Monday, November 24, 2025

शीर्षक –दो चार जन


1–जहां दो-चार जन एक साथ में बैठे हों किस्मत है।

सार्थक हो रही हो बात तो समझो ये किस्मत है।

बड़ी मुश्किल से ही दो-चार जन मिलते मोहब्बत से।

आपसी में रहे सद्भाव तो समझो ये किस्मत है।


2–एक ऐसा खिलौना हांथ में आया जो जादू है।

कर लिया अपने वश संसार को कैसा ये जादू है।

चाहे लड़का हो या लड़की हो चाहे बूढ़ा हो बच्चा।

आधा पागल हुआ संसार जाने कैसा ये जादू है।

 

3– आपसी प्यार अब संसार में बिखरा नजर आता।

नहीं बजती अब वो शहनाइयां घर के द्वारे में।

चार भाई का था परिवार संग एक साथ रहता था।

कहीं दिख जाए वो आलम तो समझो कि ये किस्मत है।


4–अगर मां-बाप घर में है उन्हें सम्मान मिलता है।

वही घर स्वर्ग है समझो बड़ी उनकी ये किस्मत है।

जहां दो-चार जन एक साथ में बैठे हो किस्मत है।

सार्थक हो रही हो बात तो समझो ये किस्मत है।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Thursday, November 20, 2025

*शीर्षक – बेटी घर की गहना।*

 

1– मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।

जिस मात पिता ने पाला है। 

जिसकी आंखों का तारा है। 

जिस मात-पिता ने दिल का टुकड़ा माना।

उसको तुमने दुत्कार दिया।

जिसने टुकड़े-टुकड़े कर डाला। 

उसको तुमने प्यार किया।

मैं मना तुमने प्यार किया।

पर कुछ तो सोच लिया होता।

श्रद्धा के 35 टुकड़े को आंखों से देख लिया होता।

यह मानव नहीं कसाई है।

जिससे तू प्रीत लगाई है।

मेरी बेटी मानो कहना

अब प्यार किसी से ना करना।

प्यार किसी से ना करना।


2–तुम अपनी घर की इज्जत हो। 

तुम ही अपने घर की गहना।

मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।

ये प्यार नहीं है हत्यारों।

एक प्यार के नाम पर धोखा है।

ये प्यार तो दिल का सौदा है।

हिंदू मुस्लिम क्या होता है।

लेकिन हे गद्दारों तुमने

अपनी पहचान बताया है।

जिसने तुमको अपनाया है।

उसको तुमने दफनाया है।

कुछ तो डर गर इंसान तू है।

भगवान का ही ये कहना है।

तुम अपनी घर की इज्जत हो। 

तुम ही अपने घर की गहना।


3–जिनके घर में ये बेटी है।

उनके दिल में क्या होती है।

वह बाप तो पत्थर हो जाता।

मां चुपके चुपके रोती है।

ये आंसू शूप के मोती है।

दमन को रोज भिगोती है।

उनके दिल से कोई पूछे जिनके घर बेटी होती है।

बेटी इज्जत बेटी दौलत बेटी ही घर की गहना है।

बेटी कुछ तो तुम भी समझो ये मात पिता का कहना है।


4–कुछ तुमको पता नहीं बेटी ।

कैसे मैं तुमको पाला है।

मेरी आंखों में आंसू है।

न मुंह में एक निवाला है।

इस मात पिता को झटके से तूने यूं अपने दिल से निकाला है ।

अंजान मुसाफिर को तुमने अपना माना और प्यार किया 

उसके तेरे प्यार को न समझा टुकड़े टुकड़े कई बार किया।

ऐसे हैं दरिंदे अकल के अंधे।

उनसे बातें कभी नहीं करना अपनी इज्जत मां-बाप की इज्जत का तुम ध्यान सदा रखना।

मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक –जब मैं जन्म लिया जग में



1–जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।

ननिहाल में अम्मा के नामो से यार मुझे पहचान गया।

स्कूल गया तो गुरु जी पूछे।

हमसे अम्मा बाबू का नाम।

जब उन्हें बताया नाम लिखाया।

तब मुझको पहचान गया।

जब मैं जन्म लिया जग में।


2– हम भले भुला दे पर हमको वह कभी नहीं बिसराते हैं।

मां बाप भले भूखे सोए।

बच्चों को पहले खिलाते हैं। 

है मात-पिता भगवान तुम्हारे 

भगवान को किसने देखा है।

बचपन से लेकर अंत समय तक

उन्होंने तुमको देखा है।

आज की संतानों की नजर में मां बाप को न पहचाना गया।

जब मैं जन्म लिया जग में।


3– अब नहीं रहा वह वक्त दिनों दिन गिरता गया समाज।

कहोगे किसको कौन सुनेगा।

किस पर करोगे ना नाज। 

आज की संतानों में खो गई मर्यादा की बातें।

कलयुग का है एक खिलौना जिसकी माने बातें।

मां बाप की एक नहीं सुनते रिश्ता जैसे बेगाना हुआ।

जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।


4–मोबाइल से रात दीना कितना करते हैं बातें। 

मोबाइल में दिन है गुजरता मोबाइल में राते 

बारह एक बजे सोते हैं उठाते हैं दस बारह।

आज की संतानों ने सूरज की किरणे नहीं निहारा।

इसलिए रोगी और भोगी दिन प्रतिदिन बनते हैं।

जहां भी देखो अस्पताल दिन रात खुला करते हैं।

भूलो नहीं अम्मा बाबू को नहीं तो पछताओगे।

जीवन नर्क बना डाला फिर स्वर्ग कहा से पाओगे।

यही सत्य हैं आज की पीढ़ी में देखो मनमाना हुआ।

जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।



       *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Wednesday, November 19, 2025

**शीर्षक –क्या आसान है क्या मुश्किल है।*

 

1–अच्छा कर्म करें मानो मिट्टी बन जाए सोना।

कभी बुरे संकल्पों से भी बुरे बीज मत बोना।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।

कर्म का फल चुकाना मुश्किल है। 

उंगली गैरो पे उठाना तो आसान है। 

कोई हमपे उठाए मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।


2 अतिथि देवों भव दरवाजे पर पहले लिखा रहता था।

कुत्तों से रहो सावधान अब यही लिखा रहता है। 

चार कुत्तों को खिलाना आसान है।

मां-बाप को खिलाना मुश्किल है।

घर में कुत्तों को घुमाना आसान है।

एक गैया को चराना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।



3–हिंदू धर्म की प्रथम निशानी चोटी सब रखते थे।

अब नए-नए सुंदर लड़के भी मौलाना सा बनते हैं।

मूल्ला मौलाना बन जाना तो आसान है।

सत्य पथ पर  चल पाना मुश्किल है।

सब की नकले उतारना आसान है। 

उनके कर्म को निभाना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।



4– राजनीति के गलियारे में ऊपर नीचे होती।

किसी का सिक्का चल जाता है।

किसी की लुटिया डूबी ।

राहुल गांधी बन जाना तो आसान है।

योगी मोदी बन पाना मुश्किल है।

सबको रास्ता बताना तो आसान है।

खुद को रास्ते को लाना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसन है।

कर्म का फल चुकाना मुश्किल है। 



*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Tuesday, November 18, 2025

*शीर्षक –आप खुश तो रहो।*


1–कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो।

क्या करोगे ये दौलत नहीं जाएगी।

आपसे जो मिले मुस्कुराते रहो।

सब धरा का धरा पर ही रह जाएगी।

कुछ रहे न रहे आप खुश तो रहो।


2– जिंदगी एक अमानत तुम्हें है मिली।

तुम इसे व्यर्थ में यूं गवाना नहीं।

जिंदगी चार दिन की विरासत भी है।

ये विरासत यहीं पर ही रह जाएगी।

कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो 


3–आप हंसते रहो और हंसाते रहो।

भीड़ मेले की है ये चली जाएगी। 

मेले में जो मिले मुस्कुराते रहो।

ये घड़ी फिर दुबारा नहीं आएगी।

कुछ रहे न रहे आप खुश तो रहो।

 

4–हर सुबह एक नई जिंदगी है मिली।

कौन जाने कब शाम ढल जाएगी।

जो समय जा रहा है नहीं आएगा।

आखिरी शाम तेरी जरूर आएगी। 

कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो।


5–जिंदगी उस प्रभु की अमानत भी है।

इस अमानत में उनकी जमानत भी है ।

भूल कर अपनी दौलत समझना नहीं।

दोस्ती है जो पल में बिगड़ जाएगी।


कुछ रहे ना रहे आप खुश रहो। 

क्या करोगे यह दौलत नहीं जाएगी।

आपसे जो मिले मुस्कुराते रहो।

सब धरा का धरा पर रह जाएगी।


 *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*शीर्षक –ये जीवन चार दिन का*



1–ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।

पता तुझको नहीं होगा चार दिन बीत जाएगा।

तो हंस ले जिंदगी की हर घड़ी अनमोल है प्यारे।

तुम्हें हर पल हंसाने के लिए वो गीत गाएगा 

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


2–चार दिन के लिए इंसान यहां पर घर बना लेता।

और कहता है कि अपना है कुछ अपनों को बना लेता।

ये अपना घर और अपने लोग एक दिन छूट जाएगा।

जिसे कहता है अपना है वही यह गीत गाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


3– ना हो अनबन किसी से भी बहुत प्यारी ये दुनिया है।

सभी को मान लो अच्छा बहुत न्यारी ये दुनिया है।

मुसाफिर का ये खाना है किसी से बैर न रखना।

तुम्हें अंतिम विदाई में तुम्हारा मीत आएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


4–चार दिन का खिलौना एक पल में टूट जाना है।

तू अमर है खिलौना छोड़कर तुझको तो जाना है।

बहाना ना चलेगा जब बुलाने मीत आयेगा।

जब चल जाएगा तो यह जमाना गीत गाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


5–याद कर ले तू हर पल वो ही पल तेरे काम आएगा।

जो करना आज कर ले कल नहीं तेरे काम आएगा।

समय रुकता नहीं जीवन का हर पल बीत जाएगा।

आज हम जा रहे हैं कल हमारा मीत जाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


6–महल जिसमें तू रहता है सुना है दस दरवाजे हैं।

दसों में दस तरह की साज मलिक ने ही सजे हैं।

मैं मना है बहुत सुंदर महल पर है किराए का।

किराए का महल है एक दिन ये छूट जाएगा ।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक ––आप खुद में खुशी है अलग बात हैं।


1–आप खुद में खुशी है अलग बात है।

आपसे सब खुशी है अलग बात है।

जिंदगी कुछ समय के लिए है मिली। 

आप हर पल खुशी है अलग बात है।


2–ये खुशी जिंदगी में झलकती भी है।

ये खुशी आंसुओं से छलकती भी है।

हाथ में गर तेरे हाथ उनका रहे।

जिंदगी जीने की फिर अलग बात है।

आप खुद में खुशी अलग बात है।


3– जिंदगी में खुशी प्रेम से है मिली।

प्रेम करके निभाना अलग बात है।

प्रेम तो अब खिलौना सा लगने लगा।

प्रेम में डूब जाना अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


4–ये खुशी एक सुंदर सहेली भी है।

ये खुशी जिंदगी की पहेली भी है।

जिंदगी में अगर साथ उनका मिले।

तू जिसे चाहता हाथ उनका मिले।

जिंदगी जीने की फिर अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


5–आपकी जब खुशी के वो पल आयेंगे।

आप मन ही यूं मन में ही मुस्कायेगे।

आपसे कोई बातें करें ना करें।

आपकी उस खुशी की अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


6–आप अपने को फुर्सत से देखा करो।

अपने कर्मों की रेखा को देखा करो।

दूसरे पर नजर तो चली जाती है।

ये नजर खुद को देख अलग बात है।


आप खुद में खुशी है अलग बात है।

आपसे सब खुशी है अलग बात है।

जिंदगी कुछ समय के लिए है मिली।

आप हर पल खुशी हैअलग बात है।


ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170