1– ज्यादातर गैर की बातों में बुद्धि को खापाया करते हैं ।
यह ऐसा है, वह ऐसा है।
हम यही बताया करते हैं।
अपने को अच्छा उन्हें बुरा,
यह सोच नजर में रहती है।
यह सोच गलत है खुद से पूछो,
उल्टी गंगा बहती है।
दिन-रात विचार चले उल्टा,
क्या यही ज्ञान की भाषा है।
परीचिंतन में जीवन बीते,
क्या मानव की परिभाषा है।
2– कैसे समाज समृद्ध बने
संगठन हमारा अच्छा हो।
हर वर्ग हमारे साथ रहे ।
हो वृद्ध युवा व बच्चा हो ।
हो सबका हित जनहित अच्छा हो।
ये समाज खुशहाल रहे ।
सद्भाव रहे हर प्रतिपल अपना,
संगठन रहे परिवार रहे।
बस यही भावना दिल में हो ,
बस यही मेरी जिज्ञासा है ।
सबके प्रति प्यार भरा हो दिल में,
मानव की परिभाषा है।
यह मानव की परिभाषा है।
3– शुभ चिंतन हो शुभ भाव रहे।
मन में न किंचित भाव रहे ।
ना मेरा हो ना तेरा हो।
एक दूजे से कुछ प्यार रहे ।
संगठन रहे तो शक्ति हो।
मानव में कुछ तो भक्ति हो ।
भावना हमारी स्वच्छ रहे ।
बस मन में यही अभिलाषा है।
संगठन एकता बनी रहे ,
यह मानव की परिभाषा है ।
यह मानव की परिभाषा है।
*ओम शांति**
रचनाकार – *सुरेश चंद्र केशेरवानी*
(प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर –9919245170