Saturday, November 15, 2025

*शीर्षक – जीवन की भाग दौड़*


1–बड़ी भाग है, इस जहां में जिधर भी।

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।

बड़ी दौड़ है ना है पल भर की फुर्सत।

न पूछो कि इनसे कहां जा रहे हैं।

न तन की खबर है, न मन की खबर है।

ना दुनिया की कोई जतन की खबर है।

नहीं कुछ पता है न दर न ठिकाना,

जिधर मन ने मोड उधर जा रहे हैं। 

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी।

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं


2–है भुला ये राही मगर इनसे पूछो की।

ए मेरे भाई कहां जा रहे हो, 

तो फट से फलक से यूं हंस के कहेंगे।

ना पूछो कि मुझसे कहां जा रहे हैं। 

बड़ी दौड़ है ना है पल भर की फुर्सत

न पूछो कि हमसे कहां जा रहे हैं। 


3–ये माया की नगरी है कैसी बजरिया।

यहां जो भी आया वो भुला डागरिया।

हु में कौन आया कहां से ना मालूम। 

है जाना कहां और कहां जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में इधर भी 

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं


4– परेशान है दुख में डूबा है आलम 

नजर को झुकाए चले जा रहे हैं।

नजर जब किसी की नजर से है मिलती।

तो झूठी हंसी में हंसी जा रहे हैं।

हकीकत का कुछ भी पता तक नहीं है।

दिखावे में यूं ही हंसे जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी,

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।


5– हकीकत का मंजर नहीं कुछ समझते।

है माया के दलदल में दिन-रात फसते। 

हैं होशियार इतना की बातें न करना।

यूं मुंह को दबाए हंसे जा रहे हैं। 

हंसी भी बनावट खुशी भी बनावट।

बनावट में यूं ही फंसे जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी 

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।


         *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Friday, November 14, 2025

*शीर्षक–अजब दुनियां का दस्तूर*

 

1–अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।

सोया पड़ा कोई खोया पड़ा है।

कोई रात दिन देखो रोया पड़ा है।

लड़ते झगड़ते नहीं चैन पल का।

मरे जा रहे हैं नहीं ज्ञान कल का।

है पल भर का जीवन संजोया पड़ा है।

कोई रात दिन देखो रोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


2–अपना ही अपना संजोया पड़ा है।

जो मन कह दिया वो ही बोया पड़ा है।

संजोने में दिन-रात यूं मर रहे हैं। 

नहीं कुछ पता है कि क्या कर रहे हैं।

जो मन कह दिया वो ही बोया पड़ा है ।

मुकद्दर को अपने वो धोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


3– नहीं कुछ खुशी है, नहीं कुछ है आशा ।

जिधर भी वो जाता है मिलती निराशा।

भटकता है दर-दर कभी जाता मंदिर।

कभी जाकर मस्जिद में धरता है माथा।

नहीं फिर भी मिलता सुकून अपने दिल को।

वो किस्मत को अपने भिगोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यह इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


4– कहो कुछ तो कहते हैं मुझसे भला कौन ।

होशियार होगा भला इस जहां में।

यह माया की छाया में घर को है भूले।

परम शिव पिता को भी दिल से है भूले, 

वो माया की दुनिया में सोया पड़ा है।

किस्मत को अपने भी खोया पड़ा है।

अजब हाल देख यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


     *ओम शांति* 

रचनाकार– *सुरेश चंद केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*शीर्षक –अर्पण समर्पण से सुखधाम*


1–अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो।

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।

करू प्यार सबसे मै दर्पण बनू तो।

यूं अर्पण समर्पण से सुखधाम होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो।

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।


2–मिला तन ये मानव का हु भाग्यशाली। 

गुरु ज्ञान से शिक्षा कुछ हमने पाली।

गुरु ज्ञान सागर का दर्शन करूं तो।

गुरु का ये जीवन में एहसान होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो 

जहां में हमारा भी सम्मान होगा ।


3–प्रथम ज्ञान मां के चरण आचरण से ।

मां के ही आंचल से आया हूँ रण में ।

समर में अगर मैं विजय हो गया तो ।

ये मां की दुआओं का एहसान होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करूं तो

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।


4– अमर आत्मा है यह तन है विनाशी।

अमर है तेरे कर्म की जो है राशि ।

मिटा ना सकेंगे ये कर्मों की रेखा।

तुम्हारे जिगर में जो अरमान होगा।

करू प्यार सबसे में दर्पण बनू तो 

यूं अर्पण समर्पण से सुखधाम होगा 

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करूं तो।

जहां में हमारा सम्मान होगा ।

      *ओम शांति*

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी* (प्रयागराज शंकरगढ़) 

मोबाइल नंबर –9919245170

Thursday, November 13, 2025

*शीर्षक – स्वार्थी इंसान*


1–आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है ।

वह किसी भी हाल मालामाल होना चाहता है।

राजसी हो ठाठ वह सम्मान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।


2–प्रेम की भाषा नहीं है प्रेम पाना चाहता है।

नेह परिभाषा नहीं स्नेह पाना चाहता है।

आज का इंसान कितना स्वार्थी है, स्वार्थ में

दूसरे के धन से दाता दान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।


3–भावना सद्भावना से दूर है ।

भाव का भंडार पाना चाहता है।

सत्यता की राह से गुमराह है। 

सत्य का विस्तार लाना चाहता है।

क्या करें आदत से वह मजबूर है। 

फिर भी वह खुशहाल होना चाहता है ।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।

आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है।


4– दूरियां दिल में है मन में प्यास है 

सबका वह विश्वास पाना चाहता है।

द्वेष नफरत से भरी है जिंदगी ।

फिर भी सबक खास होना चाहता है।

आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है ।

वो किसी भी हाल मालामाल होना चाहता है। 

राजसी हो ठाठ वो सम्मान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है ।


          *ओम शांति* 

रचनाकार – *सुरेश चंद केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक – मानव की परिभाषा



1– ज्यादातर गैर की बातों में बुद्धि को खापाया करते हैं ।

यह ऐसा है, वह ऐसा है।

हम यही बताया करते हैं।

अपने को अच्छा उन्हें बुरा,

यह सोच नजर में रहती है।

यह सोच गलत है खुद से पूछो,

उल्टी गंगा बहती है।

दिन-रात विचार चले उल्टा,

क्या यही ज्ञान की भाषा है।

परीचिंतन में जीवन बीते,

क्या मानव की परिभाषा है।


2– कैसे समाज समृद्ध बने

संगठन हमारा अच्छा हो।

हर वर्ग हमारे साथ रहे ।

हो वृद्ध युवा व बच्चा हो ।

हो सबका हित जनहित अच्छा हो।

ये समाज खुशहाल रहे ।

सद्भाव रहे हर प्रतिपल अपना,

संगठन रहे परिवार रहे।

बस यही भावना दिल में हो ,

बस यही मेरी जिज्ञासा है ।

सबके प्रति प्यार भरा हो दिल में,

मानव की परिभाषा है।

यह मानव की परिभाषा है।


3– शुभ चिंतन हो शुभ भाव रहे।

मन में न किंचित भाव रहे ।

ना मेरा हो ना तेरा हो।

एक दूजे से कुछ प्यार रहे ।

संगठन रहे तो शक्ति हो।

मानव में कुछ तो भक्ति हो ।

भावना हमारी स्वच्छ रहे ।

बस मन में यही अभिलाषा है।

संगठन एकता बनी रहे ,

यह मानव की परिभाषा है ।

यह मानव की परिभाषा है।


       *ओम शांति**

रचनाकार – *सुरेश चंद्र केशेरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Wednesday, November 12, 2025

*शीर्षक –घर जाना बहुत जरूरी है।*


1–जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे।

तो खाना बहुत जरूरी है ।

वैसे मन बुद्धि स्वच्छ रहे ।

प्रभु गुण गाना बहुत जरूरी है। 

आए हैं मुसाफिर खाने में।

क्यों सोच रहे हो जाने में।

आखिर एक दिन इस दुनिया से 

घर जाना बहुत जरूरी है।

जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे ।

तो खाना बहुत जरूरी ।


2–वैसे कुछ दिन के बाद यहां

दस्तूर निभाए जाते हैं ।

शोहरत दौलत को देखकर ही

व्यवहार निभाए जाते हैं।

कुछ सब्र करो सब कहते हैं ।

कुछ चीख चीख चिल्लाते हैं।

56 प्रकार का भोज छोड़कर पशु का मांस ये कहते हैं ।

यह मानव है या दानव है।

उनके ही बीच में रहना है।

यहां सत्य असत्य का मेला है।

कब तक इन सब को सहना है।

मानव स्वभाव को सतोगुड़ी में लाना बहुत जरूरी है।

आखिर एक दिन इस दुनिया से घर जाना बहुत जरूरी है। 

जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे तो खाना बहुत जरूरी है।


3–कहीं हसरत पुरानी है।

 कहीं नजरे रूहानी है।

कहीं दीदार होता है ।

कहीं इनकार होता है।

हमारे आखिरी मेले में तुम मेहमान बन आना।

आज हम जा रहे एक दिन तुम सबको भी है जाना।


 *ओम शांति* 

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*कल तो आता नहीं काल आ जायगा*


1– ये जो आज है यही आज काल हो जाएगा।

जब काल हो जाएगा तो भूतकाल  हो जाएगा।

हमलोग भविष्य की बातें किया करते हैं।

भविष्य की बाते न करे ।

भविष्य किसी ने देखा नहीं।

जो करना है कर लो आज नहीं काल आ जाएगा।

कल तो आता नहीं  काल आ जाएगा। 


2–हम लोग भविष्य के लिए कुछ काम किया करते हैं।

वर्तमान की इच्छाओं को कम करके इंतजाम किया करते हैं। 

अगर आज अच्छा है तो कल तुम्हारा अच्छा ही रहेगा 

कल की अगर सोचेंगे तो काल आ जाएगा।

जो करना है कर लो आज नहीं तो काल आ जाएगा 

कल तो आता नहीं काल जाएगा।


3–  बीज नफरत का जीवन में बोना नहीं ।

प्रेम सबसे करो पल में रोना नहीं।

जानता हूं चढ़ाई है कर्मों कि ये 

आप चलते रहो ढाल आ जाएगा।

करना है जो करो आज ही तुम करो।

कल तो आता नहीं काल आ जाएगा ।


4–आजकल आजकल यह भी करना नहीं ।

कौन जाने कहां काल आ जाएगा। 

हर सुबह की किरण देखते-देखते दोपहर आएगा शाम आ जाएगा।

एक-एक दिन महीने गुजरते रहे एक दिन फिर नया साल आ जाएगा ।

करना है जो करो आज ही तुम करो।

कल तो आता नहीं काल आ जाएगा।


       ओम शांति*

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी*

( प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170