उन्होंने मुझे जीवित तो छोड़ा। क्यों कि यह संसार दुःख स्वरूप है। इस में बहुत दिन ज़िन्दा रहने से दुःख अधिक मिलते है। आत्महत्या तो पाप है, यदि कोई दूसरा मार दे तो यह उसकी दया है। ये बात अपने शिष्य से सुनकर महात्मा बुद्ध बहुत प्रसन्न हुऐ और उन्होंने उस शिष्य को कहा कि साधु वही है जो किसी को बुरा नहीं कहता, और देश भर में घूमने कि अनुमति दे दी।

 सीख  -  वास्तव में भगवन हमें ऐसा ही रूहानी दर्पण बनाते है जिस में कि किसी का कैसा भी रूप आए लेकिन उस रूप की, चाहे वह भयानक विकारी हो या फिर अच्छा, तो उसकी अच्छाई और बुराई उसे स्वतः दिखाई दे लेकिन हमारे ऊपर उसका कोई प्रभाव न हो। हमें तो अपने रूहानी नाशे में रहना है।

Hindi Motivational & Inspirational Stories - समय पर कार्य का महत्त्व .

समय पर कार्य का महत्त्व  (Importance of Time)


       एक जंगल में वट का वृक्ष था जिस पर एक बन्दर और उसकी बन्दरिया रहती थी। एक दिन अचानक वहाँ तोता - मैना आकर उसी वृक्ष की डाली पर बैठे। बन्दर और बन्दरिया की जोड़ी को देखते हुए मैना ने तोते से कहा - यह समय इतना श्रेष्ट, सुन्दर और बलवान है, यह घडी इतनी उत्तम है कि इस वक्त यह बन्दर और बन्दरिया डाली से कूद पड़े तो जमीन पर गिरते ही राजकुमार और राजकुमारी के रूप में बदल जायेंगे (बन जायेंगे ) अब ये बात बन्दरिया ने सुन लिया सो उसने सारी बात बन्दर को बताया और तुरन्त एक साथ जमीन पर कूदने के लिए आग्रह किया। लेकिन अभिमान में चूर बन्दर ने उसकी बात न मानी और बोला - जा तू ही राजकुमारी बन जा मैं तो यह ही ठीक हूँ। बन्दरिया समजदार थी। वह जानती थी समय का महत्त्व क्या है, गया वक्त फिर नहीं आयेगा। वह कूद पड़ी और जमीन पर गिरते ही राजकुमारी बन गई। और जब बन्दर ने उसे राजकुमारी बनते देखा तो वह भी कूद पड़ा। लेकिन तब तक समय बदल चूका था। परिणाम यह हुआ कि बन्दर के गिरते ही बन्दर की टाँगे टूट गई। वह रोने और पछताने लगा। उसे स्वम् से आत्म - ग्लानि हो रही थी। मैना की बात न मानने के कारण यह हुआ। समय का कितना मोल है ये उसके समझ में आ गया था पर अब कुछ नहीं हो सकता था सिर्फ वह अपने आप को और अपने गलती पर गिड़गिड़ता रहा।

            

          और उसी समय वह से एक घुड़सवार और एक मदारी गुजर रहे थे। राजकुमार ने राजकुमारी को अपने घोड़े पर बिठाया और अपने राज्य की ऒर चला गया तथा मदारी ने बन्दर को दो डंडे मारे और शहर में नचाने के लिए ले गया।

सीख - समय का महत्त्व को जान हमें उस का सदुपयोग करना है ये भी एक कला है और एक बात तो याद रखना ही है, समय गया तो सब कुछ गया इस लिए समय को पहचानों।

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " ऐसी वाणी बोलिये (युक्ति से मुक्ति ) "

ऐसी वाणी बोलिये (युक्ति से मुक्ति )

      एक राजा का सब से प्रिया हाथी बिल्कुल बूढ़ा हो चला था। गॉव के कुछ प्रमुख्य लोगो को बुलाकर राजा ने वह हाथी उनको सौंप दिया और कहा कि इसकी अच्छी तरह से संम्भाल करना। और हाथी का हाल - समाचार रोज हमें बताते रहना। लेकिन जो भी व्यक्ति इस हाथी के मरने की खबर लेकर आयेगा उसे मौत की सजा दी जायेगी। राजा कि बात को कौन टल सकता था। उस समय तो सब ने हाँ कह दिया और हाथी को अपने साथ लेकर आये और राजा के बताये अनुसार हाथी की अच्छी देख - रेख करते रहे। और कुछ दिनों के बाद वह हाथी मर गया। अब सब गॉव के लोगो के सामने एक समस्या थी कि यह खबर लेकर राजा के पास कौन जाये? बहुत सोच विचार चला सब के मन में डर था। और उसी गॉव में एक गरीब बूढ़ा रहता था, जो बहुत बुद्धिमान था। उसने सुना तो वह बोला कि मै राजा के पास जाऊँगा, आप लोग चिन्ता छोड़ दो, मुझे कुछ भी नहीं होगा। दूसरे दिन वह सवेरे दरबार में राजा के पास पहुँचा और हाथ जोड़ कर बोला - अन्नदाता, आपने हम सबको सम्भालने के लिए जो हाथी दिया था वह कल दोपहर से न तो श्वास ले रहा है, न कुछ खा रहा है, न करवटें बदल रहा है, जैसे लेटा था वैसे ही लेटा है और न ही पानी पी रहा है। राजा ने तुरन्त पूछा - क्या वह मर गया ? वह बोला - महाराज ! ये हम कैसे कहे ? ऐसी बात सुनकर राजा उसकी विवेकशीलता पर बहुत खुश हुआ और उसे अपने सभासदों के साथ ही रख दिया, साथ में बहुत सारे उपहार भी दिये। उस बुद्धिमान बुजुर्ग की तरह हम भी अपने सकारात्मक बोल से सभी का दिल जीत सकते है। इसी लिए हमें सर्व के प्रति सदा शुभ भावना और शुभ कामना रख सकारात्मक बोल ही बोलने चाहिये।

सीख - हमें कोई भी बोल बोलने के पहले सौ बार अवश्य सोच लेना चाहिए कि इस बोल का उस व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा।  विद्धानों ने कहा है - पहले तोलो, फिर बोलो। हमें यह शब्द सदा याद रखना चाहिए -

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोए। 
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होये।।
 

Wednesday, March 19, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - " संतोषम् परम् सुखम् "

संतोषम् परम् सुखम् 

             एक विदेशी पर्यटक गर्मी के दिनों में भारत आया। उसने फलो की दूकान पर देखा कि विक्रेता दोपहर में आराम से बैठा था। न तो ग्राहक ही आ रहे थे और न ही ग्राहकों को बुलाने की चेष्टा ही कर रहा था। विदेशी को आश्चर्य हुआ। उसने कहा - ऐसे तुम्हारे फल कैसे बिकेंगे ?

दुकानदार बोला - साहब, दुकान का तो सबको पता है। आवाज़ क्या लगाना जिसको आना होगा वह                 आयेगा। 
विदेशी - ऐसे कैसे आयेंगे,  आवाज़ देंगे तो माल अधिक बिकेगा। 
दुकानदार ने पूछा - फिर .... 
विदेशी ने कहा - फिर तुम्हारी अच्छी कमाई होगी उससे और अधिक माल ला सकोगे, तुम्हारी दुकान               बड़ी हो जायेगी।  
दुकानदार प्रश्न करता गया फिर.…… 
विदेशी ने कहा - फिर तुम अपने साथ एक और सहायक रखना इसमें मजदूरों कि भी मदद ले सकते                 हो। अच्छी कमाई से तुम साहूकार बन जाओगे। उसके चुप होते ही दुकानदार ने                                             फिर वही प्रश्न किया
 दुकानदार ने कहा -…… फिर ……
विदेशी ने कहा - फिर तुम आलीशान मकान बना लेना, गाड़ियाँ खरीद लेना, ड्राईवर रखना। 
दुकानदार अभी भी पूछा फिर … … 
विदेशी ने कहा - फिर तुम आराम से मजे की ज़िन्दगी जी सकोगे। 
दुकानदार बोला - साहब, वह तो मै अभी भी आराम से, मजे से बैठा हूँ। इतना घूम - फिर कर आने की              क्या जरुरत है ! विदेशी निरुत्तर था। वह व्यर्थ की भाग दौड़ में उसे फॅसा नहीं सका। 
             
सीख - संतोष सभी गुणों का राजा है। इसे सर्वोतम धन भी कहा जाता है। 
          " जब आवे संतोष धन , सब धन धूरि समान "
भारतीय संस्कृति का यह आदर्श रहा है कि जो भी मिला है उसे ईश्वरीय देन समझ, अपने निर्धारित भाग्य का हिस्सा मान, उसी में राजी रहा जाये। 

" साई इतना दीजिये, जामे कुटुम्ब समाय। 
  आप भी भूखा  न रह , साधु ना भूखा जाय।।

            


Hindi Motivational & Inspirational Stories - " कला ! ईश्वर की अमूल्य देन "

कला ! ईश्वर की अमूल्य देन 

      एक राजा ने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो शिल्पी अपनी शिल्पकला से हमें भूल भुलय्या में डाल देगा उसे मुँह माँगा ईनाम देंगे और अगर ऐसा नहीं कर पायेगा तो मृत्यु दण्ड मिलेगा। एक युवा शिल्पी तैयार हो गया।  उसे 30 दिन की अवाधि दी गई। शिल्पी पुरूषार्थ में लग गया। दिन बीतने लगे। आखिर निश्चित दिन आ गया परन्तु शिल्पी की ऒर से राजा को कोई समाचार नहीं मिला। राजा क्रोधित हुए और हाथ में खुली तलवार लेकर शिल्पी के घर जा पहुँचा। ठोकर मारकर घर का दरवाजा खोला तो देखा कि सामने शिल्पी गहरी नींद में सोया हुआ था। राजा का गुस्सा चरम सीमा पर पहुँच गया।  वह शिल्पी को मारने दौड़ा। तभी द्वार के पीछे छिपे युवा शिल्पी ने सामने आकर कहा - जहाँपनाह ! सजा देनी ही है तो मै तो यहाँ हूँ, यह तो मेरे द्वारा बनाई गयी मेरी प्रतिमा है। 

      राजा शर्मिंदा भी हुआ और युवा शिल्पी को मुँह माँगा ईनाम भी दिया।  यह है शिल्पी की अदबुध साधना का फल। और अपने सुना होगा पिकासो नाम के एक सुविख्यात चित्रकार के गुलाब - पुष्प के चित्र पर भ्रमर रस  चूसने के लिए इकट्टे हो जाते थे और उसके बनाए बिल्ली के चित्र को देख कुत्ता घूरता रहता था। 

सीख - कलाएँ हम सब के अन्दर आज भी मौजूद है। जरुरत है स्वं को पहचानने की जिस के लिए थोडा समय निकलना होगा। तो हम कर सकते है अगर हम चाहे तो सब कुछ कर सकते है 

Tuesday, March 18, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - "गर्व न कीजिये "

 "गर्व न कीजिये "

        एक साधारण पढ़ा - लिखा परन्तु निर्धन व्यक्ति था। नौकरी कि तलाश में कलकत्ता पहुँचा और एक सेठ जी के यहाँ सफाई का काम करने लगा। प्रातः काल आता, लम्बी - चौड़ी दूकान में झाड़ू लगाता, दिन में कई बार करता और जब भी खाली समय मिलता तो उस समय वो पढता रहता था। उसकी लिखावट बहुत सुन्दर थी। एक दिन अचानक सेठ कि नज़र उसकी लिखावट कि तरफ गई, सेठ ने देखा तो पूछा - तू लिखना भी जानता है ? वह बोला थोडा बहुत लिख लेता हूँ। सेठ जी उसे चिट्टियां लिखने पर लगा दिया। कभी हिसाब - किताब की बात आती तो उसे बहुत समझ और सावधानी से देखता था। और एक दिन सेठ जी ने ऐसा पत्र देखा तो बोले - अरे , तू हिसाब - किताब भी जानता है ? उसने कहा - थोडा बहुत जानता हूँ।  तो सेठ जी ने उसे मुनीम के काम पर लगा दिया। और थोड़े दिनों में सेठ ने देखा कि ये तो अच्छा कर रहा है तो उसकी कार्य से प्रसन्न होकर उसे मुख्य मुनीम बना दिया।


       अब ये देख कर दूसरे मुनीम जलने लगे और सेठ जी के कान भरने लगे। अब वह दो कमरे वाले मकान में रहता था। दूसरे मुनीम उसकी गलती ढूंढ़ने में लगे रहते पर ये तो कोई गलती करता ही नहीं था। बस एक बात उनके समझ में नहीं आती थी , उसका एक कमरा खुला रहता था और दूसरा बन्द। हर रोज दूकान जाने से पहले  वह बन्द कमरे में जरुर जाता था। थोड़ी देर अन्दर रहता था फिर ताला लगाकर दूकान पर जाता। ये दूसरे मुनीम ने देख लिया और शक करने लगा। उसका काम बहुत अच्छा था और न किसी संदेह की गुंजाइश थी।  और ईर्षा करने वालों को यही सन्देह होता था कि वह बंद कमरे में क्यों जाता है ?और उस कमरे को बन्द क्यों रखता है ?


      एक दिन सब मुनीम मिलकर सेठ के पास गए , उन्होंने सेठ जी के कान भरे कि मुख्य़ मुनीम बेईमान है, रूपया खाता है और एक दिन वह आपका दिवाला निकाल देगा। और एक दिन प्लान के अनुसार जब मुख्य मुनीम अपने कमरे को खोल कर अन्दर गया, तब सब मुनीम मिलकर सेठ जी को ले गये और बोले कि चोर पकड़ा गया, बन्द कमरे में रुपये गिन रहा है। सेठ जी तेजी के साथ पहुँचे।  कमरा अन्दर से बन्द था, गुस्से से सेठ जी बोले - जल्दी दरवाजा खोलो, अन्दर क्या कर रहे हो? मुनीम ने कहा - थोड़ी देर में खोल देता हूँ। सेठ जी चिल्लाये - अभी दरवाजा खोलो, नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे। सभी मुनीम बड़े प्रसन्न थे। मुनीम ने दरवाजा  खोल दिया, सभी अन्दर गये। देखा कि वहाँ साधारण सन्दूक के अलावा कुछ नहीं था। सेठ जी ने कहा - इस सन्दूक में क्या है ?  मुख्य मुनीम हाथ जोड़कर बोला - सेठ जी, सन्दूक बन्द ही रहने दो। सभी मुनीम बोले कि इसी में तो सब - कुछ है, इस लिए ही खोलता नहीं है। सेठ जी ने कहा हट जा, हम खोलते है, हम इसे अवश्य देखेंगे। बड़े मुनीम कि आँखों में आँसू आ गये।  सेठ जी ने अपने हाथों से सन्दूक खोला और आश्चर्य से देखता ही रह गया। उस में थी एक फटी धोती, एक मैला कुर्ता और एक पुराना टुटा हुआ जूतो का जोड़ा। कोई भी इसका अर्थ नहीं समझ पाये। बड़े मुनीम ने हाथ जोड़ कर कहा महाराज, ये वे वस्त्र है जिन्हें पहन कर मै आपके पास आया था, आज आपने मुझे बड़ा मुनीम बनाकर सब सुख - सुविधाये दी है परन्तु मै अपनी वास्तविक्ता भूल न जाऊॅ, मेरे मन में अभिमान न आ जाये इस लिये हर रोज इन्हें देखता हूँ और प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अभिमान से बचाते रहना। सेठ जी के आँसू बह चले और बड़े मुनीम को गले लगा लिया, फिर बोले - धन्य हो तुम ! तुम्हारी तरह दुनियाँ में सब लोग करें तो दुनियाँ से सब पाप नाश हो जाये क्यों कि अभिमान ही पाप का मूल है। कबीर जी ने कहा है - 

                                             कबीरा गरब न कीजिए, ऊँचा देख आवास !
                                             कल्हा परे भुई लेटना, ऊपर जमनी घास।।

     सीख - हमारे जीवन में हमें कितनी भी तरक्क़ी मिले पर हमें उस का अभिमान न हो। ....