Sunday, December 14, 2025

Pay Attension


Hi, this is Ram, your unknown but well-known friend. I think like you and deal with the same issues that you deal with on a daily basis, so I know you better. Today, I made a promise to myself that I would never be angry with anyone or in any circumstance. Suddenly, someone started copying me and acting like I'm the best, so I became angry inside again. However, today, because I paid attention, I was in control and adjusted myself with spiritual knowledge, which gave me peace in my grief, and after a while I was normal.

1️⃣ Daily Affirmation (Morning – 30 seconds)

Read or say this slowly, with feeling:

“I am a peaceful soul.
Anger is not my nature.
Situations may change, people may change,
but my inner state remains calm and dignified.
I respond with awareness, not habit.”

Say it once with eyes open, once with eyes closed.


2️⃣ Moment-of-Anger Self-Talk (Use Immediately)

The moment you feel irritation rising, say inside:

“I am noticing this, so I am already bigger than it.”

Then add:

“This feeling is temporary.
My peace is permanent.”

Take one slow breath, and slightly relax your shoulders.
That physical relaxation helps the mind reset.


3️⃣ Night Reflection (2 minutes before sleep)

Ask yourself gently (no judgement):

  • Where did I remain stable today?

  • Where did I notice a reaction but choose awareness?

  • What did I learn about myself today?

End with this thought:

“Today, I moved one step closer to my real self.”


One Important Truth (Please remember this)

Spiritual strength does not mean anger never appears.
It means anger no longer controls your actions.

Today, you were in the driver’s seat.
That is inner victory.

Thursday, December 11, 2025

*शीर्षक – नया वर्ष 2026*

 

 *गीत के बोल– जन्म जन्म का साथ है तुम्हारा हमारा*

1–एक-एक दिन गुजर गया।

ये साल पुराना–ये साल पुराना।

आने वाले नए वर्ष का स्वागत सुखद सुहाना।

एक-एक दिन गुजर गया।

ये साल पुराना–ये साल पुराना 


2–एक एक पल बीता कोई जान ना पाया।

कुछ सुख दुख की लडिया 

ये सब प्रभु उनकी माया।

उनके एक इशारे से जग जाए सारा जमाना।

एक-एक दिन गुजर गया 

ये साल पुराना–ये साल पुराना।


3–जाने वाले साल तुम्हारा हम स्वागत करते हैं।

तुम कभी नहीं आओगे हम दिल से नमन करते हैं।

आने वाले का भी स्वागत करता रहा जमाना।

एक-एक दिन गुजर गया

ये साल पुराना–ये साल पुराना।


4–आज खुशी का दिन है हम सब नाचे गाए।

एक को करें विदाई एक को पास बुलाए।

याद करें भगवान को जिसने बनाया नया पुराना।

एक-एक दिन गुजर गया

ये साल पुरान—यह साल पुराना।

आने वाले नए वर्ष का स्वागत सुखद सुहाना।

एक-एक दिन बदल गया

ये साल पुराना– ये साल पुराना।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Tuesday, December 9, 2025

*शीर्षक –द्वेष की भावना*

 

1–यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं ।

वह एक दूसरे के ही पीछे पड़े हैं

है नफरत भरी द्वेश की भावना है।

खुले आम इज्जत को खींचे पड़े है 


2–मंदिर या मस्जिद कोई धर्मशाला।

हो स्कूल कॉलेज या पाठशाला।

वो भगवान के नाम को भी न छोड़ें।

बने हैं पुजारी और नीछे पड़े हैं।

यहां एक दूजे के पीछे पड़े हैं।


3–हो व्यवसाय या राजनीति की गलियां।

बाजारों में बिकती है फूलों की कलियां।

हो बेला चमेली गुलाबों की डाली।

दुकानें खुली है और बैठे हैं माली।

बाजारों में सब कुछ खुलेआम बिकता।

समाजों में अब कितने छींटे पड़े हैं।

यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं ।


4–वह अंजान कुछ भी नहीं जानते है।

वो भगवान को भी नहीं मानते हैं।

वो अपनी ही धुन में चले जा रहे हैं।

नहीं कुछ पता है कहां जा रहे हैं।

मिला आईना जब वह चेहरा को देखा।

वो देखा की अनगिनती छींटे पड़े हैं।

यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं।

नफरत भरी देश की भावना है। 

खुलेआम इज्जत को खींचे पड़े हैं। 

यहां एक दूजे के नीछे पड़े है।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Thursday, December 4, 2025

*शीर्षक– मन में विचार की गंगा*


1–मन में विचार की गंगा हो।

सत्संग समागम धारा हो।

नित ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।

बुद्धि में निखरता आएगी।

जब नित्य सत्संग की राह चलो। 

सूरत मूरत बस जाएगी।

जब बांह में लेकर बाह चलो।

मर्यादित बोल तुम्हारा हो।

शब्दों में ज्ञान की धारा हो।

जब खान पान सात्विक रसना हो।

तब मन में उजियारा हो।

नित्य ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।


2–अंधियारे में क्यों भटक रहे हो।

ज्ञान का दीप जला डालो।

उस ज्ञान का सागर परमपिता से

कुछ तो योग लगा डालो।

वो निराकार है दया का सागर

वो दीन बंधु दुख हरता है।

वो जग का पालनहार पिता 

वो जग का पालन करता है।

हो सत्य अहिंसा परम धर्म का

दिल में तुम्हारे नारा हो

मर्यादित बोलो तुम्हारा हो

शब्दों में ज्ञान की धारा हो।

नित ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Wednesday, December 3, 2025

शीर्षक –मानव की दुर्दशा


1–आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।

आज अपने आप में ही मस्त है।

आज अपनी जिंदगी से त्रस्त है।

है गृहस्ती में मगर वह ग्रस्त है।

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।


2–आज टेंशन से भरी है जिंदगी।

रोज करता है प्रभु की बंदगी।

दौड़ता दिन-रात है और प्रस्त है। 

मंजिलों से दूर है और त्रस्त है।

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।


3– हर जगह विस्तार करता जा रहा।

आपसी टकरार करता जा रहा।

स्वार्थ की अंधी भरी इस जिंदगी में।

रात दिन रफ्तार करता जा रहा।

धन जुटाने में वो कितना व्यस्त है।

आपसी मतभेद में वो ग्रस्त है। 

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।


4– जिंदगी की इस अंधेरी दौड़ में।

एक अपनी आशियाना ठौर में।

कुछ बचाने में यूं शायद व्यस्त है।

कुछ लुटाने में यू शायद मस्त है।

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।


5– जिंदगी जीने का मतलब भूल कर।

मानवी संदर्भ को भी भूल कर।

गुनगुनाते है अंधेरी रात में।

मौत को भी ले लिया है हाथ में।

डर नहीं जीने ना मरने की उसे।

वो तो अपनी मस्तियों में मस्त है। 

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है। 

आज अपने आप में ही मस्त है।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Monday, December 1, 2025

*शीर्षक – क्या गलत बात है??*


1–चोर को चोर कहना गलत बात है।

शांति में शोर करना गलत बात है।

चार दिन का है मेहमान हर आदमी 

खुद को कमजोर कहना गलत बात है।


2–मित्र से दूर जाना गलत बात है। 

पितृ को भूल जाना गलत बात है।

चित्र हो आपका गोरा या सावला।

चरित्र को भूल जाना गलत बात है।


3–आपसी बैर रखना गलत बात है।

ईर्ष्या द्वेष रखना गलत बात है।

भाई जैसी है कोई अमानत नहीं।

भाई से दूर रहना गलत बात है।


4– यम नियम और संयम से चलते रहो।

जिंदगी जीने का तो यही सार है।

जिंदगी दी है प्रभु ने ये सौगात में।

प्रभु को दिल से बुलाना गलत बात है ।


5–खुद को देखो ना देखो किसी की तरफ।

खुद के जीवन पे अपना ही अधिकार है।

यदि किसी की कमी पर नजर जाती है।

यह नजर का भी जाना गलत बात है।



*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*शीर्षक –अपराध की दुनिया*

 

1–अपराध की दुनिया में रहकर क्या करोगे।

ना जी सकोगे सुकून से ना मर सकोगे।

झूठ की दुनिया अंधेरी रात है। 

सत्यवानी बोलकर भी क्या करोगे।


2– सत्य में ही जीत है सब ने सुना था।

अब सत्य हर पल हारता है क्या करोगे।

झूठ वाला जीत करके हस रहा है।

सत्यवानी बोलकर कर भी क्या करोगे।


3–है बदलती अब समा शमशान है।

आदमी अब सत्य से अनजान है।

झुंठ हावी हो रहा है सत्य पर।

सत्य का दीपक जलाकर क्या करोगे।

अपराध की दुनिया में रहकर क्या करोगे।


4–अब सहन करना ही मेरी जिंदगी है।

जिंदगी में प्यार ही तो बंदगी है।

बंदगी ही जिंदगी की शान है।

नफरतों का बीज बोकर क्या करोगे।

अपराध की दुनिया में रहकर क्या करोगे।


5– सत्यता ही जिंदगी की राह है।

सत्य राही से प्रभु की चाह है।

सत्यता की एक अलग पहचान है।

सत्य से दमन छुड़ाकर क्या करोगे।

झूठ वाला जीत करके हंस रहा है।

सत्य का दीपक जाला कर क्या करोगे।

अपराध की दुनिया में रहकर क्या करोगे।

ना जी सकोगे सुकून से ना मर सकोगे।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170