Tuesday, November 18, 2025

शीर्षक ––आप खुद में खुशी है अलग बात हैं।


1–आप खुद में खुशी है अलग बात है।

आपसे सब खुशी है अलग बात है।

जिंदगी कुछ समय के लिए है मिली। 

आप हर पल खुशी है अलग बात है।


2–ये खुशी जिंदगी में झलकती भी है।

ये खुशी आंसुओं से छलकती भी है।

हाथ में गर तेरे हाथ उनका रहे।

जिंदगी जीने की फिर अलग बात है।

आप खुद में खुशी अलग बात है।


3– जिंदगी में खुशी प्रेम से है मिली।

प्रेम करके निभाना अलग बात है।

प्रेम तो अब खिलौना सा लगने लगा।

प्रेम में डूब जाना अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


4–ये खुशी एक सुंदर सहेली भी है।

ये खुशी जिंदगी की पहेली भी है।

जिंदगी में अगर साथ उनका मिले।

तू जिसे चाहता हाथ उनका मिले।

जिंदगी जीने की फिर अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


5–आपकी जब खुशी के वो पल आयेंगे।

आप मन ही यूं मन में ही मुस्कायेगे।

आपसे कोई बातें करें ना करें।

आपकी उस खुशी की अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


6–आप अपने को फुर्सत से देखा करो।

अपने कर्मों की रेखा को देखा करो।

दूसरे पर नजर तो चली जाती है।

ये नजर खुद को देख अलग बात है।


आप खुद में खुशी है अलग बात है।

आपसे सब खुशी है अलग बात है।

जिंदगी कुछ समय के लिए है मिली।

आप हर पल खुशी हैअलग बात है।


ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Monday, November 17, 2025

*शीर्षक –कविता में कविता*


1– कविता मे कविता लिखी गई।

कविता में कविता पढ़ी गई।

कविता में कविता सुनी गई।

कविता ने कवि से बात कही।


2–ये कविता जिंदगी की हर घड़ी की राज है कविता।

ये कविता हर सुनहरी शाम की सरताज है कविता।

ये कविता आश है और पास है संन्यास है कविता।

ये कविता हर तड़पती आत्मा की प्यास है कविता।


3–ये कविता एक नदी की धार है और प्यार है कविता।

ये कविता एक उलझती नाव की मझधार है कविता।

ये कविता तार है विस्तार है सत्कार है कविता।

ये कविता एक छोटी सी कड़ी विस्तार है कविता।


4–ये कविता गीत है संगीत है एक छंद है कविता।

ये कविता राम की रामायण की एक अंग है कविता।

ये कविता जान है पहचान है एक शान है कविता।

ये कविता मुरलीधर की मुरली की पहचान है कविता।

 

5–ये कविता जो लिखा उस लेखनी की जान है कविता।

ये कविता मान मर्यादा का भी एक ध्यान है कविता। 

ये कविता मां बहन बेटी का भी एक नाम है कविता।

ये कविता के रचयिता के दिलों की प्राण है कविता।

ये कविता रेस है अवशेष है संदेश है कविता।

ये कविता आखिरी सांसों का भी एक शेष है कविता।

ये कविता ब्रह्मा भी है विष्णु है महेश है कविता।

एक कविता दिन दिवाकर दिनेश है और सुरेश है कविता।

 

        *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक – मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।*


1–किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

ये दुनिया है कोई सम्मान देगा तो भी अच्छा है।

ये दुनिया है कोई अपमान देगा तो भी अच्छा है।

मान सम्मान और अपमान सब कुछ तुम समा लेना।

मगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना। 


2–ये दुनिया में सभी इंसान एक मेहमान जैसा है।

कोई गोरा कोई कला है तो इंसान जैसा है।

आदमी–आदमी के काम में आ जाए तो अच्छा।

अगर अच्छा नहीं करना बुरा भी यार मत करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी का गफलत नहीं करना।


3–ये दुनिया में अगर आए हो तो कुछ तो सहन करना ।

बुराई जो हमारे दिल में है उसको दहन करना।

मिले कुछ क्षण तुम्हे परमात्मा का तुम मनन करना।

सहन करना दहन करना मनन करना ही जीवन है।

अगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है कर जिंदगी जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना कभी नहीं करना मिली है।


4– आखरी सांस तक इंसान उम्मीदों में जीता है।

किसी का प्यार पाता है किसी का विष भी पीता है।

मगर इंसान अपनी जिंदगी को हंस के जीता है।

है जीवन आपका हंसकर के जीवन पार कर लेना।

कभी फुर्सत मिले परमात्मा का जाप कर लेना।

मगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।


     *ओम शांति* 

रचनाकार – *सुरेश चंद्र केसरवानी*

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Sunday, November 16, 2025

**शीर्षक – नैय्या भव से पार*


1–शांत चित सद्भावना का भाव हो।

नम्र चित और नम्रता का स्वभाव हो।

हो सुसज्जित शब्द में शुभभवना। 

तब ये नैय्या भव से बेड़ा पार हो।


2–भावना में भाव हो प्रतिराष्ट्र कि। 

धर्म हो और धारणा हो शास्त्र की।

कर्म के प्रति प्यार हो परमार्थ की।

लोभ मन में ना भारी हो स्वार्थ की।

जगृति हो जागरण का सार हो।

तब यह नैय्या भव से बेड़ा पार हो। 

शांत चित सद्भावना का भाव हो।

तब ये नैय्या भव से बेड़ा पार हो।

 

3–हो भरी करुणा यह मानव जन्म है।

पूर्व जन्मों का पुण्य का कर्म है।

सत्य पथ पर हम चले यह धर्म है।

धर्म की ही धारणा शुभ कर्म है।

सत्य पथ पर हम चले सद्भाव हो।

तब ये नैय्या भव से बेड़ा पार हो।

शांत चित्र सद्भावना का भाव हो।

तब ये नैय्या भव से बेड़ा पार हो।



      *ओम शांति* 

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी*

 (प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Saturday, November 15, 2025

*शीर्षक – जीवन की भाग दौड़*


1–बड़ी भाग है, इस जहां में जिधर भी।

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।

बड़ी दौड़ है ना है पल भर की फुर्सत।

न पूछो कि इनसे कहां जा रहे हैं।

न तन की खबर है, न मन की खबर है।

ना दुनिया की कोई जतन की खबर है।

नहीं कुछ पता है न दर न ठिकाना,

जिधर मन ने मोड उधर जा रहे हैं। 

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी।

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं


2–है भुला ये राही मगर इनसे पूछो की।

ए मेरे भाई कहां जा रहे हो, 

तो फट से फलक से यूं हंस के कहेंगे।

ना पूछो कि मुझसे कहां जा रहे हैं। 

बड़ी दौड़ है ना है पल भर की फुर्सत

न पूछो कि हमसे कहां जा रहे हैं। 


3–ये माया की नगरी है कैसी बजरिया।

यहां जो भी आया वो भुला डागरिया।

हु में कौन आया कहां से ना मालूम। 

है जाना कहां और कहां जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में इधर भी 

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं


4– परेशान है दुख में डूबा है आलम 

नजर को झुकाए चले जा रहे हैं।

नजर जब किसी की नजर से है मिलती।

तो झूठी हंसी में हंसी जा रहे हैं।

हकीकत का कुछ भी पता तक नहीं है।

दिखावे में यूं ही हंसे जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी,

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।


5– हकीकत का मंजर नहीं कुछ समझते।

है माया के दलदल में दिन-रात फसते। 

हैं होशियार इतना की बातें न करना।

यूं मुंह को दबाए हंसे जा रहे हैं। 

हंसी भी बनावट खुशी भी बनावट।

बनावट में यूं ही फंसे जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी 

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।


         *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Friday, November 14, 2025

*शीर्षक–अजब दुनियां का दस्तूर*

 

1–अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।

सोया पड़ा कोई खोया पड़ा है।

कोई रात दिन देखो रोया पड़ा है।

लड़ते झगड़ते नहीं चैन पल का।

मरे जा रहे हैं नहीं ज्ञान कल का।

है पल भर का जीवन संजोया पड़ा है।

कोई रात दिन देखो रोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


2–अपना ही अपना संजोया पड़ा है।

जो मन कह दिया वो ही बोया पड़ा है।

संजोने में दिन-रात यूं मर रहे हैं। 

नहीं कुछ पता है कि क्या कर रहे हैं।

जो मन कह दिया वो ही बोया पड़ा है ।

मुकद्दर को अपने वो धोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


3– नहीं कुछ खुशी है, नहीं कुछ है आशा ।

जिधर भी वो जाता है मिलती निराशा।

भटकता है दर-दर कभी जाता मंदिर।

कभी जाकर मस्जिद में धरता है माथा।

नहीं फिर भी मिलता सुकून अपने दिल को।

वो किस्मत को अपने भिगोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यह इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


4– कहो कुछ तो कहते हैं मुझसे भला कौन ।

होशियार होगा भला इस जहां में।

यह माया की छाया में घर को है भूले।

परम शिव पिता को भी दिल से है भूले, 

वो माया की दुनिया में सोया पड़ा है।

किस्मत को अपने भी खोया पड़ा है।

अजब हाल देख यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


     *ओम शांति* 

रचनाकार– *सुरेश चंद केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*शीर्षक –अर्पण समर्पण से सुखधाम*


1–अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो।

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।

करू प्यार सबसे मै दर्पण बनू तो।

यूं अर्पण समर्पण से सुखधाम होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो।

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।


2–मिला तन ये मानव का हु भाग्यशाली। 

गुरु ज्ञान से शिक्षा कुछ हमने पाली।

गुरु ज्ञान सागर का दर्शन करूं तो।

गुरु का ये जीवन में एहसान होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो 

जहां में हमारा भी सम्मान होगा ।


3–प्रथम ज्ञान मां के चरण आचरण से ।

मां के ही आंचल से आया हूँ रण में ।

समर में अगर मैं विजय हो गया तो ।

ये मां की दुआओं का एहसान होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करूं तो

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।


4– अमर आत्मा है यह तन है विनाशी।

अमर है तेरे कर्म की जो है राशि ।

मिटा ना सकेंगे ये कर्मों की रेखा।

तुम्हारे जिगर में जो अरमान होगा।

करू प्यार सबसे में दर्पण बनू तो 

यूं अर्पण समर्पण से सुखधाम होगा 

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करूं तो।

जहां में हमारा सम्मान होगा ।

      *ओम शांति*

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी* (प्रयागराज शंकरगढ़) 

मोबाइल नंबर –9919245170